The Author DINESH KUMAR KEER फॉलो Current Read प्रेम विवाह By DINESH KUMAR KEER हिंदी लघुकथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books नफ़रत-ए-इश्क - 6 अग्निहोत्री इंडस्ट्रीजआसमान को छू ती हुई एक बड़ी सी इमारत के... My Wife is Student ? - 23 स्वाति क्लास में आकर जल्दी से हिमांशु सर के नोट्स लिखने लगती... मोमल : डायरी की गहराई - 36 पिछले भाग में हम ने देखा की फीलिक्स ने वो सारी बातें सुन ली... यादों की अशर्फियाँ - 20 - राज सर का डिजिटल टीचिंग राज सर का डिजिटल टीचिंग सामाजिक विज्ञान से बोरिंग सब्जे... My Passionate Hubby - 4 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –Kayna... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे प्रेम विवाह (1) 1.6k 3.6k 1 अनंत और भूमिका की शादी हाल ही में हुई, इनकी शादी प्रेम विवाह हुई थी । दोनों एक ही साथ स्कूली व महाविद्यालय की शिक्षा ग्रहण की थी । शिक्षा पाने के बाद भूमिका को तो जल्द ही कार्य मिल गया पर अनंत ने प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने का निर्णय किया । इसी कारण अनंत घर पर ही शिक्षण करता और रहता था, और भूमिका हमेशा अपने कार्य स्थल पर जाती थी । दोनों की हामी से अनंत पीछे से घर का काम भी पूरा कर लेता था । इसके चलते भूमिका को थोड़ा-बहुत-सा समय मिल जाता था । पर यह बात अडोस-पड़ोस में वार्तालाप का प्रकरण बन चुका थी । _"आइए भूमिका जी ! एक कप चाय - पानी हो जाए" पड़ोस की श्रीमती अर्चना बोली । "जी जी बैठो बहन ! तुम तो बिल्कुल कम ही दिखाई देती हो" पास ही बैठी अनामिका जी ने कहा । "नहीं जी, बहन जी ! फिर कभी सही अभी तो मैं जल्दी में हूंँ" भूमिका ने कहां और अपने घर की ओर चली गई ।_ _भूमिका के जाते ही श्रीमती अर्चना मुंह पिचका कर, भूमिका की नकल करते हुए बोली "अभी तो मुझे जल्दी है... बहन जी" "खुद तो महारानी बाहर गुलछर्रे उड़ाती रहती है, और पति बिचारें को घर पर रहकर पूरे दिनभर नौकर की तरह सारा काम करना पड़ता है"। यह बात जब भूमिका की कामवाली ने उसे बतलाई तो भूमिका को बहुत बुरा लगा । जब इस बात का जिक्र भूमिका ने अनंत से किया तो अनंत बहुत जोर से हंसा और बोला "रानी ! इन लोगों की बातों पर ध्यान ना दे कर हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए, ये लोग होते ही है कहने वाले हमें अपने निर्णय अपने स्वविवेक से सोचना चाहिए ।" यह कहकर अनंत ने भूमिका को अपने सीने से लगा लिया ।_ *जीवन एक साइकल चलाने की तरह है...........................**आपको संतुलन बनाने के लिए आगे बढ़ते रहना होता है....* Download Our App