पड़ोसी धर्म DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पड़ोसी धर्म

नमस्ते राजूभाई... सुबह की सैर करने के बाद घर लौट रहे अपनी गली के एक रहने वाले राजूभाई को झाड़ू लगाती हुई सुधा ने कहा ...
नमस्ते भाभीजी ...
वो मुझे आपसे ... सुधा के बाकी शब्द अभी मुंह में ही रह गए थे कि राजूभाई तेजी से आगे बढ़ गये
सुधा मुंह बनाकर मन मोसकर रह गई क्योंकि जो वो पूछना चाह रही थी वो नहीं पूछ पाई थी
काफी देर तक वो बहाने से बाहर निकलकर यहां वहां गली के लोगों को देख रही थी ताकि कोई दूध लाता या सैर करने के बाद लौटते हुए उससे मिल जाएं और वो गली में बीते दो तीन दिन पहले रहने आए युवा किराएदारों के बारे में जानकारी ले सके ...कल सुबह भी तो कल शाम को भी उसने एक मोटरसाइकिल पर युवा लड़के लड़की को बैठे हुए देखा था आखिर कौन है ये ... प्रेमी प्रेमिका....या घर से भागकर आएं हुए
मां कहीं लिव इन रिलेशनशिप में .... पता नहीं गली का माहौल कैसा बन जाएगा लोग सोचते भी नहीं ऐसे लोगों को मकान किराए पर देने से पहले अरे दूसरे घरों की बड़ी होती बेटियों पर इसका क्या असर पड़ेगा तभी तेजी से एक मोटर साइकिल निकली जिस पर वे दोनों युवा लड़का लड़की ही बैठे थे उनका यूं पास-पास बैठना सुधा को खटक रहा था ...कहीं ये दोस्त ... नहीं दोस्त तो नहीं लगते ...तो फिर .. सुधा को उनके प्रति जानने की बहुत उत्सुकता थी इससे पहले भी वो ऐसे ही दूसरों की बातें जानने के लिए उत्सुक रहती थी जिसके चलते उसके पति मोहन ने और बेटी आराध्या ने उसे कयीबार समझाते हुए कहा है कि वह दूसरे पर ध्यान ना देकर अपने घर की और देखा करें अरे टीवी सीरियल है फिल्में हैं उन्हें देखकर टाइम पास किया करो मगर सुधा को हमेशा आसपास की चटपटी खबरें जानने की लालसा रहती थी सुबह से अपनी मां की बैचेनी को देखकर आराध्या हंसते हुए अपने पापा से बोली ...पापा... लगता है मम्मी को कुछ पेट से रिलेटेड प्रोब्लम फिर हो गई है
रसोईघर में सब्जी काट रही अपनी मां को सब्जी काटने से ज्यादा बाहर नजरें टिकाए देखकर आराध्या ने जैसे ही ये कहा तो सुधा ने भी ये सुनते ही चिढ़ते हुए जबाव दिया....क्यों क्या हुआ मेरे पेट को...
कयुं मम्मी आपको राजू मामाजी के साथ वाले घर में आएं नये किराएदार की रिपोर्ट जो चाहिए पेट में गुड़गुड़ाहट सी हो रही है की कौन है ये ...कयुं सच कहा ना कहते हुए आराध्या हंसने लगी अपनी चोरी पकड़ी हुई देखकर सुधा थोड़ा हड़बड़ा सी गई
अच्छा ....तू बड़ा नजर रखती है अपनी मां पर .... कहते हुए सुधा ने मुंह बनाया
अरे मेरी अच्छी और बोली मम्मी बैठो यहां... कहते हुए आराध्या ने सुधा का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाने की कोशिश की तो सुधा हाथ छिटकते हुए बोली ... रहने दें सब्जी काटनी है तुम दोनों बाप बेटी के लिए नाश्ते के साथ लंच भी बनाना है वरना फिर से मुझे ही दोष दोगे
मम्मी दो मिनट बैठो तो .... मुझे आपसे कुछ बताना है दरअसल वो दोनों मेरे ही कालेज में ही पढ़ने आए है यूपी के रहनेवाले हैं बीते साल आई महामारी में दोनों अपने मम्मी पापा को खो चुके हैं और हादसे से अब तक उबरे नहीं हैं वो जो लड़की है ना बडी बहन है और उसके साथ उसका छोटा भाई ... दोनों एक दूसरे का सहारा है वो लड़का उसे अपनी मां की तरह प्यार करता है तो वहीं उसकी बहन अपने छोटे भाई को बेटे की तरह स्नेह और लाड़ ... कालेज में भी दोनों की ही बातें होती हैं मुझे भी क्लास में प्रोफेसर सर की बातों से पता चला .... कहते हुए आराध्या भी थोड़ा सा भावुक हो गई सुधा खड़ी हुई और वापस से सब्जी काटने लगी तो सब्जी काटते हुए उसकी आंखों से आँसुओं की जलधार बहने लगी
ये देखकर उसके पति मोहन ने पूछा... क्या हुआ सुधा
कुछ नहीं जी वो प्याज काटने से ...
प्याज काटने से या उन दोनों बहन भाई की कहानी सुनकर मोहन ने सुधा की और देखकर पूछा ...
सच ... बहुत बुरा लग रहा है जी मगर में क्या कर सकती हूं इस महामारी ने जाने कितने बच्चों से उनके मां बाप छीन लिए ... सुधा अभी भी सुबक रही थी
सुधा .... जानती हो तुम बहुत कुछ कर सकती हो बल्कि हम सब कर सकते हैं और निभा सकते हैं
क्या... सुधा और आराध्या ने हैरानी से मोहन की और देखते हुए पूछा
पड़ोसी धर्म .... सुधा और आराध्या बेटा जानती हो पड़ोसी उस समय आपके काम आते हैं जब आपके अपने भी आपके पास नहीं होते ... बेटा रिश्तेदार जान पहचान वाले जबतक आपके पास पहुंचते हैं ना तबतक तो अपने होने का असली फर्ज पडोसी निभा भी चुके होते हैं मसलन आप अचानक से बीमार हुए आपको तुरंत अस्पताल लेकर जाना है तब आपके काम आपके पड़ोसी पहले आते हैं आपके कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले
बेटा ये रिश्तेदार तो बहुत बाद में पहुंच पाते हैं
तो ... हमें क्या करना चाहिए पापा ...
बेटा शाम को हम उनके यहां उनके घर चलेंगे जैसा कि तुमने बताया ...हम उनके सगे मां बाप तो नहीं मगर उनके सिर पर स्नेहिल ममतामयी आंचल तो दे सकते हैं ना बच्चों के लिए उनके पीछे कोई उनका अपना है ये एहसास बहुत कुछ हिम्मत देने वाली शक्ति का काम करता है तुम भी उन्हें भाई बहनों जैसे सम्मान देना और हम दोनों माता पिता का साया ...ये उनके जीवन में बहुत कुछ आगे बढ़ने की प्ररेणा स्रोत शक्ति का काम करेगी और यही होता है अपने आसपास रहने वाले पड़ोसियों का पड़ोसी धर्म कहते हुए मोहन ने भी अपनी पलकें साफ की तो मुस्कुराते हुए आराध्या और सुधा दोनों उससे आकर लिपट गई