नि:शब्द के शब्द - 5 Sharovan द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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नि:शब्द के शब्द - 5

नि:शब्द के शब्द


धारावाहिक - पांचवा भाग

भटकती हुई आत्माओं की आकाशीय दुनियां


मोहिनी अपने ही ख्यालों और सोचों में गुम और खोई हुई थी. सोच रही थी कि, पता नहीं कब उसके लिए दूसरा शरीर मिलेगा और कब वह मोहित से फिर से मिल सकेगी? यह तो बिलकुल वही बात हुई थी कि, जैसे किसी मरीज़ के गुर्दों ने अपना काम करना बंद कर दिया हो और वे फेल हो चुके हों; तब वह मरीज कोई दूसरे गुर्दे के प्रत्यारोपण के लिए, इन्तजार कर रहा हो. किसी की आकस्मिक मृत्यु हो और उसका गुर्दा अथवा शरीर, मोहिनी के लिए उपयोग हो सके. मोहिनी का खुद का शरीर तो कब्र की अंधकारमयी मिट्टी में सड़-गल चुका होगा. कब्र-बिज्जुओं ने अपने भोजन के लिए कितनी बे-दर्दी से उसके खुबसूरत बदन के मांस को नोच-नोचकर खाया और उधेड़ा होगा. अब तो हड्डियां भी आपस में से अलग होकर बिखर चुकी होंगी. सोचने ही मात्र से मोहिनी की आँखों में आंसूं तो दिखे, मगर वे टूटकर नीचे नहीं गिर सके. आखिर थी तो वह अब एक रूह ही- भटकी हुई आत्मा- शरीर और भौतिक वस्तुओं से उसे अब क्या लेना-देना था. संसार तो उसके लिए पराया ही था. जब तक उसको दूसरे शरीर में नहीं भेजा जाता है, तब तक उसे यहाँ से, इस भटकी हुई रूहों के संसार से कहीं भी जाने की मनाही है. सो मोहिनी, इसी प्रकार से सोचती थी और अपनी किस्मत को सोच-सोच कर, अपना सिर भी फोड़ती थी.

अचानक ही उसे ई. . .ईईसी. . .खी. . .खी . . .ई . . .उईया. . .? जैसी मनहूस और डरावनी आवाजें सुनाई दी तो उसने आश्चर्य से अपना सिर घुटनों से बाहर निकालकर देखा- उसके सामने ही, कुछेक बिगड़ैल और चंचल जैसी आत्माएं उसे देख कर खी. . . खी . . .ई कर रहीं थीं. उसकी मनोदशा का उपहास उड़ा रही थीं.

मोहिनी ने उन्हें देख कर अपना मुंह फेर लिया. वह कुछ भी नहीं कह सकी तो उन आत्माओं में से एक ने चुटकी ली और कहा कि,

'ऐ. . .अहे? कितनी नाज़ुक है? हमें देखकर शर्मा ही गई?'

'कहाँ से आई हो, लाजवती?'

'क्या करके यहाँ आने का अवसर मिला है, तुझे?

'इश्क में बरबादी? आत्महत्या? बलात्कार और वह भी सामूहिक? अथवा सास, ससुर और खूसट पति ने मिट्टी के तेल में ही क्रिया-कर्म कर दिया था क्या?'

'?'- जितनी आत्माएं थी, उतने ही विचार और बातें भी थी. वे उससे तरह-तरह के सवाल करने लगी थीं. मोहिनी ने कोई भी उत्तर नहीं दिया. वे कुछ और बोलती उससे पहले ही वह उठ कर दूसरी तरफ जाने लगी.

'लो, जी ! यह तो लाजवंती, दयावती, शर्मवती, घूँघटवती. . . और ना जाने क्या-क्या होगी?. देखो तो, हमें देखकर शर्मा गई है?'

'?'- मोहिनी चुपचाप उनसे हटकर दूसरी तरफ चली गई. तब एक अन्य आत्मा ने उसे टोका. वह बोली,

'ऐ, यहाँ ऐसे शर्माने से काम नहीं चलेगा. यह हम सबका अपना संसार है. सबका बराबर-बराबर. सबके साथ हंस-मिलकर रहो.'

मोहिनी, चुपचाप अपने रास्ते चलती रही और वह ना जाने क्या-क्या बोलती रही.

अन्य दूसरी आत्माएं, अपने ही में मस्त थीं. वे बगैर किसी भी बात के, बे-मतलब ही भागती थीं, एक-दूसरे को छूने और पकड़ने का प्रयास करतीं थीं. मोहिनी यहाँ किसी से भी परिचित नहीं थी. जब कि, अन्य्ब आत्माओं को यहाँ आये हुए एक लम्बा समय बीत चुका था. वे आपस में काफी हद तक आपस में एक-दूसरे से परिचित भी हो चुकी थीं. इसी कारण, दुनिया में अपनों को छोड़ने के पश्चात भी, वे एक प्रकार से खुश थीं- अनिश्चिंत थीं. अपने ही में संतुष्ट और मस्त थीं. यहाँ, अब उनको दुनियाबी चलन और जीने की खातिर किसी भी बात की चिंता नहीं थी. कोई भी दुःख और परेशानी नहीं थी. किसी भी तरह की बीमारी, खतरे, जान-माल, इज्ज़त आदि की सुरक्षा आदि से कोई भी अब सरोकार नहीं था. वे थीं और उनकी यह अजीब-सी, बिना शरीरों की अतिवाहिकीय दुनिया.

यहाँ के शांत वातावरण में, दुनियाबी जैसा कोई भी कानून और नियम नहीं था. उनका तो एक ही राजा था. एक ही नियम-क़ानून था- जिओ और जीने दो- प्रेम करो, प्रेम दो, प्रेम लो और प्रेम से रहो. किसी को कोई भी ऐसी मनमानी करने की इजाज़त नहीं थी जिससे दूसरों को तकलीफ पहुंचे. अथवा यूँ कहिये कि, ऐसा कुछ भी उन्हें सोचने ही नहीं दिया जाता था कि वे दूसरों को क्षति पहुंचा सकें. ये वही सोचतीं थी, जैसा कि उनका राजा, उनको सिखा देता था. इन्हें भूख नहीं, प्यास नहीं, कोई भी तकलीफ नहीं, कोई बीमारी नहीं, कोई भी परेशानी नहीं क्योंकि, परेशानियां उठाने के लिए उनके पास कोई भी शरीर नहीं था. एक ऐसा शरीर जो ये सारी बातें सोचता और झेलता भी.

इन भटकी हुई आत्माओं की भी, यहाँ आने से पहले कोई सुंदर-सी दुनिया थी. मगर कोई भी अपनी मृत्यु मरकर, अर्थात समय और उम्र पूरी होने पर नहीं आई थी. इनमें से किसी का बे-दर्दी से उसके ही भाई और रिश्तेदारों ने गला रेत दिया था. किसी का बलात्कार हुआ था. किसी ने अपने प्रेमी की खातिर रस्सी से लटक कर अपनी जान दे दी थी. किसी को उसकी निर्दयी, बे-रहम सास ने ही एक बोतल पेट्रोल में जलाकर मार डाला था. सबकी, अपनी-अपनी कहानियां थीं. अपने दुःख थे. ये सब अपना यहाँ तक छोड़कर आई थीं कि, अब इनके खुद के हिस्से में भी कुछ भी नहीं बचा था.

मोहिनी सभी से हटकर, दूर अपने को सबसे छिपाती हुई जाकर बैठ गई थी. कितनी अजीब बात थी कि, मरने के बाद, अपने शरीर को सड़ा-गलाकर वह इन आत्माओं के आसमानी संसार में रहने को विवश थी. हांलाकि, उसका कोई भी कुसूर नहीं था- सिवा इसके कि, उसने अपने से बड़ी जाति वाले लड़के से प्यार किया था. इसी प्यार की सख्त सजा उसे अपनी जान देकर करनी पड़ी थी. उसका गला बे-रहमी और निर्दयता से दबा दिया गया था. उसकी उम्र पूरी होती, उससे पूर्व ही उसका सुंदर बदन छीन लिया गया था और अब उसको अपनी उम्र पूरी होने तक यहीं, इसी आत्मिक संसार में रहना था. यह आकाश में दुनिया पर राज्य करने वाले का नियम था- दस्तूर था. हांलाकि, आत्मिक संसार के राजकीय राजा ने उसे उम्मीद दे रखी थी, उसके अपार, पवित्र और सच्चे प्यार की गहराई को देखते हुए उसे दोबारा किसी दूसरे शरीर में प्रवेश और रहने की अनुमति दे दी जायेगी, मगर ऐसा शरीर उसे कब मिलेगा? कहाँ से मिलेगा? मिल भी पायेगा अथवा उसे सारी उम्र इंतज़ार ही करना पड़ेगा? मोहिनी को सिर्फ आशा थी, यकीन मिल जाने पर ही तो हो सकेगा न?

मोहिनी अपने विचारों और सोचों की दुनिया में खो चुकी थी. तभी उसको किसी की बहुत ही कोमल और अपनापन लिए एक आवाज सुनाई दी. उससे किसी ने कहा था कि,

'मित्र, यूँ अकेली उदास-सी कैसे बैठी हो? यहाँ आकर तो लोग अपने छोड़े हुए संसार, परिवार, मित्र, भाई-बहन, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका आदि सभी को भूल जाते हैं. हम लोग यहाँ बैठकर सोचते हैं कि, हमारे आने के बाद वहां संसार में हमारे अपने लोग, हमारी सदा की अनुपस्थिति में कैसे समायोजित करेंगे? कैसे रहेंगे, कैसे जी सकेंगे? मगर, वे सब ठीक रहते हैं. कुछ दिन हमारी मृत्यु का शोक मनाते हैं, रोते हैं, चुप और उदास रहते हैं, बाद में हर कोई सामान्य हो जाता है.'

'?'- मोहिनी ने आश्चर्य से देखा तो एक अन्य आत्मा ने उसकी दशा को देखते हुए जैसे पूरा भाषण ही दे दिया था.

'?'- ये हुई न बात?' उस आत्मा ने मुस्कराया और फिर वह मोहिनी के पास आकर बैठ गई.

'?'- डरो और संकोच न करो. मैं औरों के समान नहीं हूँ. रागन मेरा नाम है. मुझे निश्चित ही अपना हमदर्द समझो. वैसे तुम्हारा क्या नाम?'

'मोहिनी.'

'बड़ा ही प्यारा नाम है. मैं अपने पति को लड़के की सन्तान का सुख नहीं दे सकती थी. इसलिए लगातार चार लड़कियों के जन्म के बाद उसने मुझे बड़े ही प्यार से रात में सोने से पहले दूध में ज़हर पिलाकर मार डाला था. वह पैसे वाला था और हर कार्यालय में अपना रुतवा रखता था. सब जगह उसने ले-देकर सारा केस अपने हित में करवा लिया और आत्महत्या का दोष भी मुझ पर लगवा दिया था. कोर्ट में केस जीतने के एक ही सप्ताह के बाद उसने दूसरा विवाह कर लिया था. मैं तो यहाँ चली आई हूँ, पर मेरी मौत का अगर किसी को फर्क पड़ा था तो वह थी केवल मेरी मां. बाकी सब एक-दो सप्ताह में सामान्य हो चुके थे. मुझे यहा आये हुए डेढ़ वर्ष हो चुके है. अब पता चला है कि, उसकी दूसरी बीबी ने भी उसकी एक और लड़की को ही जन्म दिया है. मेरा पति तो इतना अधिक मूर्ख है कि, उसे यह भी नहीं मालुम था कि, लड़का-लड़की होने की समस्त जिम्मेदारी पति की ही होती है.'

'?'- मोहिनी आश्चर्य से रागनी को देखने लगी तो रागनी ने उससे पूछा कि,

'वैसे, तुम्हारा यहाँ आने का क्या कारण है?'

तब मोहिनी ने उसे आरम्भ से लेकर अंत तक अपनी समस्त दास्ताँ सुना दी.' सुनाने के बाद मोहिनी की आँखों में उसने आंसू देखे तो बोली कि,

'अरे ! तुम तो रोने लगीं? 'बी स्ट्रोंग'. चलो, मेरे साथ, मैं तुम्हें दिखाऊंगी कि, हमारे यहाँ अपनी मृत्यु के बाद हमारे अपने ही लोग कितनी सहजता से रहते हैं और अपना जीवनयापन किया करते हैं?'

'चलूं? लेकिन कहाँ?' मोहिनी ने पूछा रागनी ने उसे बताया. वह बोली कि,

'यही, पर एक गुप्त स्थान है, वहां से हम लोग संसार वालों और उनके कार्यों को छुपकर देख सकते हैं. तुम भी देखोगी तो जान सकोगी कि, संसार में रहने वाले अधिकाँश लोग कितने अधिक पापों में डूबे हुए हैं. हमारा राजा भी कहाँ तक इनको बचाए?'

'?'- मोहिनी ने रागनी को देखा तो रागनी ने उसे उठाते हुए कहा कि,

'आओ, मेरे साथ.'

दूसरे ही पल वे दोनों वायु में, वायु के साथ ही उड़ रहे थे.

कुछ ही पलों के बाद दे दोनों एक भीषण काले घोर अँधेरे से घिरे हुए बादलों की सुरंग में प्रविष्ट हो गई. सुरंग में इसकदर काला अन्धकार छाया हुआ था कि, केवल उनके सफेद अतिवाहिकीय रूपों के कुछ और नज़र नहीं आता था. सुरंग में उड़ते हुए, तैरते हुए से, उनके शरीर कभी बिगड़ते थे, कभी बनते थे, कभी मुड़ते हुए सिमटते थे तो कभी अचानक ही लगता था कि, जैसे गायब हो चुके हैं.

रागनी सुरंग से निकलते ही एक बहुत ही नीचे लटके हुते बादल की चोटी पर आकर बैठ गई. जैसे ही वह बैठी, उसने मोहिनी को भी अपने पास बुलाकर बैठा लिया. तब वह नीचे धरती की तरफ झांकती हुई-सी मोहिनी से बोली,

'इस स्थान पर हमको कभी भी आने की मनाही नहीं है. यहाँ बैठ कर और आकर हम नीचे धरती पर क्या कुछ हो रहा है, सब कुछ अपनी आँखों से देख तो सकते है, परन्तु कर कुछ भी नहीं सकते है. शायद यह इसलिए बनाया गया है ताकि, हम अपने पारिवारी जनों आदि को अपनी आँखों से देख सकें कि, वे सब हमारी दुनिया और उनको छोड़ने के पश्चात किस तरह से रहते हैं. तुम जब उन सब अपनों को देखोगी, तो जानोगी कि, हमारे मरने के पश्चात कोई भी हमारी परवा नहीं करता है. किसी को भी हमारी कमी महसूस नहीं होती है. सबका ही काम चलता रहता है. दो-चार दिनों के शोक के बाद हरेक कोई खुद को सामान्य कर लेता है. हमारा राजा भी, धरती के किसी भी इंसान के आंसू पोंछता नहीं है, बल्कि उनको समय देकर सामान्य बना देता है.'

'?'- मोहिनी आश्चर्य से रागनी की बातें सुनकर खामोश ही रही.

'लो, अब देखो ! वह नीचे, बड़ी पीली कोठी के सामने. 'इनोवा' से उतरकर कोठी में जानेवाला, सफेद सूट में वह 'हैंडसम' मनुष्य? इस समय दुनियां में सुबह के ग्यारह बज रहे होंगे. मेरी तीन लड़कियां स्कूल जा चुकी होंगी. चौथी बेबी स्कूल में होगी. यह जहां आया है, वह इसकी दूसरी मजे मारने की कोठी है.'

'?'- मोहिनी चुपचाप देखती रही.

तभी बड़ी देर के बाद एक अन्य स्त्री भी उसी कार में से नीचे उतरी. नीले रंग की अधनंगी-सी मैक्सी पहने हुए. वह जब कोठी में जाने लगी तो रागनी बोली,

'मेरे आदमी की दूसरी स्त्री से भी जब लड़की ही हुई तो अब यह तीसरी औरत को फंसाने के चक्कर में दिखाई देता है. देखा तुमने? आदमी जाति का ना तो कोई धर्म होता है और ना ही कोई भी ईमान. वह तो स्त्री को केवल अपनी जरूरत की और भोग की ही वस्तु समझता है.'

'तुम सच कहती हो. तुम्हारा आदमी सच में इतना अधिक खराब होगा? मैं सोच भी नहीं सकती हूँ.' मोहिनी ने कहा.

'अब देखो, इन सभी को.'

'?'- मोहिनी ने नीचे देखा तो देखकर दंग रह गई.

- एक मुश्किल से 12-14 साल की लड़की बेतहाशा अपनी जान बचाते हुए बाजरे के खेतों में भाग रही है. उसके पीछे पांच दरिन्दे उसकी इज्ज़त के पीछे लगे हुए है. लड़की को किसी न किसी ने तो भागते-चिल्लाते देखा होगा, लेकिन मजाल है कि कोई भी उसे बचाने आता?'

'?'- मोहिनी डर के कारण कांपने लगी.

-अब इसे देखो. यह 5-6 लोग मिलकर शराब तो पी रहे है लेकिन उनमें से चार लोग केवल एक ही को जबरन बार-बार शराब पिला रहे हैं. जानती हो क्यों? शराब पिलाने के बाद ये चार लोग उसका मर्डर करेंगे. देखो. . .देखो . . .वे चारो उस अकेले आदमी को जबरन उठाकर कार में बैठा रहे हैं.'

सचमुच में उन लोगों ने उसको कार में बैठाया और फिर कार एक सूनसान रास्ते पर भाग रही थी.

'अब देखो, इस साधू जैसे तीन आदमियों को. कितनी सहजता से ये अपना प्रवचन युवा लड़कियों और स्त्रियों को सुना रहे है. इन स्त्रियों की परेशानी, किसी को सन्तान नहीं होती है, किसी को सन्तान में केवल लड़का ही चाहिए और युवा लड़कियों को सुंदर वर, परीक्षा में पास होना आदि कितनी ही परेशानियों के कारण यह यहाँ आती हैं.'

'अब ज़रा धरती पर अन्धेरा होने दो. फिर मैं तुम्हें दिखाऊंगी कि, यह दुनियाँ कितनी अधिक अमानवीय, निर्दयी, निरंकुश और ज़ालिम है.'

'वह सब तो ठीक है. लेकिन क्या मैं अपने मोहित को भी देख सकती हूँ.' मोहिनी ने पूछा.

'हां . . .हां, क्यों नहीं?'

'?"- मोहिनी ने रागनी को आश्चर्य से निहारा तो वह बोली कि,

'अपनी आँखें बंद करके केवल उसे याद करो जिसे तुम देखना चाहती हो. याद करने के बाद फिर आँखें खोलकर नीचे देखना.'

-तब मोहिनी ने वैसा ही किया और जब नीचे देखा तो रागनी बोली,

'तुम्हें, कुछ दिखाई दिया?'

'हां.'

'क्या देखा है तुमने?'

'अपने खेत में, 'ट्यूब बेल' की हौदिया पर उदास बैठा हुआ उसी तरफ ताक रहा है जिस तरफ से मैं उसके पास आती थी.'

'?'- अच्छा ! वह अगर उदास है तो समझो कि, तुम्हारी दुआ सुन ली गई है. हमारे राजा तुमको, अवश्य ही धरती पर भेज देंगे.'

'?'- मोहिनी की आँखों में जैसे चमक आ गई.

'अच्छा, मुझे भी तो देखने दो.' यह कहकर रागनी ने जब देखा तो बोली कि,

'सचमुच, यह लड़का तुम्हें, बहुत अधिक प्यार करता है.'

बैठे-बैठे, पृथ्वी के तमाम पापमय कारनामों को देखते हुये धरती पर शाम हुई. फिर रात आई और अन्धेरा छा गया. तब रागनी ने मोहिनी से कहा कि,

'अब देखो, वे लोग जो एक मनुष्य को शराब पिलाकर जंगल में ले गये थे, उसे निर्दयता से मार कर वापस आ रहे हैं. वह देखो, जंगल की झाड़ियों में उस मनुष्य की नंगी, सिर कटी लाश पड़ी है. उन्होंने उसका सिर इसलिए काट लिया है ताकि, मरने वाले की पहचान न हो सके. और मजे की बात है कि, अभी तक पुलिस प्रशासन को खबर तक नहीं हो सकी है.'

'हे, भगवान ! मुझे भी इसी तरह से मारा गया था.' मोहिनी मारे डर के काँप गई.

'अब और नीचे देखो ! उस लड़की की लाश को, जिसके पीछे चार-पांच लड़के लगे हुए थे. देखो तो उसका क्या हाल किया है, उन ज़ालिम लड़कों ने?'

'?'- मोहिनी ने देखा तो उसके शरीर का वीभत्व रूप देख कर उसके मुख से भयानक चीख निकल गई. उस नाबालिग लड़की की लाश निर्वस्त्र, बाजरे के खेत में पड़ी थी. उसके अनगिनत चाक़ू मार कर हत्या की गई थी. चेहरा विकृत कर दिया गया था. मारने से पहले सब ही लड़कों ने उसका बलात्कार किया था. इतना ही नहीं, उसके स्तन भी उन दरिंदों ने क्रूरता से काट डाले थे.

'लो, देखो इस बिन-ब्याही कुंवारी, बड़े घर की बाला को. अपने नवजात शिशु को जन्म देने के पश्चात कितनी बे-दर्दी से गंदी नाली में फेंक रही है. केवल इसलिए कि, अपने किये हुए पाप के कारण समाज में बदनामी से बच सके. जिस कार में वह बैठकर आई है, उसे उसकी मां ही चलाकर लाई है.'

'?'- मोहिनी ने देखा तो आँखें फाड़कर ही रह गई.

'और अब देखो आगे . . .'

'? - क्या?'

'अब उसी नवजात बच्चे को कोई झोपड़-पट्टी में रहनेवाला, गरीब निकाल रहा है. वह इस बच्चे को अपने घर ले जाएगा और पालेगा. बाद में य बड़े घर का बच्चा गरीब, नीच और भिखमंगा, ना जाने क्या-क्या ककायेगा? यही दुनिया है, मोहिनी.'

'और, भी कुछ देखना चाहोगी?' रागनी ने पूछा.

'हां, यहाँ हमें करना ही क्या है?'

'करने को तो बहुत कुछ है यहाँ?'

'जैसे?'

'जो विश्वास करते हैं, ईश्वर पर, धर्म पर, वे अपने ईश्वर की यहाँ जय-जयकार ही करते रहते हैं और जो नहीं चाहते है, वे दुष्टता ही करते रहते हैं.'

मोहिनी कुछ कहती, इससे पूर्व ही रागनी ने कहा कि,

'मैंने धर्म की बात कही है तो लो अब देखो, पृथ्वी पर धर्म के नाम पर क्या-क्या होता रहता है?'

'?'- तब मोहिनी ने नीचे देखा तो देखकर अपनी ऑंखें बंद कर लीं- क्योंकि, धर्म के नाम पर लोग झगड़ रहे थे, मन्दिर, मस्जिद और गिरजों में तोड़-फोड़ और आगजनी हो रही थी. लोगों को काटा जा रहा था. कमजोरों को लोग जीवित जला रहे थे. धर्म के नाम पर घर तोड़े जा रहे थे और सरकार चलाने वाले अपने आलीशान बंगलों में बैठ कर जश्न मना रहे थे. वे सब मज़े में बैठकर, अपने अगले चुनावों की भूमिकाएं तैयार कर रहे थे.

मोहिनी बैठी हुई यह सब देखकर चुप और भयभीत-सी हो चुकी थी. तभी मोहिनी ने उससे कहा कि,

'मैं एक बात और तुम्हें दिखाकर फिर यहाँ से चलूंगी. तब उसने मोहिनी को दिखाया और कहा कि,

'देखो, इस मनुष्य को. यह अपने ही धर्म-स्थल में मांस फेंक रहा है और इलज़ाम दूसरे धर्म के लोगों पर लगा देगा.'

सो उसने यही किया भी और मांस फेंककर शोर और हल्ला मचा दिया. फिर देखते ही देखते वहां पर मनुष्यों की भीड़ लाठी, बल्लम, बंदूकें और तलवारें लेकर एकत्रित हो गई और दूसरे धर्म के मुहल्लों की तरफ वहां के लोगों को मारने के लिए कूच कर गई.

इतना सारा कुछ दिखाने के बाद रागनी ने मोहिनी से कहा कि,

'तुमने देख लिया कि, धरती पर रहते हुए हम सबको अच्छा तो बहुत लगता है और वहां से कोई भी सहज ही आना भी नहीं चाहता है, लेकिन आज हम यहाँ 'मनुष्य के पुत्र' के शांतिमय राज्य में कितने चैन और शान्ति के साथ हैं.'

'सचमुच, धरती का जीवन बहुत ही कष्टमय, हानिकारक, भययुक्त, बीमारियों से भरा हुआ, हर समय चिंता और समस्याओं से घिरा हुआ है. लेकिन, मैंने तो दोबारा मोहित के पास जाने की बिनती अपने राजा से की है?' मोहिनी ने कहा तो रागनी बोली,

'की है तो अवश्य ही तुम्हारी सुनी जायेगी. सब ही यहाँ कहते हैं कि, हमारा राजा अत्यंत दयालु, देर से क्रोध करने वाला, मनुष्यों से प्रेम करने वाला और तरस खाने वाला है.'

'हां, मैं देख चुकी हूँ और उस दयालु राजा से मैंने बातें भी की हैं.' मोहिनी ने कहा.

'अच्छा ! वह कैसा दिखता है?' रागनी ने रोमांचित होकर कहा.

'उसके चेहरे पर जैसा सूरज जल रहा था. बहुत तेज था उसके मुखमंडल पर. मैं उसका मुख नहीं देख सकी थी.'

'?'- रागनी सुनकर कौतुहूल से भर गई.

- क्रमश: