बूंदी के डाबी किसान आंदोलन के आंदोलनकारी, क्रांतिकारी प्रखर कवि, ओजस्वी वक्ता, वीर अमर शहीद नानक जी भील की शहादत दिवस पर उन्हें कोटि कोटि सादर नमन ।
नानक भील का जन्म 1890 मे बरड क्षेत्र के धनेश्वर गांव मे एक आदिवासी परिवार मे हुआ था, उनके पिता का नाम भेरू लाल भील था। मेवाड और दक्षिण राजस्थान मे जो प्रयास गोविन्द गुरू और मोती लाल तेजावत कर रहे थे, वहीं कार्य बरड मे नानक भील अपने सामर्थ्य के अनुरूप कर रहे थे। गोविन्द गुरू और मोती लाल तेजावत को आदर्श मानने वाला स्वभाव से ही साहसी, निर्भिक और जागरूक नानक भील स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी विजय सिंह पथिक, माणिक्य लाल वर्मा, नेनूराम से प्रेरित होकर पूर्ण निष्ठा और लगन के साथ क्षेत्र के हर गॉव, ढ़ाणी मे झण्डा गीतो के माध्यम से लोगो को जागृत कर स्वराज का संदेश पहुंचा रहे थे।
13 जून 1922 को डाबी तालाब की पाल पर गुलामी से मुक्ति, तत्कालीन दीवान मदन मोहन, नाजिम धन्नालाल के रियासती जुल्मो भेंट, बैगार, चराई कर, शोषण, दमन की समाप्ति के उद्देश्य से आयोजित किसान सम्मेलन मे भारी जनसंख्या मौजूद थी, नानक भील वहा जनता को जागृत कर रहे थे। तभी तत्कालीन हुक्मरानो द्रारा गोलीबारी की गई, जिससे वहा मौजूद जनता मे भगदड मच गई लेकिन नानक भील ने झण्डा लहराते, झण्डा गीत गाते हुए अंग्रेजो का विरोध जारी रखा। इसी दौरान पुलिस द्रारा की गई गोलीबारी से युवा नानक भील के सीने पर तीन गोलियां लगी। जनता को जागृत कर रहा यह क्रांतिकारी युवा नानक भील स्वतंत्रता की इस लड़ाई मे झण्डा गीत गाते हुए शहीद हो गये।
राजस्थान के किसान आंदोलनो मे बरड का किसान आंदोलन भी प्रमुख रहा है। जो भारत के इतिहास मे सबसे लंबे समय तक चलने वाले अहिंसक बिजोलिया किसान आंदोलन का ऐक भाग था। 1922 मे बूंदी रियासत (वर्तमान बूंदी जिला) के बरड क्षेत्र मे भी राज्य की किसान विरोधी नीतियो से त्रस्त किसानो का आंदोलन प्रारंभ हुआ था। बून्दी के बरड क्षेत्र मे डाबी नामक स्थान पर राज्य की ओर से बातचीत द्रारा किसानो की समस्याओ एवं शिकायतो को दूर करने के लिए बुलाये गये किसान संमेलन मे सभी प्रयास विफल होने पर अंग्रेजी पुलिस द्रारा किसानो पर की गई गोलीबारी मे झण्डा गीत गाते हुए ऐक आदिवासी क्रांतिकारी “नानक भील” शहीद हो गए थे।
ग्रामीण जनता द्रारा इस बलिदानी नानक भील के शव को गांव गांव मे घुमाया और प्रत्येक घर से प्राप्त नारियलो से बनी चिता पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। नानक भील की शहादत पर माणिक्य लाल वर्मा ने “ अर्जी ” गीत की रचना भी की। हालांकि यह आन्दोलन असफल रहा, परंतु नानक भील की शहादत व्यर्थ नही गई। इस आंदोलन से यहाँ के किसानो को कुछ रियायते अवश्य प्राप्त हुई, भ्रष्ट अधिकारियो को दंडित किया गया तथा राज्य के प्रशासन मे सुधारो का सूत्रपात हुआ। जिससे किसानो और आम जनता को राहत मिली और उनमे ऐक नव जागृति पनपी और उन्होंने खुद के लिये लडना शुरू किया।
वर्तमान मे बूंदी जिले के डाबी के मुख्य चैराहे पर स्थित पार्क मे नानक भील की आदमकद प्रतिमा अपना सिर उठाये खडी है। जहाँ प्रतिवर्ष क्रांतिकारी नानक भील की स्मृति मे सरकार द्रारा आदिवासी विकास मेले का आयोजन किया जाता हे। राजस्थान के किसान आंदोलन मे बरड के किसान आंदोलन के साथ “नानक भील“ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
क्रांतिकारी “नानक भील” बरड का वह भील रत्न है, जिसने अपनी आदिवासी परंपरा का निर्वहन करते हुऐ अपने समाज हितो के रक्षार्थ शहादत पाई और अपनी जनजाति के वीर योद्धाओं मे अपना और अपने क्षेत्र का नाम भी हमेशा के लिए अमर कर दिया। भले ही “नानक भील” ने 1922 मे शहादत पाई हो, लेकिन वह आज भी क्षेत्र के किसानो व जन जन के दिलो मे जिंदा है।