...............रात धीरे-धीरे बीत रही है लेकिन शांभवी और मेजर विक्रम
के लिए जैसे वक्त ठहर गया है । शांभवी मेजर विक्रम को अपने अतीत की कथा सुनाने लगी..................
............आज कॉलेज का पहला दिन है। कॉलेज के मुख्य द्वार पर गहमागहमी
है और बहुत से लड़के लड़कियां चहलकदमी कर रहे हैं। कुछ लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे
झुंड में हैं और बातों में मशगूल हैं। कॉलेज के सायकल स्टैंड में अपनी दुपहिया खड़ी
कर एक लड़का सकुचाया हुआ सा नोटिस बोर्ड की ओर बढ़ता है।एक-दो और विद्यार्थी जो फर्स्ट
ईयर के ही होंगे, पहले से टाइम टेबल नोट कर रहे हैं।नोटिस बोर्ड पर टाइम टेबल देखकर
वह फर्स्ट फ्लोर में बने हुए फर्स्ट ईयर की क्लास में पहुंचता है। अभी क्लास का समय
हुआ नहीं है।एक दो स्टूडेंट कक्षा के सामने गलियारे में हैं।लड़के और लड़कियों को आपस
में बेतकल्लुफी से बातें करते देखकर वह युवक आश्चर्यचकित हो उठा था। दरअसल वह गांव
के स्कूल में पढ़ा था। वहां सह- शिक्षा तो थी लेकिन लड़के और लड़कियां बहुत अधिक घुलते-मिलते
नहीं थे। लड़के और लड़कियों के ग्रुप तो बिल्कुल अलग-अलग होते थे।वहां किसी लड़की के
पास जाकर उससे बातें कर लेना बहुत हिम्मत का काम समझा जाता था। कॉलेज में भी उसने इसी
तरह के दृश्य की कल्पना की थी।
वह कक्षा के भीतर गया।उसने सोचा भी नहीं था कि वहां अंदर कोई होगा,
लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि एक लड़की पहले ही वहां बैठी हुई है।वह अपनी कॉपी में कुछ
लिखने में मशगूल थी।एक क्षण को तो लड़का उसे देखता ही रह गया।तीखे नाक-नक्श वाली वह
आकर्षक लड़की शांति की प्रतिमूर्ति सी दिख रही थी। आंखों में गजब का आत्मविश्वास और
होठों पर एक हल्की मुस्कान।लड़के को नीला रंग बहुत पसंद था और वह लड़की गहरे नीले सूट
में थी। उसे ऐसा लगा जैसे आकाश और समंदर की सारी नीलिमा उस सौंदर्य की देवी में समाहित
हो उठी हो।एक क्षण बाद लड़के ने अपना मुंह तुरंत दूसरी ओर कर लिया और आत्मग्लानि से
भर उठा। मन ही मन सोचने लगा- हे भगवान मेरा मन कहां भटक गया था। अगर लड़की मुझे यूं
देख लेती तो मेरे यूँ एकटक देखते रहने से उसे बुरा लग सकता था।
लड़का उस लड़की के पास से गुजरते हुए एक बेंच पर बैठने जा ही रहा था
कि अब उस लड़की का ध्यान उसकी ओर गया। उसने
कहा-
"हेलो,मैं शांभवी हूँ। इसी कक्षा में पढ़ती हूं और आप?"
"....जी..जी..मैं शौर्य सिंह।…. आज पहली बार कॉलेज आया हूं।"-
हेलो के जवाब में हाथ जोड़ते हुए उसने उत्तर दिया।
मुस्कुराते हुए उस लड़की ने कहा-
"आज तो सबके लिए कॉलेज का पहला दिन ही है,क्योंकि यह फर्स्ट
ईयर की क्लास है।
"जी….जी…"-शौर्य सिंह ने लगभग हकलाते हुए कहा।
"अरे तो आप घबरा क्यों रहे हैं?रिलेक्स रहिए।आइए बैठिए।"
लड़की ने अपनी बेंच पर एक ओर खिसकते हुए शौर्य सिंह को उस पर बैठने
का इशारा किया।
शौर्य सिंह सकुचाते हुए उस बेंच पर बैठ गया। माथे पर उभर आए पसीने
को पोंछते हुए सिक्का सिंह अब सहज होने की कोशिश करने लगा। युवती ने पूछा-
"क्या आपने टाइम टेबल नोट कर लिया है?"
-"हां"
- "तब तो ठीक है।मैंने नोटिस बोर्ड के पास भीड़ देखी इसलिए
पहले पीरियड की डिटेल देखकर सीधे यहीं आ गई। सोचा बाद में नोट कर लूंगी।जरा दिखाइए
कॉपी मुझे।"
-"यह लीजिए टाइम टेबल। मैंने भी यहां आते हुए पहले नोटिस बोर्ड
से इसे कॉपी में उतारने का ही काम कर लिया था।"
शांभवी मुस्कुराई और शौर्य सिंह की कॉपी से अपनी कॉपी में टाइम टेबल
नोट करने लगी।उधर शौर्य सिंह मन ही मन हनुमान जी का स्मरण करने लगा-हे हनुमान जी! मैंने
गांव से इस शहर में आने से पहले ही निश्चय कर लिया था कि केवल पढ़ाई में ध्यान दूंगा।
लड़कियों से दो हाथ दूर रहूंगा लेकिन पहले ही दिन देखिए, यह क्या हो गया प्रभु? मैं
तो यही मानता हूं देवा कि हर लड़की हमेशा आदर और सम्मान के लिए ही होती है और अनजाने
भी हमारे किसी व्यवहार से उनको असहज लगना उनका अनादर ही है। मुझे क्षमा करना प्रभु।
(12)
शौर्य सिंह एक शर्मीला और संकोची नवयुवक है लेकिन कॉलेज आकर कुछ
ही दिनों में धीरे-धीरे सामान्य होने लगा।बात अब उसकी समझ में आ गई थी कि अगर कॉलेज
में सह शिक्षा है। यहां प्रैक्टिकल के लैब एक हैं।लाइब्रेरी एक है।ऐसे में सभी एक साथ
बैठते हैं और लड़के-लड़कियों में आपसी बातचीत होती है, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं। फिर
भी वह लड़कियों से एक सम्मानजनक दूरी बनाकर रहना चाहता था। लड़कियों को लेकर उसकी झिझक
तो एक हद तक दूर गई थी, लेकिन उसे लगता था कि किसी लड़की की मर्यादा और निजता को बनाए
रखने के लिए उसे हर समय थोड़ा स्पेस देना बहुत आवश्यक है।वह इस बात का विशेष ध्यान
रखता था कि जाने-अनजाने उससे किसी का अपमान ना हो जाए। वैसे उसके जैसे सीधे,सरल और
भोले युवक से ऐसा होना असंभव ही था।
शांभवी और शौर्य सिंह में जान पहचान अब गहरी होने लगी। उनकी मुलाकात
लाइब्रेरी में भी होने लगती।शांभवी थोड़े मुखर स्वभाव की थी लेकिन वह अपनी पढ़ाई के
प्रति गंभीर थी और अन्य लड़कियों की तरह उसका ध्यान नई-नई फ्रेंडशिप, फैशन,लेटेस्ट
हेयर स्टाइल और नई फिल्मों में लगभग ना के बराबर था।वहीं शौर्य सिंह तो था ही पढ़ाकू।दोनों
की मित्रता और गहरी होने लगी। यहां तक कि लेबोरेटरी में भी वे अपने काम में इस तरह
तल्लीन रहते कि अन्य स्टूडेंट्स के चले जाने के बाद भी देर तक प्रैक्टिकल करते रहते।
कई बार तो लैब अटेंडेंट को उन्हें आकर बोलना पड़ता- भई,अब लैब बंद करने का समय हो गया
है।आप लोग अपने- अपने घर जाओ।
(13)
अनजाने ही शांभवी ने शौर्य सिंह के जीवन में अपनी एक अलग जगह बनाना
शुरू कर दिया था। शौर्य सिंह उस दिन को कभी नहीं भूलता, जिस दिन शांभवी ने उससे कहा
था- चलो कैंटीन में बैठकर एक-एक कप कॉफी पी लें। अब तक लड़कियों को लेकर शौर्य सिंह की झिझक भी पूरी तरह दूर हो गई थी। दोनों
एक साथ कैंटीन पहुंचे।वहां उन्होंने साथ बैठकर कॉफी पी। यह किसी लड़की के साथ इस तरह
बैठकर कॉफी पीने का उसका पहला अनुभव था, इसलिए पूरे समय वह सकुचाता ही रहा।वे देश-
दुनिया की बहुत सी बातों पर चर्चा भी करते रहे ।पड़ोसी राष्ट्र की शह पर घाटी में फैलाई
जा रही अशांति और हिंसा की खबरों से वे व्यथित भी हुए लेकिन जल्द ही उन्होंने बातचीत
का टॉपिक कॉलेज और अपने-अपने घर परिवार पर केंद्रित कर दिया। इसी बीच हल्की बारिश होने
लगी और कैंटीन में पहले से बैठे लड़के और लड़कियां कॉलेज के मुख्य बिल्डिंग की ओर दौड़कर
जाने लगे, ताकि तेज बारिश शुरू होने से पहले ही वे अपने-अपने घर पहुंच जाएं ,लेकिन
शांभवी और शौर्य सिंह अपनी-अपनी कॉफी को जल्दी समाप्त करने के मूड में नहीं थे। भले
ही दोनों के कप की कॉफी कब की ठंडी हो चुकी थी।यह शौर्य सिंह के जीवन का एक अविस्मरणीय
दिन था। घर पहुंचकर उसे अत्यधिक खुश देखकर माँ ने पूछा भी-"क्या बात है बेटा?
कुछ खास बात तो नहीं?"
वहीं शौर्य सिंह ने मुस्कुराकर बात को टाल दिया।
अगले दिन कॉलेज में लड़कों ने शौर्य सिंह को छेड़ा-"क्या विश्वामित्र
जी की तपस्या भंग होने जा रही है?" वही लड़कियों ने शांभवी को छेड़ा- "आखिर
जोगी महाराज को रास्ते पर ले ही आईं ना?"
(14)
...............एक बार मेजर शौर्य सिंह फ़ील्ड ड्यूटी करते-करते अपने
कॉलेज के दिनों को याद कर रहे थे, जब शांभवी नामक एक लड़की से उनका परिचय हुआ था। अपनी
ड्यूटी करते हुए भी व्यक्ति अपने प्रिय और आत्मीय लोगों को कभी नहीं भूलता है। घर से
महीनों के लिए दूर रहते हुए शौर्य सिंह जहां मम्मी और पापा को लेकर भावुक हो जाते हैं,वही
प्रिय की स्मृति उनके हृदय के लिए उत्साह व एक नई ताज़गी लिए हुए आती है।
सेना के मेजर शौर्य सिंह
कई दिनों से बॉर्डर एरिया में तैनात है ।जब से क्रॉस बॉर्डर फायरिंग बढ़ी है और इसकी
आड़ में पड़ोसी राष्ट्र के सैनिक आतंकवादियों को सीमा के भीतर प्रवेश कराते हैं,उन्हें
चौबीसों घंटे चौकन्ना रहना पड़ता है।आजकल पड़ोसी राष्ट्र की बॉर्डर एक्शन टीम 'बैट'
सीधे घुसपैठ की फिराक में रहती है।इस सीमाई राज्य से विशेष धारा हटाए जाने के बाद से
पड़ोसी राष्ट्र को शायद अब यह लगता है कि इस राज्य को अपने मुल्क में मिलाने का उनका
सपना अब सपना ही रह जाने वाला है । पहले उन्होंने यह सोचा था कि धारा हटाए जाने की
बड़ी भारी प्रतिक्रिया होगी और बड़ा जन आंदोलन खड़ा होगा, लेकिन उनके इरादों पर पानी
फिर जाने से उन्होंने फिर अपनी पुरानी नीति के तहत घुसपैठियों को देश में भेजना और
यहां हिंसा तथा खून खराबा कर अशांति फैलाना शुरू किया।
मेजर शौर्य सिंह और उनकी आठ सदस्यों की टुकड़ी
ड्यूटी पर है और यहां ये टीम अभी तीन-चार दिनों तक रहेगी। एक साथी मेजर,एक कैप्टन और
बाकी पाँच सैनिक बिखरे हुए हैं और मेजर शौर्य सिंह अभी इस एरिया में अकेले ही अपनी
ड्यूटी कर रहे हैं।ड्यूटी एकदम फ्रंट के मोर्चे पर है, जहां से पड़ोसी राष्ट्र का उस
पार का इलाका कुछ दूरी तक साफ नजर आता है। यह देश का वह सीमाई इलाका है, जहां अभी घुसपैठ
रोकने के लिए सेंसर लगाने का काम किया जा रहा है ।
काफी देर तक दूरबीन से बाहर का दृश्य देखते रहने के बाद शौर्य सिंह
ने आंखों को आराम दिया। उन्होंने सेटेलाइट फोन से अपने साथियों का हाल जाना । आसपास
के एरिया में किसी गड़बड़ी की कोई आशंका नहीं दिखने के बाद उन्हें थोड़ी राहत की सांस
ली।उनका हाथ अपनी जेब में गया और पर्स निकालकर वह अपने परिवार की फोटो को देखने लगा।इस
फोटो में उनके मम्मी-पापा हैं और चार साल की उम्र का सिक्का खुद है।इस फोटो को निहारते
हुए शौर्य सिंह पुरानी यादों में खो गया। मम्मी और पापा को याद करने के बाद वे मोड़कर
पर्स जेब में रखने ही जा रहे थे कि फिर एक फोटो नीचे गिरा। वह फोटो एक लड़की....शांभवी
की थी।उसे उठाकर बड़े प्रेम से देखते हुए शौर्य सिंह मुस्कुरा उठे। इस फोटो को देर
तक निहारते-निहारते ही मेजर शौर्य सिंह अतीत में कहीं खो से गए थे। यादों की श्रृंखला
समाप्त होने पर वे पुनः एक झटके से उठे और टहलने लगे।
इधर कहानी को सुनते - सुनते मेजर विक्रम भी भावुक
हो रहे थे।
उन्होंने कहा,"यह तो बहादुरी और शौर्य की अद्भुत गाथा है शांभवी।कहानी
और आगे सुनाओ ना।"
आंखों में आंसुओं की
बूंद को छुपाने की कोशिश करते हुए शांभवी ने कहा-जी जरूर मेजर साहब।
कुछ देर दोनों स्तब्ध थे।शांभवी ने फिर कहना शुरू
किया।