"कहाँ जा रही है, संजना बहू... ?" बाईक की चाबी उठाती हुई संजना से सास ने पूछा...
"माँ की तरफ जा रही थी मम्मी"
"अभी तरसों ही तो गई थी"
"हाँ पर आज पापा की स्वास्थ्य सही नहीं है, उन्हें डॉ. को दिखाने ले जाना है"
"ऊहं... !", "ये तो रोज का हो गया है", "एक फोन आया और ये चल दी", "बहाने चाहिए मायके जाने का" सास ने जाते जाते संजना को सुनाते हुए कहा... "हम तो पछता गए भाई" "बिना भाई की बहन से शादी करके" "सोचा था, चलो बिना भाई की बहन है, तो क्या हुआ कोई तो इससे भी शादी करेंगा"
"अरे... !" "जब लड़की के बिना काम ही नही चल रहा, तो शादी ही क्यों किया"...
ये सुनकर संजना के पूरे शरीर में आग लग गई, दरवाज़े से ही लौट आई ओर बोली, "ये सब तो आप लोगो को पहले ही से जानकारी था ना मम्मी, कि मेरे भाई नही है",
"और माफ करना"
"इसमें एहसान की क्या बात हुई, आपको भी तो पढ़ी लिखी कमांऊ बहू मिली है ।"
"लो !" "अब तो ये अपनी नौकरी और वेतन की भी धौंस दिखाने लगी।"
"अजी सुनते हैं, धरमा के पिताजी" सास - बहू की खट - पट सुनकर बाहर से आते हुए ससुर जी को देखकर सास बोली ।
"पिताजी मेरा ये मतलब नही था", "मम्मी ने बात ही ऐसी की, कि मेरेे भी मुँह से भी निकल गया" संजना ने स्पष्ट किया ।
ससुर जी ने कुछ नहीं कहा और अखबार पढ़ने लगे...
"लो!"
"कुछ नहीं कहा"
"लड़के को पैदा करो"
"रात रात भर जागो"
" गंदगी साफ करो"
"पढ़ाओ लिखाओ"
"शादी करो"
"और बहूओं से ये सब सुनो "
"कोई लिहाज ही नही रहा छोटे - बड़े का", सास ने आखिरी शब्द भेदी बाण (अस्त्र) फेंका ओर पल्लू से आंखे पोछने लगी बात बढ़ती देख धरमा बाहर आ गया,
"ये सब क्या हो रहा है मम्मी ।"
"अपनी लाडली से ही पूछ ले ।"
"तुम अंदर चलो"
लगभग खींचते हुए वह संजना को कमरे में ले गया
"ये सब क्या है! संजना... अब ये रोज की बात हो गई है ।"
"मैने क्या किया है धरमा जी बात मम्मी जी ने ही शुरू की है "
"क्या उन्हें नहीं पता था कि मेरे कोई भाई नही है... ?",
"इसलिए मुझे तो अपने माँ - पापा को संभालना ही पड़ेगा" संजना ने भावक होकर कहा... !
"वो सब सही है",
"पर वो मेरी माँ हैं"
"बड़ी मुश्किल से पाला है उन्होंने मुझे"
"माता - पिता का कर्ज उनकी सेवा से ही उतारा जा सकता है",
"सेवा न सही, तुम उनसे थोड़ा हिसाब से बात किया करो ।"
"अच्छा... !", "बाहर हुई सारी बात - चीत में तुम्हें मेरी बे - हिसाब कहाँ नजर आई...
तुम्हें ये नौकरी वाली बात नहीं कहनी चाहिए थी...
हो सकता है, मेरे बात करने का तरीका गलत हो पर बात सही है धरमा और क्षमा करना...
ये सब त्याग उन्होंने तुम्हारे लिए किया है मेरे लिए नहीं...
अगर उन्हें मेरा सम्मान और समर्पण चाहिए, तो मुझे भी थोड़ी इज्ज़त देनी होगी...
बाईक की चाबी और बटुआ उठाते हुए संजना बोली ।
"अब कहाँ जा रही हो ",
कमरे से बाहर जाती हुई संजना से धरमा ने पूछा...
जिन्होंने मेरी गंदगी धोई है,
मेरे लिए रात - रात भर जागे है,
मुझे नौकरी लायक बनाया है,
उनका कर्ज उतारने" संजना ने गर्व से ऊँची आवाज में कहा और बाईक चालू कर चल दी...!