एक ख़ूबसूरत रिश्ता DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक ख़ूबसूरत रिश्ता

एक ख़ूबसूरत रिश्ता

पति और पत्नी का रिश्ता पवित्र एहसासों की डोर के ताने बानें से बुना हुआ एक ख़ूबसूरत रिश्ता है। जिसमें एहसासों की मज़बूती रिश्ते की मज़बूती को तय करती है। ये एहसास ही दोनो की एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारियों को पूरी शिद्दत और ईमानदारी के साथ निबाहने की ताक़त और हौसला देते हैं... ज़िन्दगी में जो तमाम छोटी बड़ी परेशानियां और उलझनें सामने आती हैं उनसे निपटने में ये एहसास एक बड़ा प्रभावी रोल अदा करते हैं। यहां ये बात बहुत अहम है कि एहसास एकतरफ़ा नहीं बल्कि दोनों तरफ़ से एक बराबर की फ्रिकवेन्सी पर रह कर जब काम करते हैं तो दोनों की ज़िन्दगी में बेहतर तालमेल और रिदम् होता है, जो ज़िन्दगी को खुशगवार और शांतिपूर्ण बनाते हैं। जिसका असर उनकी अपनी फैमिली, बच्चों और ख़ानदान के दूसरे लोगों पर भी साफ़ दिखाई देता है... ऐसे में दोनों में से किसी की भी कोई कमज़ोरी, अन्जाने में या भूले से हई ग़ल्ती उनके रिश्तों को कमज़ोर नहीं कर सकती बल्कि वो एक दूसरे के लिये आड़े वक़्त में मज़बूत सपोर्ट बनकर अपने रिश्ते को और मज़बूती देते हैं... इसके उलट एहसासों की शिद्दत या फ्रिकवेन्सी में आया फ़र्क रिश्तों को कमज़ोर बना देता है जो आगे चलकर परिवार और पूरे ख़ानदान मे तबाही का कारण बनता है... मौजूदा दौर में तलाक और विवाह विच्छेद के केस बहुत बढ़ गए हैं। जिसमें विवेचना करें तो कारण अक्सर बहुत मामूली व नगण्य सी बात होती है जिसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता था । अक्सर ये देखा जाता है कि, हर छोटी बड़ी गल्ती पर दोनों एक दूसरे को या कभी कभी तो शौहर बीवी को और कभी बीवी शौहर को तोहमत और इल्ज़ाम लगाकर, और चारों तरफ़ इस बात ढिंढोरा पीटते हुए कि उनके साथी ने ग़लतियाँ कीं, उनके एहसास को ठेस पहुंचाई है, सबसे सिम्पैथी लेने की कोशिश करते हैं... इस कोशिश में वो ये भूल जाते हैं कि इस सबसे नाइत्तेफ़ाक़ियां और बढ़ जाती हैं और अक्सर फ़ायदे की जगह उनको नुक़सान ज़्यादा हो जाता है... जो मसला आपस में मिल मिल बैठ कर एक दूसरे से बात विमर्श करके आसानी से हल हो सकता था वो बेवकूफी, दूरदृष्टी की कमी और ईगो की वजह से ऐसे मोड़ पर पहुंच जाता है जो उनके और दूसरे फैमिली मैंमबर्स् की ज़िन्दगी के लिए सिर्फ़ परेशानी और हताशा का कारण बनता है... एहसास को ठेस किसी एक को नहीं बल्कि दोनों को ही लग सकती है... इसलिये, इसका हल एक दूसरे पर दोषारोपण करने से नहीं होगा बल्कि दोनों को इस बात पर चिन्तन, मनन करके कि आख़िर ये नौबत क्यूं आई, ख़ुद अपने अंदर झांक कर ये देखना होगा कि हम कहां चूके, क्या हमारा अपना रवैया पूरी तरह से जायज़ व सही है... कहीं हमारी अपनी ही ग़लत सोच और हरकतें ही तो हमारी सारी परेशानियों की वजह नहीं है... इसके लिये सबसे पहले अपने ईगो को छोड़ना होगा तभी अपने रवैये और किरदार पर ग़ौर किया जा सकता है और तभी इस ख़ूबसूरत रिश्ते की ख़ूबसूरती को बरक़रार रख कर न सिर्फ़ अपनी ज़िन्दगी को संवारने में मदद मिल सकती है बल्कि तमाम ज़िन्दगियों को संवारा जा सकता है। "