आम जिंदगी की खास कहानी DINESH KUMAR KEER द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आम जिंदगी की खास कहानी

एक अनोखी प्रेम कहानी

गाँव के बच्चे नारायणी को काकी कहते हैं। पहले नारायणी कभी निराश नहीं दिखती थी। जब से उसका पति भूरा बढ़ई बीमार पड़ा है, तभी से वह खोई-खोई रहती है। पति की सेवा-सुश्रुषा में कमी न रखती। उन्हें खाने में किस चीज की जरूरत है, वह उस चीज को कैसे भी लाकर हाजिर कर देती है । यह सोचती रहती है- एक-एक करके चार बच्चे पैदा हुए, लेकिन चारों चल बसे। पेड़ बच पाएंगो तो फल और लग जाएंगे।

जब से जयपुर के बड़े डॉक्टर ने जवाब दे दिया है तभी से वह निराश रहने लगी है । अब तो पति के स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही खराब हो गई है, उसे लगने लगा है- अब वो बच नहीं पाएंगे।

पर घर आई अनिता उसे समझाते हुए बोली गांव के डॉ. मुकेश भले आदमी हैं। जब से जुनिया गांव में अस्पताल मे डॉक्टर पद पर आये है, गरीबों की जाने बचाये गये। अब मरीज कोई भी हो अब मरीज को रेफर करने का मानो शब्द नहीं है ऐसे लगने लगा है ।

नारायणी पटाक से बोली हमने जिनके बारे में सुना है, कही किसी की दहलीज नहीं बाकी राखी है अब डॉक्टर मुकेश हमारे लिए भगवान का आखिरी सहारा है। डॉ. मुकेश के जाने से पहलें हीं जिनके फेंफड़ा गल गये होंगे। जयपुर के टीवी अस्पताल के बड़े डॉ. ने तो हाथ जोड़ दिए गए हैं, आप लोगो ने दिखाने में काफी देर कर दी। अब तो घर ले जाकें सेवा करो। अब तो डॉ. मुकेश और उनके दादा जिन्हें देखने रोज चेकअप के लिए जाते थे। वे दवायें अपनी तरफ से दे जाता थे। लोगों के वे चहेते बन चूके है । कही व्यक्ति नहीं जाने कब के निबट गये होते।

****

जब नारायणी किसी काम से निकल जाती तो उसका पति भूरा सोचने लगता-ससुरी चार बच्चों की मां हो गई पर अभी भी चार लखन नहीं आया। वह भी कोई कम न था। भरा-पूरा जवान था। शादी हुई, उस समय उसकी उम्र बाईस-तैब्बीस से कम न थी, पर नारायणी की उम्र कच्ची थी। घर में और कोई था नहीं, जो समय की प्रतीक्षा करने को विवश करता। फल अभी गदराया भी न था कि कच्चा ही खा लिया गया। इसके सभी परिणाम सामने दिखने लगे। अतृप्त जीवनधारा बह निकली। आज भी नारायणी उसे कच्ची उम्र की वधू ही दिखती है।

नारायणी घर लौट आई थी। उसे देख भूरा बोला-‘काये नारायणी कहां चली गई थी ?’

वह बोली-‘तुम्हारी बीमारी के चक्कर में काम-धन्धो बन्द पड़ गओ है। मैं हूं ,कहूं मजूरी के काजें नहीं जा पाती। आज रामलाल काका की खटिया बुनिवे की खबर आई तो विनिके झां चली गई ।’

भूरा ने अपने दिल में पड़ी सुश्रुप्त बात कही-‘तें चिन्ता मति करे, बस थोड़े दिन की बात और है। व तो डाक्टर मुकेश जाने कितैक- कितैक गोलीं खवाबे कत्तो। इन्जेक्सन कोंचबे कत्तो। ब मेरे प्रान नहीं निकरन दे रहो।नहीं जाने कब को मर जातो। ‘

वह झट से बोली-‘तुमसे नेक कछू कही, सो ऐसी बातें कन्न लगतओ। जों नहीं सोचते कै मेरो कहा होयगो।’

भूरा ने झट से उत्तर दिया- ‘नारायणी तेरो कहा होतो मोसे निपटकें दूसरो ब्याह कर लिये। मेरी जायदाद पड़ी है आराम से रहिये।’

यह सुनकर नारायणी ने उसे डांटते हुए कहा-‘तुम हमेशा ऐसी ही बातें कत्त रहतओ। ऐसें औरू कोऊ अपनी जनी से ऐसी बातें कत्त होयगो।’

भूरा उसे समझाते हुए बोला- ‘नारायणी और कोई कहे चाहे न कहे। मोय जो बात जी में आई ते तो से कह दई, फिर तें जानें, तोय जो मन में आये सो करिये , लेकिन एक बात कहतों, आदमी को एक को बन्दका होबे में फायदा है। इज्जत बनी रहतै।’

वह उसे समझाते हुए बोली- ‘पहले अपयीं तबियत की बातें सोचो। कैसे ठीक होयेगी ?’

यह सुनकर भूरा ने आंखों में आंसू भरकर कहा-‘देख शान्ति, अब तो तबियत मरघटा में ही ठीक होयगी। वैसे मरिबे के दिना तो न हतये। कोई डूड़ पेड़ हू नाने, ताके सहारे तें बनी रहती।’

इस तरह की बातों से नारायणी ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया था। मन लगाकर पति-सेवा में लग गई थी। उसकी पति-सेवा से सभी आश्चर्य चकित थे।

****

भूरा के मरने के बाद उसकी पति-सेवा की चर्चा घर-घर होने लगी थी ।

भूरा के जाते ही कुछ दिन तक वह गुमसुम बनी रही, फिर सामान्य सी दिखने लगी। शायद जीवन के प्रवाह में आगे बढ़ने का फैसला कर चुकी हो।

यह राज अधिक दिनों तक छिपा न रह सका कि उसे दूसरी जगह बैठना है। यौन के अतृप्त लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। कुछ इसी टोह में मजदूरी के लिए तलाशने उसके घर आते और बातें करने लगते प्यार की। उम्र ऐसी भी न थी कि जल्दी बहक जाती। वह उनकी बातें सुनकर चुप रह जाती। उसके चुप रहने का अर्थ लोग गलत लगाते। सोचते इसे फांसा जा सकता है और इस तरह डोरे डालने वाले कई लोग उसके घर के चक्कर लगाने लगे।

गाँव में एक सोहन खाती और था। उसके एक लड़का था कालू। उसकी शादी भी हो चुकी थी, बाल-बच्चेदार था। उसे जायदाद का लाभ सताने लगा। सोहन ने अपने लड़के से कहा-‘कालू ?’

‘काये दादा।’

‘या नारायणी अपनी जाति की है, अपुन बाकी रक्षा नहीं करेंगे तो और को करेगो ?’

‘लेकिन दादा......?’

प्रश्न सुनकर सोहन दुलार भरी डांट लगाते हुए बोला-‘रे तें कछू नहीं जान्त। अरे! कहूं नारायणी अपये झें आ गई तो समझ ले, पूरे गाँव पै अपनो राज्य हो जायेगो, फिर जितैक काम कराई मांगेंगे तितैक गाँव किन्ने झें देनों परेगी।’

बात सुनकर कालू ने उसका विरोध किया -‘दादा ज बात को पूरो गाँव विरोध करैगो।’

यह सुनकर उसने अपने पुत्र को उपदेश दिया-‘रे मियां-बीबी राजी कहा करैगो काजी। फिर तो कोऊ कछू नहीं कर सकत। तें तो बाके झां जान आन लग। बाय बातिन में देले। सोई सब काम बनिगओ, मौज करैगो।’ यह सुनकर कालू उनकी बात मन हीं मन गुनने में लग गया।

कालू नारायणी के घर जाने-आने लगा है। यह खबर आकाश में बादलों की तरह सारे गाँव में फैल गई। इस खबर से गाँव के लोगों को बात का अन्दाज लगाने में देर न की। सभी समझ गए क्या घटना घटने वाली है? इसका गाँव पर क्या प्रभाव पड़ेगा? बात मगनू पटेल की बैठक में भी जा पहुंची। बातें चलने लगी।

विश्राम बोला-‘मुझे तो लगता है पटेल, कै कालू मीठीं- मीठीं बातें करके नारायणी को पटाये लेता है।’

गाँव में खाती के दो घर थे। अब एक ही रह गया है। नारायणी के साथ उसके किसान भी कालू को मिलेंगे। कमाऊ पत्नी, ऊपर से घर जायदाद किसे बुरी लगती है ?’

मगनू पटेल ने कहा-‘भैया फिर आनन्द-ही-आनन्द है, किसी का हल टूट गया तो ठीक होने का नम्बर चार दिन में आएगा। दो-दो, तीन-तीन दिन तो अभी लगा लेता है।’

मगनू ने फबती कसी-‘अब कालू किसानों का काम करेगा कि दो-दो औरतों की सेवा में रहेगा?’

विश्राम ने बात आगे बढ़ाई-‘पटेल साब आप नारायणी से जाकर पूछो तो कि वह क्या चाहती है?’ बात गुनते हुए मगनू पटेल बोले-‘वह यदि कालू के यहां जायेगी तो हम उसे जाने ही नहीं देंगे। इसमें सारे गाँव का अहित है ?’

विश्राम बोला-‘और वह न मानी तो ........ ?’

बात पर मगनू फटाक से बोले- ‘यह बात नहीं है वह समझ जाएगी। ना समझ थोड़ी है। ना उस पर इतनी जवानी ही सवार होगी कि वह भटक जाए।’

यह सुनकर विश्राम ने उत्तर दिया- ‘तो पटेल साब आपको कुछ भी पता नहीं है। वहां तो रंग बरस रहे हैं। वहां से रोज-रोज नई-नई प्रेम चर्चायें सुनने में आ रही हैं।’

यह सुनकर मगनू पटेल ने निर्णय दिया- ‘तो इस मामले में जल्दी करना पड़ेगी, औरत है, कुछ कर बैठी तो अपुन कछु न कर पायेंगे।’

विश्राम बोला-‘हां पटेल साब, आप उससे आज ही मिल लें।’

यह सुनकर मगनू पटेल ने प्रश्न किया-‘वह मुझसे बातें करेगी ?’

प्रश्न सुनकर विश्राम नेमजाक में कहा-‘‘क्यों न करेगी। समझेगी ये भी प्रेम-प्रसंग लेकर आये होंगे।’

यह सुनकर मगनू पटेल को लगा- ये कैसा आदमी है। मैं गाँव का पटेल हूं। यदि हम ही ऐसा करने लगेंगे तो देखना किसी दिन लोगों का विश्वास हम से उठ जायेगा।

अब तो विश्राम के जाते ही पटेल अनमनाते उठे और नारायणी के घर की तरफ चलते हुए सोचने लगे - मैंने उसकी तरफ छिपी- छिपी दृष्टि डाली हैं। हिरनी-सी आंखें हैं उसकी, नितम्ब देखते ही बनते हैं। इसी कारण मन चले आकृष्ट हुए बिना नहीं रहते।

यों मन-ही-मन आनन्दित होते हुए उसके घर जा पहुंचे। पौर के किवाड़ खुले पडे़ थे। उन्होंने दरवाजे पर ही आवाज लगाई-‘ओ नारायणी३३३...।’

पटेल आवाज देते हुए अन्दर पहुंच गए। पौल में एक चबूतरा था, उस पर खटिया पड़ी थी, नन्दलाल का भान्जा शंकर लाल उस पर बैठा था। वह पटेल साब को देखकर खटिया छोड़कर खड़ा हो गया। नारायणी शंकर लाल के सामने ही खड़ी थी। उन्हें देखकर उसने पटेल के चरण छू लिये। पटेल उस खटिया पर बैठ गए।

अब शंकर लाल और नारायणी उनके सामने खड़े थे। शंकर लाल जरा मनचला था। कुछ दिनों से नारायणी के घर आया-जाया करता था।, गाँव में नंदलाल के कारण उसकी भी पूछ हो गई थी। पटेल उसे विरोधियों में गिनते थे। शंकर लाल पटेल के सम्मान में पहले से बोला-‘इधर कैसे भूल पड़े पटेल साब, का यहां की खुशबू आप तक पहुंच गई ?’

यह सुनकर पटेल होश में आ गये। सोचने लगे-यह ससुरा तो मेरी इज्जत ही लिये ले रहा है। जैसा खुद है साला, मुझे भी वैसा ही समझ रहा है। यह सोचकर झट से बोले-‘अरे भाई खुशबू, तुम्हें लग रही होगी, मुझे तो बदबू आ रही है।’

यह सुनकर शंकर लाल ने समझा-पटेल साब उसे चैक करने आये होंगे ।

वह नारायणी की स्थिति भी समझ रहा था, बोला-‘साब नारायणी ठीक ही सोच रही है। उसका इस तरह बैठे रहने से गुजारा तो नहीं हो सकता। उसे कहीं-न-कहीं तो बैठना ही पड़ेगा।’

यह सुनकर पटेल सोचने लगे-कहीं ससुरा ये ही तो इसे अपने घर बैठाना नहीं चाहता। यह सोचकर उन्होंने प्रश्न कर दिया-‘लेकिन भाई नारायणी को अपने मन की करना चाहिए या गाँव के हित की सोचकर चलना चाहिए। अरे जब देश या राज्य पर संकट आ जातो तब देश या राज्य के सैनिक ने शहीद होना पड़ता क नहीं।’

नारायणी ने सोचकर उत्तर दिया-‘एन होनो पत्तो, तो ज बात मानिवे की मंख कब मना कर रही हों।’

पटेल ने प्रश्न कर दिया-‘तो नारायणी अपने मन की बात तो सुना दे।’

वह बोली-‘दद्दा जू व हमाये बाये दद्दा के लरिका हैं वे रोज चक्कर लगा रहे हैं। बिनको सोऊ मन दिख रहो है।’

पटेल ने उसे समझाया-‘व सुसरो एक को पेट तो भर नहीं पा रहो। अब दो-दो जनीं रखेगो।’

बात कहने से कुछ क्षण रूके, फिर बोले-‘तें अपनी जिन्दगी क्यों खराब कर रही है। अरे! किसी हट्टे-कट्टे आदमी को गाँव में अलग से बुलायें लेते हैं। तें पसन्द कर लिये। यहां ही रहेगा। तें बापै राज्य करिये। क्यों शंकर लाल, बात ठीक है ना ?’

शंकर लाल ने उत्तर दिया-‘हां, ज ठीक कही पटेल साब ने। तेरी जायदाद है, कोई तेरी जायदाद पर यहां आकर रहेगा तो तेरे कहने में उसे चलना ही पड़ेगा। आधा गाँव तेरो है, दोऊ मिलिकें कमाई करियो।’

पटेल ने उत्तर दिया-‘यही तो मैं सोचता हूं भाई, अब नारायणी जैसें कहे। नहीं .......हम चक्कर में न पड़ें। लेकिन अब यहां कालू न आये। बासे साफ-साफ कहानों पड़ेगी। नहीं तुझे बाद में परेशानी आयेगी। अरे थोड़े दिना अच्छे चल लेऊ। दो-चार दिन में तेरो इन्तजाम किये देते हैं। लेकिन कह देऊ तो हम चक्कर में पड़ें।’

नारायणी ने उत्तर दिया-‘दद्दा जू तुम मेरे हित की हूं सोचोगे। वैसे हमाये दद्दा जू के लरिका हू अच्छे हैं।’

पटेल फिर बात काटकर बोले-‘वह हमें तो नहीं जचों। हमें तो गाँव को हित सोऊ देखनो है कै नहीं। तुझे यदि जच रहा है तो एन चली जा। फिर हम कर ही का सकतयें।’

यह सुनकर नारायणी समर्पित भाव से बोली-‘नहीं दद्दा जू तुम कहोगे वैसे तैयार हों।’

यह सुनकर वे बोले-‘ हम जबरदस्ती नहीं कर रहे। पहले ते देख-परख लिये, तब बाको रहिबो पक्को करेंगे, फिर यहां आकर गड़बड़ करेगा तो हम किसलिये बैठे हैं और तुमने अपने मन की की, तो तू जानें।’

नारायणी ने उत्तर दिया-‘नहीं दद्दा जू ,जैसे कहोगे, वैसे तैयार हों। तुम्हाये सहारे तो झें डरियों।’ यह कहकर वह फुस फुस कर रोने लगी।

पटेल बोले-‘रोती क्यों हैं दूसरा आया जाता है। चैन से रहना। पीछे की बातें छोड़।’

उनका उपदेश सुन वह बोली-‘पीछे की बातें पीछें छोड़नी ही परेंगी। ज जिन्दगी अभै का पतो कितैक है?’

यह सुनकर पटेल ही बोले-‘अरे अभी से जिन्दगी को हिसाब लगाने लगी। हमें का पतो नाने कै तेरो शादी छोटी उम्र में हो गओ और जल्दी-जल्दी लद्द-पद्द तीन बच्चा हो गये। अभी तेरी उम्र ही क्या है? जिन्दगी भर मौज करेगी।’

यह सुनकर नारायणी के मन में गुदगुदी-सी उभर आई अब पटेल शंकर लाल से बोले-‘भाई जी या गाँव की वहू-बेटी है। जरा ध्यान राखो, ऐसा न होय कि कोई बदमासी दे। नहीं हमसे बुरो ज गाँव में कोऊ नाने।’

बात सुनकर शंकर लाल को उत्तर देना पड़ा-‘नहीं साब, आप सब बातें सही कह रहे हो। गाँव के हित बारी आपकी बात को कौन विरोध करैगो? हां, कालू जरूर कर सकतो।’

पटेल ने उत्तर दिया- ‘वह करै विरोध। अरे! सारे गाँव का विरोध करके कौनसा सुख सो लेगा।’

कुछ क्षणों के सन्नाटे के बाद पटेल बोले-‘अब चलता हूं। आज ही आदमी भेजकर कयथी गाँव से उसे बुलवाए लेता हूं।

नारायणी ने प्रश्न कर दिया-‘कपथी गाँव में को है?’

पटेल ने प्यार भरे ढंग में कहा-‘अरे धीरज से काम ले, अधीर मत होय। क्यों चिन्ता करती है मौज करेगी मौज। हां कोऊ तोसे कुछ कहे तो मौसे कहिये। सारे गाँव को अपमान कोऊ नहीं कर सकत।’

शंकर लाल बोला-‘सबके भले की बात है।’ अपना समर्थन सुनकर वे उठ खड़े हुए।’ शंकर लाल भी उन्हीं के साथ उनके पीछे-पीछे चल दिया।

बावड़ी के बालाजी मन्दिर पर पंचायत लगी थी। पटेल को यह पता चल गया कि उनके विरोधियों ने किसी दूसरे आदमी को बुला लिया है। उन्हें पहलें पता चल जाता तो वे अपनी ससुराल कयथी से धन्ना को कभी न बुलाते। विरोधी भी इस टोह में रहते हैं। कब मौका लगे, कब पटेल को नीचा दिखायें। ससुरों ने दूसरा आदमी बुला लिया और पंचायत बैठा दी।

लोग विचार-विनिमय करने लगे। दोनों युवक अपने भाग्य की लाटरी खुलने की बाट जोहने लगे। निर्णय किस प्रकार हो, किसी को कुछ न सूझ रहा था। पटेल साब के आदमी का अपमान पटेल साब का अपमान होगा। विरोधी अपने आदमी को थोप देना चाहते थे। चौधरी को युक्ति सूझी, बोले-‘यह पंचायत तो जबरदस्ती की है। मुझ से नारायणी मना कर देती तो इसे मैं कभी न बुलाता। मैं पंचायत का विरोध नहीं करना चाहता। पंचायत को दूसरा आदमी छोटू अच्छा लगता है तो उसे रख लो।’

विरोधी दल के नेता डॉ. मुकेश के बड़े भैया विनोद थे, वे झट से बोले-‘दोनों के गुण देखकर पंचायत सुनिश्चित कर ले। गांव के लिये कौन ठीक रहेगा।’

बात सुनकर चौधरी बोले- ‘कौन से गुण ?’

विनोद बोले-‘समाजगिरी का काम किसे अच्छा आता है।’

वह सुनकर पटेल को लगा कहीं बाजी हार न जाऊं। धन्ना का स्वास्थ्य अच्छा है, दूसरो छोटू मरियल है। यह सोचकर बोले-‘नारायणी का भी तो मन लिया जाना चाहिए।’

इस पर कुछ मनचले बोले-‘हां-हां, नारायणी को यहां बुलवा लो। पंचों के सामने साफ-साफ कह दे।’

विनोद को यह बात मर्यादा के प्रतिकूल लगी, बोले-‘यह बात ठीक नहीं लगी। अरे! दो पंच नारायणी के घर चले जाओ और उससे पूछ आओ। उसकी क्या इच्छा है?’

एक ने कहा-‘लेकिन उसने दोनों को देखा हो तब।’

शंकर लाल बोला-‘दोनों नारायणी से मिल चुके हैं फिर भी नारायणी से पूछ लेना सही है।’

निर्णय हुआ, विरोधियों में से दो पंच चुने गए। वे दोनों नारायणी के घर पहुंचे। नारायणी पोल में ही थी। एक बोला-‘क्यों नारायणी, पंचों ने यह पुछवाया है कि दो आदमी आए हैं। नारायणी की क्या इच्छा है?’

नारायणी सोचने लगी-आदमी तो कयथी गाँव वाले धन्ना ही हट्टे-कट्टे हैं। देखिवे में अच्छे लगतयें।

यह सोचकर बोली-‘पटेल दद्दा जू की जो राय होय मोय मंजूर है।’

दूसरा बोला-‘देख, पटेल की बात छोड़, तें तो अपये मन की कहो। जिन्दगी तो तोय जीनों है।’

नारायणी ने उत्तर दिया-‘नहीं काका श्री जू पटेल दद्दा जू जो बात कहें वैसे तैयार हों।’

यह जानकर वे वहां से चले आये।

पड़ौस में रामलाल जी का घर था। रामलाल की पत्नी सुशीला ने अपने दो नाती चास- बास लेवे नारायणी के यहां भेज दिये। वे नारायणी से बोले-‘काकी जी, दादी जी पूछती है कि पंचायत में क्या हुआ?’

नारायणी झट से बोली-‘बेटा दादी जी से कहयो, नये काका घरें आबे बारे हैं नेक दादी कों झें भेज दियो। मैं कछु जान्त नाने।’ यह सुनकर बच्चे चले गए थे।