शिखा DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शिखा

शिखा

कुछ ख़ामोश सा था दिल है । न जाने क्यों ? पर बार - बार उसकी याद आ रही थी । चार साल हो चुके मेरे विच्छेद को पर शायद ही कोई पल गया हो उसे याद किए बिना ।

कितने खुश थे हम दोनों । छोटा सा परिवार था मेरा । मम्मी, पापा, मैं और शिखा । शिखा, माँ - पापा की पसंद थी यानि मां - पापा द्वारा किया गया रिश्ता । हम खुशी से जीवन जी रहे थे । मम्मी पापा भी इतनी प्यारी, सुशील बहू पाकर खुश थे । शिखा थी ही इतनी प्यारी कि हर कोई उससे घुट घुटकर बातें करता ।

वो भी सबसे ही तो हँस - हँसकर बात करती । बचपना झलकता उसकी बातों में । सब रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी उसकी खुशमिज़ाजी की तारीफ करते न थकते थे और उसकी यही खुशमिज़ाजी हमारी बर्बादी का कारण बन गयी ।

हमारी शादी के बाद होली का त्योहार आया । सभी लोग रंग में रंगीले हुए पड़े थे कि अचानक शिखा के चिल्लाने की आवाज़ आयी । मानो किसी को जोर - जोर से डाँट रही हो । हम सब भागकर वहाँ पहुँचे तो देखा तो शिखा रो रही थी और मेरे जीजाजी हाथों में रंग लिए खड़े थे।

मुझे देखकर शिखा मुझसे लिपट कर रोने लगी ।

"क्या हुआ शिखा, तुम रो क्यों रही हो ?" मैंने पूछा ।

"वो... जीजाजी, रंग लगाने...", शिखा की हिचकी बँध गई ।

"बोलो, क्या हुआ ? घबराओ मत । "मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा ।

"अरे, कुछ नहीं, प्यारी महारानी रंग से डर गई । "जीजाजी ने जोर से ठहाका लगाया ।

इतना सुनकर सब लोग हँसने लगे ।

"नहीं, इस आदमी ने रंग लगाने के बहाने मेरे को गलत जगह छूआ, "शिखा जोर से चिल्ला कर बोली ।

इतना सुनते ही वहाँ सुन सा छा गया । जीजाजी वहाँ से चले गये और शिखा की हालत देखकर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ और क्या ना करूँ ?

इतने में दीदी बोली - "ये झूठी है । तेरे जीजाजी ऐसा कर ही नहीं सकते । ये तो है ही ऐसी, देखो तो जरा सबसे कैसे हँस- हँस कर बातें करती है । तेरे दोस्तों से भी तो घुल मिल कर बातें करती है, और मेरे पति पर गलत आरोप लगा रही है । कुल्टा, कमिनी कहीं की ।"

उसके बाद तो शिखा पर न जाने कितने आरोप लगाए गए । उसके गुण, अवगुण बनते चले गए । मैं पागल सा देखता रह गया । मम्मी - पापा भी दीदी की ही भाषा बोले जा रहे थे ।

शिखा उसी समय पीहर चली गयी । मैं उसे वापस लाना चाहता था, पर मम्मी ने अपनी जान देने की धमकी देकर मेरे पैरों में जंजीर डाल दीं । फिर पापा ने विच्छेद के कागज़ात तैयार करवा कर मेरे दस्तख़त करवाये और शिखा के दस्तख़त भी करवा लिए ।

तब से मैं शिखा के बिना जी रहा हूँ । बिना अवधि का दर्द पा रहा हूँ । वो कहाँ है ? मुझे नहीं जानकारी ।

इतना जानता हूँ कि एक व्यक्ति की कुत्सित भावना मेरा प्यार लील गई ।

"क्यों बेटी - दामाद का रिश्ता बेटे - बहू के रिश्ते पर हमेशा हावी हो जाता है ।"

"आखिर क्यों ?"