शरारत की भी सीमा होती है...
पता नहीं कोई हया लिहाज नहीं है इनमें...
तीन वर्षीय अनीश को गोद में उठाए सीमा बड़बड़ाती हुई बालकनी से अंदर कमरे में घुसी
अरे क्या हो गया...
और ये इतना गुस्सा किस बात पर हो रहा है दिनेश ने अपनी पत्नी सीमा का लाल - पीला चेहरा देख पूछा -
वो सामने वाले मोहल्ले में कोने का दूसरे माले की हवेली है ना उसकी बालकनी में से एक बूढ़ा खूसट कई दिनों से मुझे घूर रहा है.... सीमा ने मुंह बनाकर कहा और गोद से नन्ही से अनीश को बिस्तर पर लिटा दिया
ये बात सुनकर दिनेश ने बाहर बालकनी में जाकर देखा तो सामने वाले मोहल्ले में एक सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा अपनी बालकनी में टहलता हुआ दिखाई दिया...
लगता है कोई नया परिवार अभी हाल में ही आया है, दिनेश अंदर कमरे में जाकर सीमा से कहा जो अनीश को थपकियां देकर सुलाने का प्रयास कर रही थी...
हां...
यही कोई दस - बारह दिन ही हुए हैं आए को...
पर मुझे बालकनी में केवल उस बूढ़े के कोई और कभी नहीं दिखाई दिया जब देखो कभी कुर्सी डालकर बैठा मिलेगा तो कभी टहलता हुआ मगर नज़रें इधर हमारी बालकनी पर ही गड़ाए रखेगा... बूढ़ा खूसट...
अपनी सफेद बालों का अपनी उम्र का भी ख्याल नहीं है सीमा लगातार बड़बड़ा रही थी...
हूह...
इन हवेली में बूढ़े बेचारे भी क्या करें बस ऊपर टंगे रहते हैं बालकनी में थोड़ा टहल लिया या बैठकर धूप सेंक ली...
तुम बेकार ही बेचारे पर गुस्सा हो रही हो...
दिनेश ने हँसते हुए सीमा को समझाने का प्रयास किया...
बेचारा...
अकेले या अनीश को लेकर जब भी बालकनी में जाती हूं तो इस खूसट की नजरें इधर ही गड़ी मिलती है और...
तो और...
सीमा कहते - कहते रुक गई
और...
और क्या सीमा...
मत पूछो...
कल शाम तो इसने हद ही कर दी ये मोबाइल लेकर खड़ा था और सच कहूं मुझे लगा इसने चुपके से मेरी तस्वीर भी ली है...
क्या...
तुमने ये कल ही क्यों नहीं बताया मुझे
ये सुनकर दिनेश को भी उस बूढ़े की इस हरकत पर गुस्सा हो आया...
ठहरों अभी जाता हूं और लेता हूं उस ठरकी की क्लास
रुकिए...
मैं भी चलती हूं उस बूढ़े की ऐसी अक्ल ठिकाने लगाऊँगी कि याद रखेगा...
और यहां वहां झांकना ताकना हमेशा को भूल जाएगा...
तभी कामवाली शीला वहां आ गई अपने काम निपटाने के लिए...
अरे शीला...
आ गई तू...
जरा अनीश का ख्याल रखना हम अभी आते है कहकर दोनों तेजी से नीचे उतरे और भन्नाए हुए से उस मोहल्ले में रहने वाले बूढ़े की हवेली की सीढ़ियां चढ़ गए...
घंटी बजाने पर दरवाज़ा बूढ़े ने ही खोला उन्हें देख बूढ़े के चेहरे पर मुस्कान तैर गई अरे आप...
आइए - आइए अंदर आ जाइए...
कमरे में नाम मात्र का उजाला था दीवार से लगे एक दीवान पर कोई लेटा था दीवान की बगल में दो कुर्सियां और दो मोढ़े रखे थे इससे पहले दिनेश या सीमा कुछ कह पाते एक अस्फुट-सा स्त्री स्वर कमरे में उभरा जिसके शब्द दिनेश और सीमा समझ नहीं पाए
बूढ़े ने कमरे की लाइट जला दी तो कमरे की हर चीज़ साफ - साफ दिखने लगी...
ये पूछ रही हैं की कौन आया है पिछले एक साल से अधरंग है इसे...
बिस्तर पर ही रहती है...
कहते हुए बूढ़ा, बुढ़िया के करीब सिरहाने की तरफ बैठ गया तब तक दिनेश और सीमा भी कुर्सियों पर बैठ चुके थे अरी लाजो...
लाडले के मम्मी - पापा आए हैं...
बुढ़िया ने लेटे - लेटे गर्दन घुमा कर उन दोनों की तरफ देखा और अच्छा अच्छा कहा जिसे बूढ़ा ही समझ पाया बुढ़िया ने फिर कुछ पूछा शब्दों की जगह मुंह से जैसे फूंक - सी निकली रही थी...
ये पूछ रही है लाडले को साथ नहीं लाए...
सीमा और अनीश ने एक - दूजे की ओर देखा पर बोले नहीं...
कल मैंने आपके बेटे की तस्वीर मोबाइल पर इसे दिखाई तो बहुत खुश हुई बोली...
ये तो बिल्कुल अपने लाडले जैसा है बूढ़े ने भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए कहा...
और फिर बूढ़े ने बगल वाली दीवार की ओर इशारा करते हुए कहा...
ये है हमारे लाडले चिनू... दीवार पर एक जोड़ा दो ढाई साल के बच्चें को उठाये मुस्करा रहा था...
ये...
ये आपके बहू - बेटा और पोती ... सीमा के मुंह से बमुश्किल ये शब्द निकले,
हां... हां...
बिल्कुल ठीक पहचाना बिटिया तुमने...
बूढ़े ने चहक कर कहा...
है ना हमारे चिनू आपके बेटे की तरह...
बूढ़े का चेहरा खिला हुआ था
मगर ये...
क्या ये अब आपके साथ नहीं रहते... दिनेश ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा
इस पर बूढ़े का खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया उसकी आंखें भीग गई...
बेटा...
अब ये तीनों वहां चले गए जहां से कोई लौटकर नहीं आता...
मतलब...
सीमा और दिनेश एकसाथ बोले
बेटा...
गांव से शहर आए थे सब कुछ बेचकर बेटे - बहु और पोती के साथ आखिरी दिन बीताने के लिए मगर...
भगवान को ना जाने क्या मंजूर है पहले तुम्हारी आंटी को अंधरंग और फिर एक एक्सीडेंट में बेटा - बहु और हमारे चिनू...
हमने सब कुछ खो दिया...
जिंदगी बोझ लगती है मगर जीना तो पड़ता है ना ये मेरी पत्नी है मेरी जीवन संगिनी इसे अकेले कैसे छोड़ दूं जी रहे थे कि यहां बेटे की हवेली में रहने आ गये उस किराए के मकान से...
किस्मत देखो मुझे उस दिन बिटियां के हाथों मे हमारे चिनू दिखाई दिया तो यूं लगा जैसे किसी ने रेगिस्तान में किसी प्यासे को पानी दे दिया हो जब मैंने तुम्हारी आंटी को बताया तो ये चिनू को देखने की जिद करने लगी तो मैंने तुम्हारे साथ उसकी तस्वीर लेकर दिखाई मोबाइल फोन पर ये बहुत खुश हुई महीनों बाद इसके चेहरे पर मुस्कराहट आई थी...
कहते हुए वह बूढ़ा चुप हो गया
तब तक दिनेश और सीमा दोनों खड़े होकर चलने को हुए तो वह बुढ़िया कुछ बोली...
दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो बूढ़ा बोला...
पूछ रही है कहा जा रहे हो चाय...
मां से कहिए...
उनसे उनके पोते का मिलन करवाने के लिए उनके बेटा बहु वापस आ रहे हैं दोनों ने हाथ जोड़ते हुए कहा...
दिनेश और सीमा ने देखा उस बूढ़े की आंखें भीगी हुई थी और दोनों हाथ आशीर्वाद देते हुए उठे हुए थे.........?
अनोखा मिलन बूढ़े माँ बाप को बेटे बहू और पोते का