नि:शब्द के शब्द - 16 Sharovan द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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नि:शब्द के शब्द - 16

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक

सोलहवां भाग

***

दुष्ट-आत्मा का इंतकाम


मोहिनी की गिरफ्तारी, थाने में ही तीन-तीन पुलिस कर्मियों की एक रहस्यमयी तरीके से हुई हत्या और इसके साथ ही मोहित के गाँव में उसके दोनों चचेरे भाइयों की गन्ने के खेत में हत्या तथा उसके दूसरे दिन उसके पिता की आत्महत्या; कुल मिलाकर इतने सारे लोगों की एक ही तरीके से हुई हत्याएं होने की खबर मीडिया और अखबारों ने सारे शहर में अचानक से आई हुई बाढ़ के समान फैलाकर रख दी. अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में खबरें छप गई थीं- 'पुलिस थाने में ही, सुरक्षाकर्मी मृत,' गन्ने के खेत में रहस्यमयी लाशें,' गाँव के जमींदार की आत्महत्या या हत्या की साज़िश,' इलाके में रहस्यमयी दुर्दांत प्रेतात्मा का बदला,' 'भटकी हुई आत्मा या दुखी नारी,' 'नारीपुर और आस-पास के क्षेत्रों में अज्ञात आत्मा की दहशत,' आदि शीर्षकों से गाँव तो क्या शहर का चप्पा-चप्पा तक भय के कारण थरथराने लगा था. हालात, इतने अधिक संगीन और नाज़ुक हो चुके थे कि, जन-साधारण ने दिन छुपते ही अपने बच्चों का बाहर खेलना तक बंद कर दिया था. युवा नारियों और लड़कियों ने घरों से बाहर तक जाना बंद कर रखा था. परिस्थियां कहीं अधिक गम्भीर न हो जाएँ, इसलिए जिला प्रशासन ने शहर के तमाम इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा बल की टुकड़ियां तैनात कर दी थीं. कारण था कि, उपरोक्त इतनी सारी हत्याएं एक साथ, कम समय में होने के कारण अभी तक एक भी संदिंग्ध व्यक्ति तक की गिरफ्तारी तक नहीं हो सकी थी.

केवल मोहिनी को, मोहित के पिता के द्वारा की गई एफ़. आ.. आर. के कारण इसलिए पकड़ लिया गया था, क्योंकि उसने कहा था कि, उसे मोहित के 'कजिन्स' के हत्यारे के बारे में मालुम है. मगर जब उससे पूछताछ की गई तो उसकी बताई हुई बात और एक अज्ञात भटकी हुई आत्मा के द्वारा की गई हत्याओं के बारे में सुनकर कोई भी विश्वास नहीं कर सका था.

अभी तक मोहिनी को पुलिस की हिरासत में रहते जितने दिन हो गये थे, उसके आधार पर अब उसे और पुलिस की रिमांड पर रखना कठिन था. दूसरा, अब पुलिस के अन्य सिपाही, विशेषकर महिला पुलिस कर्मी भी उससे भयभीत रहने लगे थे, क्योंकि जितने भी पुलिस के सिपाहियों ने उसके बदन को छूने या मारने-पीटने की कोशिश की थी, वही पुलिस थाने में मृत पाए गये थे. इसलिए, उन सबका कहना था कि, मोहिनी कोई स्त्री न होकर, एक दुष्टात्मा है. दुष्ट-आत्मा के बारे में दिया गया बयान खुद उस मोहित का भी था कि, जिसके कारण मोहिनी दोबारा संसार में आकर यह सारा दुःख, क्षोभ और बिछोह उठाने के लिए मजबूर हो चुकी थी और इतनी सारे दुःख तथा यातनाएं सहन कर रही थी.

सो, मोहिनी के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पहले, जिले का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी अपने सारे पुलिस सुरक्षाबल कर्मियों के भारी हुजूम के साथ उस थाने में आया और खुद मोहिनी से पूछताछ करने के लिए कुर्सी पर बैठ गया. उसकी अतिरिक्त सुरक्षा के लिए उसके चार पुलिसकर्मी भी उसके चारों तरफ तैनात हो गये. इसके साथ ही सी. सी. टी. वी. कैमरे भी जांच लिए गए गये. थाने के बाहर बहुत से पत्रकारों, मीडिया आदि का हुजूम पहले ही से लगा हुआ था. पूछताछ वाले कमरे में किसी भी मीडिया या पत्रकार को जाने की इजाजत नहीं थी. बाद में मोहिनी को बुलाया गया और उसे एक कुर्सी पर ,महिला पुलिस कर्मियों ने लाकर बैठा दिया. उसके दोनों हाथ उसकी पीठ पर हथकड़ियों से बंधे थे.

अपने भारी-भरकम शरीर के साथ जिले के पुलिस अधिकारी ने पहले तो मोहिनी को गौर से देखा. फिर बोला,

'लड़की, पढ़ी-लिखी हो?'

'?'- मोहिनी ने हां में अपना सिर हिलाया.

'कहाँ तक?'

'एम. ए. पोलिटिकल साइंस.'

'?'- हूँ. इतना अधिक पढ़ी-लिखी होकर, भी क्यों तुमने यह जुर्म किया है?'

'कौन सा ज़ुर्म?' मोहिनी ने पूछा.

'गाँव के गन्ने के खेत में जो दो लड़कों की लाशें मिली हैं, क्या उन्हें तुमने नहीं मारा है?' पुलिस अधिकारी बोला.

'मैंने किसी को भी नहीं मारा है. न ही कोई अपराध किया है?'

'ठीक है. मैं मान लेता हूँ कि तुमने उन्हें नहीं मारा है. लेकिन जिसने मारा है, उसे जानती तो हो?'

'हां, जानती हूँ.'

'वह कौन है और कहाँ पर है?'

'एक भटकी हुई आत्मा और वह मेरे आस-पास ही रहती है.'

'अच्छा ! अगर वह आत्मा है तो तुम्हारे आस-पास क्यों रहती है?'

'क्योंकि, मैं उसका बदन इस्तेमाल कर रही हूँ. जो कोई उस आत्मा के बदन को हानि पहुंचाना चाहेगा, उसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाती है.'

'?'- लड़की, यह तुम कोई कहानी बना रही हो या फिर झूठ बोल रही हो?'

'यह सच है. कोई भी कहानी नहीं है. मैं निर्दोष हूँ. मुझे यहाँ से जाने दिया जाए.' मोहिनी चिल्लाई-चीखी तो वह अधिकारी बोला कि,

'देखो, तुम्हारे यूँ चीखने-चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा. तुम अगर निर्दोष पाई गई तो तुम्हें जाने दिया जाएगा.'

'?'- मोहिनी चुप हो गई.

तब उस अधिकारी ने अपने पास खड़े हुए थाने के दरोगा से पूछा कि,

''इसके घरवालों के बारे में कुछ पता लगाया?'

जी हां सर. यह 'राजा के गाँव' की अपने को बताती है. और जो कुछ इसने अपने परिवार के बारे में बताया है, तो इसके मां-बाप तथा अन्य गाँव के लोग कहते हैं कि, उनकी लड़की की दो वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है, मगर यह कहती है कि, वह ज़िंदा है.'

'इसके मां-बाप को बुलाया गया?'

'आज कार्यक्रम था, मगर आज आपका अचानक से कार्यक्रम बन गया.'

'?'- तब वह पुलिस अधिकारी बड़ी देर तक सोचता रहा. फिर काफी देर तक सोचने के बाद वह बोला कि,

'यहाँ से सारी महिला पुलिस सिपाहियों को हटा दिया जाय और पुरुष सिपाही खड़े किये जायें.'

तब उसका इतना भर कहना था कि, कमरे में से सब महिला पुलिसकर्मी हटाकर चार पुरुष सिपाहियों को खड़ा कर दिया गया. उनके आते ही वह अधिकारी अपनी आँखें निकालकर फिर से मोहिनी से बोला कि,

'देख लड़की, अभी भी समय है. सब कुछ सच-सच बता दे, बरना यहाँ सबके सामने तेरे सारे वस्त्र उतार दिए जायेंगे.'

'?'- मैं फिर कहती हूँ कि, पुलिस सुपरिटेंडेंट साहब ! यह गलती भूलकर भी मत कर बैठना. मेरे जिस्म से हाथ लगानेवाला जीवित नहीं रहा है.'

'अच्छा, क्या कर लेगी तू...?'

यह कहते हुए वह अधिकारी जैसे क्रोध में उठा और उसने मोहिनी के पास आकर उसकी साड़ी जोर से खींचनी चाही कि तभी एक साथ चार धमाके हुए,

'धांय,. . .धांय. . .धायं . . .धायं.'

किसी अनदेखी शक्ति ने वहां पर खड़े हुए पुलिस इंस्पेक्टर की रिवोल्वर निकालकर गोलियां चलाकर उस पुलिस अधिकारी के साथ-साथ अन्य तीन पुलिसकर्मियों को भी मार डाला था. चौथा पुलिसकर्मी भय के कारण दरवाज़ा खोलकर भाग गया था.

'?'- मोहिनी चुपचाप, कुर्सी पर बैठी हुई, हाथों में हथकड़ी पड़ी हुई, हैरानी के साथ यह सब देख रही थी कि, तभी इकरा की आत्मा उससे बोली,

'घबरा मत मोहिनी. यह पुलिसवाले कल तुझको रिहा कर देंगे.'

कहती हुई, इकरा की आत्मा, रिवोल्वर को वहीं मेज पर रखकर, एक तीव्र हवा की सांय के साथ बाहर निकल गई. उसके जाने बाद काफी देर तक तड़पती हुई वायु की सर-सराहट कमरे के भयानक माहोल में गूंजती रही.

गोलियों की आवाजें सुनकर पल भर में ही, समूचे थाने में हड़कम्प मच गया. अवसर मिला तो बाहर खड़े हुए सारे मीडिया के लोग और पत्रकार थाने के अंदर आ गये और घटनास्थल पर आकर वीडियो आदि बनाने लगे. मोहिनी का कमरा तमाम ताज़े खून से रंगा पड़ा था.

जिले के बड़े पुलिस अधिकारी की हत्या और साथ में थाने के दारोगा और अन्य तीन पुलिसकर्मियों की हत्या व खून देखकर दारोगा से नीचे का अधिकार रखनेवाले पुलिस इंस्पेक्टर वहां आये हुए पुलिस अधिकारियों से बोला कि,

'सर ! मैंने पहले ही दारोगा साहब से बोला था कि, इस लड़की के चक्कर में मत पड़ना. यह औरत नहीं है, बल्कि कोई भयंकर बला है. पहले तीन और अब चार की हत्या? कहाँ तक, कौन सम्भालेगा, ये पेचीदा केस?'

'क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि, ये हत्याएं इस लड़की ने ही की हों?' दूसरे पुलिसवाले ने तर्क दिया तो पहलेवाले ने उत्तर दिया. वह बोला कि,

'क्या बातें करते हैं आप? वह कैसे गोली चलायेगी? देखो, उसके हाथ, हथकड़ी से पीठ के पीछे बंधे हुए हैं?

'हो सकता है कि, इस लड़की की कोई प्रेतात्मा, रूह आदि हो?'

'यही तो मैं कहता आया हूँ. मगर, मेरी कोई माने तब न?'

इस बड़ी घटना की भी खबर शहर के चप्पे-चप्पे से लेकर मीडिया के द्वारा देश के कोने-कोने में फैल गई. अखबारों में, सोशल मीडिया पर, लोगों की जुबानों पर, खेतों में, गाँवों में; जिसे देखो, सबके होठों पर एक ही कहानी थी- 'दुष्ट-आत्मा का इंतकाम.'

थाने में ही, एक साथ चार पुलिस वालों की हत्या की बाकायदा कार्यवाही हुई. अपराधिक लैब के अधिकारी और फोटोग्राफर आये. उन्होंने अपनी कार्यवाही की. लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. तीन दिनों के लिए पुलिस विभाग में छुट्टी करके शोक मनाया गया. मोहिनी की सुरक्षा पहले से और भी अधिक कड़ी कर दी गई. जब तक उस थाने का कोई अन्य दारोगा आकर अपना कार्यभार सम्भालता तब तक अस्थायी रूप से उसी थाने के एक सीनियर इंस्पेक्टर को थाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई. फिर भी इस घटना के बाद जन-सामान्य में भय इसकदर बढ़ गया था कि, आम-आदमी ने तो उस थाने की सड़क पर जाना ही छोड़ दिया था. सारा थाना, सन्नाटों की चपेट में आ चुका था.

दूसरे दिन, थाने की एक पुलिस टुकड़ी मोहिनी के गाँव 'राजा का गाँव' जा पहुंची और तहकीकात के लिए उसके मां-बाप, दोनों भाई-बहन और गाँव के प्रधान तथा अन्य वे चार लोग जो मोहिनी को बहुत करीब से जानते थे, जबरन जीपों में बैठाकर उपरोक्त थाने में ले आये. इसके साथ ही मोहिनी जहां रोनित की कम्पनी में काम करती थी, उसके कार्यालय के कुछेक कर्मचारी तथा खुद रोनित को भी मोहिनी की तहकीकात के सिलसिले में पुलिस के पास आना पड़ा.

तब अपने मां-बाप और भाई-बहन को अपने सामने पाकर मोहिनी के आंसुओं की झड़ी लग गई. बड़ी देर तक वह अपनी मां, पिता तथा दोनों भाई-बहन से लिपटकर रोती रही. मगर बिडम्बना यही रही कि, उसके परिवार वालों ने उसे मोहिनी मानने से इनकार कर दिया. उनके साथ आये हुए गाँव के प्रधान तथा अन्य वे लोग जो इसकी शिनाख्त के तौर पर पुलिस के साथ आये थे, उन्होंने भी उसे मोहिनी मानकर पहचानने से मना कर दिया. फिर भी जांच करने वाले अन्य पुलिस अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी समस्या तो यही थी कि, मोहिनी ने अपने परिवार के बारे में, अपने भाई-बहन के बारे में, उनके नाम, प्रधान का नाम तथा अन्य लोगों के बारे में और उनके नाम आदि, सब सही-सही बता दिए थे. पुलिस के जांच करने वालों की टुकड़ी भी यह मानने के लिए तैयार हो चुकी थी की, कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी बात के तहत, मोहिनी का या तो पुनर्जन्म हुआ है अथवा वह सच है जो मोहिनी बताती है. रोनित , उसके कार्यालय के कर्मचारियों ने तो वही सब बताया था जितना वे मोहिनी के बारे में जानते थे.

तब इतना सब कुछ होने के बाद जांच अधिकारी के बड़े अधिकारी ने मोहिनी से कहा कि,

'हमें यह तो विश्वास हो चुका है कि, अब तक जो भी हत्याएं इस सिलसिले में हो चुकी हैं, उनमें से तुमने किसी को अपने इस शरीर के द्वारा किसी को भी नहीं मारा है. अगर तुम्हारी आसमानी कहानी, 'शान्ति के राजा' और उसके 'शान्ति के राज्य' के द्वारा तम्हें दोबारा इस धरती पर भेजने वाली बात सत्य है तो कानूनी तौर पर ना तो तुम्हें इसका कोई लाभ मिलेगा और ना ही हम भी तुम्हें लम्बे समय तक, सबूतों के अभाव में यहाँ बंद रख सकते हैं. इसलिए, अब तक जो कुछ तुमने बताया है, वह सब कुछ सच तो है, मगर तुम अब कोई ऐसी बात बताओ, जो केवल तुम्हें ही मालुम हो और जिसके बारे में तुम्हारे परिवार वाले भी कुछ नहीं जानते हैं. अगर तुम्हारी बात सच निकली, तो मैं, इस विशिष्ट जांच का बड़ा अधिकारी तुम्हें इस केस से बरी कर दूंगा और फिर तुम कहीं भी जा सकती हो.'

'?'- मोहिनी, उस अधिकारी की बात सुनकर बड़ी देर तक चुप खड़ी सोचती रही. फिर बहुत देर के बाद वह उससे बोली,

'हां, बता सकती हूँ, लेकिन मेरी भी एक शर्त होगी.'

'?'- हां, बोलो. अगर मेरे हाथ की बात हुई और पूरी करने लायक रही तो जरुर करूंगा.'

'यह बात बचाए हुए पैसों और जेवरों से सम्बन्धित है.' मोहिनी ने अपनी बात शुरू की.

'वह क्या?'

'मैं, मरने से पहले या यूँ, कहिये कि मेरी हत्या होने से पहले एक सरकारी नौकरी करती थी. अपनी नौकरी के दौरान, मैंने अपने ही घर में, एक छोटी सन्दूकची में करीबन पांच लाख से भी अधिक पैसे और अपने जेवर बनवा कर, अपने विवाह के लिए रखे थे. अगर वह अभी भी, मेरे घर में उस जगह पर सुरक्षित हैं तो, वह पैसा और जेवर मुझे दे दिया जाए. मैं वायदा करती हूँ कि, मैं अपनी वह सारी बचत लेकर, आपके इस शहर से कहीं बहुत दूर चली जाऊंगी और भूले-से भी कभी वापस नहीं आऊँगी.'

'पक्का.'

यह कहकर वह अधिकारी, मोहिनी और उसके परिवार को साथ लेकर, अपनी पुलिस की विशिष्ट जांच टुकड़ी को लेकर मोहिनी के गाँव, 'राजा का गाँव' के लिए रवाना होने के लिए तैयार हो गया.

क्रमश: