देवरानी और जेठानी की कहानी DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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देवरानी और जेठानी की कहानी

“ सुनिए जी ये (दीदी) जेठानी जी के दोनों बच्चों को किसी सरकारी विद्यालय में डाल दीजिए ... हमारे बच्चों के साथ उनका कोई ताल - मेल नहीं है ... समझ रहे हैं ना ? ” रमता ने अपने पति से ग़ुस्से में कहा
उधर रास्ते से गुजरती गोपाली जी ने ये सब सुन लिया और कमरे में जाकर पति की तस्वीर देख आँसू बहाते हुए बोली, “ आपको तो बड़ा नाज़ था ना अपने दोनों बेटों पर ... हमेशा कहते रहते थे देखना ये दोनों हमारा नाम रौशन करेंगे … वो नाम क्या रौशन करेंगे … आप ही मँझ - धार में छोड़ गए और हमें देवर जी के आश्रय में रहने आना पड़ा ... आज छूटकी हमारे बच्चों को किसी दूसरे विद्यालय में नाम दाखिला करवाने के लिए कह रही है… अब क्या होगा जी।” कहकर वो फफक पड़ी
देवर जी, पत्नी हर दिन की तकरार सुन भाभी से बोले, “ भाभी - सा ये दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार है... इन्हें अच्छे विद्यालय में दाखिला करा देता हूँ ताकि अच्छी पढ़ाई हो सके आप क्या कहती हैं?”
“ अब तो हर फ़ैसला आपको ही लेना है देवर जी... भैयाजी रहते तो मुझे ये सब सोचना नहीं पड़ता… बस उस विद्यालय में ही दाखिल कराना जहाँ पेंशन के पैसे से ज़्यादा ना लगे।” स
गोपाली जी ने देवर की मंशा जानते हुए भी कहा
गोपाली जी के दोनों बच्चों का दाख़िला निजी विद्यालय से हटा कर सरकारी विद्यालय में कर दिया गया गोपाली जी बस देखती रह गई ।
बच्चे वहाँ भी अच्छे नम्बर ला रहे थे… सब दोनों की तारीफ़ करते रहते ये सब सुन रमता की छाती पर साँप लोटने लगता।
“ देखो रमता बच्चों को जहाँ पढ़ना होता वो पढ़ ही लेते ... ये जो भाभी- साथ के बच्चों को देख तुम्हारी छाती पर साँप लोट रहा है ना उससे बाहर निकलो और अपने बच्चों पर ध्यान दो।” रमता के पति ने समझाते हुए कहा
जब वार्षिक परीक्षा में गोपाली जी के बच्चों ने अपनी अपनी कक्षा में प्रथम आने की बात घर पर कहीं तो रमता की छाती पर साँप लोटने लगा वो आव देखी ना ताव ये सुनते अपने बच्चों को मारते हुए कहने लगी, “ देख रहे हो ये दोनों उस विद्यालय में भी जाकर कमाल कर रहे और तुम दोनों अच्छे विद्यालय में पढ़ने के बाद भी जैसे - तैसे पास हो रहे।”
“ ये क्या कर रही है छूटकी… ऐसे बच्चों में तुलना करने से वो क्या पढ़ लेंगे… विद्यालय कोई भी हो बस लगन और मेहनत होनी चाहिए… काश तुम बच्चों में ये भेदभाव ना कर सबको साथ पढ़ने देती तो आज तुम्हें ये सब कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती ।” गोपाली जी बच्चों को बचाते हुए बोली
“ हम भी अब पढ़ेंगे बड़ी माँ , भैयाजी की तरह बस हमें माँ की मार से बचा लो। ” रमता के बच्चे गोपाली जी से चिपके हुए बोले
रमता को भी एहसास हो रहा था वो बस ईर्ष्या में आकर गोपाली जी के बच्चों का भविष्य बर्बाद करने चली थी पर भविष्य अपने ही बच्चों का बिगाड़ रही थी ।