राजा दाहिरसेन DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राजा दाहिरसेन

सिंधुपति राजा दाहिरसेन - बलिदान-दिवस / 20 जून, 712

भारत को लूटने और इस पर कब्जा करने के लिए पश्चिम के रेगिस्तानों से आने वाले मजहबी हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। इसी सिन्ध के राजा थे दाहिरसेन, जिन्होंने युद्धभूमि में लड़ते हुए प्राणाहुति दी। उनके बाद उनकी पत्नी, बहिन और दोनों पुत्रियों ने भी अपना बलिदान देकर भारत में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया।

सिन्ध के महाराजा चच के असमय देहांत के बाद उनके 12 वर्षीय पुत्र दाहिरसेन गद्दी पर बैठे। राज्य की देखभाल उनके चाचा चन्द्रसेन करते थे;पर छह वर्ष बाद चन्द्रसेन का भी देहांत हो गया। अतः राज्य की जिम्मेदारी 18 वर्षीय दाहिरसेन पर आ गयी। उन्होंने देवल को राजधानी बनाकर अपने शौर्य से राज्य की सीमाओं का कन्नौज, कंधार, कश्मीर और कच्छ तक विस्तार किया।

राजा दाहिरसेन एक प्रजावत्सल राजा थे। गोरक्षक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। यह देखकर ईरान के शासक हज्जाम ने 712 ई0 में अपने सेनापति मोहम्मद बिन कासिम को एक विशाल सेना देकर सिन्ध पर हमला करने के लिए भेजा। कासिम ने देवल के किले पर कई आक्रमण किये; पर राजा दाहिरसेन और हिन्दू वीरों ने हर बार उसे पीछे धकेल दिया।

सीधी लड़ाई में बार-बार हारने पर कासिम ने धोखा किया। 20 जून, 712 ई. को उसने सैकड़ों सैनिकों को हिन्दू महिलाओं जैसा वेश पहना दिया। लड़ाई छिड़ने पर वे महिला वेशधारी सैनिक रोते हुए राजा दाहिरसेन के सामने आकर मुस्लिम सैनिकों से उन्हें बचाने की प्रार्थना करने लगे। राजा ने उन्हें अपनी सैनिक टोली के बीच सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और शेष महिलाओं की रक्षा के लिए तेजी से उस ओर बढ़ गये, जहां से रोने के स्वर आ रहे थे।

इस दौड़भाग में वे अकेले पड़ गये। उनके हाथी पर अग्निबाण चलाये गये, जिससे विचलित होकर वह खाई में गिर गया। यह देखकर शत्रुओं ने राजा को चारों ओर से घेर लिया। राजा ने बहुत देर तक संघर्ष किया; पर अंततः शत्रु सैनिकों के भालों से उनका शरीर क्षत-विक्षत होकर मातृभूमि की गोद में सदा को सो गया। इधर महिला वेश में छिपे मुस्लिम सैनिकों ने भी असली रूप में आकर हिन्दू सेना पर बीच से हमला कर दिया। इस प्रकार हिन्दू वीर दोनों ओर से घिर गये और मोहम्मद बिन कासिम का पलड़ा भारी हो गया।

राजा दाहिरसेन के बलिदान के बाद उनकी पत्नी लाड़ी और बहिन पद्मा ने भी युद्ध में वीरगति पाई। कासिम ने राजा का कटा सिर, छत्र और उनकी दोनों पुत्रियों (सूर्या और परमाल) को बगदाद के खलीफा के पास उपहारस्वरूप भेज दिया। जब खलीफा ने उन वीरांगनाओं का आलिंगन करना चाहा, तो उन्होंने रोते हुए कहा कि कासिम ने उन्हें अपवित्र कर आपके पास भेजा है।

इससे खलीफा भड़क गया। उसने तुरन्त दूत भेजकर कासिम को सूखी खाल में सिलकर हाजिर करने का आदेश दिया। जब कासिम की लाश बगदाद पहुंची, तो खलीफा ने उसे गुस्से से लात मारी। दोनों बहिनें महल की छत पर खड़ी थीं। जोर से हंसते हुए उन्होंने कहा कि हमने अपने देश के अपमान का बदला ले लिया है। यह कहकर उन्होंने एक दूसरे के सीने में विष से बुझी कटार घोंप दी और नीचे खाई में कूद पड़ीं। खलीफा अपना सिर पीटता रह गया।