ओ..बेदर्दया--भाग(१३) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ओ..बेदर्दया--भाग(१३)

दुर्गा और शक्ति की शादी की तैयारियांँ जोरों पर चलने लगीं,शक्ति बहुत खुश था इस शादी से क्योंकि दुर्गा उसे पहली ही नजर में भा गई थी,दोनों कभी कभी किसी मंदिर या तीज-त्यौहार पर मिल भी लेते थे,दुर्गा को भी शक्ति पसंद था,शक्ति देखने में अभ्युदय से भी ज्यादा खूबसूरत था क्योंकि शक्ति की माँ सुकन्या भी बहुत सुन्दर थी और शक्ति के नैन-नक्श बिलकुल अपनी माँ सुकन्या जैसे थे,भूरी आँखें और गोरा रंग था उसका,बस वो थोड़ा स्वाभाव का अच्छा नहीं था और हमेशा शास्त्री जी के परिवार का बुरा ही चाहता था,लेकिन ये बात वो किसी को महसूस नहीं होने देता था कि वो उन सबसे नफरत करता है....
और दुर्गा को भी यही लगता था कि शक्ति अपने परिवार से बहुत प्यार करता है,इसलिए वो भी उन सभी का बहुत मान करती थी,ऐसे ही दिन गुजरे और शादी के दिन भी पास आ गए,दोनों ही परिवारों में शादी की तैयारियांँ जोर-शोर से होने लगी,कृष्णगोपाल जी बहुत ही खुश थे कि उनकी बेटी अच्छे घर में ब्याह कर रही है,उन्हें इससे फरक नहीं पड़ता था कि लड़का कुछ नहीं करता और हमारे समाज की बिडम्बना भी तो यही है कि लड़की के पिता वर देखकर नहीं घर देखकर उसका ब्याह करता है,बड़ा घर हो,ससुर कमाता हो ,लड़का चाहे कुछ भी ना करता हो फिर भी अपनी बेटी ऐसे घर में ब्याह देगें और लड़के के घरवालों को ये आशा रहती है कि बहू के आते ही हमारा बिगड़ैल लड़का सुधर जाएगा, अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने लगेगा....
अब कह भी क्या सकते हैं यही तो समाज है और फिर वो दिन भी आ गया जिसका सबको बेसब्री से इन्तजार था,अभ्युदय अपने भाई की शादी में अपने दोस्तों संग खूब नाचा,वरमाला हुई फिर सात फेरों के बाद दुर्गा की विदाई भी हो गई और पलक झपकते ही दुर्गा अपनी भीगीं पलको के साथ ससुराल के द्वार पर खड़ी थीं,रास्ते भर शक्ति दुर्गा को चुप कराते हुए आया था और वो चुप ना हुई थी,लेकिन जब शैलजा ने प्यार भरा हाथ दुर्गा के सिर पर फेरा तो फिर वो एकदम शांत हो गई,शैलजा ने बहू का निहारन किया,नजर उतारी और फिर सभी के साथ कुलदेवी की पूजा के लिए गाँव की ओर चल पड़ी,वहाँ उसने दुर्गा से कुलदेवी के मंदिर में हल्दी से भरी हथेलियाँ लगवाई और फिर अपने घर के द्वार पर भी हल्दी की हथेलियाँ लगवाई और बाद में शक्ति के घर के सामने ले जाकर बोली...
"दुर्गा बहू!ये है तुम्हारी सम्पत्ति,आज से तुम इन सबकी मालकिन हो,अपने घर के द्वार पर भी हथेलियाँ लगा दो जिससे पुरखे तुम्हें पहचान जाएं कि अबसे तुम इस परिवार का हिस्सा हो"
और दुर्गा ने ऐसा ही किया,फिर सब गाँव से लौटे और फिर दूसरे दिन सत्यनारायण की कथा हुई और तब जाकर दुल्हा-दुल्हन को मिलने दिया गया,उस रात शैलजा खुद आपने हाथों से दुर्गा को तैयार करके शक्ति के कमरे में भेजते हुए बोली....
"खुश रहो बेटा!दूधो नहाओ,पूतो फलो"ईश्वर तुम दोनों को सदा सुखी रखें,तुम्हारी जोड़ी यूँ ही बनी रहे"
फिर क्या था उस दिन के बाद दुर्गा ने सारा घर सम्भाल लिया और वो सबकी चहेती बन गई थी,वो अब शैलजा को कुछ भी ना करने देती और सबका बहुत ख्याल रखती,देर रात गए जब अभ्युदय घर लौटता तो उसको भी ना छोड़ती और डाँट लगाते हुए उससे कहती....
"आइए...आइए..भ्राताश्री! मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रही थीं,आपको तो जरा भी रहम ही नहीं है अपने बूढ़े माँ-बाप पर,कुछ उनके बारें में भी सोच लिया करिए,लेकिन नहीं आप जल्दी घर आ जाऐगें तो ना जाने कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा,जंगल रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा और ये धरती पानी से भर जाएगी"
"तू फिर से मेरी क्लास लेने बैठ गई,इतना तो कभी मेरी माँ ने मुझे नहीं टोका,जितना कि तू मुझे टोकती है",अभ्युदय दुर्गा से कहता....
"मैं आपकी माँ नहीं हूँ भ्राताश्री! मुझे तो आप अपनी बहन की तरह मानते हैं ना!तो छोटी बहन को अधिकार होता है कि वो अपने बड़े भाई को डाँट सकती है",दुर्गा बोलती...
"बस..बस...बहुत हो गया डाँटना-वाँटना,जल्दी से खाना परोसो,बहुत भूख लगी है"अभ्युदय कहता...
"अब मुझसे खाना-वाना नहीं परोसा जाता,मेरे लिए जेठानी ले आओ अब तो,वही परोसा करेगीं आपका खाना,मुझसे ना की जाती अब आपकी खिदमत",दुर्गा बोलती...
"देख!माँ की तरह बातें मत कर,खाना खिलाती है तो खिला दे,नहीं तो मैं चला अपने कमरें में सोने",अभ्युदय कहता...
"आप तो नाराज हो गए,अच्छा बाबा अब नाराज मत हो,दो मिनट रूकिए अभी खाना परोसकर लाती हूँ"
और फिर दुर्गा अभ्युदय के लिए खाना परोसती और अभ्युदय खाकर कपने कमरें में चला जाता और इधर शक्ति को अच्छा ना लगता था कि दुर्गा सबका ख्याल रखे,पूरे घर का काम करें इसलिए वो जब भी दुर्गा से इस विषय पर कहता तो दुर्गा कहती..
"ये हमारा घर है जी! ये परिवार ही हमारी ताकत है और इस घर की बहू होने के नाते मुझे सबको जोड़कर रखना है,आपके ये सगे रिश्तेदार ना सही लेकिन सगो से भी ज्यादा हैं,माँ कितना प्यार करती है मुझे,कितना ख्याल रखती है मेरा,तो मेरा भी फर्ज है कि मैं सबका ख्याल रखूँ,"
"तुम्हें कोई भी नहीं समझा सकता",शक्ति बोलता..
"तो क्यों समझाते हो मुझे?मैं ऐसी ही हूँ और हमेशा ऐसी ही रहूँगी ,तुम मुझे बदल नहीं सकते",दुर्गा बोलती...
"ठीक है दुर्गा देवी !अब तुम्हारा ये संस्कारी बहू का पुराण खतम हो गया हो तो अब कुछ प्यार भरी बातें भी कर लें,",शक्ति कहता...
"हाँ!स्वामी जी!दासी आपके चरणों में पूर्णतः समर्पित है"
और ऐसा कहकर वो खिलखिला हँस पड़ती और साथ में शक्ति भी हँसकर उसे अपने सीने से लगा लेता और फिर दुर्गा भी शक्ति की बाँहों में सिमट जाती...

क्रमशः...
सरोज वर्मा....