साहिबा - एक विद्रोही लड़की DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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साहिबा - एक विद्रोही लड़की

 
साहिबा आज अपनी सजा पूरी कर जेल से रिहा होने वाली है।
 
वैसे तो सजा अभी अढ़ाई साल और बाकी है पर उसके अच्छे स्वभाव और शांत व्यवहार से अढ़ाई साल सजा कम हो गई उसकी।
 
आज सुबह से ही जेल में बंद सब महिला कैदियों की आंखे नम थी आखिर इतनी प्यारी सी मासूम बच्ची आज उन्हें छोड़ कर जा रही थी पर साथ - साथ खुशी भी थी आज ये बच्ची बिना गलती के भोग रही सालो की सजा से आज आजाद हो जाएगी।
 
जेलर साहब की आंखों के सामने आज साढ़े सात साल पहले की घटना घूम रही थी, जब साहिबा को इस जेल में एक कैदी की तरह ले आए थे।
 
अठारह साल की मासूम बच्ची, आंखो में डर के साथ आंसू, जैसे ही मैं उसके पास गया वो डर के मारे कप - कांपने लगी। उसकी हालत देख मेरी आंखे भी नम हो गई हालाकि मैं एक जेलर हूं मुझे किसी भी कैदी को देखकर ऐसे कमजोर नही होना चाहिए पर इस बेगुनाह लड़की को सजा काटते देख और मेरे हाथ बंधे देख खुद ही आंखे नम हो गई।
 
मैने भी अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये थे कि इस मासूम बच्ची को सही न्याय मिले पर कानून सबूत देखता है जो मैं साबित नही कर पाया। फिर मैने ये प्रयास किया कि इस मासूम बच्ची से यहां इस जेल में किसी भी तरह कोई गलत बर्ताव न हो और ईश्वर का शुक्र है उसमे मैं सफल रहा।
 
वही साहिबा को देखो तो आज भी शांत और स्थिर बैठी अपने अतीत को याद कर रही थी, अठारह साल की माँ - बापूजी की प्यारी सी मासूम बच्ची, देखने में भी बहुत सुंदर, पढ़ाई में भी बहुत होशियार, सबको लगता वो आगे पढ़ - लिख कर बहुत नाम कमाएगी।
 
माँ घर में सिलाई का काम करती और बापूजी वाहन चालक दोनो बहुत मेहनती कर हर सुख दिया, पर कहते है ना वक्त हमेशा एक जैसा नही रहता तो मेरा कैसे रहता मेरे मोहल्ले में एक नया परिवार रहने आया उनका परिवार बहुत रौबदार था, बात - बात में गलियां बकना, धमकाना उनके लिए आम बात थी।
 
उनके घर के बेटे की नज़र मुझ पर पड़ी और फिर मेरी जिंदगी की बर्बादी शुरू हो गई, मैं पढ़ने के लिए विद्यालय जाऊ तो बीच राह मे परेशान करना, कोंचिग जाऊ तो रास्ता रोकना, घर में घुसकर आ जाना और गंदी व भद्दी बाते करना, माँ व बापूजी को धमकाना।
 
रोज - रोज उनकी इन बातो से हमारी हालत खराब होती गई और कोई उनको कुछ कह भी नही पाता था क्योंकि वो लोग बहुत ताकतवर थे।
 
एक रात वो मुझे उठाकर मेरे साथ दरिंदगी करना चाहता था पर मैं चिल्लाने लगी तो माँ - बापूजी उठ गए और उन्होंने मुझे बचाने की हर कोशिश की पर उस राक्षस पर हैवानियत भरी हुई थी तो उसने सबसे पहले बापूजी का गला काट दिया, फिर माँ के कपड़े उतारने लगा मेरी माँ ने उस समय खुद की परवाह ना की और मुझे कमरे में बंद कर दिया। इस राक्षस से मेरी माँ की इज्जत तार - तार कर उन्हे भी मार दिया और फिर वो मेरी ओर बढ़ा जैसे जी उसने कमरे का दरवाजा तोड़ा मैने उसके सिर पर माँ की रखी सिलाई मशीन दे मारी और वो वही ढेर हो गया।
 
अपने बेटे की मौत को उसके घरवाले बर्दाश्त नही कर पाए और मुझ पर गलत आरोप लगा दिए। मैं रोई चिल्लाई पर अदालत ने मेरी बात सुनी ही नहीं किसी पड़ोसी ने भी गवाही नही दी और आखिर मुझे एक न किए गुनाह की सजा मिल गई।
 
मुझ पर ये इल्जाम लगा कि मैं उस लड़के से प्यार करती थी और उसके साथ भागना चाहती थी मेरे माँ - बापूजी ये नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने इस लड़के को मार डाला और मैने गुस्से में अपने माँ - बापूजी को भी मार दिया।
 
क्या करूंगी बाहर जाकर, किसके पास जाऊंगी, कहा रहूंगी।
 
बाहर की दुनियां से अच्छी तो ये दुनियां है जहां भले मैं एक विद्रोही हूं पर सुरक्षित तो हूं।