बंधन प्रेम के:अध्याय 2
(2)
शांभवी को जल्दी घर आया देखकर मम्मी-पापा चौंक उठे।
मम्मी ने कहा- इतनी जल्दी क्यों आ गई शांभवी? तुम तो विक्रम के साथ बुक शॉप जाने वाली थी।तुम्हें कोई मैगजीन खरीदनी थी और सिविल सर्विस एग्जाम के लिए तुम्हारी कुछ पुस्तकें.........
अपना बैग टेबल पर रख कर मुस्कुराते हुए माँ से लिपटकर शांभवी ने कहा- कुछ नहीं मां शाम भी हो रही थी और विक्रम के दो-तीन दोस्त आ गए;इसलिए मैंने सोचा कभी-कभी इन लोगों को इस तरह छुट्टी मिलती है। मिल बैठकर बातें करने को। तो मैं वहां कहां रुकी रहती?
भीतर के कमरे से ड्राइंग रूम में आते हुए पापा ने कहा-अच्छा किया बेटी, चलो कम से कम तुम बाहर थोड़ा घूम फिर कर और विक्रम से मिलकर तो आ गई।
" ओहो पापा, अब आप और मम्मी विक्रम से इतना मिलने-जुलने पर क्यों जोर देते हो?"
"इसलिए कि वह तुम्हारी परीक्षाओं की तैयारी में तुम्हारी मदद करेगा और फिर उसने भी तो कंबाइंड डिफेंस सर्विस की परीक्षा पास की हुई है, तो यह तुम्हारी सिविल सर्विस की तैयारी में काम भी आएगी।"
मुस्कुराती हुई शांभवी ने कहा- वह तो ठीक है पापा, लेकिन विक्रम जी एक फौजी हैं।उनके अपने कार्य हैं। अपनी ड्यूटी है। अब मैं कहां तक उन्हें तंग करूंगी। बल्कि मुझे तो लगता है कि मेरे बार-बार जाने से उन्हें प्रॉब्लम होती होगी।"
पापा ने पास आकर बेटी के गाल पर थपकी देते हुए कहा-अरे बिटिया, वह मेरे खास दोस्त का बेटा है। अब वह तुम्हारी मदद नहीं करेगा तो कौन करेगा? क्या हमारा उस पर इतना अधिकार नहीं कि वह तुम्हारी मदद करे।
"ऐसी बात नहीं है पापा, आजकल बॉर्डर पर कितना तनाव है, आप जानते ही हैं और फौजी अफसरों को उसमें कितना व्यस्त रहना है,यह भी आप जानते हैं।"
अब तक मां किचन में जाकर खाना बनाने लगी थी।उन्होंने वहीं से आवाज दी- क्यों बेटी? फिर कोई परेशानी आई क्या?क्या फिर विक्रम को ऑपरेशनल एरिया में जाना पड़ा?
शांभवी आर्मी के कल के बड़े ऑपरेशन में मेजर विक्रम के शामिल होने की बात को मम्मी-पापा से साझा नहीं करना चाहती थी। वह जानती थी कि दोनों नाहक परेशान हो जाएंगे। वैसे इस ऑपरेशन की अधिक डिटेल उसे भी पता नहीं थी, बस इतना ही ज्ञात है कि बॉर्डर के आसपास आर्मी ने एक बड़ा अभियान छेड़ा हुआ था।
उसने मम्मी को आवाज देकर कहा- नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है। अभी वे लोग यूनिट में ही हैं।
पापा ने धीर गंभीर मुद्रा में कहा- लेकिन बेटा जो आज दिन भर समाचार चल रहा है टीवी चैनलों में, वह तो इसी यूनिट का लगता है।
-पापा यह आपने कैसे समझ लिया? क्या हमारा यह शहर बॉर्डर के पास है,इसलिए यहां की जो यूनिट है, वही जाएगी लड़ने? आश्चर्य है पापा। आप भी आर्मी से रिटायर्ड हैं।
मम्मी ने दरवाजे पर आकर मुस्कुराते हुए कहा -और बेटी तुम्हारी शादी भी तो ये आर्मी वाले से ही करेंगे।
अब तक मम्मी सब्जियां बनाकर डायनिंग टेबल पर लगा चुकी थीं।मम्मी के काम में हाथ बंटाने के लिए रसोई में जाते-जाते रुककर शांभवी ने कहा- पापा जब आप आर्मी वाले से अपनी बेटी की शादी के बारे में सोचते हैं तो फिर किसी आर्मी वाले को लेकर इतना घबराते क्यों है? और फिर मैं अभी कहां शादी करने जा रही हूं किसी से?
"इसीलिए तो कहता हूं बेटी कि शादी ना सही, वैसे भी तो विक्रम और तुम थोड़ा घुलो- मिलो।समझो एक दूसरे को और फिर विक्रम के पिता भी तो यही चाहते हैं।"
" ओफ्फो पापा, घूम फिर कर बात फिर वही शादी तक आ पहुँचती है। आप बड़े लोगों की हर चाहत इसी दिशा में आगे बढ़ती है। लगता है आप लोगों को मेरी भावनाओं की कोई परवाह नहीं है।"
ऐसा कहती हुई शांभवी रसोई घर के भीतर चली गई। पापा छोड़े गंभीर हो गए।
(3)
………...उधर मेजर विक्रम कल रात की अघोषित सर्जिकल स्ट्राइक के विषय में सोच कर बहुत सी बातों का चिंतन मनन कर रहे थे और रोमांचित हो रहे थे।
सी.ओ.सर ने मेजर विक्रम समेत छह सदस्यों के इस कमांडो दस्ते को रवाना करते वक्त कहा था:-
"देखिए जब पड़ोसी राष्ट्र की सेना की 'बैट' टीम चोरी छिपे हमारे यहां घुसकर धोखे से हमारी गश्ती दल के लोगों पर हमला कर उनकी हत्या करती है….. आतंकवादियों की घुसपैठ कराती है...तो हमें भी यह अधिकार है कि हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर आतंकवादियों के लांचिंग पैड को तबाह कर दें।"
मेजर विक्रम ने उत्तर दिया था- हम तैयार हैं सर और हमें इस मामले की संवेदनशीलता का ज्ञान है क्योंकि यह एक अनडिक्लेयर्ड सर्जिकल स्ट्राइक है,इसलिए हम छह लोगों के अलावा अन्य किसी को इसकी खबर नहीं होगी।यहाँ तक कि हमारे घर के सदस्यों को भी नहीं….।"
सीओ-गुड मेजर।आल द बेस्ट।"
सभी सैनिक:थैंक यू सर..जय हिंद।
सीओ-जय हिंद।
मेजर विक्रम की टीम ने उस रात तैरते हुए नदी पार की थी और एल.ए.सी के उस तरफ घने जंगलों में लगभग 2 किलोमीटर भीतर घुसकर आतंकवादियों के सबसे बड़े लॉन्चिंग पैड को तबाह कर दिया था।यहाँ लगभग 40 आतंकवादी हमारे देश की सीमा में घुसने के अपने नापाक मिशन के लिए तैयार थे।नींद में गाफ़िल इन आतंकवादियों को संभलने का मौका नहीं मिला।उनके शिविर के बाहर चार सशस्त्र आतंकी पहरा दे रहे थे।सेना की कमांडो टीम ने वहां पहुंचकर दूर से पेड़ों की ओट लेकर स्नाइपर राइफलों से लगभग पाँच सौ मीटर दूर से ही अचूक निशाना लगाया था।ये चारों एक साथ ढेर हो गए थे।अंदर सोए आतंकवादियों के लिए उन्होंने ग्रेनेड्स का भी इस्तेमाल किया था।अत्यंत जोखिम व बहादुरी वाला यह मिशन पूरा कर यह टीम तड़के चार बजे सुरक्षित हमारे देश की सरहद में वापस आ गई थी........
..........इधर......मम्मी पापा के साथ खाना खाने के बाद जब शांभवी अपने कमरे में आई,तो अब बहुत देर बाद उसका ध्यान अपने मोबाइल पर गया। मेजर विक्रम के दो मिस्ड कॉल थे।उसने घड़ी की सुइयां देखीं। रात को 10:30 बज रहे थे। उसने सोचा विक्रम दिन भर के थके मांदे होंगे।अब आराम कर रहे होंगे। उन्हें इस समय कॉल बैक करना ठीक नहीं है। जब शांभवी ने व्हाट्सएप पर मैसेज चेक किया तो मेजर विक्रम के ढेरों संदेश अनरीड थे।
अपने बिस्तर पर अपनी पसंदीदा मुद्रा में तकिए के सहारे बैठकर और एक तकिया अपने पैरों के बीच रखकर और उस पर मिनी स्टैंड में अपना मोबाइल रखते हुए शांभवी ने फुर्सत से उन संदेशों को पढ़ना चाहा।शांभवी एक-एक कर इन संदेशों को पढ़ती गई।
-हेलो शांभवी!
**************
- मैंने तुम्हें फोन किया।तुम शायद अभी तक घर नहीं पहुंची हो।सब ठीक तो है।
********************
यार फोन तो उठाओ शांभवी। तुम मुझे चिंता में डाल देती हो।
****************************
तुमने दोबारा फोन नहीं उठाया।
*********************************
जब तुम फोन का यह संदेश देखोगी तो क्या मैं तुम्हें व्हाट्सएप पर ही अपनी बात कह सकूंगा?
***************************
शांभवी को अफसोस हुआ कि उसने फोन देर से देखा और विक्रम नाहक परेशान हो गए।
उसने विक्रम से चैट शुरू की।
-हेलो विक्रम जी
जैसे मेजर साहब पहले से ही तैयार थे। तुरंत रिप्लाई आया।
-हेलो शांभवी। ओह तुम अब तक जाग रही हो? यार इतनी देर कैसे कर दी?
- कुछ नहीं विक्रम जी ,मम्मी और पापा के साथ भोजन कर रही थी और बातें करते करते समय लग गया। मैं घर तो 15 से 20 मिनटों में पहुंच गई थी।
- जी बोलिए आप कॉफी हाउस में मुझे कुछ बताना चाहते थे।
- जी शांभवी जी, मुझे अभी भी थोड़ी झिझक हो रही है। मैं अपनी बात कैसे रखूं आपके सामने?
- अरे एक बहादुर फ़ौज़ी अपनी बात रखने से हिचक रहे हैं ,यह तो आश्चर्य हुआ।
- ऐसा नहीं है असल में वह ऐसी बात है जो शायद तुम्हें पसंद ना आए।
- हां विक्रम जी अच्छा है कि अब 'आप'से 'तुम' पर आ गए आप। आप कोशिश तो करिए।
- ओके शांभवी कोशिश करता हूं।
- बात यह है कि डिफेंस एकेडमी में कड़ी ट्रेनिंग के बाद लेफ्टिनेंट व कैप्टन के रूप में अपनी जॉब के शुरुआती वर्षों में मैं सालों तक शहर से बाहर रहा और तुमसे भी पिछले महीने ही मेरा फिर से एक बार मिलना हुआ।…... तो मुझे अब जब मेजर के रूप में यह पोस्टिंग मिली तो अपने ही स्टेट में और वह भी मेरे शहर के आसपास की यूनिट में।
- वाह मेजर साहब इतनी लंबी भूमिका बना रहे हैं आप? आपको तो आर्मी में होने के बदले एक लेखक होना था।आप बिना भूमिकाओं के भी अपनी बात कह सकते हैं।
- बात यह है शांभवी कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं।……... तुम्हारी एक-एक बात मुझे पसंद है…….। यह पढ़ते-पढ़ते शांभवी के होठों पर मुस्कुराहट आ गई। उत्सुकतावश उसने आगे पढ़ना जारी रखा। अब उसे रिप्लाई लिखते नहीं बन रहा था। उसने सोचा पहले पूरी बात पढ़ लूँ। उधर मेजर लगातार संदेश टाइप कर रहे थे।
-....... शांभवी तुम मुझे उतनी ही पसंद हो जैसी पूर्णिमा के चंद्र को देखकर धरती पर कोई चकोर प्रसन्न होता हो….. जैसे तुम्हारे रूप की चांदनी इस पूरी प्रकृति के कण-कण में बिखरी हों…...……...धरती में बिखरे ये कण रात को आकाश में अनगिनत तारे बनकर चमक उठे हों…..और इन तारों ने भी तुम्हारे ही सौंदर्य से रौशनी पाई हो……. और तुम्हारी आभा से ही अंबर जैसे दूधिया प्रकाश में डूब गया हो…..जैसे तुम्हारे रूप सौंदर्य ने रात में इस प्रकृति की एक-एक चीज को सम्मोहित कर दिया हो और सब आनंद मग्न होकर झूम रहे हों…….।
यह संदेश पढ़कर शांभवी ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए आसमान की ओर देखा….. यह सचमुच पूर्णिमा की रात थी और असंख्य तारे चंद्रमा के साथ मिलकर मानो कोई आनंदोत्सव मना रहे हों….
.. शांभवी ने फिर फोन की ओर देखा, एक और संदेश आ गया था।
……... शांभवी जब पूरी प्रकृति प्रेम में डूब जाती है, मुझे लगता है यही वह समय होता होगा जब वृंदावन में हमारे आराध्य कान्हा जी और राधिका जी रास रचाते हैं……... अद्भुत अलौकिक प्रेम और उसकी अजस्र धारा हजारों सालों से बहती चली आ रही हो……….. मुझे ऐसा लगता है शांभवी कि उस आत्मिक प्रेम का शायद एक करोड़वाँ अंश मैं महसूस कर पाता हूं जब मैं…..तुम्हें देखता हूं……….
शांभवी की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली। 15 से 20 मिनटों तक वह इसी अवस्था में बैठी रही और फिर उसने मोबाइल में संदेश टाइप किया….
- विक्रम जी ,आपके इन संदेशों का प्रत्युत्तर देने की स्थिति में मैं नहीं हूं क्योंकि आपकी ऐसी भावनाओं का कोई मोल नहीं हो सकता है…..लेकिन मैं भी आपको कुछ बातें बताना चाहती हूं इसलिए जब भी आपके पास समय होगा, आने वाले दिनों में, हम लोग मिलेंगे ........टेक केअर ........शुभरात्रि…….
बहुत देर तक शांभवी मोबाइल के संदेशों को पढ़ती रही और इसी अवस्था में ना जाने कब उसकी आंख लग गई।
(क्रमशः)
(शांभवी ने मेजर विक्रम के प्रस्ताव का तुरंत जवाब क्यों नहीं दिया, यह जानने के लिए आप कृपया अवश्य पढ़ें,इस उपन्यास का प्रकाशित होने वाला अगला भाग शीघ्र ही🙏)
(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,समुदाय,घटना,संस्था,स्थान आदि से समानता संयोग मात्र है।)
योगेंद्र