पिता और पुत्री की कहानी DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पिता और पुत्री की कहानी


एक घर में एक बेटी ने जन्म लिया और होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया। बाप ने बेटी को गले से लगा लिया रिश्तेदारों ने लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए कि पैदा होते ही माँ को खा गयी।

मनहूस पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को, बेटी का पालन पोषण शुरू किया, खेत में काम करता और बेटी को भी खेत ले जाता, काम भी करता और भाग कर बेटी को भी संभालता।

रिश्तेदारों ने बहुत समझाया के दूसरा विवाह कर लो पर बाप ने किसी की नही सुनी और पूरा ध्यान बेटी की और रखा। बेटी बड़ी हुयी स्कूल गयी फिर कॉलेज।
हर क्लास में फर्स्ट आयी बाप बहुत खुश होता लोग बधाइयाँ देते।

बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देख कर चिढ़ गए। जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए।

लड़की एक दिन अच्छा पढ़ लिख कर पुलिस में SP बन गयी।

एक दिन किसी मंत्री ने उसको सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गाँव में रखा गया।

मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया के बेटा बेटी में फर्क नही करना चाहिए, बेटी भी वो सब कर सकती है जो बेटा कर सकता है।

भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को स्टेज पर बुलाया और कुछ कहने को कहा। लड़की ने माइक पकड़ा और कहा-

मैं आज जो भी हूं अपने बाबुल (पिता) की वजह से हूं जो लोगों के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया।

मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से कहा के माँ कैसी थी, क्योंकि अगर मैं पूंछती तो बाप को लगता के शायद मेरे पालन पोषण में कोई कमी रह गयी।

मेरे लिये मेरे पिता से बढ़ कर कुछ नही बाप सामने लोगों में बैठ कर आंसू बहा रहा था बेटी की भी बोलते बोलते आँखे भर आयी।

उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली। बाप स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला -

रोती क्यों है बेटी, तू तो मेरा शेर पुत्तर है, तू ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा, मैंने तुझको सारी उम्र हँसते देखना है।

बाप बेटी का प्यार देखकर सब की आँखें नम हो गयी। मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला। लड़की ने मैडल उतार कर बाप के गले में डाल दिया।

मंत्री ने कहा- ये क्या किया, तो लड़की बोली- मैडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया। और कहा इसके असली हकदार मेरे पिता जी हैं।

समागम में तालियाँ बज उठी...!

सभी उन पिता को समर्पित जिन्होंने अपने बेटे और बेटी कामयाब बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।



बेटियाँ...
बाबुल के घर से चली जाती है...
ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...
फिर कहाँ लौट करके आती है...
ये बेटियाँ बहुत सताती है...

लोरियां गा के मां सुलाती थी...
रोने लगती तो वो हंसाती थीं...
उंगलियां थाम कर चली जब भी...
रूठजाती कभी मनाती थी...
दिल मे आती है मुस्करातीं है...
ये बेटियाँ बहुत सताती है...

सिर्फ खाली मकान दिखता है...
और उजाला यहां सिसकता है...
देख कर आने वाले कहते हैं...
वही मासूम जहां दिखता है....
याद उनकी बहुत रुलाती हैं...
ये बेटियाँ बहलुत सतातीर है...

बाबुल के घर से चली जाती हैं...
ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...