प्रेम डोर - भाग 4 - अंतिम भाग Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम डोर - भाग 4 - अंतिम भाग

मानसी, आनंद से कहती है कि मुझे ऐसा महसूस होता है कि इस हवेली में कुछ तो रहस्य छिपा हुआ है जिसकी जानकारी हमें नही है। आनंद कहता है कि मैं भी काफी समय से वास्तविकता को जानने का प्रयास कर रहा हूँ परंतु पिताजी के वहाँ ना जाने के सख्त निर्देशों के कारण कुछ नही कर पाया फिर जब से व्यापार संभाला तो समय ही नही मिला की इस दिशा में सोच कर कुछ कर सकूँ परंतु अब तुम भी कह रही हो तो मैं प्रयास करूँगा और सच्चाई का पता लगाने का प्रयास करूँगा ? आनंद इस बारे में गौरव से चर्चा करता है। गौरव ऐसे मामलों में पडने से बचना चाहता था किंतु घनिष्ट मित्रता के कारण वह आनंद का साथ देने के लिये तैयार हो जाता है। आनंद अपने पिताजी को बताता है कि खेती के आधुनिकीकरण हेतु उन्हें गांव में कुछ लंबे समय तक रूकना पड सकता है। पिताजी कहते है कि आनंद अपना ध्यान रखना और भूल से भी हवेली की तरफ मत जाना। आनंद कहता है कि वह ऐसा कुछ भी नही करेगा जिससे उस पर किसी भी तरह का खतरा हो। वह पिताजी को बताता है कि गौरव भी उसके साथ जा रहा है। मानसी उसको कहती है कि तुम रोज मुझे शाम को 7 बजे के आस पास फोन पर बात करोगे यदि 8 बजे तक तुम्हारा फोन नही आया तो मैं पिताजी को सब बता दूंगी।

अब आनंद और गौरव गांव पहुँच जाते है और वे गांववालों के हित के लिये खेती के आधुनिकीकरण को सिखाने आये हुये प्रशिक्षकांे से सभी को मिलवाते है। आनंद गौरव से कहता है कि हम भोजन करने के उपरांत दोपहर को हवेली के आसपास मुआयना करने चलते है। गौरव कहता है कि ऐसा करने से यदि हम किसी की नजरों में आ गये तो चारों ओर बात फैल जायेगी। आनंद बोला कि हम भेष बदलकर चलेंगे। वे दोनो भिखारी के वेश में सायंकाल के समय खंडहर में प्रवेश करते है। कुछ आगे बढने पर शाम होने के कारण हवेली मंे अंधकार छा जाता है। वे दोनो बिना टार्च जलाए आगे बढते है। तभी एक स्थान पर ठिठक कर खडे हो जाते है क्योंकि सामने उन्हें दीवार पर विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनती बिगडती दिखती है। वे सोचने लगते है कि आखिर यह क्या रहस्य है ? तभी अचानक वे दोनो जहाँ खडे थे उस जगह पर कुछ कंपन महसूस करते है। गौरव आनंद को पकडकर सुरक्षा हेतु अंधेरे में ही एक दीवार के किनारे ले जाता है।

अचानक आनंद के पैरों पर कुछ टकराता है वह उसे टटोलकर देखता है तो महसूस होता है कि यह तो तारों का बंडल है। वह सावधानीपूर्वक कुछ तारों को काट देता है जैसे ही वह तारों को काटता है वैसे ही दीवार पर बन रही आकृतियाँ मिट जाती है और जमीन पर हो रहा कंपन भी बंद हो जाता है। आनंद, गौरव से कहता है लगता है यहाँ पर कोई अलग ही मामला है जिसमें आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह आश्चर्यजनक एवं खोजपूर्ण विषय है। निश्चित ही यह किसी के खुराफाती दिमाग का काम है जिसका उद्देश्य हम अभी नही समझ पा रहे है। उन्हें थोडा आगे बढने पर पत्थर की एक छोटी सी कलाकृति दिखाई दी जिसे देखकर वे ठिठक कर वहीं रूक गये और उसका ध्यानपूर्वक अवलोकन करके उन्होंने उसे पांव से दबाकर देखने का निर्णय लिया तदनुसार आनंद ने अपना दाहिना पांव उस पर रख दिया। ऐसा करते ही उस जगह पर कुछ कंपन सा हुआ और वहाँ से सुरंग नुमा एक रास्ता दिखने लगा।

जिसे देखकर आनंद ने इसमे प्रवेश हेतु अपना पांव आगे बढाया तभी गौरव ने उसे पीछे खीच लिया और कहा कि इस रहस्यमयी सुरंग में जाने का मार्ग तो हमें दिख रहा है परंतु वापिस आने पर यह दरवाजा कैसे खुलेगा इसकी जानकारी हमें नही है। हमंे बहुत जल्दबाजी नही करनी चाहिए और मन को एकाग्र रखते हुये भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं के बारे में पहले से सोच लेना चाहिए अन्यथा हम अपनी ही गलती के कारण मुसीबत में पड जायेंगें। अब तो यह स्पष्ट है कि यह भूत प्रेतों का काम नही है। आम नागरिकों एवं आसपास के ग्रामीणों को ऐसा डराया गया है कि उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हेाकर मानो यहाँ आने का प्रवेश वर्जित कर दिया गया हो। वे वापस लौटने के बारे में सोच ही रहे थे कि उन्हें दो व्यक्तियों की बहुत डरावनी आवाज आयी। वे धीरे से एक दीवार के पीछे छिप गये और उन्होंने देखा कि देा व्यक्तियों को सैकडों चमगादड काटते हुये उसी रास्ते से बाहर आने पर विवश कर रहे थे, जैसे ही वे व्यक्ति सुरंग के दरवाजे के समीप पहुँचे दरवाजा बंद हो गया। यह देखकर वे दोनो पीछे की ओर भागते है तभी सुरंग में एक आवाज के साथ दरवाजा नीचे खुल जाता है और दोनो उसमें से नीचे गिरकर मौत के आगोश में चले जाते है। यह देखकर आनंद और गौरव के रोंगटें खड़े हो जाते है। वे सोच रहे थे कि यदि हम नही रूकते और जल्दबाजी कर जाते तो हमारा भी हश्र ऐसा ही होता।

वे सुरंग वाले हिस्से को छोडकर हवेली में आगे की ओर बढ जाते है। थोडी दूर जाने पर ही मध्यम रोशनी में अनेकों जानवरों की खाल भूसा भरकर दीवार पर लटकती हुयी दिखती है। आनंद, गौरव से कहता है कि रोशनी के लिए बिजली कहाँ से और कैसे प्राप्त हो रही है ? लगभग उसी समय कुछ लोग काले कपडों में रहस्यमय रूप से दूसरी सुरंग से अंदर जाते हुये दिखते है। जैसे ही सुरंग का दरवाजा खुलता है मनोरंजक धुन सुनाई पडती है। यह देखकर आनंद और गौरव भी सुरंग में प्रवेश करते है। सुरंग में थोडी दूर जाने पर उन्हें एक दरवाजा दिखाई पडता जिसे वे खोलने का प्रयास करते है परंतु कार्ड द्वारा लॉक होने के कारण दरवाजा नही खुलता है यह देखकर वे कुछ देर के लिये छिप जाते है और जैसे ही दो लोेग भीतर प्रवेश करने की कोशिश करते है वे पीछे से हमला करके के उन्हें बेहोश कर देते है और उनका परिचय पत्र एवं रिवॉल्वर निकालकर अपने पास रख लेते है। उन्ही परिचय पत्रों के आधार पर वे उस दरवाजे से प्रव्ेाश करते है। अंदर जाने पर कुछ दूर तक चलने के पश्चात वे एक हॉल के पास पहुँचते है और वहाँ बैठे हुये एक शख्स को देखकर आनंद आश्चर्यचकित हो जाता है। गौरव, आनंद से पूछता है कि क्या बात है तुम अचानक ठिठक कर क्यों रह गए ? आनंद बताता है कि हॉल के अंदर जो बुजुर्ग शख्स बैठा हुआ दिख रहा है वह कोई और नही इसी गांव का वही वैद्यराज है जिसके बारे में अफवाह फैली थी कि उसने भूत देखा है और उस दिन के बाद से वह लापता हो गया था।

इसके बाद धीरे धीरे सर्तकता के साथ वे दोनो आगे बढ रहे थे फिर भी उन्हें ऐसा आभास हो रहा था कि उनके पीछे कोई आ रहा है। यह देखने के लिये वे दोनो सुरंग में मौजूद एक चट्टान के पीछे छिपकर बैठ गये। लगभग 15 मिनिट के बाद एक आदमी उनके पास से गुजरा उसका चेहरा देखकर आनंद आश्चर्य में रह गया। यह वही व्यक्ति था जो कि एक बार उसकी ट्रेन यात्रा में सहयात्री था। आनंद धीरे से गौरव को बताता है कि यह बात आज से कुछ वर्ष पहले की है जब मैं पटना से जबलपुर आ रहा था तो इस व्यक्ति का व्यवहार बहुत अजीब था। ट्रेन रवाना होने से पहले ही उसने अपने पास से एक बैग खीचा जिसमें शराब की विभिन्न ब्रांडों की बोतले थी। उसने वे सब बोतले निकालकर सामने सजा दी तभी ट्रेन रवाना हो गई। उसने एक बोतल खोली और साथ देने के लिए सबको निवेदन किया। उसके बोलने के तरीके से बहुत अहंकार झलक रहा था जैसे कि वह कोई बहुत ताकतवर व्यक्ति हो। उसके निवेदन को सभी ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। अब वह मेरे बहुत पीछे पड़ गया कि आपको मेरा साथ देना होगा। उसके बहुत आग्रह पर मैंने एक पैग ले लिया और धीरे धीरे पीने लगा। उस यात्री के व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वह मानसिक रूप से असंतुलित हो। उसी समय कोच अटेंडेट रात के डिनर के लिए पूछने आया। उससे वह अंटसंट बात करने लगा जिससे मैं समझ गया कि यह व्यक्ति ठीक नही है। इसके बाद सीधे उसने पूछा कि बगल के कंपार्टमेंट में जो दो लडकियाँ बैठी है वो कौन है ? और वहाँ पर दो बर्थ खाली है, मुझे वहाँ शिफ्ट कर दो। यह सुनकर अटेंडेट ने टिकिट चेकर को जाकर सब बातें बतायी और पीछे पीछे वह यात्री भी आ गया। टिकिट चेकर ने कहा उस कंपार्टमेंट में अगले स्टेशन से दो यात्रियों को आना है अतः वह बर्थ नही दी जा सकती।

यह सुनकर वह एकदम गुस्सा हो गया और वापिस अपने कंपार्टमेंट में आकर उसने अपना बैग खोलकर रिवाल्वर निकाल ली। यह देखकर दो सहयात्रियों ने उसको रोकने का प्रयास किया तो वह बोला कि जो मेरे शराब पीने के निवेदन को अस्वीकार कर देता है, मैं उसे गोली मार देता हूँ और जो मेरे साथ शराब पीता है उसे अपना मित्र समझकर उसे छोड देता हूँ। उसकी इन पागलपन भरी बातों को सुनकर मेरे सहयात्री हँस रहे थे परंतु मैं गंभीर था क्योंकि मेरे शहर के क्लब में दारू पीकर बहकने वाले एवं असगंत वार्तालाप करके झगडा करने वालों की गतिविधियों को मैंने नजदीक से देखा था। मैंने तुरंत उसका हाथ पकडा और उससे कहा कि भाईसाहब ऐसा कहा जाता है कि एक पैग दुश्मन को पिलाया जाता हैं और एक से ज्यादा मित्रों को। मेरी आपकी कोई दुश्मनी तो है नही, क्या आप मुझे एक पैग और नही पिलायेंगे। मेरी बात सुनकर वह बहुत प्रसन्न हो गया और बोला मैं पिलाऊँगा भी और तुम्हारे ऊपर गोली नही चलाऊँगा। मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया और अगला स्टेशन आने तक धीरे धीरे पैग पीकर उसे बातों में उलझाये रखा और जैसे ही अगला स्टेशन आया ट्रेन खडी होने के पहले ही दरवाजा खोलकर अटेंडेंट के पास भाग गया और टीटी को बुलाकर उसकी जाँच करने के लिये कहा। मैं टीटी से बात कर ही रहा था कि गोली चलने की आवाज आयी। हम तुरंत वहाँ पहुँचे और देखा कि गोली लगने के कारण दोनो सहयात्री घायल होकर गिरे पडे है दोनो ने मुझे देखकर भागने का इशारा किया और मैं बिना समय गंवाए तुरंत ही नीचे उतर गया और घबराहट में तेजी से भागकर स्टेशन के बाहर चला गया। कुछ देर बाद जब मैं संयत हुआ तब वापिस प्लेटफार्म पर आया तो देखा कि गाडी खडी हुयी थी और मुसाफिरों में हडकंप मचा हुआ था और पुलिस उसे चेतावनी देकर बाहर आने के लिये दबाव बना रही थी एवं साथ ही साथ चौथे यात्री यानी मेरी खोज के लिये भी एनाऊंसमेंट कर रहे थे। उस सिरफिरे ने अचानक ही एक पुलिस अधिकारी की ओर गोली चलायी परंतु निशाना चूक जाने के कारण वह बच गया। यह देखकर पुलिस कर्मियों ने फायरिंग शुरू कर दी और उसे कोच से गिरफ्तार कर लिया। दोनो घायल यात्रियों को एंबुलेंस से अस्पताल भिजवा दिया गया। यह बहुत ही खतरनाक वारदात हो गई थी इसलिये मुझे पुलिस कार्यवाही पूरी होने तक रूकना पडा तत्पश्चात दूसरी ट्रेन से मैं रवाना हो गया।

आनंद और गौरव के चारों ओर बडा अजीब सा माहौल था। वे दोनो किसी प्रकार छिपते छिपाते सुरंग से गुजर रहे थे। हॉल से कुछ ही दूरी पर जहाँ सुरंग समाप्त हो रही थी, उसके पास ही एक एस्केलेटर भी लगा हुआ था जिसमें बडी बडी पेटियाँ दूसरी तरफ से अंदर आ रही थी। आनंद ने गौरव से कहा की हम इसी एस्केलेटर के साथ साथ चलते है शायद हमें इसकी तह तक पहुँचने का रास्ता मिल जाये क्योंकि ऐसा लगता है यह सारी बडी बडी पेटियाँ दूसरी तरफ से ही आ रही है। वे दोनो एस्केलेटर के किनारे किनारे धीरे धीरे आगे बढते हुए सुरंग की दूसरी तरफ से बाहर आ जाते है। बाहर आते ही वे देखते है कि पीपल के पेड पर दो लाशें लटक रही है जब वे नजदीक से देखते है तो समझ जाते है कि ये लाशंे उन्ही दो लोगों की है जिनसे हमने परिचय पत्र छीन लिया था। संभवतः इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इन लोगों को जान से हाथ धोना पडा। दोनो लटकी हुयी लाशें माहौल में बहुत भयानकता का अहसास करा रही थी।

सुरंग के दूसरी तरफ का मुँह नदी किनारे निकलता था जिसका मुँह पत्थरों एवं झाडियों से इस प्रकार ढका रहता था कि किसी को प्रतीत ही नही होता था कि यह सुरंग है। थोडा आगे आने पर उन्होंने देखा के नदी के किनारे थोडी दूर पर तीन चार नाव खडी हुयी थी। आनंद ने गौरव से कहा कि लगता है नाव के माध्यम से भी चोरी छिपे आने जाने का रास्ता है। गौरव भी कहता है हाँ तुम सही कह रहे हो सुरंग देखकर ही यह प्रतीत हो गया था कि इन लोगों ने बहुत जबरदस्त निर्माण कर रखा है। कुछ दूर और चलने पर उन्हें एक गुफानुमा एक दूसरी सुरंग दिखाई देती है। इस सुरंग के पास ही बहुत बडा बिजली का ट्रांसफार्मर लगा हुआ था जिससे हवेली में बिजली की आपूर्ति जारी रहती थी और उसके पास ही एक मोबाइल जैमर भी लगा हुआ था। आनंद को बडा आश्चर्य हुआ कि किसके नाम पर इतना बडा बिजली का कनेक्शन है ?

वे दोनो यही सब सोचते हुए बहुत सावधानी से उस सुरंग में प्रवेश करते है सुरंग के भीतर बहुत अंधेरा था। वे बहुत धीरे धीरे आगे बढ रहे थे तभी गौरव का पैर किसी वस्तु से टकराया गौरव ने टटोला तो उसे वह वस्तु कोई बडी संदूकनुमा महसूस हो रही थी। उन्होंने धीरे से टार्च की रोशनी में उसे देखा तो दोनो ठिठक कर रह गये। ये तो हेंड ग्रेनेड से भरी हुई पेटी है। अब वे दोनो उस अंधेरी कोठरीनुमा जगह में धीरे धीरे और भी चीजों को देखने लगे। जैसे जैसे वे देख रहे थे उनका मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि वहाँ पर विभिन्न प्रकार की बंदूके और नशीले पदार्थ जैसे शराब, अफीम, गांजा, कोकीन आदि रखे हुये थे। आनंद ने गौरव से कहा कि अब तो पक्का यकीन हो गया है कि यहाँ पर भूत प्रेत की आड में देशद्रोही गतिविधियाँ चल रही है। हमें शीघ्र ही यहाँ से निकलकर इसकी जानकारी पुलिस को दे देनी चाहिये।

रात्रि के दस बज रहे थे और आनंद का फोन अभी तक मानसी के पास नही आने से वह चिंतित हो रही थी क्योंकि वह भी कई बार आनंद और गौरव को फोन कर चुकी थी परंतु उन दोनों का फोन नही लग रहा था और फार्म हाऊस में फोन करने पर पता चला कि आनंद और गौरव साहब तो दोपहर से कही गये हुये है तब से नही लौटे है। मानसी चिंतित होकर अपने ससुर को सारी बातें बताती है। यह सुनकर वे भी चिंतित हो जाते है और तुरंत गांव के नजदीकी थाने में फोन करके अपने परिचित पुलिस अधिकारी को सारी बातें बताते है। इंस्पेक्टर साहब उन्हें भरोसा दिलाते है कि हम तुरंत हवेली की ओर जा रहे है आप निश्चिंत रहिए हम आनंद और गौरव को खोज लेंगे। आनंद और गौरव अब गुफा से निकलने के प्रयास में थे वे धीरे धीरे आगे बढते हुये गुफा के मुहाने तक पहुँच गये। जैसे ही गुफा के मुहाने पर पहुँचे तभी उन्हें कुछ बंदूकधारी नकाबपोशों ने पकडकर चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने आनंद से पूछा कि तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो ? आनंद बहुत दयनीय भाव चेहरे पर लिये हुये गिडगिडाते हुये कहने लगा कि हुजुर हम लोग भिखारी है और रास्ता भटक कर इस ओर आ गये थे कि शायद रात बिताने के लिये कोई सुरक्षित जगह मिल जायेगी।

यह सुनकर वे लेाग उन दोनो भिखारियों को डांटकर आगे बढने को कह देते है। उसी समय आनंद की नजर नदी किनारे आती हुई एक नाव पर गई जो कि इसी तरफ आ रही थी। आनंद और गौरव चुपचाप पेड की ओट में छिपकर देखने लगे की आगे क्या होता है ? थोडी ही देर के पश्चात नाव किनारे पर लग गई और उनमें से कुछ लोग उतरकर गुफा की ओर बढ गये। कुछ समय पश्चात उन्ही में से कुछ लोग गुफा से कुछ संदूकों को लाते हुये दिखे। संदूक रखने के पश्चात नाव वापिस रवाना हो गई। अब आनंद और गौरव वहाँ से निकलने का उपाय खोजने लगे तभी तीन चार नकाबपोशों ने उन्हें घेर लिया और पकडकर गुफा में अपने मुखिया के पास ले गये। नकाबपोश मुखिया ने उनसे कहा कि तुम हमारी नावों को इतने गौर से क्यों देख रहे थे। हमने तुम्हें भिखारी समझकर छोड दिया था परंतु ऐसा लगता है कि तुम लोग भिखारी नही हो। सच सच बताओं तुम लोग कौन हो अन्यथा तुम्हें यही मार दिया जायेगा और तुम्हारी लाशें भी किसी को नही मिलेगी। वे आनंद और गौरव की तलाशी लेते है तो उनके पास से उनके साथियों के पहचान पत्र और रिवाल्वर मिलता है। यह देखकर मुखिया कहता है कि यह पहचान पत्र और रिवाल्वर तुम्हारे पास कैसे आये।

आनंद ने बताया कि सुरंग में प्रवेश के दौरान दो नकाबपोशों से यह हथिया लिया था। यह सुनकर मुखिया क्रोधित हो जाता है और आनंद तथा गौरव को झापड मारते हुए कहता है कि क्या तुम हम लोगो को मूर्ख समझते हो, तुमने हमारा पूरा ठिकाना देख लिया है। अब तुम हमारे बारे में सबकुछ जान चुके हो और अब भोले बनकर यहाँ से भागने की तैयारी में हो। अब मरने के लिये तैयार हो जाओ क्योंकि हम अपने दुश्मन को जिंदा नही छोडते है। पस्थितियों की गंभीरता को देखकर आनंद, मुखिया से कहता है कि पहले मेरी बात तो सुनलो इसके बाद तुम्हें जो करना है कर लेना। आनंद बताता है कि यह हवेली हमारे पूर्वजों की है और मेरे पास पक्की जानकारी है कि यहाँ पर हमारे पूर्वजों का खजाना गड़ा हुआ है। एक दिन अचानक ही मुझे अपने घर से एक नक्शा प्राप्त हुआ जो कि आधा फटा हुआ था इससे स्पष्ट नही हो पा रहा है कि खजाना कहाँ पर रखा हुआ है। इसलिये हम लोग वेश बदलकर खजाने की खोज में आये हुये है। यह सुनकर उस सरदार ने कहा कि ऐसी बातें तो मैंने भी गांववालों के मुख से सुनी थी और मेरे पास भी इस हवेली से प्राप्त एक अधूरा नक्शा है उसी आधार पर मैंने खजाने की खोज का प्रयास भी किया था परंतु असफल रहा। यदि तुम सच कह रहे तो तो मुझे वह नक्शा दिखाओं। आनंद वह नक्शा उसे दिखा देता है। मुखिया आनंद से कहता है कि तुम हमारे दुश्मन नही हो परंतु यह इत्तेफाक है कि तुमने खंडहर में प्रवेश करने के बाद बायीं की जगह दायी तरफ खोज चालू की और यही पर हमारा गुप्त दरवाजा था जिस कारण तुम यहाँ तक पहुँच सके। खैर छोडो, आओ अंदर चलकर दोनो नक्शों को मिलाकर खजाने की खोज शुरू की जाये।

वह मुखिया अपने मुख्य सरदार तक सारी खबर पहुँचाता है और उनके आदेश का इंतजार करता है। मुख्य सरदार आदेश देता है कि आनंद और गौरव को सख्त पहरे में मेरे पास ले आओे। कुछ ही दूरी पर एक दूसरी जगह पर मुख्य सरदार के सामने उन्हें ले जाया जाता है। वहाँ वह सम्मान पूर्वक उन्हें बडी अच्छी तरह से अपने पास बैठाता है। आनंद देखता है कि वैद्यराज और ट्रेन वाला सहयात्री भी वही बैठे हुये थे और वार्तालाप को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। अब सरदार अपने पास का आधा फटा हुआ नक्शा निकलता है और आधा नक्शा आनंद से लेकर उसको जोडकर देखता है। सरदार और उसका मुख्य सरदार इस निष्कर्ष पर पहुँचते है नक्शा सच्चा है और किसी प्रकार की तब्दीली भ्रमित करने हेतु नही की गयी है। वे यह भी समझ लेते है कि इस स्थान पर आनंद और गौरव के सहयोग के बिना नही पहुँचा जा सकता है। अब वे इन दोनो को कहते है कि अब हमें नक्शे के अनुसार आगे बढना चाहिए। उनकी बात सुनकर आनंद कहता है कि खजाना मिलने के पश्चात हमारा हिस्सा देकर हमें सकुशल छोडना पडेगा। वह सरदार उसे आश्वासन देता है कि ठीक है खजाना मिलने के पश्चात तुम्हें और तुम्हारे मित्र को सकुशल छोड दिया जायेगा। सरदार नक्शे को देखता है परंतु उसे कुछ समझ नही आता है वह आनंद से पूछता है कि इसमें तो सबकुछ चित्र पहेली जैसा बना है कुछ भी समझ नही आ रहा है। आनंद कहता है कि यदि पूरी तरह से हमारी भी समझ में आ गया होता तो अब तक खजाना नही निकाल चुके होते। वह कहता है कि जहाँ तक मुझे समझ आ रहा है वह मैं तुम्हें बता देता हूँ।

आनंद बताता है कि इस चित्र पहेली में यह जो घर का चित्र दिख रहा है वह हवेली है और फिर उसी घर के पीछे की तरफ अनेक झाडियाँ और नदी का चित्र दिख रहा है वह स्थान यही कहीं प्रतीत होता है। अब यहाँ तक तो हम लोग पहुँच चुके है। इस नक्शे के अनुसार झाडियों से घिरी हुई दो चट्टानों के बीच से कोई रास्ता है जो नदी तक पहुँचता है और वहाँ से नदी पार करके दूसरी ओर स्थित किसी गुफा में वह खजाना छिपा है। अब हमें वह स्थान तलाश करना है जहाँ झाडियाँ हो और दो चट्टानों के बीच से कोई रास्ता जा रहा हो। यह सुनकर मुख्य सरदार आदेश देता है कि अपने कुछ गुर्गाे के साथ धीरे धीरे टार्च की रोशनी से ऐसे स्थान को तलाशना शुरू करो। बहुत देर तक खोजने के पश्चात उन्हें ऐसी दो तीन जगह दिखाई पडती है जहाँ झाडियों के बीच चट्टाने हैं। वे सभी पुनः भ्रमित हो जाते है कि इनमें से कौन सी जगह सही है।

मुखिया अपने दो गुर्गों से एक जगह पर जाने और रास्ता देखने के लिये कहता है वे दोनो किसी तरह झाडियों को काटकर आगे बढते हैं और एक कीचडनुमा गड्ढे में फंस जाते है जैसे ही वे वहाँ से निकलने का प्रयास करते है वे और ज्यादा उसमें धंसने लगते है। यह देखकर वे घबरा जाते है और वही से सबको चिल्लाकर रोकने का प्रयास करते है और बताते है कि लगता है यहाँ पर दलदल है और हम लोग उसमें फंस गये है यह सुनकर सभी लोग रूक जाते है। उनके नकाबपोश साथी उन्हें निकालने का प्रयास शुरू करते है परंतु तब तक वे दोनो उसमें डूब जाते हैं। अब सरदार उनसे कहता है कि लगता है यह जगह वह नही है जिसकी हम खोज कर रहे है। हमें दूसरी जगह को देखना चाहिये।

वे सभी वहाँ से और आगे की तरफ एक स्थान पर पहुँचते है जहाँ पर झाडियों के बीच चट्टाने थी। वहाँ भी सरदार अपने कुछ गुर्गों को रास्ता तलाशने एवं झाडियों को साफ करने का आदेश देता है। चार नकाबपोश धीरे धीरे झाडियों को काटते हुये आगे बढते है। वे थोडी ही दूर तक बढे ही थे कि एक नकाबपोश के चीखने की आवाज आयी जैसे ही उसके साथियों ने उस तरफ टार्च से देखा तो सन्न रह गये। लगभग 6 फीट लंबा एक कोबरा सांप उसे डस कर फन फैला कर खडा था, जब तक वे सभी संभल पाते अचानक एक और साथी के चीखने की आवाज आयी। सभी का ध्यान उस ओर गया तो वहाँ भी एक और कोबरा सांप फन फैलाये खडा हुआ था। दोनो नकाबपोश जिन्हें सांपों ने डसा था उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी यह देखकर बाकी के दो नकाबपोश बहुत डर गये जैसे ही उन्होंने टार्च की रोशनी से अपने चारों ओर देखा वे सन्न रह गये क्योंकि वहाँ पर बहुत सारे सांप रेंग रहे थे। अब उन्हे समझ आया कि वे सांपों की बांबियों के पास आ गये थे। उन्होंने वही से सभी को आवाज लगायी कि इस ओर मत आइये यहाँ पर जहरीले सांपों की बांबियाँ है। यह कहकर वे बहुत सावधानी पूर्वक वहाँ से निकलने लगे परंतु टार्च की रोशनी के कारण उत्तेजित सांपों ने उन्हें डस लिया और वे भी वही पर मारे गये।

अपने साथियों की मृत्यु देखकर बाकी नकाबपोश भी बहुत डर गये थे। सरदार भी अपने गुर्गों के मारे जाने से दुखी था परंतु खजाने की लालच ने उसे अंधा कर दिया था इसलिये अब वह तीसरी जगह पर पहुँचा जो कि हूबहू नक्शे में दी हुई जगह से मिलती थी। सरदार ने अब अपने गुर्गों की जगह आनंद और गौरव से कहा कि इन झाडियों को काटकर आगे का रास्ता तलाशों। आनंद और गौरव भी बहुत डरे हुये थे। आनंद ने कहा कि अगर इन झाडियों में कही दुर्घटनावश हमारी मृत्यु हो गयी तो तुम्हें खजाने तक कौन ले जायेगा क्योंकि इस खजाने के नक्शे को मैं ही समझ सकता हूँ। अब गौरव सरदार से कहता है कि क्यों न हम सुबह तक इंतजार कर ले क्येांकि रात के अंधेरे में कुछ भी नही समझ में आ रहा है और तुम्हारे कुछ साथियों की भी मृत्यु हो चुकी है अतः हम सभी को सुबह तक इंतजार करना चाहिये ताकि उजाले मंे आसानी से रास्ता खोज सके। यह सुनकर सरदार अपने मुख्य सरदार को वायरलेस करके सारी स्थिति बताता है और पूछता है कि आगे क्या किया जाए ? मुख्य सरदार कहता है कि अभी तुम लोग वही पर रूकों मैं कुछ देर बाद बताता हूँ। उसी समय गुफा के किनारे नदी में टार्च की रोशनी दिखाई देती है और एक गुर्गा कहता है कि सरदार माल आ गया है इसको उतरवा कर गुफा में रखवाना पडेगा। सरदार सभी लोगों को वापिस गुफा के पास नदी किनारे चलने के लिये कहता है। यह सुनकर आनंद की जान में जान आ गयी और वह भी चुपचाप उनके साथ चलने लगा।

वे लोग नदी के किनारे पर पहुँचे ही थे कि सरदार के पास मुख्य सरदार का वायरलेस आया। उसने कहा कि सब लोग कही पर छुप जाओं हवेली के आसपास पुलिस बल देखा गया है। सरदार उसे बताता है कि माल भी आ गया है अब इसका क्या करे। मुख्य सरदार कहता है कि जल्दी जल्दी माल को सुरक्षित पहुँचाओं तथा आनंद और गौरव को गोली मार दो ऐसा लगता है कि इनके पीछे ही पुलिस यहाँ तक पहुँची है। आनंद, सरदार से कुछ ही दूरी पर खडा था और चौकन्ना होकर उनकी बातों को सुनने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही उसे आशंका हुई कि शायद सरदार हमें मार डालेगा। वह बहुत फुर्ती से सरदार की तरफ लपका और उससे हाथापाई करने लगा। जब तक गौरव व सरदार के अन्य गुर्गे कुछ समझ पाते आनंद ने सरदार की रिवाल्वर छीन ली और जोर से गौरव की ओर चिल्लाकर कहा कि भागो ये हमें मारने वाले है। गौरव भी चौकन्ना था उसने भी एक गुर्गे को धक्का देकर उसकी बंदूक छीन ली और सरदार की ओर गोली चलाकर नदी के पास स्थित झाडियों में कही छिप गये। अब सरदार किंकर्तव्यविमूढ हो गया था उसे समझ नही आ रहा था कि अचानक यह सब कैसे घटित हो गया और अब वह क्या करें।

आनंद के पिता ने इंस्पेक्टर साहब को फोन तो कर दिया था परंतु उनका मन नही मान रहा था उन्होंने तुरंत गौरव के पिता को फोन लगाया और सारी बातों से अवगत कराया। तत्पश्चात वे दोनो गांव जाने के लिये एकसाथ निकल पडे। इधर इंस्पेक्टर साहब ने भी अपनी खोजबीन शुरू कर दी थी। फार्महाऊस के कर्मचारियेां से पूछताछ के दौरान पता चला कि आनंद और गौरव दोपहर का भोजन करने के उपरांत कुछ आवश्यक कार्यों के लिये निकल गये थे उसके बाद से उनका कोई पता नही चला। कुछ गांववालों से पूछताछ के दौरान इंस्पेक्टर साहब को पता चला कि गांव में स्थित भूतहा हवेली के रास्ते पर काफी दूर आनंद और गौरव को देखा गया था और साथ ही साथ यह भी पता चला कि हवेली के पीछे स्थित नदी के किनारे उन्होंने एक नाव को देखा था। तभी नदी किनारे से गोली चलने की आवाज इंस्पेक्टर साहब के कानों में भी पडी। यह सुनकर इंस्पेक्टर साहब तुरंत हवेली के पीछे की तरफ मुआयना करने के लिये निकल पडे। जैसे ही वे हवेली के पीछे की  तरफ पहुँचे उन्हें पेड पर लटकी हुई दो लाशें मिली दिखी।

अब इंस्पेक्टर साहब का शक और भी गहरा हो रहा था क्योंकि जहाँ पर लाशें मिली थी वहाँ पर कच्चा पगडंडी जैसा रास्ता था जो कि आने जाने के लिये इस्तेमाल होता है। पगडंडी के रास्ते पर चलते हुये वे उस जगह पर पहुँच गये थे जहाँ हवेली की सुरंग का रास्ता खुलता था। इंस्पेक्टर साहब ने तुरंत इन सभी बातों की सूचना वायरलेस पर अपने उच्च अधिकारियों को दी एवं स्थिति की गंभीरता को देखते हुये अतिरिक्त पुलिस बल बुलवाया। इंस्पेक्टर साहब सावधानी पूर्वक पुलिस बल के साथ उस सुरंग में दाखिल होते है और जैसे ही वे अंदर थोडी दूर तक चलते है भीतर का माहौल देखकर दंग रह जाते है वहाँ भीतर स्थित एक हॉल में अनेक लोग थे जो हथियारों से सुसज्जित थे और वहाँ पर बहुत सारी पेटियाँ रखी हुयी थी जिनमें माद्रक द्रव्य, हथियार, सोना आदि रखे हुये थे। इंस्पेक्टर साहब पुलिस बल को धीरे धीरे सुरंग को चारों ओर से घेरने का आदेश देते है।

अब सभी पुलिसकर्मी सर्तकता के साथ बिना कोई आवाज किये अपनी अपनी जगह पर मुस्तैदी के साथ खडे हो जाते है। एकाएक इंस्पेक्टर साहब जोर से दरवाजे पर लात मारते हुये एक हवाई फायर करते है और हॉल के भीतर स्थित सभी लोगों को चेतावनी देते हुये कहते है कि सभी अपने अपने हथियार नीचे रख दो अन्यथा मार दिये जाओगे परंतु अचानक से उन तस्करांे का एक साथी गोली चला देता है। इंस्पेक्टर तुरंत वहाँ से हटकर अपनी जान बचाता है और जोर से अपने साथियों को आवाज लगाते हुये गोली चलाने का आदेश देता है। गोलीबारी के दौरान अचानक बिजली बंद हो जाने से पूरी तरह अंधेरा छा जाता है। हवेली एवं आसपास के इलाकों में गोलियों की आवाजें गंूज रही थी। अचानक हुये इस हमले से तस्कर घबरा जाते है और अंधेरे का फायदा उठाकर सुरंग से निकलने की कोशिश करते है परंतु पुलिस बल के आगे उनकी एक नही चली और अधिकांश तस्करों की मृत्यु के पश्चात बाकी बचे हुए लोग पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर देते है।

यह सब देखकर तस्करों का मुख्य सरदार और वैद्यराज सुरंग में एक टाइम बम फिट कर देते है और अंधेरे का फायदा उठाते हुए सुरंग से तुरंत निकल जाते है। एक पुलिसकर्मी जो कि मुख्य सरदार पर घात लगाए बैठा था उसने उन्हे टाइम बम लगाते हुए देख लिया था। वह तुरंत इंस्पेक्टर साहब के पास जाकर उन्हें सारी बातें बताता है। इंस्पेक्टर साहब सभी पुलिस कर्मियों को तुरंत सुरंग से बाहर निकलने का आदेश देते है जैसे ही वे लोग सुरंग से बाहर निकलते है कि अचानक ही जोरदार धमाका होता है और सुरंग के साथ ही साथ पूरी हवेली जमींदोज हो जाती है। धमाके के कारण सुरंग के भीतर स्थित तस्करी का सारा सामान नष्ट होकर तितर बितर हो जाता है। यह धमाका देखकर इंस्पेक्टर साहब की रूह कांप जाती है और वे सकुशल सुरक्षित होने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते है। इंस्पेक्टर साहब तुरंत कंट्रोल रूम फोन करके उच्च अधिकारियों को परिस्थिति से अवगत कराते है और बताते है कि ईश्वर की कृपा से एक भी पुलिसकर्मी को कोई चोट तक नही पहुँची है परंतु धमाके के कारण तस्करी का सारा माल नष्ट हो गया है। अब इंस्पेक्टर साहब वैघराज और उसके भाई की तलाश करने में जुट जाते है।

गोलीयों की आवाजें और अचानक हुए धमाके की आवाज सुनकर छोटा सरदार भी आनंद और गौरव की तलाश छोडकर हवेली तरफ भागता है परंतु रास्ते में ही उनकी मुठभेठ पुलिस से हो जाती है क्योंकि इंस्पेक्टर साहब ने जब नदी किनारे गोली की आवाज सुनी थी तभी एक पुलिस दल उन्होंने नदी किनारे भेज दिया था। इस मुठभेड में छोटा सरदार और उसके सारे गुर्गे मारे जाते है। पूरी रात्रि पुलिस सर्च लाइट के माध्यम से बचे खुचे तस्करांेे को ढंढती है और उन्हंे गिरफ्तार कर लेती है। अंततः मुख्य सरदार और वैद्यराज भी एक जगह घनी झाडियों की बीच पकडे जाते है। अनैतिक गतिविधियों का इतना बडा अड्डा और उसके संचालक को जिंदा पकडने की खुशी में इंस्पेक्टर साहब फूले नही समा रहे थे। वे इन सब चीजों में इतना उलझ गये थे कि आनंद और गौरव को तलाशने की बात उनके दिमाग से ही निकल गयी थी। वे कंट्रोल रूम में संदेश भेजते है कि सामान जप्त करने हेतु अतिरिक्त पुलिस वाहन की आवश्यकता है। वे इन्ही क्रियाकलापों में इतना व्यस्त थे कि अचानक उनके मोबाइल पर घंटी बजी और उधर से आनंद के पिताजी की आवाज आयी कि इंस्पेक्टर साहब मैं गांव पहुँच गया हूँ। आनंद और गौरव का कुछ पता चला ? यह सुनकर इंस्पेक्टर साहब जैसे नींद जागे और कहा कि क्षमा कीजियेगा ठाकुर साहब अभी उन दोनो का कुछ पता नही चला है परंतु मैं उनकी तलाश में आपकी हवेली के पीछे नदी किनारे आया हूँ और मुझे उम्मीद है कि वे दोनो भी यही कहीं होेंगे। तभी आनंद के पिताजी कहते है ठीक है इंस्पेक्टर साहब हम भी वही पहुँचते है। यह कहकर वे फोन काट देते है। इंस्पेक्टर साहब मुख्य सरदार समेत तुरंत उन सभी तस्करों को गिरफ्तार कर लेते है और अपने मातहत कर्मचारियेां को आदेश देते है कि शीघ्रतिशीघ्र इन सभी सामानों की जप्ती बनाकर सरकारी वाहन से थाने भेजा जाए। वे अपने साथ कुछ पुलिस कर्मियों को लेकर आनंद की खोज में निकल पडते है।

इतनी सब कवायद में कब रात बीत गयी कुछ पता ही नही चला धीरे धीरे सूर्य भगवान अपनी लालिमा बिखेरते हुये, रात के अंधेरे को मिटाते हुये प्रकट होे रहे थे। इंस्पेक्टर साहब लाउड स्पीकर के माध्यम से मुनादी कराते हुए आनंद और गौरव को ढंूढने का प्रयास करते है। आनंद और गौरव झाडियों में छिपे हुये थे। मुनादी सुनते ही, सुरक्षित महसूस होने पर वे बाहर निकल आते है। आनंद और गौरव को सकुशल देखकर इंस्पेक्टर साहब भी बहुत प्रसन्न होते है। उसी समय उनके पिताजी भी वहाँ पहुँच जाते है। आनंद और गौरव को सकुशल देखकर उनकी आँखों से खुशी के आंसू बहने लगते है। दोनो तुरंत अपने पिताजी के पास पहुँचते है और उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेते है।

इंस्पेक्टर साहब अपनी वैधानिक कार्यवाही में व्यस्त हो जाते है। उन्होंने पास ही स्थित उस गुफा को भी निगरानी में लेते हुये वहाँ स्थित सारी सामग्री जप्त कर ली थी। इस बीच आनंद ने मौका देखकर चुपके से छेाटे सरदार के मृत शरीर की जेब से नक्शा निकालकर अपने पास रख लिया था। उजाला होने के बाद इंस्पेक्टर साहब पुनः हवेली की ओर जाते है और उसी समय प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एवं पत्रकारागण पहुँच जाते है। वहाँ पहुँचकर वे सभी आश्चर्य चकित रह जाते है क्योंकि धमाके के कारण हवेली तो जमींदेाज हो गयी थी परंतु उस धमाके की वजह से वहाँ एक बडा गड्ढा निर्मित हो गया था और अनेक तरह के पुराने जमाने के संदूक आदि उसमें नजर आ रहे थे। प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश पर गड्ढें एवं उसके आसपास खुदाई शुरू करवायी गयी और जैसे जैसे वे मलबे केा हटाते जा रहे थे उन्हेें अनेक पुराने जमाने के संदूक, पेटियाँ, भगवान की स्वर्ण निर्मित मूर्तियाँ आदि मिलने लगी। प्रातः काल से शाम तक पुलिस और प्रशासन के सभी बडे अधिकारी और मीडिया के बडे बडे पत्रकार वहाँ पर उपस्थित थे क्यांेकि तस्करों के पकडने के साथ ही साथ उस धमाके के कारण जमीन के नीचे गडा हुआ खजाना भी सामने आ गया था और जैसे ही यह खबर न्यूज चौनलों ने प्रसारित की सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये। गांव वाले जो अब तक सिर्फ खजाने को एक अफवाह मानते थे वे भी इस सच को स्वीकार कर रहे थे।

आनंद और गौरव को कानूनी कार्यवाही के कारण कुछ समय तक रूकना पडा फिर वे अपना बयान दर्ज करवा कर और आगे भी पुलिस कार्यवाही में सहयोग देने का वादा करके अपने फार्महाऊस की ओर निकल गये। अब भूतिया हवेली की सारी दास्तान आग की तरह आसपास के सारे इलाकों में फैल गयी। जब इस घटना के मुख्य आरोपी वैद्यराज और उसके भाई को गांव वालों के सामने लाया गया तो सारे लोग आश्चर्य चकित रह गये कि ये तो वही वैद्यराज है जो कि इस गांव से गायब हो गये थे। थाने लाकर जब वैद्यराज और उनके भाई से कडाई से पूछताछ की गयी तो सारा भेद खुल गया। वैद्यराज ने बताया कि बहुत पहले वे इस गांव में वैद्य का कार्य करते थे तब से इस हवेली की भूतहा होने के बारे में सुनते थे। एक बार उनका भाई जो कि नामी गिरामी डॉन था और तस्करी का कार्य करता था वह छिपता छिपाता मेरे पास गांव आया क्योंकि एक ट्रेन में गोलीकांड के कारण उसे काफी लंबी सजा मिली थी और वह पेशी के समय पुलिस को चकमा देकर भाग निकलने में कामयाब रहा तो अपनी फरारी काटने के लिये मेरे पास आया था। मैंने पहले तो उसे रहने से मना कर दिया परंतु अत्याधिक रूपयों के लालच में मैने उसे अपने पास रोक लिया।

एक दिन हम लोग ऐसे ही टहलते हुये हवेली तक पहुँचे। मेरे भाई को वह हवेली बहुत पसंद आयी कि इस जगह से अपना कारोबार बेरोकटोक चल सकता है। मैंने उसे बताया कि यहाँ अफवाह है कि यह भूतहा हवेली है परंतु वह नही माना और हवेली को पूरा घूम आया उसे कुछ भी नही हुआ। उसे देखकर मेरा भी डर जाता रहा। एक दिन उसने मुझे एक योजना बताई जिसके तहत मुझे गांव वालों में यह बात फैलानी थी कि मैं रात में उस हवेली में इलाज करने गया और मुझे अशर्फी मिली और उसके दो दिन बाद मुझे गांव से गायब हो जाना था जिससे गांव वालों में मन में हवेली का भय और ज्यादा घर कर गया। इसके बाद मेरे भाई का तस्करी का कारोबार इस हवेली के सूने होने की वजह से बेरोकटोक चलने लगा। मुझे भी अनाप शनाप पैसा मिलने लगा। नदी किनारे पर हमने फैक्ट्री डालने के बहाने से बिजली कनेक्शन भी ले लिया था और अधिकारियों को रिश्वत देकर वैद्य दस्तावेज भी तैयार करा लिये थे। फिर धीरे धीरे हमने हवेली से नदी तक सुरंग बना ली थी जिससे किसी को भी पता ही नही चलता था कि यहाँ पर कुछ हो रहा है परंतु आज अचानक पुलिस का छापा कैसे पडा यह बात नही समझ आई।

अब इंस्पेक्टर साहब आनंद से कहते है कि अब तुम अपनी बात बताओ तुम्हें कैसे सूझा कि यहाँ कुछ है? आनंद ने कहा कि मैं विज्ञान का छात्र हूँ और सुनी सुनाई बातों पर यकीन कर लेना मुझे पसंद नही है। मैं तो बहुत पहले से इस हवेली के भीतर जाकर देखना चाहता था कि वास्तविकता क्या है ? परंतु पिताजी के भय के कारण कभी नही आया फिर बाद में व्यापारिक व्यस्तता के चलते इधर आना ही नही हुआ। अभी कुछ समय पहले जब मैं अपनी पत्नी मानसी के साथ गांव  आया तो उसकी जिद के कारण मुझे हवेली तक आना पडा और जैसे ही हम लोग हवेली के मुख्य द्वार पर पहुँचे अचानक हमारी ओर पत्थर फेंके जाने लगे। यह देखकर मानसी डर गई और मैं भी तुरंत कार में बैठ गया तभी मुझे कार के रिव्यू मिरर से हवेली की खिडकी पर एक नकाबपोश व्यक्ति दिखाई दिया। मैं तभी समझ गया था कि यहाँ पर कुछ गडबड जरूर है। फिर एक दिन हम यहाँ पर कृषि आधुनिकीकरण के कार्य के लिए आये उसी समय हमने ठान लिया था कि इस हवेली में प्रवेश करके यहाँ की सच्चाई का पता लगायेंगे।

एक दिन हम अपनी योजना के अनुसार देापहर के भोजन के उपरांत पैदल ही फार्महाऊस से निकले और थोडी देर बाद एक सुनसान जगह पर जाकर अपनी वेशभूषा बदलकर भिखारियों जैसी बना ली और हवेली की ओर चल दिये। हवेली तक पहुँचते पहुँचते शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो चुका था। हम धीरे से हवेली में दाखिल हुये और चलते चलते एक छिपी हुयी सुरंग के पास पहुँचे जब हमने सुरंग के अंदर हॉल में वैद्यराज और उनके अपराधी भाई के साथ हथियार बंद लोगों को देखा तो हमें सब समझ में आ गया कि हवेली के भूतहा होने की अफवाह फैलाकर यहाँ पर देशद्रोही गतिविधियाँ संचालित हो रही है। सुरंग से बाहर आकर हम नदी किनारे की गुफा तक गये। वहाँ भी बहुत सारे हथियार और तस्करी का सामान रखा हुआ था। हम गुफा से निकलकर पुलिस को सूचना देने की योजना बना ही रहे थे कि पकडे गए यह सब देखकर मुझे यकीन हो गया था यहाँ से सकुशल लौटना मुश्किल है।

वे लोग इतने खतरनाक थे कि शायद हमें तुरंत ही मार देते परंतु अपने आप को सकुशल बचाए रखने की दृढ इच्छाशक्ति के कारण मैंने एक योजना बनायी और कहा कि मैं इस हवेली का मालिक हूँ और अपने पूर्वजों द्वारा छोडे गये खजाने की खोज मैं आया हूँ, मेरे पास उसका नक्शा भी है इसी नक्शे के अनुसार मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ। जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ उन तस्करों का मुखिया खजाने की लालच में मेरे जाल में फंस गया। मेरी अगली योजना थी कि किसी भी तरह से रात का समय व्यतीत हो जाये तो सुबह तक कुछ न कुछ मदद अवश्य पहुँच जायेगी क्योंकि मैं मानसी से कह कर आया था कि यदि मेरा फोन रात 8 बजे तक नही आये तो तुम समझ लेना कि कुछ मामला गड़बडत्र है और यह बात पिताजी को बता देना। मैं उन तस्करों को रात भर खजाने की तलाश में इधर उधर भटकाता रहा जिस कारण दलदल में फंसने एवं सर्पदंश के कारण कुछ तस्कर मारे भी गए। रात्रि में मुझे छोटे सरदार पर कुछ शक हुआ कि शायद अब यह हमें मार सकता है। यह विचार आते ही हम भागने की फिराक में थे और मौका देखकर अचानक ही हमने सरदार पर हमला कर दिया और उसकी बंदूक छीनकर गोली चला दी ताकि गोली की आवाज से यदि कोई हमें खोजने आ रहा है तो चौकन्ना हो जाए और उसे पता भी चल जाए कि हम किस दिशा में है। हमारी एक फायरिंग के कुछ देर बाद ही हवेली के पास से जब दनादन फायरिंग की आवाजे आने लगी और एक तेज धमाका सुना तो कुछ देर के लिये हम भी भयभीत हो गये कि क्या हो रहा है परंतु जब हमने सुबह मुनादी सुनी और देखा कि पुलिस आ चुकी है और सारे तस्कर हथियार डाल चुके है तब हम बाहर निकल आये।

प्रशासन एवं पुलिस के उच्च अधिकारियों ने आनंद और गौरव, दोनो की सूझबूझ और चतुराई की बहुत तारीफ की। आनंद ने गौरव से कहा कि हमें हमारे पूर्वजों का खजाना तो हाथ लग गया साथ ही साथ जान बची तो लाखों पाये की कहावत भी आज चरितार्थ हो गयी। यह सुनकर गौरव भी आनंद की बात पर सहमत हो जाता है और कुछ समय पश्चात सारी कानूनी कार्यवाही के बाद दोनो वापिस अपने गृहनगर लौट आते है। जब मानसी और पल्लवी को सारी बाते पता हुई तो वे भगवान की इस कृपा के लिए नतमस्तक हो गयी।

समय चक्र धीरे धीरे चल रहा था। इतने बडे हादसे से बचने के बाद अब आनंद अधिकतर समय जनसेवा के कार्यांे में ही व्यतीत करने लगा उसका मानना था कि उसके कुछ पुण्य कर्मों से ही यह ईश्वर कृपा हुई है इसलिये वह अधिकतर समय समाज सेवा के कार्यों में देने लगा। पिछले एक साल में हुए हादसों को भुलाते हुये पूरा परिवार गौरव और पल्लवी के विवाह की खुशियों में डूब जाता है। दोनों का विवाह अत्यंत धूमधाम से संपन्न हो जाता है।

एक दिन वे चारों बगीचे में बैठकर गुफ्तगूं कर रहे थे तभी पल्लवी बोली कि खजाना भी मिल गया और सरकार द्वारा उसका अधिग्रहण करके उसका दस प्रतिशत लाभांश एवं प्रशस्ति पत्र आप लोगों को प्राप्त हो चुका है। अब इतनी दौलत का सदुपयोग आप कैसे करेंगें ? आप लोगों की किस्मत बहुत बुलंद है और ईश्वर की महती कृपा है कि आपकी जान भी बच गयी और धन, संपत्ति, मानसम्मान भी प्राप्त हुआ। मानसी कहती है कि मेरा विचार है कि हम इस धन ाक सदुपयोग करने हेतु एक सार्वजनिक चिकित्सालय जिसकी यहाँ अत्यंत आवश्यकता है, बनवाते हैं जिसका नामकरण निशा दीदी की स्मृति में किया जाए। यह सुनकर आनंद की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते है और वह मानसी से कहता है कि तुमने मेरे मन की इच्छा को अपने शब्दों के माध्यम से प्रकट कर दिया है। आनंद खजाने से प्राप्त लाभांश की राशि को गांव के सर्वांगीण विकास के लिये अपनी पहली पत्नी निशा की स्मृति में ट्रस्ट बनाकर सौंप देता है।

 

                                                      ---  राजेश माहेश्वरी

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