एक दुआ - 26 - अंतिम भाग Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 26 - अंतिम भाग

26

सब कुछ कह कर वह थोड़ा तो हल्की हो जाएगी । उसके मन हर एक बात कहेगी कि कैसे बिताये उसके बिना दिन, कितने दुख उठाए, कितने सुख पाये? उसे सब कहना ही होगा नहीं तो वह मर नहीं जाएगी और उससे अभी मरना नहीं है उसे जीना है मिलन के लिए और हां मिलन के ही साथ जीना है |

हे ईश्वर उसके मन से निकली अचानक के बाद क्या पूरी होगी ही ईश्वर उसकी सारी मनोकामना पूरी करते हो तो क्या आज यह गली में मनोकामना पूरी करोगे हाँ मिलन के साथ ही अब आगे का जीवन जीना चाहती है |

चाहने सी कहां कभी कुछ होता है काश जो चाहे वह सही हो जाए तो दुनिया में किसी को कोई दुखी ना हो सब खुश और प्रसन्न रहें सब के चेहरे पर एक मुस्कुराती हुई मुस्कान हो,  कमरे में अकेले बैठकर न जाने कितने ख्याल आ जा रहे थे, मिलन के साथ बिताये हुए पल लगातार आँखों के सामने परिक्रमा कर रहे थे, क्यों कोई इतना याद आता है ? क्या वो भी उसे यूँ ही याद कर रहे होंगे, क्या उनके दिल में भी यहीं सब ख्याल आ रहे होंगे?

चलो कुछ देर आराम करने के लिए आंखें बंद करके सोने की कोशिश करते हुए उसने सोचा, थोड़ी देर के बाद तो प्रोग्राम शुरू हो जाएगा और वहां पर लगातार दो-तीन घंटे तो बैठना ही होगा, चलो सो जाती हूँ पर यह क्या ? आंखें बंद करते ही वही सब बातें उसके दिमाग में घूमने लगी और मिलन का चेहरा फिर उसकी आंखों के सामने आ गया कैसे नींद आएगी ?

लेकिन  पता नहीं कब उसकी आंख लग गई होगी ? वो सो गई। यह नींद भी कैसी है ? यह तो चोर है तभी तो चुपके से आ जाती है क्योंकि सोना चाहों कि अभी सो जाए तो नहीं आएगी लेकिन जब लगता है कि नींद नहीं आने वाली तभी आंखो में  आकर चुपके से भर जाती है।

कितनी देर हुई सोते हुए, उसे पता ही नहीं चला । जब डोर बेल बजी तो उसकी आंख खुली और वह हड़बड़ा कर उठ बैठी अरे मैं कहां हूं ? कितनी गहरी नींद आई थी उसे सब कुछ अलग अलग सा लग रहा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा कि वह कहां पर है?

अक्सर ऐसा होता भी है जब हम बहुत गहरी नींद में होते हैं और अचानक से जग जाए, तो हमें समझ में ही नहीं आता कि हम कहां पर है ? घर में भी ऐसा होता था कभी कभी और आज तो वह अनजान जगह पर  थी, जल्दी से उठ कर गेट खोला तो देखा सामने मैडम खड़ी हुई थी अरे तुम अभी तक तैयार नहीं हुई मैंने तुम्हें फोन भी किया था और फोन भी नहीं उठाया तुमने । वह मैं बहुत गहरी नींद में थी ना, मुझे ध्यान ही नहीं रहा, शायद फोन भी आ रहा होगा ?पता नहीं कैसे इतनी गहरी नींद आ गई ? अगर आप अभी डोरवेल नहीं बजाती तो शायद मैं सोती ही रहती।

अरे कैसे नहीं बजाती, पता है मैंने दो तीन बार डोरवेल बजाई तब जाकर आप उठी हो और आपने दरवाजा खोला है ।

चलो कोई बात नहीं अभी तुम फटाफट तैयार हो जाओ, मैं अभी आती हूँ।

मैडम आप अंदर तो आ कर बैठिए जरा ।

नहीं अभी मैं बैठूंगी नहीं, तुम तैयार हो जाओ, वापस मैं आती हूँ । क्ह कर मैडम पलट कर फौरन वापस चली गई।

वह उनके जाते ही जल्दी से बाथरूम में घुस गई। उसे ताज्जुब हो रहा था कि कैसे इतनी गहरी नींद आ गई और इतनी देर तक सोती रही, पता ही नहीं चला, अगर मैडम नहीं जागती तो न जाने कब तक सोती रहती ।

उसने चेहरे पर फेस वाश किया और बाहर निकल आई, अब उसने घड़ी की तरह नज़र दौड़ाई, तो देखा शाम के 5:00 बजने वाले हैं।

अब  क्या ड्रेस पहनना है ? उसने अपनी ड्रेस निकाल कर बाहर रखी लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था दोनों में से कौन सा कलर पहने, चलो यह नेवी ब्लू कलर वाला ड्रेस पहनती हूँ, यह उसके ऊपर अच्छा भी बहुत लगता है। यह पिंक वाला कलर पहन लूँ क्योंकि पिंक भी बहुत सुंदर है । अब उसको खुद ही समझना होगा कि कौन सा पहने ? चलो आंखें बंद करके चूज करते हैं जिस पर उसका हाथ सबसे पहले पड़ेगा वही पहन लेती हूँ।उसने सोचा।

आखिर नेवी ब्लू कलर वाला ड्रेस सबसे अच्छा था उस पर ही उसका हाथ पद गया । सभी लोग कहते हैं कि उसके ऊपर नेवी ब्लू कलर बहुत अच्छा लगता है लेकिन उसका पसंदीदा कलर पिंक है । खैर कपड़े दूसरे की पसंद के पहने जाये तो ही सही रहता है । उसको अपने पापा की वो कहावत याद आ गयी जिसमें वो कहते थे कि खाना अपने मन का खाओ और कपड़े दूसरे के मन का पहनो। चलो जल्दी से पहले तैयार हो जाती वरना यूं ही सोचती रहूँगी कितना सोचती है वो? उसने खुद को ही झिड़का । वो जल्दी ही तैयार हो गयी सिर्फ थोड़ा सा मेकअप और कपड़े बस और करना ही क्या था तैयार होने के लिए । उसने बैग की ऊपर वाली जेब से अपने मैचिंग सेंडल निकाले और पैरों में हल्का सा मश्चराइजर लगा कर उन्हें पहन लिया। अपने साथ में ले जाने के लिए उसने एक पर्स में चॉकलेट का पैकेट रखा, लिपस्टिक और कंघा रखकर चलने को एकदम तैयार होकर मैडम का इंतजार करने लगी । तभी हड्बड़ाती हुई मैडम आई और उससे बोली कि जल्दी चलो कलक्टर साहब बस आते ही होंगे, वैसे आप तैयार हो गयी हो न ?

हाँ मैडम मैं चलने को एकदम से तैयार हूँ । विशी बोली ।

चलो चलो फिर जल्दी से चलो । यह कहते हुए वे कमरे से बाहर आ गयी और विशी उनके पीछे पीछे पर्स हाथ में पकड़ कर निकल आई ।

विशी जी कमरे को लॉक कर दीजिये ।

जी । कमरे को लॉक करके वो लिफ्ट की तरफ दौड़ी जिधर मैडम पहले ही पहुँच गयी थी और उन्होने उसका बटन ही प्रैस कर दिया था । इसी होटल के बड़े से बेसमेंट हॉल में ही प्रोगाम होना था । वहाँ हॉल में अच्छी ख़ासी ओडियन्स आ गयी थी । हल्की हल्की नीले रंग की रोशनी और मध्यम स्वर में संगीत चल रहा था । वहाँ पर काफी अच्छा लग रहा था । वो मंच से थोड़ा पीछे वाली सीट पर बैठ गयी । उसी समय माइक पर बहुत ही सुरीली आवाज में उसके नाम को पुकारा गया । बहुत ही फेमस ब्लॉग की लेखिका विशी जी जिनके सम्मान में यह कार्यक्र्म आयोजित किया जा रहा वे बड़े आदर के साथ कृपया मंच पर पधारें । वो थोड़ा शर्माती और झेंपती हुई मंच की तरफ चल दी । मंच की पहली सीढी को हाथ लगाकर उसने अपने माथे पर लगाकर चूम लिया । कितना बड़ा मंच था उस पर सोफानुमा करीब दस कुरसियां पडी हुई थी । बीच में एक बहुत ही प्यारी नककासी की हुई कुर्सी थी। उस पर ही एक लड़की ने अगुआई करते हुए ले जाकर बैठा दिया । विशी इस समय खुद को किसी महारानी जैसा महसूस कर रही थी इतना मान सम्मान आज तक तो उसे कभी मिला नहीं था । तभी उसे मिलन का ख्याल आया । न जाने कितने देर में वे आ पाएंगे ? जल्दी आ जाते तो अच्छा ही होता । अब इस वक्त वो संगीत बजना बंद हो गया था जो बड़े मध्यम स्वर में बज रहा था उसकी जगह पर एक बहुत ही प्यारी सुरीली आवाज मे लोगों को आज के कार्यक्रम के बारे में अवगत कराया जा रहा था । मैडम और उनके साथ में दो महिलाएं मंच पर आई और उसके साथ वाली कुर्सियों पर बैठ गयी । वे दोनों महिलाएं नेता थी । उन दोनों ने सिल्क की साड़ी और उसके ऊपर जैकेट पहन रखी थी। अभी मंच पर किसी समाजसेविका का नाम लेकर बुलाया जा रहा था । जींस टॉप और बॉय कट बालों वाली एक थोडे भरे बदन की महिला ने मंच पर कदम रखा और वे भी कुर्सी पर आकर बैठ गयी थी । सभी लोग आ गए थे हॉल पूरा भर गया था किन्तु मिलन के आने का कहीं कोई नामोंनिशान नहीं था । अब तो अभी फोन करके भी नहीं पूछ सकती वरना पूछ लेती कि आप कब तक आओगे । ओफफो यह कैसी बेचैनी है जो फिर से उसके ऊपर हाबी होने लगी है कितनी मुश्किल में खुद को संभाला है । उसे यूं बेचैन नहीं होना है पर सोचने से क्या होता है और इस बात पर कोई ज़ोर भी तो नहीं चलता है । कहाँ चला है आजतक किसी का दिल पर ज़ोर, क्योंकि कहते हैं दिल का अपना खुद का दिमाग होता है और वो सिर्फ अपने दिमाग की बात सुनता है ।

मंच पर सभी लोगों ने अपना अपना स्थान ग्रहण कर लिया था सिर्फ दो कुर्सी ही अभी खाली बची हुई थी । तभी वही प्यारी सुरीली सी आवाज में उसके नाम को पुकारते हुए कहा गया, अभी हमारे मुख्य अतिथि के आने में थोड़ा बिलंब हो रहा है तब तक मैं चाहती हूँ कि हमारे कार्यक्र्म का आकर्षण और जिनके लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा है सुश्री विशी जी, वे अपनी कुछ कवितायें सुना कर यहाँ उपस्थित सभी लोगों को अपनी बिलक्षण प्रतिभा से परिचित कराएं । विशी जी नाम के साथ ही हॉल में उपस्थित सभी लोगों ने उसके सम्मान में तालियाँ बजकर स्वागत किया ।

एक लड़की ने उसको माइक दिया और विशी कुर्सी से उठकर खड़ी हो गयी। अच्छा ही हुआ जो उसने अपनी कुछ कविताओं को याद कर रखा है वरना तो अचानक से मुश्किल हो जाती । यहाँ पर महिलाओं की संख्या ज्यादा देखकर उसने महिलाओं से संबन्धित एक कविता सुनाई । अब सभी की मांग पर उसने एक प्रेम कविता सुनाई । दोनों ही रचनाओं के लिए उसे खूब तालियाँ और वाहवाही मिली । सभी लोग उससे एक और कविता सुनाने का आग्रह कर रहे थे लेकिन हॉल में एक सज्जन ने प्रवेश किया और उनके साथ कुछ पुलिस वाले भी थे । वह लड़की जो ऐनकरिंग कर रही थी उनके स्वागत में बोलने लगी और उनको मंच पर आने का आग्रह किया । वे मंच पर आए और उसके बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गए । क्या यह मिलन हैं ? वे उसकी तरफ देख क्यों नहीं रहे हैं ?क्या उनको उससे मिलने की कोई उत्कंठा ही नहीं है ? कितने ही सवाल उसके दिल दिमाग में गूंजने लगे । उनको कुछ बोलने के लिए माइक पकड़ा दिया गया वे क्या बोल रहे थे यह सुनने की बजाय वो उनका चेहरा देखे जा रही थी । कितने दिनों के बाद मिलन को यूं रूबरू देख पा रही है, न जाने कितनी मन्नतें और दुआएं ईश्वर से मांगी हैं जो आज जाकर फलीभूत हुई हैं । कितनी ही देर तक वे बोलते रहे और वो कितनी ही देर तक उनके चेहरे को देखती रही । तब तालियों की गड़गड़ाहट गूंजी तब उसकी तंद्रा भंग हुई नहीं तो न जाने और कितनी देर तक वो मिलन को यूं ही देखती रहती । कुछ और लोगों ने भी अपनी बातें कहीं, एक महिला ने अपना नृत्य प्रस्तुत किया । अंत में उसको सम्मान देने के लिए बड़े आदर के साथ पुकारा गया । पीछे स्लाइड पर उसके चित्र और कविताए चल रही थी । यहाँ आना ही उसके लिए किसी सम्मान से कम नहीं था और मिलन से मुलाक़ात होना तो सबसे ज्यादा सुखद है इसके अलावा उसे और सम्मान में क्या चाहिए ? पर उसे तो सम्मानित करने के लिए बुलाया गया है तो सम्मान तो होना ही था । एक प्यारी सी बच्ची एक थाली में सम्मान करने का समान लेकर उसके पास खड़ी हो गयी । मैडम ने उसके कंधों पर शॉल डाली और जो समाज सेविका थी उन्होने उसके गले में एक माला पहनाई साथ ही एक श्रीफल दिया फिर मिलन ने उसे एक मुमैंटों और एक लिफाफा पकड़ाया ।यह कितनी ज्यादा खुशी के पल थे काश उसके भैया या मम्मी साथ में होती तो उनको कितनी खुशी और गर्व का अनुभव होता । अगर आज पापा होते तो फिर उनकी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं होता । क्यों होता है ऐसा ? कहाँ चले जाते हैं लोग ?वे अपने जिन्हें हम अपना कहते हैं फिर वे कहीं नजर क्यों नहीं आते हैं ? खैर उसके मिलन तो साक्षी हैं न इस खूबसूरत से अवसर के । पर मिलन उसे देख क्यों नहीं रहे ? क्या वे उसको पहचान नहीं पाये हैं ?

विशी की आँखों में इस वक्त खुशी के आँसू छलक आए थे । उसने हाथ जोड़कर सबका शुक्रिया कहा । कार्यक्रम समापन की ओर था तभी मिलन ने सभी से अपने जाने की आज्ञा मांगी और वे उसकी ओर देखे बिना ही चले गए । विशी की सारी खुशी न जाने कहाँ काफूर हो गयी थी । अरे यह कैसी मुलाक़ात थी न आधी न पूरी, मिलन ऐसा कैसे कर सकते हैं कैसे आ कर चले भी गए और उसकी तरफ एक बार देखा भी नहीं । फिर वे आए ही क्यों थे ? क्या वे सिर्फ इस प्रोग्राम को अटेण्ड करने के लिए ही आए थे ? तो फिर उससे झूठ क्यों कहा कि वे उसकी वजह से आ रहे हैं ? उफ़्फ़ उसके साथ यह मेरा कैसा रिश्ता है ? क्या मैं सच में उसके साथ रिश्ते में बंध गयी बिना कोई रिश्ता बनाए ही ? मन में सवाल उमड़ रहे थे और आँखों से आँसू, वो किसी भी तरह से अपने छलक़ते हुए आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी ।

क्या हुआ विशी ? तुम्हारी आँखों में यह आँसू क्यों ? मैडम उसे देखती हुई बोली।

मैडम यह तो खुशी के आँसू हैं । अगर यहाँ पर मेरी माँ होती तो वे बेहद खुश होती ।वो अपने आँसूओं को रुमाल के किनारे से पोंछते हुए बोली ।

इतनी छोटी सी बात और इतना ज्यादा उदास ? अभी वीडियो कॉल करके आपकी माँ से बात करते हैं । मैडम ने उससे घर का नंबर पूछा और फोन मिला दिया ।

अरे यह क्या कर रही हैं मैडम ? बेकार ही फोन मिलाया । उसे लगा कहीं माँ पूजा न कर रही हो और भैया किसी काम से कहीं बाहर न गए हो फिर कौन फोन उठायेगा ? मैं कितना टेंशन लेती हूँ ? उसने खुद को ही झिड़का । मैडम ने शायद उसकी बात नहीं सुनी थी इसलिए वे कुछ नहीं बोली थी । उधर से माँ ने फोन उठा लिया था, भाई ने कॉल रिसीव की होगी और माँ को फोन पकड़ा दिया होगा । यह भाई कितने शरमीले हैं ? इनको इतनी झिझक क्यों रहती है ? न कहीं जाएँगे न किसी से बात करेंगे ?

नमस्कार बहन जी, यह देखिये आपकी बेटी को सम्मान मिल गया है और अब वो आपको याद करके इमोशनल हो रही है, आप उससे बात करके उसे समझा दीजिये। और मैडम ने फोन उसे पकड़ा दिया । अब माँ उसे देख कर इमोशनल हो जायेँगी, विशी ने सोचा । मम्मी नमस्ते । विशी ने हाथ जोड़कर नमस्ते की और वहाँ पर बैठे सभी लोगों से माँ को मिलाया । आज माँ के चेहरे पर खुशी छलक रही थी और वे मुसकुराते हुए सबसे बात कर रही थी। सबको खूब आशीष दिये और उसे शुभकामनायें देकर फोन काट दिया । अब तो खुश हो न विशी ? मैडम ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा ।

जी मैं खुश हूँ बहुत खुश । मैडम जीवन में पहली बार मुझे इतना मान सम्मान मिला । मालूम नहीं कि मैं इस प्यार और सम्मान के लायक हूँ भी या नहीं ?

तुम हो बल्कि इससे भी ज्यादा हो । ईश्वर तुम्हें हमेशा तरक्की दे और तुम खूब मान सम्मान पाओ । मैडम उसके बालों को सहलाती हुई बोली । वहाँ उपस्थित सभी लोग उसकी तरफ बड़े स्नेह के साथ देख रहे थे ।

माँ से भी बात हुई । सबसे खूब स्नेह मिला, मान सम्मान भी मिला किन्तु मन तो मिलन से अटका हुआ था जो उसे उदास करके चला गया था । आखिर वे आए ही क्यों ? यही सवाल बार बार उसके मन में उमड़ घुमड़ रहा था । कार्यक्रम समापन की ओर था अब अध्यक्ष महोदय अपनी बात रख रहे थे। इसके बाद सूक्ष्म जलपान और फिर सबकी विदाई ।

बाहर बड़े से लॉन में कई सारी गोल मेज लगी हुई थी जिसके चारो तरफ चार कुर्सियाँ रखी हुई थी ।

लोग चार चार के ग्रुप में बैठे हुए थे और मेज पर बेटरस के द्वरा सेर्व किए जा रहे पकवानों का आनंद ले रहे थे । खाना वाकई स्वाद था लेकिन विशी का मन तो मिलन की तरफ लगा हुआ था और बस उसे ही सोचते रहने का मन कर रहा था लेकिन मिलन का इस तरह आना और आकर यूं ही चले जाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आया था क्यों इतना रूखापन था उनके व्यवहार में ? ऐसे लग रहा था जैसे कभी उससे मिले ही न हो या उसे जानते ही न हो ।

कोई तो मजबूरी रही होगी जरूर, यूं ही तो कोई बेवफा नहीं होता । विशी ने अपने मन को समझाना चाहा ।

मिलन में मन लगा हुआ था तो जरा सी टिक की आवाज से उसके वापस आने का भ्र्म हो रहा था, व्हाट्सप्प पर कोई मेसेज की आवाज सुनकर उसने झट से  मैसेज बॉक्स खोला, पर यह मिलन का मैसेज नहीं बल्कि उसके भाई का मैसेज था। उसने भाई का मैसेज देखा, लिखा था आप किस समय वहां से निकलोगे ?

बस भाई अभी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं । उसने रिप्लाई भी कर दिया,

ठीक है समय पर पहुंच जाना।

अरे यार जिसके मैसेज का इंतजार था उसका तो आया नहीं भाई का आ गया, चलो कोई नहीं मत आने दो पैकिंग कर लेती हूँ, निकलना भी तो है, तभी फिर से व्हात्स्प की घंटी बजी तो देखा मिलन का मैसेज था, चाँद पर बहुत प्यारी कविता लिखी हुई थी।

चाँद मेरे संग संग चल आया । मैं अकेला नहीं आया ।

वो मुस्कुरा दी । सच में प्रेम प्रेम कभी एक तरफ से होता ही नहीं है, दोनों तरफ से ही होता है लेकिन प्रेम मिलकर भी बिछड़ जाता है और बिछड़ कर भी मिल जाता है, क्योंकि प्रेम शाश्वत है ।

 

सीमा असीम सक्सेना