अपना आकाश - 18 - बच्चों का जोड़ घटाव Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपना आकाश - 18 - बच्चों का जोड़ घटाव

अनुच्छेद-18
बच्चों का जोड़ घटाव

मंगल लहसुन की खुदाई के लिए योजना बनाने लगे। खेत की मिट्टी सख्त न हो उसके पहले ही लहसुन खोद लिया जाय। जो बच्चे रात में खेत पर रखवाली करते थे, उन सब ने तय किया कि युवाओं का दल बनाकर कार्य किया जाय ही, पुरवे के सभी घरों को बता दिया जाय कि खुदाई कराकर वे अपने घर के लिए भी लहसुन प्राप्त कर सकते हैं। स्त्री-पुरुष जो समय दे सकते थे, सभी ने खुदाई को अभियान का रूप दे दिया। फलतः चार दिन में ही खुदाई हो गई।
गेहूँ की कटाई- दवाई भी चल रही थी। खेत खाली हो रहे थे। इसीलिए रखवाली बहुत मुस्तैदी से करने की जरूरत थी । युवा अपना काम समझकर मंगल के खेत में डटे रहे। प्रकृति ने भी साथ दिया। पछुआ हरहराती हुई चलती रही। लहसुन के सूखे डंठल झारने में अधिक समय नहीं लगा ।
दो किलो लहसुन लेकर जब तन्नी वत्सला के घर पहुँची, उनकी माँ प्रसन्न हो उठीं। प्रातः सवा सात का समय। वत्सला जी कालेज जाने के लिए तैयार थीं। माँ ने लहसुन की आँणी उन्हें दिखाकर कहा 'कितनी पुष्ट', कलियाँ हैं वत्सला ।' वत्सला जी ने भी हाथ में उठाकर देखा। 'बड़ी मोहक’, उनके भी मुख से निकला । बहिनजी कालेज चली गईं। तन्नी माँ जी की मालिश करने लगी। अपने यहाँ शुद्ध सामग्री मिलने पर खुशी होती है। बाजारू खाद्य पदार्थों में इतनी मिलावट होती है कि मन खिन्न हो उठता है। दुकानदार यही कहकर तसल्ली देते कि फैशन का दौर है गारन्टी की बात न करें। शुद्ध साफ खाद्यपदार्थ मिलना दूभर हो गया है। मिलावट करने वाले दिन दूना रात चौगुना कमाते हैं। नेता और अधिकारी को खुश रखते हैं। साथ ही यह भी प्रचार करते रहते हैं कि कुछ भी किया नहीं जा सकता। जो चल रहा है, वही हो सकता है। इस विचार से उन्हें कितना लाभ होता है, यह शोध का विषय है।
'लहसुन तो अच्छा हुआ तन्नी ।'
'हाँ माँ जी फसल बहुत अच्छी हुई।'
'तेरा संकट कट जायगा।'
'उम्मीद तो है माँ जी।'
'किसान के घर फसल अच्छी हो, भाव भी अच्छा मिल जाए तो......।'
'हाँ माँ जी।' मालिश करते हुए तन्नी हुँकारी भरती रही।
'पढ़ती हूँ पूरी दुनिया में खेती किसानी संकट में है। तुझे क्या लगता है ?"
'संकट तो रहता ही है माँ जी। अनाज बेचकर सब काम कर पाना बहुत कठिन है।' ‘इसीलिए तेरे पिताजी ने लहसुन उगाया।' 'हाँ माँ जी।' माँ जी ने स्नान किया। वे ध्यान पूजा में लगीं। तन्नी पढ़ती रही। ग्यारह बजे रसोई में गई। दाल-चावल चढ़ाकर लौकी की सब्जी काटने लगी। लौकी को लहसुन का तड़का देकर छौंका आटा गूंधने में जुट गई। चालीस मिनट में भोजन तैयार । बारह पन्द्रह पर वत्सला जी भी आ गईं। कपड़े बदलकर वे भी माँ जी के पास आकर बैठ गईं। तन्नी और वे खीरा टमाटर, प्याज काटकर सलाद बनाने लगीं।
'खाना खाया जाय माँ जी ?' वत्सला ने पूछा। 'हाँ, हाँ निकालो।' तन्नी ने खाना परोसा, वत्सला ने पानी। तीनों बैठकर खाने लगे। 'तेरे घर का लहसुन कितना स्वादिष्ट है तड़का लगते ही पता लग गया? बाजार से लाओ तो स्वाद ही नहीं मिलता। भूसे की तरह भरते जाओ।' माँ जी कहती रहीं ।
मंगल ने पचास बोरों का एक बन्डल खेत में लाकर गिराया। वीरू स्कूल से आ गया था। दौड़ता हुआ खेत में पहुँचा । सपनों का घर, अच्छे कपड़े, अच्छा स्कूल उसके मस्तिष्क में घूमता रहा। अब दिन दूर नहीं। लहसुन का ढेर देखकर आँखें चमक उठतीं। मंगल, भँवरी ही नहीं सहायता करने वाले बच्चे भी मंगल की इस उपलब्धि पर गर्व करते। इतनी अच्छी फसल !
'काका बीज के लिए हम को भी देना दो चार किलो।' खेत से गुजरने वाले बच्चे मंगल से कहते । 'ले लेना, तुम्हारा ही है।' मंगल खुश हो उत्तर देते । खुदाई करा लेने से पुरवे के अधिकांश घरों में श्रम के एवज में लहसुन पहुँच गया था।
बोरों में लहसुन भरे गए। पांच कुन्तल लहसुन मंगल ने घर के लिए रख लिया जिससे अगली फसल में बीज के लिए भटकना न पड़े। कुछ पुरवे वाले भी बोना चाहेंगे। शेष उन्होंने पैंतालीस बोरों में भरकर रखा। रात भर और रखवाली । सबेरे उन्होंने एक ट्राली पर लदवाया। नौ बजे ट्राली शहर के लिए चल पड़ी। मंगल भी चटनी, रोटी दही खाकर साइकिल से साथ साथ चले । साढ़े दस बजे नागेश लाल की दूकान के सामने ट्राली रुकी। नागेश ने लहसुन को देखा। गद्गद् हो उठे। अभी नमी ज़रूर कुछ है पर लहसुन बढ़िया है। अभी भाव आया नहीं है। इसको तौलवा कर रख लेते हैं। आजकल में ही भाव खुल जायगा। फिर बैठकर हम लोग हिसाब कर लेंगे। मंगल के पास स्वयं भंडारण की सुविधा नहीं । नागेश के यहाँ तौलवाकर रखवा देने के अतिरिक्त कोई विकल्प उन्हें सूझा नहीं। 'ठीक है तौल करा लीजिए।' मंगल ने कहा । नागेश के आदमियों ने काँटा लगा दिया। एक कुन्तल पाँच किलो का 'धरा' देखकर मंगल ने पूछा, 'भाई नागेश यह क्या? पाँच किलो ज्यादा क्यों लगाया गया है ?"
'आपको पता होना चाहिए भाई साहब? आप अभी पहली बार ला रहे हैं इसमें एक किलो बोरा एक किलो धर्मादा और तीन किलों ओदी और कहीं कहीं डंटल होंगे उनके लिए यहाँ का यही कायदा है, कहीं भी तौलवाओगे। इसमें परेशान होने की कोई बात ही नहीं है।'
मंगल सचमुच इस सौदे में पहली बार दाखिल हुए थे। उन्हें पता तो नहीं था पर इस कायदे से उन्हें तकलीफ बहुत हुई ।
रामदयाल को भी उन्होंने बुला रखा था। इसी समय वे आ गए। मंगल उन्हें एक किनारे ले गए, सब कुछ बताया। रामदयाल से कहा, 'तुम ज़रा और आढ़तियों के यहाँ पता लगा लो।' रामदयाल पता करने चले गए। 'रामदयाल आ जायँ तब तौला जायगा।' मंगल ने नागेश से कहा ।
'ठीक है, ठीक है। इसमें कोई हर्ज नहीं । उनको आने दो।' कहते हुए नागेश ने तीन कप चाय के लिए एक बच्चे को दौड़ाया। रामदयाल जैसे ही लौटे चाय भी आ गई।
'आइए भाई साहब चाय पीजिए।' नागेश ने कहा। तीनों ने चाय पिया।
राम दयाल ने अलग ले जाकर मंगल को बताया कि सब जगह यही चल रहा है ।
'तब ?' मंगल ने पूछा।
'तब क्या ? रखने की जगह तो घर पर है नहीं।
घर पर रखोगे तो नुकसान ही होगा।'
'चलो', फिर राम दयाल ने कहा।
'तौलवा लीजिए', राम दयाल ने कहा । तौल शुरू हुई, बत्तीस कुन्तल चालीस किलो शुद्ध माल ।
नागेश ने पर्चा बना दिया। कहा, 'परसों आइएगा। कल तक भाव खुल जायगा। उसी समय हिसाब कर लिया जायगा।' 'ट्राली का किराया आप दे दें। हिसाब में जोड़ लें। ' नागेश ने किराया दिया। पर्ची पर नोट कर दिया। नागेश के चेहरे की दमक और मंगल के चेहरे की लकीरे वर्षों से चले आ रहे इतिहास को रेखांकित कर रही हैं।
शहर छोड़कर गाँव की ओर बढ़ते हुए राम दयाल ने पूछा, 'भाई मंगल, किसान कैसे आगे बढ़ेगा?"
मंगल ने जैसे सुना ही नहीं। वे तौल के गुणा-भाग में निमग्न थे। 'भाई मंगल', राम दयाल ने पुनः पुकारा 'हाँ कहो ?' मंगल बोल पड़े।
'किसान कैसे आगे बढ़ पाएगा?"
'यह किससे पूछते हो?"
‘मंगल नाम के किसान से।' राम दयाल ने हँसने की कोशिश की।
'मन बहुत खिन्न है राम दयाल। किसान मेहनत करके पैदा करे और..... ।'
'पैदा करे कोई, लाभ ले कोई।'
'कब तक चलेगा यह सब ?
'यही चलता आया है और चलेगा।'
'तो तुम कहते हो कि किसान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।'
'कौन परिवर्तन करेगा?"
'बात ठीक कहते हो। कौन करेगा?' मंगल की पीड़ा उनके चेहरे से ही नहीं, वाणी से भी प्रकट हो रही थी।
'मंगल भाई, आप चलो। हम ज़रा घोलिया का खेत देखते चलें । दूब बहुत हो तो तवे से जुतवा दें।' कहकर रामदयाल ने साइकिल दाईं और चकरोड पर मोड़ दी।
मंगल आगे बढ़ गए। बोरिंग से सटी मड़ई थी। पंपसेट भी था। मड़ई में चारपाई पड़ी थी। उन्होंने साइकिल मड़ई में खड़ी की। चारपाई पर बैठे लौकी कद्दू तरोई को देखते रहे। तीन कोहों में उन्होंने बो रखा है। थोड़ी देर बाद लेट गए। वे भंवरी के सामने नहीं जाना चाहते। वह पूछेगी, सावधानी से बेचा है न? वह क्या उत्तर देंगे । यही कि प्रतिकुन्तल पाँच किलो का घाता देकर आए हैं। भँवरी हिसाब जोड़ लेती है। पढ़ भी लेती है। उसने पिछले तीस वर्षों में अतुल स्नेह दिया है। हर कदम पर मेरे साथ डटी रही। कैसे बताऊँगा उसे? अभी भाव भी तय नहीं। यदि भाव बहुत गिर गया तो? तन्नी और वीरू के सपनों का क्या होगा? क्या एक किसान के बच्चों को सपने देखने का हक नहीं? पुरवा चल रही थी, सोचते विचारते उन्हें नींद आ गई। नींद संभवतः जीवों के लिए एक बड़ा वरदान है।
नींद में ही उन्होंने देखा कि भाव अच्छा मिला है। लाखों की बचत सच हो रही है । तन्नी की परीक्षा शुरू हो रही है। पाँच हजार की गड्डी तन्नी के आगे फेंक दी है। जा, प्रबन्धक को दे दे। नोटों से भरा थैला भँवरी को पकड़ाते हुए कह रहे हैं तेरी आस पूरी हुई। वीरू के पंख लग गए हैं।
लहसुन से भरी ट्राली शहर भेजकर भँवरी ने स्नान किया। गाँव की दूकान से पाँच रुपये का बताशा मंगाया और काली माई के थान पर जा पहुँची । 'माई देखना, भाव ताव में मदद करना।' कहकर प्रसाद चढ़ाया। 'बहुत दुखिया हूँ माई। आप समर्थ हो। भिक्षा माँग रही हूँ।' कहते हुए परिक्रमा की । माथ नवाया और घर आ गई।
राम दयाल लौटे तो मंगल के घर से होते हुए निकले। दरवाजे पर मंगल को न देखकर भँवरी से पूछा, 'भौजी भैया नहीं आए।' अभी तो नहीं ।' भँवरी कह ही रही थी कि एक लड़का आया, कहा, 'काका बोरिंग पर सोवत हैं।' 'हो सकता है बोरिंग पर रुक गए हों। पुरवा चल ही रहीं है नींद आ गई।' कहते हुए रामदयाल अपने घर की ओर निकल गए।
उन्हें घर आना चाहिए था । इतने दिनों की थकान और पुरवाई। नींद तो आ ही जायगी। हो सकता है तौल में कुछ बकझक भी हुई हो। जिसे चारों और दौड़ना होता है उसे बावन झंझट । भँवरी ने भैंस को नाँद पर लगा दिया। चारा डालकर बोरिंग की ओर चली गई। मंगल सो रहे थे। साइकिल बगल में खड़ी थी। भँवरी ने माथे पर हाथ रखकर सहलाया । स्पर्श से धीरे धीरे मंगल की आँख खुली। सामने भँवरी को देखकर उठ पड़े। 'थके हो, चलो घर पर आराम करो। लहसुन तौल गया न?"
'हाँ तौल गया।'
'तौल में कुछ दिक्कत तो होती ही है। इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं, चलो घरे ।' मंगल ने साइकिल पकड़ी। भँवरी के साथ घर आ गए। भँवरी गुड़ का टुकड़ा, बताशा और पानी लाई। चारपाई पर बैठे मंगल ने गुड़ खाकर पानी पिया । भँवरी भी सामने मोढ़े पर बैठ गई 'थकान हो तो लेट जाओ।' भंवरी ने कहा। दूसरी कोई होती तो तुरन्त पूछती कितना कुल हुआ? कितने रुपये बने? भँवरी कम पढ़ी लिखी होने पर भी पारिवारिक समरसता बनाए रखने में दक्ष थी । तौलवा कर आए हैं। तो बताएँगे ही। इतनी उतावली क्यों? उन्हें जो झेलना पड़ा होगा उसे हमने तो झेला नहीं। उन्हें आराम कर लेने दो। फिर इत्मीनान से बातें होगी। हमें न बताएँगे तो किसे बताएंगे ? इसी धैर्य ने कभी मंगल और भँवरी में तनिक भी टकाराहट नहीं पैदा होने दी। मंगल भी तीस वर्ष के साथ में कभी कड़क कर नहीं बोले । लोग इस जोड़ी का उदाहरण देते । 'जरा सो लूँ', कहकर मंगल लेट गए। 'ठीक है सो लो। कितना दौड़े हो?" भँवरी उठी, भैंस को चारा डालकर घर के काम में लग गई।
सायं पाँच बजे तन्नी आ गई, वीरू भी । 'लहसुन कितना हुआ माई?" तन्नी ने पूछा। 'अभी पूछा नहीं। तेरे बापू थके थे, आए तो सो गए। अभी उठकर खेत की ओर गए हैं। बैठेंगे तो इत्मीनान से बताएंगे। क्या जल्दी है? तू भी मत पूछना। वे खुद बताएंगे।'
मंगल आए। भैंस दुहा। दूध कम हो गया है पर गाढ़ा है। बकेन का दूध । वीरू और तन्नी दोनों जानना चाहते हैं कि लहसुन कितना हुआ? माँ के मना करने से उन्होंने बापू से पूछा नहीं।
रोटी खाकर परिवार जब शाम को बैठा, मंगल ने नागेश की दी हुई पर्ची जेब से निकली। तन्नी को दिया। तन्नी ने लालटेन की रोशनी में पढ़ा बत्तीस कुन्तल चालीस किलो दौ सौ रुपया ट्राली भाड़ा। 'तब तो बहुत अच्छा हुआ बापू । हम लोग समझते थे चालीस कुन्तल होगा। बत्तीस कुन्तल चालीस किलो हुआ। कुछ सूखा गया होगा। पाँच कुन्तल अपने घर रखा गया। डेढ़ कुन्तल खोदते समय दिया गया। अड़तीस कुन्तल नब्बे किलो हुआ बापू । हम लोग जितना सोचते थे उससे अधिक हुआ। अच्छी फसल हुई ।' तन्नी खुश हुई।
'अभी भाव खुला नहीं है । इसीलिए रखवा दिया है। परसों तक भाव खुल जायगा ।' मंगल ने बताया। कागज कलम लेकर तन्नी और वीरू चुपके से गुणा भाग करते रहे। पचास रुपया किलो....। साठ रूपया किलो। लाखों रुपया......। मन ही मन दोनो गद्गद् होते रहे ।
मंगल ने एक लोटा पानी और सोंटा लिया। बोरिंग पर सोने चले गए। तन्नी अपना जोड़ घटाव भंवरी को बताने लगी। 'अगर साठ रूपये किलो भाव आया तो एक लाख चौरान्नबे हजार चार सौ होगा। अगर घटकर पचास पर भाव खुला तब भी एक लाख बासठ हजार हो जायगा । तन्नी और वीरू दोनों अत्यन्त प्रसन्न । भँवरी भी प्रसन्न थी पर उतावलापन नहीं, धीर गम्भीर संयत । बच्चों की किलकारी सुनती रही।
सुबह तन्नी ने स्नान किया। छाछ पीकर अपनी पुस्तकें झोले में रखी। कल से उसकी परीक्षा है । वत्सला जी ने निर्देश दिया है कि उनके यहाँ रहकर ही परीक्षा दे। घर से समय पर बीस किलोमीटर दूर परीक्षा स्थल पर नहीं पहुँच पाओगी। शहर से जाने में सुविधा रहेगी। बिजली की उपलब्धता से रात में भी पढ़ाई कर सकोगी ।
तन्नी चली गई। थोड़ी देर भँवरी को घर उदास लगा। भैंस की आवाज़ सुनकर वह उठी। जाकर नाँद में चारा और पानी डाला। भैंस भी भँवरी के घर की सदस्य है। वह भी परिवार के सुख-दुख की साक्षी बनती है।
वीरू की नवीं की परीक्षा हो रही है। परीक्षा की तैयारी में वह प्रायः किताब कापी लिए कुछ पढ़ता- लिखता रहता है। विद्यालय गाँव के बगल में ही है । इसलिए उसे दिक्कत नहीं होती । चालीस मिनट में पैदल पहुँच जाता ।