मैना कुमारी DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैना कुमारी

ये थी महान् वीरांगना मैना कुमारी ... 11 सितम्बर 1857 का दिन था जब बिठूर में एक पेड़ से बांध कर 13 वर्ष की लड़की को ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले कर दिया ! धूँ - धूँ कर जलती वो लड़की उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई राख में तब्दील हो गई |
ये लड़की थी नाना साहब पेशवा की दत्तक पुत्री जिसका नाम था मैना कुमारी जिसे 165 वर्ष पूर्व आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था |
जिसने 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया कि कहीं उसकी सुरक्षा के चलते उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आये और बिठूर के महल में रहना उचित समझा |
नाना साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी और जैसे ही उन्हें पता चला नाना साहब महल से बाहर हैं, ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस मैना कुमारी ही मिली |
मैना कुमारी ब्रटिश सैनिको को देख कर महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी ! ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने महल को तोप से उड़ाने का आदेश दिया और ऐसा कर वो वहां से चला गया पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया |
रात को मैना को जब लगा कि सब लोग जा चुके है और वो बाहर निकली तो दो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और फिर आउटरम के सामने पेश किया ! आउटरम ने पहले मैना को एक पेड़ से बाँधा, फिर मैना से नाना साहब के बारे में और क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही पर उसने मुँह नही खोला |
यहाँ तक कि आउटरम ने मैना कुमारी को जिंदा जलाने की धमकी भी दी, पर उसने कहा कि "वो एक क्रांतिकारी की बेटी है, मृत्यु से नही डरती" ये देख आउटरम तिलमिला गया और उसने मैना कुमारी को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया ! इस पर भी मैना कुमारी बिना प्रतिरोध के आग में जल गई ताकि क्रांति की मशाल कभी न बुझे|
"बिना खड्ग बिना ढाल" नहीं, हमारी स्वतंत्रता इन जैसे असँख्य क्रांतिवीर और वीरांगनाओं के बलिदानों का ही सुफल है और इनकी गाथाएँ आगे की पीढ़ी तक पहुँचनी चाहिए |
आज उसी वीरांगना के नाम पर *कानपुर नगर* से , पेशवाओं की नगरी बिठूर तक जाने वाले मार्ग को "मैनावती मार्ग" कहते हैं ।
हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अपने राष्ट्र की इन महान वीरांगनाओं का जीवन चरित्र आज की पीढ़ी को बताएं ! उनके आइकॉन, उनके हीरोस यह सब होनी चाहिए !
हजारों हजार नमन ऐसी सब वीरांगनाओं को जिन्होंने अपने राष्ट्र अपने मान अपने धर्म के खातिर अपने प्राणों को चुपचाप आहूत कर दिया
 
हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अपने राष्ट्र की इन महान वीरांगनाओं का जीवन चरित्र आज की पीढ़ी को बताएं ! उनके आइकॉन, उनके हीरोस यह सब होनी चाहिए !
हजारों हजार नमन ऐसी सब वीरांगनाओं को जिन्होंने अपने राष्ट्र अपने मान अपने धर्म के खातिर अपने प्राणों को चुपचाप आहूत कर दिया