Revolutionary - Pandit Ramnarayan Azad books and stories free download online pdf in Hindi

क्रांतिकारी - पण्डित रामनारायण आजाद

रामनारायण आजाद जी के पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन
उत्तर प्रदेश के फर्रुख़ाबाद स्थित मोहल्ले, साहब गंज चौराहे पर पं.ज्वाला प्रसाद दुबे और बादामों देवी के यहां 2 सितंबर 1897 को पं राम नारायण आजाद का जन्म हुआ। देशप्रेम परिवार की रग रग में भरा था। फिर भला पं राम नारायण दूबे आज़ाद क्यों नहीं कहलाते। उन्होंने अत्याचारी को कभी छोड़ा नहीं, और दीन दुखी को कहीं सिसकने नहीं दिया , हर दर्द हरा हर विपत्ति बांटी। वह अंग्रेजी हुकूमत पर टुट पढ़ते थे। पं राम नारायण आज़ाद ने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए के अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। बचपन में ही रामनारायण ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया था बचपन में एक अंग्रेज पुलिस के पत्थर मार दिया, उसने आजाद को पकड़ लिया तब मोहल्ले के लोगों ने बच्चा समझकर छोड़ने की विनती की, अंग्रेज ने हिदायत देकर रामनारायण आजाद को छोड़ दिया। पं राम नारायण आज़ाद में अंग्रेजों के विरुद्ध तेवर नजर आने लग गए थे। स्कूल में शिक्षा लेते लेते उन्होंने बंदूक का जुगाड़ कर लिया और कोतवाली पर फायरिंग करके भाग गए, तब उनकी उम्र करीब 15 वर्ष थी ,वह तैराक भी अच्छे थे, इसलिए वह गंगा जी पार करके गंगा पार चले गए। जहां एक राजेपुर थाना था वहां का दरोगा बहुत अत्याचारी था, आज़ाद ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी।

इस दृश्य को राजेपुर के पड़ोसी गांव भूड़िया भेड़ा के रामसरनलाल शुक्ला ने अपनी आंखों से देखा वह वहां से चुपचाप निकल गए और उन्होंने इस घटना का जिक्र कभी किसी से नहीं किया। दरोगा की हत्या से पुलिस हाथ-पैर मारती रही लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। चश्मदीद रामसरनलाल शुक्ला ने इस घटना को आजादी के बाद बहुत लोगों को बताया लेकिन कोतवाली पर फायर करने के जुर्म में उन्हें 3 माह का कारावास हुआ। आजाद के मन में आजादी का जुनून सवार हो चुका था। धीरे-धीरे उन्होंने संगठन बनाना शुरू किया। लोगों को वह जोड़ने लगे और अपने घर से क्रांतिकारी आंदोलन अपने घर से सही से न चला पाने की सूरत मे वह गंगा नदी के किनारे विशांत घाट पर रहने लगे। जहा से क्रांतिकारी आंदोलन का बड़ा आगाज हुआ।

उन्होंने एक क्रांतिकारी कविता

"सरफरोशी दिल में है, तो और सर पैदा करो नौजवानों हिंद में फिर से गदर पैदा करो फूंक दो , बर्बाद कर दो आशिया अंग्रेज का जिसने बेड़ा गर्क कर डाला। अपने देश का, अब तो दिल में हूक उठी है कुछ करो या फिर मरो नौजवानों हिंद में "

उनको कठोर कारावास हुआ और मैनपुरी जेल उसके बाद लखनऊ जेल भेज दिया। शच्चिन्द्रनाथ नाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में ये आ चुके थे। विश्रांत घाट पर इनके पास दो नाव थी। देश के क्रांतिकारियों को गंगा पार करने हरदोई, शाहजहांपुर तरफ जाना होता था, तो वह आजाद के पास ही आते थे। आजाद के पास चार गांव चलाने वाले नाविक भी साथ में थे। आजाद के पास गंगा पार करने के अलावा क्रांतिकारियों के खाने पीने की व्यवस्था के अलावा ठहरने व खाने पीने की व्यवस्था भी थी। हथियार, पैसा, गोला बारूद भी आजाद क्रांतिकारियों को मुहैया कराते थे। जरूरत पड़ने पर अपने लोग भी क्रांतिकारियों को दिया करते थे। स्थानीय एक्शन, बम निर्माण, बम धमाके आदि की पूरी रूपरेखा इन्हीं के यहां बनती थी। राम प्रसाद बिस्मिल व सचिंद्रनाथ सान्याल के सहयोगी भी पं रामनारायण आज़ाद थे।

रामनारायण आजाद का घर, हथियार, बमों के निर्माण आदि तथा क्रांतिकारियों के अड्डे के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। उन्होंने बम बनाने का कार्य जगदीश शुक्ला, अनंतराम, बैजनाथ गंगा सिंह आदि को दे रखा था। तथा बम ले जाने का कार्य यही लोग करते थे। पत्रों के आदान-प्रदान का कार्य बंसी करते थे। बंगाल के योगेश चटर्जी उन्नाव के दयाशंकर सैलानी उत्तरा पूरा के केपी अग्नि फतेहपुर के संत कुमार पांडे, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, गेंदालाल दीक्षित, शच्चिन्द्रनाथ नाथ सान्याल आदि क्रांतिकारियों का जब भी फर्रुखाबाद आना होता तब उनका आश्रय स्थल पं रामनारायण आजाद के जिम्मे होता था। देश के कई प्रांतों क्रांतिकारी उनके पास आते थे, फर्रुखाबाद में अनंत राम जगदीश ,बैजनाथ और चंद्रशेखर फतेहपुर के संत कुमार पांडे इन्होंने एक संगठन बनाया जिसका नाम रामनारायण आज़ाद रिवॉल्यूशन ग्रुप रखा और उसमें करीब 200 से ऊपर लोग जुड़ गए। पैसों के लिए पं.रामनारायण आज़ाद ने अपनी 29 दुकानें और 9 मकान बेच दिए इन पैसों से इंदौर और ग्वालियर से हथियार मंगाए गए थे। और गोला बारूद आदि सामानों को इकट्ठा किया गया था। आगे पैसों की आवश्यकता पड़ने पर अंग्रेजों के पिट्ठूओ के यहां डकैती डलवाई गई। अंग्रेजों के पिट्ठुओं से पैसों की वसूली भी की जाने लगी, इसी कड़ी में अंग्रेज की वफादार सेठ हजारीलाल वह अन्य दो लोगों की हत्या की गई। रामनारायण आजाद का नाम ब्रिटिश खुफिया रिपोर्ट में दर्ज किया गया। और लंदन भेज दिया गया जिसमें फर्रुखाबाद कोतवाली व अन्य जगह बम कांडों का जिक्र किया गया। वह इस संगठन द्वारा अन्य जिलों में भी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया गया। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फर्रुखाबाद में जनसभा करने के लिए उन्होंने अपने छोटे भाई पंडित नित्यानंद को भेजकर बुलवाया था। आजाद को अंतिम बार दरोगा फेरू सिंह ने गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तार होने के कुछ दिन पहले इनकी दरोगा फेरू सिंह से गोलाबारी हुई थी। दरोगा फेरु सिंह ने रामनारायण आज़ाद को बम कांड हत्या आदि क्रांतिकारी गतिविधियों व संगठन के रिंग लीडर होने के लिए गिरफ्तार किया था। संगठन कोई व्यक्ति ना चला पाए इसलिए तुरंत उनके छोटे भाई नित्यानंद को गिरफ्तार कर लिया गया, और धीरे-धीरे करीब 40 लोग गिरफ्तार कर लिए गए। आजाद ने जेल में फेरु सिंह को जूते मारने के लिए अपनी पत्नी को पत्र लिखा और पं राम नारायण आजाद के घर करीब 150 लोग इकट्ठा हुए। और ये जिम्मेवारी इतवारी लाल ने ली और फेरु सिंह को भरी कचहरी में जूते मारे गए। इतवारी ने कहा यह पं राम नारायण आजाद का बदला है, आजादी से कुछ दिन पहले आजाद जेल से रिहा हुए थे। आजादी के 4 दिन पहले वह अपने घर पर सो रहे थे, पर कोई नहीं था, तभी किसी व्यक्ति ने सोते हुए उनको गोली मार दी। गोली 38 बोर की थी, और दो गोलियां उनको मारी गई, और आजाद आजादी का सूरज नहीं देख सके। और 11 अगस्त 1947 को शहीद हो गए। कहते हैं यह हत्या फेरु सिंह ने करवाई है लेकिन पता नहीं लग सका कि इस घटना को अंजाम किसने दिया।

पं.रामनारायण आजाद की जेल यात्रा का विवरण निम्न बार है।

(1) 1912 मैं 3 माह की जेल
(2) 1921 में 18 माह की जेल
(3) 1925 में 1 वर्ष की जेल
(4) 1930 में 2 वर्ष की जेल
(5) 1932 में 5 माह की जेल
(6) 1942 में 5 वर्ष की जेल
इनकी जेल यात्रा देश के कई जेलों फर्रुखाबाद सेंट्रल जेल, नैनी, आगरा, बरेली, लखनऊ, मेरठ, बरेली, कानपुर, उन्नाव आदि शहरों जेलों में काटी।

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