अपराजिता - जीवन की मुस्कराहट DINESH KUMAR KEER द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपराजिता - जीवन की मुस्कराहट

अपराजिता - जीवन की मुस्कराहट

बड़े शहर से शादी करके आई अपराजिता जब से अपने ससुराल एक छोटे से गांव में आई तब से देख रही थी ससुराल में उसकी बुजुर्ग दादी सास का निरादर होता हुआ।
ससुराल में उसके पति विजय के अलावा उसकी सास और दादी सास थी बस चार लोगों का परिवार, उसने ये बात अपने पति विजय से कहीं तो वह बोला - ये घर की औरतों का मामला है में इसमें क्या कर सकता हूँ,

अपराजिता समझ गई जो कुछ करना है वह उसे स्वयं ही करना होगा, जब भी उसकी सासू-मां, दादी सास का निरादर करती, तो वह विचलित हो जाती, उसके पीहर में उसके पिता और माँ तो दादी का कितनी देखभाल रखते हैं और यहां एक बड़ी बुजुर्ग का निरादर हो रहा है समय पर खाना ना देना, बिना कारण बातें सुनाना चलते हुए ताने कहना । अपराजिता को लगता उसे अपनी सासूमां से इस पर बात करनी चाहिए, मगर फिर मन में आया कहीं मैं सासूमां से ये सब कहूँगी तो सासूमां आप दादीमां का निरादर मत किया करो तो कहेंगी कि कल की बहू आकर मुझे सीख दे रही है और बात बजाय बनने के बिगड़ जाएगी आखिर उसने एक उपाय सोचा वह प्रतिदिन अपने काम निपटाकर दादी सास के पास जाकर बैठ जाती और उसके पैर दबाने लगती अपराजिता की सासूमां ने जब ये निरीक्षण किया की अपराजिता अधिक दादी सास के पास बैठने लगी तो यह सब उन्हें पसंद नहीं आया और एक दिन अपराजिता को गुस्से से पूछा- बहू तुम वहां क्यों जा बैठती हो,

अपराजिता ने अनजान बनते हुए पूछा- मां जी कुछ काम है। आपको बताइए ना, काम को छोड़ पहले ये बता तू वहां क्यों अधिक बैठती है।
मां जी, मेरे पिताजी ने कहा था कि जवान लड़कों के साथ कभी बैठना ही नहीं, जवान लड़कियों के साथ भी कभी मत बैठना जो घर में बड़े - बुजुर्ग हों उनके पास बैठना, उनसे सीख लेना हमारे घर में सबसे बुजुर्ग ये ही हैं अब आप ही बताइए मे किसके पास बैठूं,
तुम्हारे पिताजी ने कहा था ये वहां के तौर तरीके हमारे घर नहीं चलेगे यहां तो हमारे तौर तरीके ही चलेगे समझी
मां जी, मुझे भी यहां के तौर तरीके सीखने है इसीलिए तो मैं उनसे पूछती रहती हूं कि मेरी सास आपकी सेवा कैसे करती है ताकि में भी आपकी तरह आपकी सेवा कर सकूं।
अच्छा, तो क्या कहा बुढ़िया ने,
मां जी, दादीजी बोल रही थी कि अगर मेरी बहू समय पर भोजन दें मुझे ताने ना दे तो मैं उसे ही सच्ची सेवा मान लूं।
अच्छा, तो क्या तू भी कर ऐसा ही करेगी।
अब मैं ऐसा नहीं करना चाहती हूं मगर मेरे पिताजी ने कहा कि बड़ों से ससुराल की रीति सीखना जैसे वहां होता हो वैसा ही तुम्हें भी सीखकर करना होगा।
अपराजिता की बात सुनकर सासूमां डर गयी कि ये सब क्या है यदि मैं अपनी सासूमां के साथ जो बर्ताव करुँगी वही बर्ताव ये मेरे साथ करेंगी ये तो कल मेरे बुढ़ापे में मेरे लिए हानिकारक हो सकता है अचानक एक जगह कोने में मिट्टी के बर्तन इकट्ठे पड़े देखकर सासूमां ने पूछा - बहू ये मिट्टी के बर्तन क्यों इकट्ठे कर रखे है।
अपराजिता ने कहा - आप दादीजी को ऐसे ही बर्तनों में भोजन देती हो इसलिए मैंने पहले ही ये बर्तन जमा कर लिए हैं ताकि कल...।
क्या मतलब तो तू मुझे कल को मिट्टी के बर्तन में भोजन करायेगी।
जी, अब आप ही ने तो थोड़ी देर पहले कहा कि यहां आपके यहां की रीति चलेगी हमारे घर में तो बड़े बुजुर्गो को आदर से अच्छे बर्तनों में खाना परोसते हैं।
अरे यह कोई रीति थोड़े ही है।
तो आप फिर आप दादी सासूमां को इन बर्तनों में खाना क्यों देती हो मां जी
वो तो इसलिए की थाली कौन मांजेगा
थाली तो मैं मांज दूँगी।
ठीक है तो तू आज से उन्हें थाली में खाना दिया कर और ये मिट्टी के बर्तन उठाकर बाहर फेंक।
अब बूढ़ी दादीजी को थाली में भोजन मिलने लगा।
मगर अपराजिता ने निरीक्षण किया सबको खाना देने के बाद जो शेष बचे वह खिचड़ी की खुरचन बची हुई दाल दादी मां जी को दी जाती थी
अपराजिता एक दिन ऐसे खाने को हाथ में लाकर देखने लगी तो, सासूमां ने पूछा - क्या देख रही हो बहू,
मां जी, मैं देख रही हू कि बड़ों को भोजन कैसा दिया जाता है ये भी तो यहां की रीति होगी।
ऐसा भोजन देने की कोई रीति थोड़े ही है।
मतलब, तो फिर आप दादीजी को ऐसा भोजन क्यों देती हो,
अरे बूढ़ों को पहले भोजन कौन देने जाएं।
आप आज्ञा दो तो मैं दे दूँगी।
अच्छा - ठीक है तो तू पहले दादी को भोजन दे दिया कर
अच्छी बात है।
अब बूढ़ी दादी जी को बढ़िया भोजन मिलने लगा,
रसोई बनते ही अपराजिता ताजी खिचड़ी, ताजा फुलका, दाल - साग ले जाकर दादी सासूमां जी को दे देती,
दादी मां जी तो मन - ही - मन आशीर्वाद देने लगी दादी मां जी दिनभर एक खाट में पड़ी रहती और वह खाट भी बिलकुल टूटी हुई थी उसमें से बन्दनवार की तरह मूँज नीचे लटकती थी,
अपराजिता ने उसे बड़े गौर से देखा तो ये सब देख रही उसकी सासूमां बोली - अब क्या देख रही हो,
मां जी देख रही हूं कि बड़ों को खाट कैसे दी जाती है।
अरे नहीं, तुम गलत समझ रही हो बड़ों को ऐसी खाट थोड़े ही दी जाती है यह तो टूट जाने से ऐसी हो गयी है।
अच्छा, तो दूसरी क्यों नही बिछा देती,
एक काम कर तू बिछा दे दूसरी।

अब बूढ़ी दादी के लिए निवार की खाट लाकर बिछा दी गयी एक दिन कपड़े धोते समय अपराजिता दादीजी के कपड़े देखने लगी कपड़े छलनी हो रखे थे कपड़ों को गौर से देख रही आराध्या को उसकी सासूमां ने कहा अब क्या देख रही हो बहू,
देख रही हूं कि बूढों को कपड़ा कैसे दिया जाता है,
फिर वही बात अरे कपड़ा ऐसा थोड़े ही दिया जाता है यह तो पुराना होने पर ऐसा हो जाता है,
तो फिर वही कपड़ा रहने दें क्या
तू बदल दे,
अपराजिता ने मुस्कुरा कर दादी मां जी के कपड़े चादर, बिछौना आदि सब बदल दिया, उसकी चतुराई से बूढ़ी दादी मां जी का जीवन सुधर गया...।


दोस्तों, ये सब बाते आपको पुराने जमाने की लग रही होगी ये सच भी है क्योंकि आज कल तो बहू मुंह फट होकर सामने से विरोध कर सकती हैं ऐसी गलत रीतियों का तौर तरीके का मगर कहानी का असल मकसद आपको ये बताने का था कहने भर से ही असर नहीं पड़ता बल्कि आचरण का असर पड़ता है जैसे आप को करते हुए देखकर लोगों को सीखने का मौका मिलता है अपने वर्तमान में अपना भविष्य देखने का
असल में जैसा बोओगे वैसा काटोगे यहां तो समझदार बहु ने समझा दिया मगर यदि आप समझना ही नहीं चाहते तो कल होने वाली आपकी परिस्थितियां आप वर्तमान में ही तय कर रहे हैं...।