माँ आप यहां पर ऐसे क्यों बैठी है, चाय बना लाऊं आपके लिए।
नही कुछ नही सीमा..., बस ऐसे ही नींद नहीं आ रही थी, सासु - माँ जी बोली...
माँ, स्वास्थ्य तो सही है ना आपका, दिखाइए... शरीर को हाथ लगाते हुए सीमा बोली...
सही है बहू... फालतू चिंता मत कर, अब मुझ बुढिया की उम्र में... बस... जा बिटिया दिनेश जाग गया होगा तुम्हें उसके पास जाना चाहिए...
सीमा कुछ चिंतित सी होकर पति दिनेश के पास पहुंची... सुनो जी दिनेश जी...
हां, क्या है सीमा... उठता हूं अभी कुछ ही समय में,
आप यहां सो रहे है बे चिंतित से वहां माँ...
माँ, क्या हुआ, माँ को क्या हुआ...
दिनेश जी पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं वह ना तो सही से खाती है, और ना सही से सो पाती है, अभी भी झरोखे मे बैठी है गुमसुम सी... मुझे उनकी चिंता हो रही है । पापा के अचानक चले जाने से शायद वह...
सीमा... पापा का सहसा चले जाना हम सब के लिए बडी क्षति पहुंचाने वाला है एक छाया जो अब तक हमें अपने अनुभवों के पतों से बचाती थी अब वो छाया... कहकर सिसकने लगा...
दिनेश जी... जो चला गया उसे तो वापस हम नही ला सकते लेकिन जो है उसे भी खोना... दिनेश जी माँ का ऐसे अकेला रहना, नींद ना लेना अच्छे से खाना नही खाना, उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही है।
सही कहा है सीमा, मैं आज लेकिन फिलहाल उन्हें डॉ. के पास...
दिनेश जी, उनका उपचार डॉ. के पास नहीं मगर हमारे ही पास है...
क्या मतलब, हमारे पास,
दिनेश जी, जब बचपन में आप डर जाते थे तो और अकेलेपन से घबराते थे तो आप क्या करते थे।
माँ के पास... तो... समझ गये...
हां... अब से माँ के साथ आप उनके कमरे में रहेंगे... दिन में, मैं और अनीश उनके आस - पास रहेंगे, उनसे हंसी ठिठोली करेंगे, वैसे ही आप रात मे उनसे बचपनें की बातें वो नादानियों से उनकी डांटने वाली समझाने वाली घटनाओं को याद कराएंगे...
सीमा... मैं आज रात से माँ के पास ही सो जाऊंगा...
हूं... यही अच्छा होगा...
रात को माँ के कमरे में...
कौन... कौन है...
माँ...
मैं हूं दिनेश।
दिनेश, तू यहां... बेटा बहुत रात हो गई है तू सोया नही... कुछ काम था।
हां, आज मे आपके पास सोऊंगा यहां...
क्या, लेकिन बहू और अनीश, बेटा तुम्हें उनके पास होना चाहिए...
नही माँ... माँ... कहा ना मैं आपके पास सो जाऊंगा... क्या सीमा से लड़ - झगड कर आया है, देख वो बडी प्यारी बच्ची है उससे झगड़ा मत किया कर, जा अभी और मना ले उसे...
नही माँ, ऐसा कुछ नहीं है । सीमा सचमुच बहुत अच्छी है, माँ याद है बचपन में जब मे डर जाता था तो आपके पास आकर सोता था।
हां, याद है... क्योंकि तू उस वक्त बच्चा था, कमजोर था, डरता था घबराता था इसलिए तू मेरे पास आकार लिपटकर सो जाता था।
माँ, जैसे हम बच्चे बचपन में कमजोर घबराकर डरकर अपने बडे माँ के आंचल मे बेखौफ होकर सो जाते थे, वैसे ही जब बडे़ बुजुर्ग अकेले में घबराहट महसूस करने लगे तो क्या, उन बच्चों का जो अब युवा हो चुके हैं उन बुजुर्गों का सहारा नही बनना चाहिए।
माँ, मुझे पता है आप पापा के अचानक चले जाने से अकेला महसूस करने लगी है।
माँ, आप अकेली नही हो, आपका मजबूत कंधा आपके पास है आपका बेटा।
माँ, कह कर दिनेश एक बार फिर से माँ से बचपने की तरह लिपट गया।
दोनों की आँँखे भीगी हुई थी। कुछ देर मे बेखौफ बेखबर माँ सचमुच बडी अच्छी नींद में सो रही थी...