सोई तकदीर की मलिकाएँ - 58 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 58

 

सोई तकदीर की मलिकाएं

 

58

जयकौर और सुभाष भीतर हाल में पहुँचे । भीतर रंलवे स्टेशन के जनरल वेटिंग रूम जैसा माहौल था । लोगों की भीङ जमा थी । हर एक मरीज के साथ लगभग तीन चार तीमारदार आए हुए थे । किसी किसी के साथ तो पाँच सात भी । सारे बैंच कुर्सियाँ लोगों से लदी हुई थी । लोग दीवारों से लगे खङे थे । नीचे फर्श पर भी एक दो मरीज और उनके साथ के लोग बैठे थे । रिस्पेशन पर बैठी लङकी उन्हें भीतर आया देख कर देख मुस्कुराई और मेज पर पङी ढेर सारी फाइलों में से जयकौर के नाम की फाइल ढूंढने लगी । जयकौर का कलेजा मुँह को आ रहा था । सुभाष अलग अपने तरीके से घटनाओं का विश्लेषण कर रहा था । जयकौर का सरदार को बिना बताए बसंत कौर से आग्रह कर के सुभाष के साथ चले आना , बस अड्डे से कम्मेआना की जगह कोटकपूरा की बस लेना , यहाँ सुभाष के साथ डाक्टर को मिलने आना , ढेर सारे टैस्ट और अब बच्चे की बात तो जयकौर मायके जाने के नाम पर अपनी जांच कराने के लिए ही यहाँ आई थी । मायके और ससुराल दोनों से चोरी । मायके जाने का तो एक बहाना था , एक ओट थी जिसकी आङ में उसे यहाँ सबसे छिप कर अपनी जाँच करानी थी ।
लङकी ने खींच कर एक फाइल निकाली ।
बधाई हो । तुम्हारी प्रैग्नैसी कंफर्म हो गई है । अब तीन हजार रुपए निकालो । टैस्टों की फीस ।
जयकौर ने चुपचाप तीन हजार रुपए जमा कर दिए । लहकी ने रसीद बनाई और रसीद और फाइल दोनों सुभाष को थमा दी ।
डाक्टर अभी लेबररूम में हैं , किसी मरीज का जापा करवा रही है । थोङी देर बैठो । जैसे ही डाक्टर लेबर रूम से बाहर आएगी , आप लोग उनसे मिल लेना ।
जयकौर और सुभाष वहीं एक बैंच पर बैठ गये। छत पर पंखा अपनी पूरी स्पीड से घूम रहा था । इसके बावजूद दोनों के माथे पर पसीने की बूंदें चमक उठती जिसे वे बार बार पौंछ कर साफ कर देते । हालनुमा इस प्रतीक्षालय की दीवारों पर माँ और बच्चे की सेहत से जुङे कई चार्ट लगे थे । एक तरफ हँसते हुए गोल मटोल बच्चे का चित्र लगा था और दूसरी ओर बच्चे को चेहरे से सटाए माँ की बङी सी फोटो । पर इस समय दोनों पर फिक्र तारी था । दोनों अपनी सोचों में डूबे थे इसलिए किसी तरफ उनका ध्यान नहीं था । करीब एक घंटे के इंतजार के बाद डाक्टर लेबर रूम से बाहर आई । अभी अभी एक लङका पैदा हुआ था । पिता , नाना , नानी सब बहुत खुश थे । नर्सों को , दाइयों को इनाम और लड्डू बाँट रहे थे ।जयकौर ने सोचा - काश उन दोनों की शादी हुई होती तो वे भी इस समय अपने पहले बच्चे के आने की खुशी महसूस कर रहे होते ।
डाक्टर अपने कैबिन में गई तो उसके पीछे पीछे वे दोनों भी केबिन में दाखिल हुए । डाक्टर ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कहा - आओ , रिपोर्ट ले ली । देखा मैंने पहले ही कहा था तेरह चौदह हफ्ते का गर्भ लग रहा है । अब रिपोर्ट के हिसाब से चौदह हफ्ते का भ्रूण कंफर्म हो रहा है । बाकी आठ दस दिन तो इधर उधर हो ही सकते हैं । उसने ऊंगलियों पर कुछ गिना और एक तारीख रिपोर्ट पर दर्ज कर दी ।
अब अपना खास ख्याल रखना । ज्यादा भारी सामान नहीं उठाना है । हल्का फुल्का काम करती रहना । अपनी डाईट का मेरा मतलब खुराक का पूरा ध्यान रखना । खाने में पूरी खुराक लेना । फल , दूध , दही दोनों टाईम लेना । खुश रहना , किसी बात की टैंसन बिल्कुल नहीं लेना । ये कुछ गोलियाँ दे रही हूँ । यह गोली सुबह शाम लेनी है और यह कैप्सूल रात को सोते हुए । हर महीने अपनी जाँच कराते आती रहना । ठीक है ।
जयकौर के मुँह से अचानक निकला – डाक्टर जी , इसकी सफाई हो सकती है ।
सफाई मतलब अबार्शन , पागल हो गई हो क्या , डाक्टर एकदम भङक गई थी । ये क्या बेवकूफी है । जानती हो , इस समय ऐसा करने से तुम मर सकती हो , बच्चा तो मरेगा ही । बच गई तो हजार रोग लग सकते हैं । वैसे भी यह तुम्हारा पहला बच्चा है न तो दिक्कत क्या है । सफाई कराने के बाद कई बार दूसरा बच्चा ठहरता ही नहीं । सारी जिंदगी पछताना पङता है । मैं ऐसा पाप नहीं करती । जाओ यहाँ से । अगर इस बच्चे को दुनिया में लाने का इरादा बन जाए तो अगले महीने खुद को दिखाने आ जाना ।
सुभाष उठ खङा हुआ – नमस्ते डाक्टर जी और केबिन से बाहर आ गया । सुभाष को बाहर जाता देख कर जयकौर भी पैर घसीटती हुई पीछे पीछे चल पङी । बाहर आ कर कब उन्होंने रिक्शा लिया और कब बस , उन्हें कोई पता नहीं । अपनी अपनी चिंताओं में डूबे हुए वे दोनों बस में पास पास बैठे हुए भी कितनी दूर हो गये थे । सुभाष को लगता कि भोला सिंह निक्के और गेजे के साथ हाथ में गंडासा लिए उसकी ओर बढ रहा है । वह घबरा कर पसीना पसीना हो गया । उसने सिर झटक कर यह ख्याल मन से निकाला और खिङकी से बाहर देखने लगा । उसे लगा कि उसका अपना भाई लाठी लिए उसे मारने आ रहा है । वह बुरी तरह से डर गया कि उसके मुँह से चीख निकलने वाली थी । जयकौर ने उसे विस्मित नजरों से देखा –
नहीं नहीं । मुझे कुछ नहीं हुआ । मैं बिल्कुल ठीक हूँ ।
जयकौर ने एक भरवीं नजर उस पर डाली और बाहर देखने लगी । सुभाष ने अपने आप को इन बुरे खयालों से बचाने के लिए साथ बैठे सहयात्री से अखबार मांगी ताकि वह थोङी देर के लिए ही सही इन वाहियात ख्यालों से बचा सके । सहयात्री ने चार पेज अपने पास रख कर चार पेज उसकी ओर बढा दिए । इनमें से एक पेज पर पंजाब की खबरे थी और एक में फरीदकोट ,फिरोजपुरऔर कोटकपूरा की खबरें थी । उसने पहले स्थानीय खबरे पढने का इरादा किया और वह पेज खोल लिया । पहली ही खबर थी – नाजायज संबंधों के चलते पति ने किया कुल्हाङी मार कर पत्नी और उसके प्रेमी का कत्ल और खुद थाने में जाकर पेश हो गया । वह बुरी तरह से कांप उठा । आगे अखबार उससे पढी न गई । उसने अखबार तह की और उस व्यक्ति को वापस कर दी । बस संधवा पहुँची तो कंडक्टर ने आवाज दी – संधवा उतरने वालों , संधवा आ गया । उतरो जल्दी से । वह दोनों उतरे । और पैदल हवेली की ओर चल दिए । रास्ते में एक लङका मोटरसाइकिल से गाँव की ओर जा रहा था । सुभाष ने हाथ देकर उसे रोका – सुनो भाई , इन को हवेली छोङ दो ।
लङके ने मोटरसाइकिल पर जयकौर को बिठाया – और तू ?
मैं आ जाऊँगा । तू , तुम जाओ ।
लङके ने मोटरसाइकिल को किक मारी । मोटरसाइकिल धूल उङाती हुई चली गई । सुभाष वहीं अपनी सोचों के साथ खङा रह गया ।

 

बाकी फिर ...