बंधन प्रेम के - भाग 19 - समापन भाग Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बंधन प्रेम के - भाग 19 - समापन भाग

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दस से पंद्रह मिनटों में आर्मी की टीम इमरजेंसी मेडिकल रिलीफ लेकर मेजर विक्रम के पास पहुंची। मेजर विक्रम का शरीर खून से लथपथ था। कमर पर भी गंभीर चोट थी और पैर गोलियों के छर्रों से बुरी तरह जख्मी हो गए थे।आर्मी के हर सर्च ऑपरेशन या इनकाउंटर के समय मेडिकल एंबुलेंस टीम भी रहती है। विशेषज्ञ डॉक्टर ने मेजर का परीक्षण करने के बाद कहा कि इन्हें तुरंत एअरलिफ्ट कर स्टेट कैपिटल या फिर नई दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में शिफ्ट करने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि अभी हाइपोवेलमिक इंजरी की स्थिति है शरीर के अनेक अंगों में ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो रही है। अतः

इन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट की तत्काल आवश्यकता है। आगे टेस्ट्स से पता लगेगा कि कमर और पैर की इंजरी किस तरह की है। ईश्वर करे यह आघात शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित न करे।

घटनास्थल पर तैनात आर्मी के लोगों में हम्जा के मारे जाने से खुशी की लहर दौड़ गई।यह एक कठिन ऑपरेशन था और हमेशा अनेक बार सुरक्षाबलों से घिर जाने पर भी हम्ज़ा हमेशा भागने में सफल हो जाता था क्योंकि उसे कुछ स्थानीय लोगों की सहायता मिल जाती थी। तत्काल इस सफल एनकाउंटर की खबर आर्मी हेड क्वार्टर पहुंची और फिर देखते ही देखते न्यूजफ्लैश के रूप में पूरे देश में पहुंच गई।घटनास्थल पर मीडिया और टीवी चैनलों के पहुंचने से पहले ही मेजर विक्रम को एअरलिफ्ट किया जा चुका था।

मेजर को प्राथमिक चिकित्सा तो वहीं दी जा रही थी।वहीं सामान्य हेलीकॉप्टर से उनका जाना सुरक्षित नहीं था इसलिए संदेश मिलने के 15 मिनट के भीतर स्टेट कैपिटल से एयर एंबुलेंस आ गई थी।उन्हें तुरंत इस केंद्रशासित प्रदेश की राजधानी के आर्मी हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया। वहां पहुंचकर सघन चिकित्सा कक्ष में उनका तुरंत उपचार शुरू हुआ। शरीर से काफी मात्रा में खून बह चुका था और यह एक खतरनाक स्थिति थी।

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टीवी पर इस एनकाउंटर की खबर और मेजर विक्रम के बुरी तरह घायल होने की खबर से मेजर विक्रम के पापा वीरेंद्र और मम्मी आभा को गहरा सदमा लगा। वे दोनों यह तो जानते थे कि बेटा आर्मी में है ,इसलिए ऐसी घटनाएं कभी भी हो सकती हैं और इसके लिए हमें मानसिक रूप से तैयार भी रहना होगा। बेटे की वीरता पर उन्हें फ़ख़्र था। फिर भी इकलौते बेटे के इस तरह जीवन-मृत्यु से संघर्ष करने की स्थिति उनके लिए असहनीय थी।वे तत्काल स्टेट कैपिटल की ओर रवाना हुए। गांव में टीवी चैनल में न्यूज़ फ्लैश के समय से ही शांभवी का मन आशंकाओं से घिरा हुआ था और जब आधे घंटे बाद पूरी डिटेल आई और मेजर विक्रम के घायल होने का विवरण सामने आया तो वह गहरे सदमे की स्थिति में पहुंच गई। दीप्ति भी यह समाचार जानकर अत्यंत व्यथित हो गई। न जाने क्यों उसे यह लगा कि मेजर शौर्य की परंपरा पर भारत माता का एक और बहादुर बेटा चल रहा है।ईश्वर करे, उसके प्राण सुरक्षित रहे और वह जल्दी स्वस्थ हो जाए।उन दोनों ने भी स्टेट कैपिटल के लिए तत्काल रवाना होने का निर्णय लिया। कुछ ही घंटों में वे लोग उस अस्पताल में पहुंच गए, जहां बहादुर मेजर विक्रम भर्ती थे।

शांभवी ने माता रानी से मन ही मन मेजर विक्रम के स्वस्थ होने की कामना की। उसने अपने मन में अखंड जाप शुरू कर दिया।यह एक ऐसा जाप होता है कि अपने अनेक कार्य करते हुए भी मनुष्य के अंतर्मन में एक अनाहत नाद की तरह वह जाप चलते रहता है।….और यह जाप है…...मेजर विक्रम की सलामती की दुआ का….. महामृत्युंजय मंत्र की ध्वनि बार-बार उसके ओंठ,मुख और हृदय से निकलती रही।

रक्षा मंत्रालय की नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस घटना को एक बड़ी खबर के रूप में बताया गया।मेजर विक्रम के असाधारण शौर्य की प्रशंसा की गई। उधर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन की ओर से इस घटना को आतंकवाद के विरुद्ध प्रशासन के ठोस संघर्ष का एक बड़ा उदाहरण बताया गया और इस बड़ी सफलता लिए सेना की तारीफ की गई।यह उम्मीद भी की गई कि इस यूनियन टेरिटरी में शुरू की गई राजनैतिक प्रक्रिया सफल होगी। आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए अनेक नई योजनाओं की शुरुआत के भी बहुत जल्द अच्छे परिणाम निकलेंगे। लोगों की समस्याओं का स्थाई हल निकलेगा।उन्हें सुविधाएं मिलेंगी और राज्य में स्थाई शांति लौटेगी।सेना की इस बड़ी कामयाबी पर स्वयं रक्षा मंत्री ने बधाई दी।उन्होंने चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के साथ अगले दिन घटनास्थल का दौरा किया।बाद में उन्होंने आर्मी हॉस्पिटल जाकर आईसीयू में भर्ती मेजर विक्रम को देखा।वे अभी भी बेहोश थे और डॉक्टर उनके जल्द रिकवर होने की पूरी कोशिश कर रहे थे। रक्षा मंत्री ने वीरेंद्र और आभा से मिलकर उन्हें ढाढस बंधाया और सरकार की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने यह भी कहा कि देश को आपके बेटे की बहादुरी पर नाज है।

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समय पर पहुंची चिकित्सकीय सहायता के कारण मेजर विक्रम बहत्तर घंटों बाद खतरे से बाहर हुए, लेकिन उनकी कमर और पैरों में गंभीर चोटें पहुंची थीं। उन्हें तत्काल कई यूनिट ब्लड दिया गया था।"ओ-पॉजिटिव" ब्लड ग्रुप होने से तत्काल शांभवी ने उन्हें रक्त देने की इच्छा प्रकट की और शांभवी ने भी एक यूनिट ब्लड उन्हें दिया।बम के अनेक छर्रों ने उनके शरीर के ऊतकों को गंभीर क्षति पहुंचाई थी।एम.आर.आई.की स्कैनिंग में सीरियस स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का पता लगा।उनका दायां पैर पैरालाइज्ड हो गया।यह पैराप्लेजिया था और डर यह था कि उनके कमर से नीचे का हिस्सा पूरी तरह काम करना बंद न कर दे। डॉक्टरों ने सर्जरी द्वारा क्षतिग्रस्त डिस्क व स्पाइनल कार्ड को ठीक करने का निर्णय लिया। उन्होंने डिजनरेटेड डिस्क के बदले कृत्रिम डिस्क लगाने की तैयारी की। उन्हें उम्मीद थी कि यह नेचुरल डिस्क की ही तरह काम करेगी।

मेजर विक्रम के पिता वीरेंद्र ने डॉक्टरों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि किसी भी कीमत पर मेजर विक्रम पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएं। अस्पताल के निदेशक ने कहा कि हम स्वयं यह चाहते हैं कि मेजर जल्द से जल्द पूरी तरह स्वस्थ हो जाएं और मेजर के केस को हम लोग सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं।ऑपरेशन की तारीख दो दिनों के बाद की, तय की गई

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मेजर विक्रम को चौथे दिन होश आया। आंखें खोलते ही उन्होंने स्वयं को आर्मी हॉस्पिटल में पाया।
उनके मुंह से पहला शब्द निकला- म...मम्मी……

डॉक्टर उनकी चेतना लौटते देखकर खुश हुए।तत्काल उनके पास जाकर उन्हें 'गुड मॉर्निंग'कहा।

गर्दन हिलाकर इशारों में जवाब देने के बाद डॉक्टर ने उनसे पूछा- मेजर कैसा फील कर रहे हैं अभी?

मेजर विक्रम- मैं ठीक हूं डॉक्टर ….मेजर आसिफ कैसे हैं और क्या हम्ज़ा मारा गया?

डॉक्टर ने कहा -यस मेजर,सब ठीक है। आपका मिशन भी पूरा हो चुका है और अभी आप स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं।

बम विस्फोट में घायल होने के समय और थोड़ा होश आने पर हम्ज़ा की अम्मी ने उन्हें धन्यवाद दिया था पर मेजर को कुछ-कुछ बातें तो याद थीं लेकिन बहुत सी चीजों से वे तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे इसलिए उन्हें संदेह हुआ कि उनका मिशन पूरा हुआ या नहीं…..

डॉक्टरों ने अपने बेटे से मिलने के लिए वीरेंद्र और आभा को बुलवा भेजा। साथ में शांभवी,दीप्ति,कर्नल राजवीर और जानकी भी भीतर आए।

माता-पिता को देखकर मेजर विक्रम की आंखें डबडबा आईं।आभा के आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे।वीरेंद्र संयत थे लेकिन बेटे को इस अवस्था में देखकर उन्हें गहरी पीड़ा हो रही थी।शांभवी ने मेजर विक्रम को चैतन्य देखकर सबसे पहले माता रानी का मन ही मन धन्यवाद किया। एक तरह से पिछले चार दिनों से चला आ रहा उसका व्रत आज एक बड़ी सीमा तक पूरा हो रहा था। शांभवी से नजरें मिलते ही मेजर विक्रम के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और शांभवी की आंखों में मेजर विक्रम के प्रति गहरा प्रेम और संतोष भाव झलक रहा था। दीप्ति को बेड पर पड़े विक्रम में अपने दिवंगत बेटे शौर्य की छवि नजर आई।वह मेजर विक्रम के प्रति वात्सल्य भाव से यह सोचने लगी कि शौर्य अगर बच जाता तो शायद मैं उसे इसी अवस्था में देखती।उसके मन में विक्रम के प्रति वही स्नेह उमड़ रहा था….. कर्नल राजवीर और जानकी भी मेजर विक्रम को इस अवस्था में देखकर भावुक हो उठे।

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दो दिनों बाद ऑपरेशन हुआ। मेजर विक्रम की स्पाइन समस्या दूर करने के लिए और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए यह आवश्यक था।यह एक जटिल ऑपरेशन था क्योंकि उनकी डिस्क लगभग खराब हो चुकी थी।दाहिना पैर पैरालिसिस की अवस्था में था। घर के सभी सदस्यों के चेहरे पर इस दौरान चिंता की लकीरें रहीं।शांभवी मना रही थी कि मेजर साहब का सिर्फ यह ऑपरेशन ही सफल न हो जाए बल्कि इसके साथ-साथ ऑपरेशन के बाद वे पहले की तरह ही सामान्य रूप से चलने-फिरने में समर्थ हो जाएं ,क्योंकि वह यह जानती थी कि विक्रम ठीक होने के बाद सबसे पहले अपनी यूनिट लौटकर फिर किसी आर्मी ऑपरेशन में जाने की इच्छा प्रकट करेंगे।

ऑपरेशन लगभग 4 घंटे चला और यह ऑपरेशन सफल रहा। ऑपरेशन के लगभग दो घंटे बाद वीरेंद्र और आभा से डॉक्टर ने बात की।
डॉक्टर ने कहा:-
बधाई हो, मेजर का ऑपरेशन सफल रहा है अभी वे अगले कुछ दिनों तक आईसीयू में ही रहेंगे लेकिन अभी उनका रिहैबिटेशन का लंबा दौर चलेगा। दवाइयां चलेंगी और नयी लगाई डिस्क को उनकी बॉडी कितना रिस्पांड कर रही है, इसी से यह पता लगेगा कि वह किस सीमा तक ठीक हो पाए हैं।

राहत की सांस लेते हुए आभा ने पूछा:-
थैंक्स डॉक्टर। मेरा बेटा अपने पैरों पर खड़ा तो हो पाएगा ना?

डॉक्टर:- हम उम्मीद तो यही कर रहे हैं।अभी वह लगभग एक महीने तक व्हील चेयर पर रहेंगे और इसी बीच हम उन्हें धीरे-धीरे अपने पैरों पर चलाने की कोशिश करेंगे। अगर यह प्रयोग सफल रहा तब तो ठीक है।अन्यथा एक ही उपाय होगा कि हमें न्यूजीलैंड से उनके लिए रोबोटिक पैर बनवाने पड़ेंगे। डॉक्टर यहां आएंगे और उनके पैरों की नाप लेंगे….

वीरेंद्र:- हमें उम्मीद है डॉक्टर साहब की इसकी नौबत नहीं आएगी। मेरे बेटे में अदम्य जिजीविषा है और दृढ़ संकल्प शक्ति है। अतः वह एक महीने से पहले ही अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा।

इसी बीच शांभवी कमरे में पहुंची।

डॉक्टर ने आगे कहा-रिहैबिटेशन के लिए हम घर के एक व्यक्ति को उनके साथ रहने की इजाजत देंगे। तो आप में से कौन इस कार्य के लिए होंगे?
आभा के मुंह से 'मैं' निकल रहा था, इसके पहले शांभवी बोल पड़ी-
मैं रहूंगी डॉक्टर साहब…. उनके साथ रहकर मैं उनकी पूरी सेवा करूंगी..

आभा- लेकिन बेटा तुम्हारी तो दो महीने बाद यूपीएससी की प्री की परीक्षा है….

शांभवी- आंटी जी मैंने तैयारी कर रखी है और फिर तैयारी के लिए अभी बहुत समय मिलेगा…..

डॉक्टर ने कहा -ये कौन हैं? आप की कोई रिलेटिव हैं?

इस पर वीरेंद्र ने तत्काल कहा- हमारी होने वाली बहू….

डॉक्टर ने कहा-ओके।

विक्रम के पापा के मुंह से यह सुनकर शांभवी सकुचा गई

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लगभग 15 दिनों के बेड रेस्ट के बाद मेजर विक्रम व्हीलचेयर पर आ गए। उनके माता-पिता का अस्पताल आना-जाना लगा रहता था,लेकिन शांभवी उनके साथ ही हॉस्पिटल में शिफ्ट हो गई। उसने घर के एक सदस्य की तरह मेजर विक्रम की देखभाल की।उन्हें सही समय पर दवाइयां देना। नाश्ते और खाने के समय अपने हाथ से उन्हें भोजन कराना। उन्हें सहारा देकर बैठाना और अन्य सभी रूटीन आवश्यकताओं में वह पूरे समर्पण भाव से मेजर विक्रम की सेवा करती रहीं।
अस्पताल में रहते हुए स्ट्रेचर, व्हीलचेयर, मेडिकल इक्विपमेंट्स, ऑक्सीजन मास्क इन सब की उसे आदत सी हो गई।अपने आसपास जब वह मरीजों को देखती तो उसे लगता कि लोग कितनी पीड़ा में हैं,लेकिन कितनी बहादुरी के साथ पीड़ा से संघर्ष कर रहे हैं और एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से कितनी जल्दी हार मान लेता है।
अगली सुबह मेजर विक्रम बिस्तर से नीचे आकर पहली बार व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले थे ।उस रात शांभवी देर तक जागती रही। उनके अतीत में मेजर शौर्य थे जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे और मेजर शौर्य ने अपनी आखिरी पत्र में उससे कहा था-

…….शांभवी, मेरे चले जाने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना। यूपीएससी की तैयारी करना…. अपना जीवन सामान्य ढंग से ही जीना…. क्योंकि जीवन चलते रहने का नाम है…. जीवन एक प्रवाह है…. एक गति है….

आज वह पहली बार महसूस कर रही थी कि शायद मेरे सामने बेड पर लेटे हुए मेजर विक्रम में मेजर शौर्य ही एक बार फिर से आकर पुनर्जीवित हो उठे हैं…... या फिर ऐसा है कि आत्माएं भी संयुक्त होती हैं….. मेजर शौर्य की आत्मा ने मेजर विक्रम की आत्मा से अपना एकीकरण स्थापित कर लिया है और शायद मेजर शौर्य कह रहे हैं कि ….शांभवी मेजर विक्रम कोई और नहीं बल्कि मैं ही हूं….. यह भी आर्मी की उसी बलिदान परंपरा का है और जब एक व्यक्ति मैदान खाली करता है ….तो दूसरा रणक्षेत्र में आकर मोर्चा संभाल लेता है…... और शांभवी…. किसी न किसी के हाथ में हमारा तिरंगा झंडा होता है और हम इसे अपने जीवन की आखिरी सांस तक जमीन में गिरने नहीं देते हैं…...अभी मेजर विक्रम को जीवन में सबसे अधिक तुम्हारी आवश्यकता है…..जिस तरह …..शांभवी…..मुझे अपने जीवन में तुम्हारी आवश्यकता हुआ करती थी.. तो प्लीज शांभवी…. विक्रम को असेप्ट कर लेना….. मैं तुम्हारा अतीत था तो विक्रम तुम्हारा वर्तमान और भविष्य है……

मेजर विक्रम के बेड से ही लगा हुआ शांभवी का बेड है और वह देर रात तक इन्हीं बातों को याद कर सुबकती रही... लेकिन सुबह होते-होते जैसे उसने कुछ निश्चय कर लिया…… उसने सोचा नये रूप में यही है ….बंधन प्रेम का…...।

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आज की सुबह मेजर विक्रम की जीवन में खास थी क्योंकि वे व्हील चेयर पर आने के साथ ही अपने स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण चरण शुरू करने वाले थे।शांभवी आज सुबह आर्मी हॉस्पिटल के गेट के सामने राधा-कृष्ण जी के मंदिर में जाकर मेजर साहब के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर आई थी। आज उसने मंदिर के सामने फूलों की एक बड़ी माला खरीदी और यह माला इतनी बड़ी थी कि राधे कृष्ण जी दोनों की मूर्तियों में इस एक ही माला को पंडित जी बड़ी आसानी से संयुक्त रूप से पहना पाए थे।

कमरे में मेजर विक्रम के तैयार होने के बाद नर्स और शांभवी ने उन्हें सहारा देकर व्हील चेयर पर बैठाया। नर्स कमरे के बाहर चली गई।

शांभवी ने मुस्कुराकर मेजर विक्रम को बधाई दी:-
- बधाई हो मेजर साहब आप आज सिक्सटी परसेंट ठीक हो गए….

भावुक होते हुए मेजर विक्रम ने कहा:-

…. और इसमें हंड्रेड परसेंट कंट्रीब्यूशन तुम्हारा है शांभवी…….

शांभवी ने हंसते हुए कहा :-
अरे मेरा बहुत थोड़ा मेजर साहब...बड़ा कंट्रीब्यूशन तो राधे कृष्ण जी का है…. डॉक्टरों का है….आपके माता-पिता का है...…. और मेरा क्या ….बस ज़रा सा है……
इसके बाद शांभवी ने अपने पर्स से एक सुर्ख़ गुलाब निकाला।शांभवी मेजर विक्रम के पसंदीदा नीले रंग के सलवार सूट में झुककर घुटनों के बल बैठी।अब शांभवी ने बड़े प्यार से मेजर विक्रम के हाथ में लाल गुलाब का फूल देते हुए मुस्कुरा कर उनसे पूछा :-
विल यू मैरी मी मेजर साहब?
मेजर साहब ने मुस्कुरा कर कहा-
-यस,ऑफकोर्स…माय शांभवी.. आय विल।
शांभवी मेजर विक्रम के गले लग गई और बड़ी देर तक उनसे लिपट कर रोती रही। मेजर विक्रम ने भी शांभवी को अपने गले लगा लिया। उनकी आंखों में भी आंसू आ गए और कुछ बूंदें शांभवी के रेशमी बालों पर भी पड़ रही थीं.... यह एक बंधन था......पवित्र बंधन.......दुनिया की सबसे पवित्र चीज…. प्रेम का…. एक बंधन
(समाप्त)

©योगेंद्र
(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संगठन,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)