शिक्षक DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शिक्षक

*शिक्षक की महिमा*

 

*मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?*

*आपके प्रश्न का सटीक उत्तर*

*आपका मौन है।*

*शिक्षक न पद है, न पेशा है,*

*न व्यवसाय है ।*

*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*

*कोई आय हैं।।*

*शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।* *गीता में उपदेशित*

*"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*

 

*शिक्षक एक प्रवाह है ।*

*मंज़िल नहीं राह है ।।*

*शिक्षक पवित्र है।*

*महक फैलाने वाला इत्र है*

*शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।*

*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*

 

*वह डालता है चांद सितारों ,*

*तक को तुम्हारी झोली में।*

*वह बोलता है बिल्कुल,*

*तुम्हारी बोली में।।*

*वह कभी मित्र,*

*कभी मां तो ,*

*कभी पिता का हाथ है ।*

*साथ ना रहते हुए भी,*

 

*ताउम्र का साथ है।।*

 

*वह नायक ,खलनायक ,*

*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*

*तुम्हारे लिए न जाने,*

*कितने मुखौटे लगाता है।।*

 

*इतने मुखौटों के बाद भी,*

*वह समभाव है ।*

*क्योंकि यही तो उसका,*

*सहज स्वभाव है ।।*

 

*शिक्षक कबीर के गोविंद सा,*

*बहुत ऊंचा है ।*

*कहो भला कौन,*

*उस तक पहुंचा है ।।*

*वह न वृक्ष है ,*

*न पत्तियां है,*

*न फल है।*

*वह केवल खाद है।*

*वह खाद बनकर,*

*हजारों को पनपाता है।*

*और खुद मिट कर,*

*उन सब में लहराता है।।*

 

*शिक्षक एक विचार है।*

*दर्पण है , संस्कार है ।।*

 

*शिक्षक न दीपक है,*

*न बाती है,*

*न रोशनी है।*

*वह स्निग्ध तेल है।*

*क्योंकि उसी पर,*

*दीपक का सारा खेल है।।*

 

*शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की*

*प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*

*कैसे कह सकते हो,*

*कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*

 

*शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी*

*तो कभी विश्वामित्र है ।*

*गुरु और शिष्य की*

*प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*

 

*शिक्षक भाषा का मर्म है ।*

*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*

 

*साक्षी और साक्ष्य है ।*

*चिर अन्वेषित लक्ष्य है ।।*

 

*शिक्षक अनुभूत सत्य है।*

*स्वयं एक तथ्य है।।*

 

*शिक्षक ऊसर को*

*उर्वरा करने की हिम्मत है।*

 

*स्व की आहुतियों के द्वारा ,*

*पर के विकास की कीमत है।।* *वह इंद्रधनुष है ,*

 

*जिसमें सभी रंग है।*

*कभी सागर है,*

*कभी तरंग है।।*

 

*वह रोज़ छोटे - छोटे*

*सपनों से मिलता है ।*

*मानो उनके बहाने*

*स्वयं खिलता है !*

 

*वह राष्ट्रपति होकर भी,*

*पहले शिक्षक होने का गौरव है।*

*वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,*

*कभी न मिटने वाली सौरभ है।*

 

*बदलते परिवेश की आंधियों में ,*

*अपनी उड़ान को*

*जिंदा रखने वाली पतंग है।*

*अनगढ़ और बिखरे*

*विचारों के दौर में,*

*मात्राओं के दायरे में बद्ध,*

*भावों को अभिव्यक्त*

*करने वाला छंद है। ।*

 

*हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें*

*सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।*

*तुम्हारे आसपास जैसी ही*

*कोई सूरत नजर आएगी ।।*

 

*लेकिन यकीन मानो जब वह,*

*अपनी भूमिका में होता है।*

*तब जमीन का होकर भी,*

*वह आसमान सा होता है।।*

 

*अगर चाहते हो उसे जानना ।*

*ठीक - ठीक पहचानना ।।*

 

*तो सारे पूर्वाग्रहों को ,*

*मिट्टी में गाड़ दो।*

*अपनी आस्तीन पे लगी ,*

*अहम् की रेत झाड़ दो।।*

*फाड़ दो वे पन्ने जिन में,*

*बेतुकी शिकायतें हैं।*

*उखाड़ दो वे जड़े ,*

*जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।*

 

*फिर वह धीरे-धीरे स्वतः*

*समझ आने लगेगा*

*अपने सत्य स्वरूप के साथ,*

*तुम में समाने लगेगा।।*

एक आदर्श शिक्षक के कार्य व जीवन में अनेक प्रकार के उतार चढ़ाव आते है, आदर्श शिक्षक कभी भी बाधाओं से नहीं घबराता है...

लेखक: - दिनेश कुमार कीर