मंगल पांडे DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मंगल पांडे

*1857 क्रांति की चिंगारी बनी दावानल*
आज ही के दिन दिनांक 29 मार्च 1857 को भारतीय परतंत्रता के विरुद्ध क्रांति के प्रथम पुरुष, 34 वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की छठी कंपनी के साधारण सिपाही, अमर शहीद मंगल पांडे ने ईस्ट इंडिया कंपनी के क्रूर एवं शोषक सत्ता के विरुद्ध अपनी छावनी बैरकपुर के सिपाहियों के मध्य विद्रोह को उकसाने का प्रयास करते हुए "फिरंगी को मारो" का नारा दिया और 34 वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के एडजुटेंट लेफ्टिनेंट बाऊ और ह्यूशन पर गोली चलाई जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की पहली गोली थी।
शहीद मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया (बागी बलिया के नाम से विख्यात) में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 1849 में मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य बल में सम्मिलित हुए थे। बैरकपुर छावनी में सिपाहियों को फरवरी माह में नई इनफील्ड पेटर्न 1853 इनफील्ड बंदूक (जो 0.577 कैलिबर की थी) दी गई थी, जिसमें कारतूस को दांत से खोल कर राइफल में लोड़ दिया जाता था। सिपाहियों के मध्य यह आम धारणा (अफवाह) फैल गई थी कि कारतूस के ऊपर प्रयोग की गई चिकनाई गाय और सुअर की चर्बी से प्राप्त है, और अंग्रेजों द्वारा यह कृत्य हिंदुस्तानियों के धर्म को भ्रष्ट करने के लिए किया जा रहा है। बैरकपुर छावनी व अन्य छावनी में भी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकाधिक लाभ के लिए सिपाहियों का शोषण चरम पर था जिसके विरुद्ध उनके मध्य गहन असंतोष जनित आक्रोश व्याप्त हो रहा था। जिसकी परिणति मंगल पांडे के विद्रोह के रूप में 29 मार्च 1857 को अपने विकराल रूप प्रकट हुई।सत्ता की "चरम निरंकुशता" उसके "तत्क्षण- न्याय" (instant justice) के रूप में प्रकट होती है। 29 मार्च को अमर शहीद मंगल पांडे द्वारा चलाई गई गोली के कोर्ट मार्शल का निर्णय लगभग 1 सप्ताह में 6 अप्रैल को मृत्युदंड के रूप में सामने आ गया। फांसी के लिए निर्धारित तिथि 18 अप्रैल के स्थान पर 8 अप्रैल को ही हड़बड़ी में फांसी दे दी गई। सत्ता को आशंका थी कि कहीं 18 अप्रैल को फांसी देने की प्रतीक्षा करने पर विद्रोह न फैल जाए यद्यपि यह विद्रोह 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में फैल चुका था क्योंकि अंग्रेज अफसरों द्वारा आदेश देने पर भी मंगल पांडे एवं उनके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ा था। यहां तक की फांसी देने के लिए बैरकपुर के जल्लादों ने भी इंकार कर दिया था और फांसी देने के लिए जल्लाद कलकत्ता से बुलाए गए थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के संचालकों में भय इस स्तर तक व्याप्त हो गया था कि उन्होंने 34 मी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को ही भंग कर दिया था। ताकि पुनः किसी भी विद्रोह संभावना न रह जाए।
अमर शहीद मंगल पांडे को फांसी की सजा तो दे दी गई परंतु उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया। फांसी के 1 माह के अंदर ही उत्तर भारत की लगभग सभी छावनी में एवं राज्यों में प्रबल विद्रोह की आग भड़क उठी। 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में सिपाहियों द्वारा सशस्त्र विद्रोह किया गया। विद्रोह का असर लगभग पूरे उत्तर भारत पर रहा और कई स्थानों पर अंग्रेजों को दोबारा कब्जा प्राप्त करने के लिए ससस्त्र खूनी संघर्ष भी करना पड़ा।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में चलाई गई मंगल पांडे की गोली का दूरगामी प्रभाव यह रहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता समाप्त हो गई। भारत की शासन व्यवस्था सीधे ब्रिटिश पार्लियामेंट के द्वारा संभाल ली गई। भारत के जनमानस में आतताई और शोषक सत्ता के विरुद्ध संघर्ष का आत्मविश्वास पैदा हुआ जो अगले 90 वर्षों तक निरंतर चलता रहा।1857 की क्रांति में हिंदू मुस्लिम समुदायों के संयुक्त संघर्ष ने आगे भी स्वाधीनता आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया जो अंततः 15 अगस्त 1947 को अपने सार्थक परिणाम "आजादी" तक पहुंची।1857 की क्रांति के अग्रदूत अमर शहीद मंगल पांडे के संघर्ष एवं चरम बलिदान का हम सब नमन करते है। हर भारतीय उनका कृतज्ञ है और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करता है।*