सीमा असीम सक्सेना
1,
यह इश्क की बात है यहाँ रूह से रिश्ता बनता है,
मिले या न मिले पर अपना तो अपना ही रहता है ।
आज भी बहुत तेज बारिश हो रही थी और इसके रुकने का तो जरा भी नाम नहीं। कई दिनों से लगातार बादल बारिश थे और आज तो बहुत भयंकर बारिश हो रही थी साथ ही ओले भी गिर रहे थे, मिलन ने आज ही उससे मिलने आने का भी वायदा किया था । पर इस बारिश में घर से वो तो निकल कर भी नहीं जा पाएगी, मिलन का ही फोन आया था सुनो मैं आज आ रहा हूँ । यह सुनते ही उसकी बहती हुई आँखें एकदम ख़ुशी से चमक गयी थी “क्या सच में ?
हाँ बिलकुल सच, लेकिन सिर्फ आज शाम को केवल चार घंटे के लिए ही आना हो पायेगा।
ओह्ह, इतनी दूर से सिर्फ चार घंटे के लिए क्यों आ रहे हो ? थकन भी नहीं उतरेगी और तुम्हें वापस जाना होगा ।
हाँ कल ऑफिस में अर्जेन्ट मीटिंग है इसलिए वापस जाना भी बेहद जरुरी है। मिलन ने कहा।
हम्म । बस इतना ही कह पायी थी वो ! मिलन आ रहे हैं ! यह क्या कम है ! उनका आना किसी त्यौहार सा ही लगा था उसे। उनके जाने के बाद एक दिन भी न तो उसने सही से कुछ ना खाया था और न नींद भर सोई थी । आंखों से दर्द इतनी बुरी तरह से बहता रहा, उधर आसमा ने भी उसके साथ साथ बरसना जारी रखा था । बिना मौसम के भी इतनी बारिश न जाने क्यों हो रही थी ? क्या मेरी आँखों से बहता हुआ पानी आसमा तक भी पहुँच गया था जो वह भी दर्द बहाने लगा था ।
चलो कुछ देर को ही सही, वे आ तो रहे हैं न, थोड़ी सी चमक ही उदास चेहरे पर आ जायेगी ।
सुनो पता है तुम्हें कि यहाँ का मौसम बेहद उदास है जब से तुम गए हो बराबर बरसात जैसा मौसम हो गया है । विशी ने फोन पर ही कह दिया था।
अच्छा वो क्यों ? क्या हुआ मौसम को ? उधर से मिलन बोले ।
पता नहीं ! बस है खराब ।”
“तुम चिंता न करो, मैं आऊँगा तो रंग घोलकार मौसम को मस्ताना कर दूंगा ।”
“अच्छा कैसे ? क्या आप रंगरेज हो ?”
“हाँ शायद ! मैं हूँ रंगकार, चित्रकार ! क्या तुम्हे इस बात का अहसास नहीं हो रहा?
वो मुस्कुरा दी थी सही ही तो कहा रहे हैं ! ऐसा रंग डाला है मुझ पर कि और सारे रंग भूल गयी हूँ भूल क्या गयी हूँ, सब रंग फीके पड़ गए हैं बल्कि कोई और रंग मुझे जंचता ही नहीं न, सिवाय इस रंग के ।
अरे यार क्या करने लगी रिप्लाय तो करो ।
कैसे करू रिप्लाय शर्म की वजह से कुछ भी रिप्लाय करते नहीं बन रहा था ।
आप आओ तभी बात करते हैं उसने स्माइली का एक स्टिकर उसे मेसेज कर दिया था ।
उधर से भी मिलन ने भी स्माइली भेजा था, मिलन की इस बात से ही मन खुश हो गया था कि वो आ रहे हैं । वैसे उनसे दो बातें हो गयी, तभी मन हल्का हल्का सा लगने लगा था ।
“देखो सिर्फ चार घंटे का ही समय है मेरे पास, उसमें तुमसे मिलने के अलावा और भी एकाध काम निपटाने हैं क्योंकि इतनी दूर से बार बार तो आया नहीं जा सकता है ।” मिलन के यह शब्द लगातार उसके मन में गूंज रहे थे ।
वे सही ही तो कह रहे थे ! बहुत मुश्किल होता है पाँच घंटे का सफर करके आना फिर वापस भी जाना क्योंकि प्राइवेट जॉब में छुट्टियां मिलना भी आसान काम नहीं है ! चलो खैर !
हे ईश्वर, प्रेम में हम इतना इंतजार क्यों करते हैं ? न जाने कब से उसके आने के इंतजार में मन उदास ही रहता था शायद जब से वो गया है उसका मन ही ले गया है ! बस एक इंतजार लगातार बना रहता है कि वो आ रहे होंगे या एक मेसेज ही कर दे लेकिन उसे अपने काम से फुर्सत मिले तभी तो करेगा ! कैसे याद नहीं रहता उसे ? क्या काम की इतनी उलझने होती हैं कि अपने प्रेम को ही भूल जाओ ! पर आज उसके आने की खबर सुन इन्तजार की घड़ियाँ और लंबी लगने लगी थी ! पर उसके अब यह मेसेज को पढ़कर तो जिस्म में जान सी आ गयी थी, सुबह से भीगी पलकों की नमी कुछ कम हुई थी ।
कितना रोती हैं आँखेँ तुम्हारे इन्तजार में । क्या तुम्हे अंदाजा भी है मिलन ?
लेकिन उसे कहाँ खबर होगी, उसे तो अपने ऑफिस के काम से ही फुर्सत नहीं होती होगी ! कितना सारा काम भी तो उसके जिम्मे डाल दिया गया है ! अभी कुछ दिन पहले ही उनसे मिलना हुआ था । इतना प्यारा स्वाभाव की हर कोई उसकी तरफ खिंचा चला जाता था । उससे बस एकाध औपचारिक मुलाकातें हुई थी एक ही ऑफिस में काम करने के कारण लेकिन उसने मेरे जिम्मे एक काम सौंप दिया था जिस सिलसिले में अब उनसे अक्सर मिलना हो जाता था । अच्छा लगा था उनका व्यक्तित्व, बात करने का ढंग और महिलाओं की इज़्ज़त और परवाह करने के तरीके ने उसे बहुत आकर्षित किया था । उसे महसूस हुआ था कि वे बेहद समझदार और ज़हीन किस्म के इंसान थे जिसके दिल में हर किसी के लिए प्यार और सम्मान की भावना थी लेकिन वो इतने प्यारे और हरदिल अजीज इंसान कि हर कोई उन्हें चाह सकता था, पसंद कर सकता था पर उनके दिल में भी किसी के लिए शायद प्रेम पलने लगा था,या शायद कोई उनकी नजरों में चढ गया था और कोई उनके दिलो दिमाग पर नशे की तरह से छा गया था ! जो उनकी बातों और हाव भाव से अक्सर महसूस होता था लेकिन वो है कौन, इस बात से सब अनजान थे ! सच में कितनी किस्मत वाली होगी वो जिसे उसका प्यार नसीब होगा एक बार को उसके मन में यह बात आ गयी फिर उसने सर को झटका, हुंह जाने दो मुझे क्या, वो कोई भी खुशनसीब हो !
उसे तो अपना काम ईमानदारी से करना है और वो अपने काम को सच्ची लगन से करने लगी लेकिन मिलन उससे भी ज्यादा अच्छे से काम कर रहे थे ! वे एक सीनियर आफ़िसर थे ! उनके काम के प्रति सच्ची लगन का परिणाम तो उनको मिलना ही था आखिर मिल गया और उनको प्रमोशन के साथ ट्रांसफर कर दिया गया । इस बात की खबर जब उसके मातहतों को लगी तो पूरे ऑफिस और सभी लोगो में दुःख की लहर सी दौड़ गयी। क्या यह सच है, सब यह जानना चाहते थे?
अरे नहीं यार, अभी कहाँ हुआ है यह सब तो अफवाह हैं उसने सबको समझाते हुए कहा था ।
“सर आप जाने से पहले बता जरूर दीजियेगा हम आपको ससम्मान विदा करेंगे।” उनके असिस्टेंट ने कहा ।
“हाँ भाई ठीक है तुम परेशान न हो ।” कितनी आसानी से समझाया था उसे और खुद भी उसको समझाने में उदास हुआ था लेकिन अपने मन की बात का किसी को अहसास तक न लगने दिया था । उनके मन में भी कुछ दुःख सा भर रहा था, न जाने यह कैसा दर्द उठा कि बढ़ता ही जा रहा था । ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, अब क्यों हो रहा है ? किसलिए ? न जाने क्यों ? आज ऑफिस में मीटिंग थी कुछ कल्चरल प्रोगाम करने के लिए उसी सिलसिले में शहर से बाहर के कुछ लोगों को बुलाया गया था ।
“सुनो,आ जाना तुम भी और हाँ उन लोगो से भी मिल लेना जो बाहर से आ रहे हैं।“ मिलन ने कहा ।
हालाँकि उसका कोई इंटरेस्ट नहीं था फिर भी उसने हाँ बोल दिया था । बोल क्या दिया मुंह से ही निकल गया था। “हाँ” ।
सुबह कार्तिक उसके ऑफिस के कलीग का फोन आया “मैडम आ जाओ, सर ने कहा था ना तुमसे आने के लिए वही पर जल्दी से पहुँचो ।“
“भाई मेरा बिलकुल मन नहीं है। मैं कैसे आऊं और किसके साथ ? इतनी दूर तो है। उसने न जाने का बहाना बनाया ।
“अच्छा रुको, पहले एक मिनट तुम जरा सर से ही बात कर लो।“उसने कोई बात सुने बिना ही सर को फोन पकड़ा दिया ।
ओह्ह सर! उनसे बात करने में न जाने कैसी झिझक सी होती है,,, वो यह सोच ही रही थी कि तब तक फोन पर मिलन आ गए थे ।
“अरे आप आ क्यों नहीं रही है ? आ जाइये न फिर बार बार कोई ऐसे लोगो से मिलना थोड़े ही न हो पाता है ?” वे बड़े आग्रह से अधिकार पूर्वक बोले।
“जी लेकिन मैं कैसे आ पाऊँगी अकेले ?”
“क्यों घर में कोई नहीं है क्या ?”
“नहीं अभी तो कोई भी नहीं ।”
“ठीक है बताओ, कहाँ से लेना है? मैं किसी को भेजता हूँ। तब तो बहाने नहीं बना पाओगी ?”आज पहली बार उनको इतने कड़क लहजे में अधिकार के साथ बात करते हुए सुना था । मानों वे न जाने कितने गुस्से में है । उसके वहाँ जाने या न जाने और किसी से मिलने या न मिलने से इनको क्या परेशानी है लेकिन उनकी वो ड़पट्ती हुई आवाज में भी न जाने कैसा प्यारा सा अपनापन झलक रहा था, न जाने वो कौन सी कशिश थी उनकी आवाज में कि वो खींची चली जा रही थी ।
“जी ठीक है मैं आ रही हूँ !” उस ने कहा !
उसने ऑटो बुक किया और सीधे वहाँ पहुँच गयी । जो जगह उसे कितनी ही दूर और कठिन लग रही थी वो अब बिलकुल करीब महसूस हुई ।