हँसलोपैथी- डॉ. टी.एस. दराल राजीव तनेजा द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हँसलोपैथी- डॉ. टी.एस. दराल

बचपन से ही मेरी रुचि स्तरीय हास्य रचनाओं को पढ़ने एवं हास्य कवियों/लेखकों को देखने सुनने की अन्य कवियों या लेखकों की बनिस्बत कुछ ज़्यादा रही है। जब लिखना शुरू किया तो इसी शौक का असर मेरे खुद के लेखन पर भी पड़ा जिससे कुदरती तौर पर मैं खुद भी एक हास्य व्यंग्यकार बन गया। हास्य रचनाओं में भी मुझे वे हास्य रचनाएँ ज़्यादा बढ़िया लगती हैं जिनमें हास्य के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़ा कोई सन्देश य्य फ़िर सीख जुड़ी हो।

दोस्तों..आज हास्य से जुड़ी बातें इसीलिए कि आज मैं हास्य कविताओं के एक ऐसे संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'हँसलोपैथी' के नाम से लिखा है प्रसिद्ध हास्य कवि/ डॉक्टर डॉ. टी.एस. दराल ने। डॉक्टर साहब की हास्य कविताओं हास्य के साथ-साथ डोज़ के रूप में कोई न कोई सन्देश भी निहित होता है।

इस संकलन की रचनाओं में वे कहीं पत्नी पीड़ित की भूमिका निभा रहे होते हैं तो कहीं बतौर कवि वे हास्य की चाशनी में लिपटी कुनैन की कड़वी गोलियों से समाज की विद्रूपताओं से पाठकों को अवगत कराते दिखाई देते हैं। कहीं वे साठ की उम्र के बाद के अपने अनुभव परोसते नज़र आते हैं तो कहीं वे सहज..सरल जीवन जीने के नुस्खे बताते दिखाई देते हैं।
इस संकलन की किसी कविता में सिक्स पैक एब्स बनाने की बात होती नज़र आती है तो किसी अन्य कविता में फेक प्रोफाइल्स की बात होती दिखाई देती है। कहीं दफ़्तर के काम के बाद पति घर के काम में भी पिसता दिखाई देता है। तो कहीं किसी रचना में चोरी की गई रचना को अपनी कह सुनाने वालों की खिंचाई होती नज़र आती है। कहीं किसी अन्य रचना में वर्क फ्रॉम होम को ले कर तंज कसा जाता दिखाई देता है। तो कहीं वे अपनी रचना के माध्यम से शादी ज़रूर करने की सलाह देते नज़र आते हैं।

कहीं किसी रचना में दिल्ली वालों की ट्रैफिक सेंस पर तंज कसा जाता दिखाई देता है। तो कहीं किसी अन्य रचना में डाँस क्लास जॉइन कर के सेहत को दुरस्त रखने की सलाह दी जाती दिखाई देती है। कहीं किसी रचना में लेखक हरियाणवी लहज़े में ताई की मज़ेदार बातें करते चलते हैं। तो किसी अन्य रचना में वे हर सरकारी-गैरसरकारी कामों में कागज़ी दस्तावेजों की महत्ता बताते नज़र आते हैं।
उनके इस संकलन में कहीं अन्ना आंदोलन से जुड़ी रचना पढ़ने को मिलती है तो कहीं वे बतौर कवि, कवि मंचों की पोल खोलते नज़र आते हैं।

कहीं दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई को ले कर आम आदमी की व्यथा व्यक्त की जाती दिखाई देती है तो कहीं किसी अन्य रचना में जगह-जगह लग रहे ट्रैफिक जाम से आम आदमी त्रस्त नज़र आता है। इसी संकलन की किसी रचना में कहीं भारतीय शादियों की बेतरतीबी और फ़िज़ूलख़र्ची की बात होती दिखाई देती है तो किसी अन्य रचना में अवकाशप्राप्त व्यक्ति के मन की बात की जाती नज़र आती है। कहीं प्रदूषण घटाने के नाम पर दिल्ली के ऑड-जीवन फॉर्म्युले की बात की जाती दिखाई देती है तो कहीं किसी अन्य रचना में वे धूम्रपान के नुकसान के प्रति पाठकों को जागरूक करते दिखाई देते हैं।

अपनी किन्हीं रचनाओं में वे फेसबुक से अघाए नज़र आते हैं तो किसी अन्य रचना में वैलेंटाइन डे मनाते दिखाई देते हैं। कहीं किसी रचना में कवि भांग की तरंग में होली खेलते नज़र आते हैं। तो कहीं किसी रचना में भिखारी के माध्यम से आजकल के नेताओं पर तंज कसा जाता दिखाई देता है। इसी संकलन की कई रचनाओं पर कोरोना काल का असर साफ दिखता है। तो कहीं सियासी उठापटक में विधायकों की खरीद फ़रोख़्त और उन्हें इससे बचाने की कवायद की बात भी होती दिखाई देती है।

इसी संकलन की कुछ रचनाओं में समसामयिक मुद्दों को पैरोडी की चासनी में लपेट परोसा जाता दिखाई देता है। तो कहीं किसी रचना में गंदे हाथों से खाने की चीजें खाने और खिलाने से होने वाली बीमारियों के बारे पाठकों को जागरूक किया जाता दिखाई देता है।

सहज..सरल शैली में लिखे गए इस काव्य-संकलन में दो चार जगहों पर वर्तनी की त्रुटियाँ भी दिखाई दीं।
हालांकि यह मजेदार हास्य-कविताओं का संकलन मुझे लेखक की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूंगा कि 160 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है अधिकरण प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 160/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट के हिसाब से जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।