अध्याय 10
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मेजर विक्रम ने कहा - मेजर शौर्य की डायरी तो अपने आप में समकालीन घटनाओं का सीधा सच्चा इतिहास भी है शांभवी....
शांभवी -जी मेजर साहब....मेजर शौर्य ने राज्य के अस्थिर हो रहे हालात का वर्णन करते हुए लिखा था...... राज्य में हालात तेजी से बदले हैं। अलग-अलग धर्मों के लोग यहां हजारों वर्षों से मिलजुल कर रहा करते हैं, लेकिन पिछली सदी के अंत के अस्सी-नब्बे के दशक से स्थितियां तेजी से बदली हैं। कुछ लोगों के हिंसक हमलों ,हत्या, आगजनी और लूटपाट के दौर के बाद बड़ी संख्या में लोग मुख्य घाटी छोड़कर चले गए और अभी भी लोगों का पारस्परिक सौहार्द्र तो कम नहीं हुआ है। इस क्षेत्र से अपना सब कुछ छोड़कर दर-दर भटकने वाले लोग अब बाहर विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं।यह राज्य सदियों से शैव संस्कृति का गढ़ रहा है और सूफियानापन यहां के जनजीवन में है। कुछ अराजक और देशद्रोही लोग इसको बदल देना चाहते हैं।
शांभवी ने आगे का किस्सा बताया.... लगभग तीस साल पहले दीप्ति के पिता को भी सपरिवार रातों-रात घाटी छोड़नी पड़ी थी और लोगों के दिलों के इस अदृश्य विभाजन के दंश को दीप्ति ने खुद झेला है। दिल्ली के विस्थापित शिविर में रहने के दौरान उसके परिवार को जो तकलीफ झेलनी पड़ी, उसकी चर्चा वह कभी-कभी शौर्य से किया करती है। इस दौरान कत्लेआम और अनेक अप्रिय घटनाएं हुईं लेकिन दीप्ति इन सब की जानकारी शौर्य सिंह को नहीं देना चाहती थी।
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विस्थापन शिविर में रहने के दौरान ही एक व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आए हुए विजय के पिता ने जब अपने संबंधियों से भेंट की तो उन्हें अपने मित्र की लड़की दीप्ति पसंद आ गई। विजय और दीप्ति की चट मंगनी पट ब्याह के बाद वे लोग वापस अपने राज्य पहुंचे। यह इलाका अशांत क्षेत्र से अलग था इसलिए यहां पीड़ा का अहसास कम था। राज्य का आम अवाम अभी भी मिलजुल कर रहने में यकीन रखता है, लेकिन जब एक पूरा देश दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल देने और दहशतगर्दी को प्रोत्साहित करने में लगा हो, और जहां अपनी ही मातृभूमि के विरुद्ध कुछ लोगों का धार्मिक आह्वान पर द्रोह शामिल हो गया हो, तो वहां स्थिति को बिगड़ने में देर नहीं लगती। जनता करे भी तो क्या, कभी हथियारों के बल पर तो कभी धर्म का हवाला देकर उसे बरगलाया ही जाता है और उसकी जुबान बंद कर दी जाती है।शौर्य बड़ा हो गया है इसलिए राज्य के अमन-चैन की हवा और फिजाओं में घुलते जा रहे जहर से वह अपरिचित नहीं है।कॉलेज में भी उसने इस तरह की राजनीतिक चर्चा बहुत सुनी है। शायद यह विष अब गांव-गांव तक पहुंचने लगा है।सेना का पिट्ठू और मुखबिर बताकर लोगों को चुन-चुन कर गोली मार दी जाती है।
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फाइनल ईयर की परीक्षाएं अब लगभग बीस दिनों के बाद शुरू होने वाली थीं। कॉलेज में गंभीरता का वातावरण था।सत्रांत परीक्षा के प्रैक्टिकल हो रहे थे। प्रोजेक्ट फाइलें सबमिट की जा रही थीं। लाइब्रेरी में बैठे-बैठे शौर्य और शांभवी अपने अपने प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दे रहे थे। कल वैलेंटाइन डे था।
शांभवी ने चुहल करते हुए शौर्य सिंह से कहा-"जोगी महाराज! कल वैलेंटाइन डे है। कल का क्या प्रोग्राम है?"
"क्या बात करती हो शांभवी? भला कल अलग से क्या प्रोग्राम होगा? और यह कौन सा खास दिन है हम लोगों के लिए।"शौर्य ने उत्तर दिया।
"ओहो,इतने इंटेलिजेंट हो और इतना भी नहीं जानते कि कल प्यार करने वालों के लिए बहुत खास दिन है।वे एक दूसरे को रोज़ देते हैं और प्रपोज भी करते हैं।" शांभवी ने समझाते हुए कहा।
"प्रेम तो हमारी संस्कृति में भी है शांभवी पर हम लोग वेलेंटाइन डे की तरह की फूहड़ता का प्रदर्शन कहां करते हैं?हमारे यहां तो प्रेम को बहुत पवित्र माना गया है।इसलिए तो राधा जी और कान्हा जी प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक हैं और कभी भी उनके संबंधों को कलुषित नहीं माना जाता है।"
"हां बैरागी महाराज, आपको प्रेम से क्या लेना? कभी प्रेम किया भी है जो किसी से प्रेम के अहसास को समझोगे।"शांभवी ने कहा।
"हां किया है। मैंने भी प्रेम किया है शांभवी। एक लड़की है, जिसे मैं दिलो जान से चाहता हूं।
जिसके बिना मैं नहीं रह सकता और जिसका ख्याल आते ही मेरी हृदय वीणा के तार झंकृत हो उठते हैं। दिन हो या रात, मैं उसी के ख्यालों में डूबा रहता हूं।"
"ओ हो, तो क्या मैं उस भाग्यशाली का नाम जान सकती हूँ?"
"नहीं तुम्हें नहीं बताऊंगा।"
"क्या तुमने कभी अपने प्रेम का इजहार किया है?"
"नहीं किया है।डरता हूं कहीं वह ना कह देगी तो मेरा हृदय टूट जाएगा।अब पहल तो लड़कियों को ही करनी चाहिए ना।"
इस बात पर शांभवी नाराज हो गई और "तुम रहोगे निरे बुद्धु के बुद्धु"कहते हुए अपना बैग उठाकर लाइब्रेरी से बाहर निकलने लगी। शौर्य सिंह उसके पीछे भागने लगा।
"रुको शांभवी! मेरी बात तो सुनो।"शांभवी नहीं रुकी और तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतर गई। रात उसके फोन पर शौर्य सिंह का संदेश आया -"सॉरी शांभवी।"
अगले दिन जब वे कॉलेज में मिले तो शांभवी मुंह फुलाए हुए थी। शौर्य ने तुरंत अपनी जेब में संभाल कर रखा हुआ गुलाब का सुर्ख़ फूल निकाला और उसके हाथ में देते हुए कहा- "हैप्पी वैलेंटाइन डे शांभवी!"
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शौर्य सिंह वैलेंटाइन डे पर अपने द्वारा गुलाब दिए जाने के बाद उत्तर की प्रतीक्षा करता रह गया लेकिन शांभवी ने बस इतना ही कहा- थैंक यू सेम टू यू।वैसे उन दोनों का प्रेम गहरा था और ऐसे आपसी समझ वाले प्रेम में किसी प्रश्न और उसके उत्तर की आवश्यकता नहीं होती है।यह ऐसा रिश्ता है जो बस बिना स्वार्थ के एक दूसरे का साथ चाहता है। एक दूसरे से प्रेरणा पाता है।एक दूसरे के लिए सब कुछ उत्सर्ग करने की भावना रखता है और हर क्षण एक दूसरे की खुशहाली, प्रगति और सुख शांति की कामना करता है। परीक्षाएं सर पर थीं,इसलिए दोनों उसमें व्यस्त हो गए। अब एक हफ्ते में परीक्षाओं के लिए प्रिपरेशन लीव भी होने वाली थी।आज फिर शांभवी और शौर्य सिंह लाइब्रेरी में बैठे हुए थे। अचानक एंप्लॉयमेंट न्यूज़ के पन्ने पलटते हुए शौर्य का ध्यान कंबाइंड डिफेंस सर्विस के एग्जाम की तरफ गया।
उसने शांभवी को जानकारी देते हुए कहा-
"देखो शांभवी, सेना में अधिकारी बनने का एक सुनहरा अवसर।"
शांभवी ने एम्प्लॉयमेंट न्यूज़ में कंबाइंड डिफेंस सर्विस के उस विज्ञापन की ओर देखते हुए कहा-
"अरे हां! जिन्हें देश की सेवा करने का जज़्बा है,वे अवश्य आवेदन कर सकते हैं ।"
शौर्य ने उसे बताया- "मैं आवेदन करना चाहता हूं शांभवी।मेरा एक सपना है। देश की रक्षा के लिए हथियार उठाने का और अपने देश की सरहद की हिफाजत करने का।"
शांभवी के चेहरे पर थोड़ी उदासी के भाव आ गए क्योंकि वह अपने अव्यक्त प्रेम को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती थी और सेना में जाने का मतलब होता है- हमेशा जान अपनी हथेली पर रखना और जो घर में होते हैं, उनके लिए कभी लंबी तो कभी अंतहीन प्रतीक्षा।
चेहरे पर उदासी के अपने भावों को छुपाते हुए शांभवी ने कहा-
"यह तो अच्छी बात है शौर्य जी, अगर तुम ट्राई करो तो, लेकिन मुझे लगता है तुम एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में जाओगे तो अधिक सफल रहोगे।"
"अच्छा यह निष्कर्ष तुमने कैसे निकाल लिया?"
"अरे यार, क्या मैं तुमको जानती नहीं हूं,तुम कितने पढ़ाकू हो और पिछली बार के वार्षिकोत्सव में तुमने सारी व्यवस्थाओं को किस कुशलता से अंजाम दिया था।"
मुस्कुराते हुए शौर्य सिंह ने कहा-"तो क्या पढ़ाकू और इंटेलिजेंट लोग सेना में नहीं जा सकते शांभवी?"
"नहीं मैंने ऐसा कब कहा? जा सकते हैं भोले महाराज।"
"शांभवी, तुम तो समझ गई हो लेकिन मां समझे तब ना। वह सेना के नाम से ही बिचकती है और मुझे वह इसमें कभी एप्लाई नहीं करने देगी।"
शौर्य सिंह का हाथ अपने हाथ में लेते हुए शांभवी ने कहा-
"वैसे मैं भी तुम्हारे सेना में जाने के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन अगर तुम्हारी यही इच्छा है सिक्का तो मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं ।मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूँ।तुम्हें ढेरों शुभकामनाएं। मुझे खुशी है कि तुम वैयक्तिक संबंधों और रिश्ते नातों से ऊपर देश को मानते हो। मुझे तुम पर गर्व है।"
शांभवी की प्रेम कहानी को सुनकर मेजर विक्रम को मेजर शौर्य से थोड़ी ईर्ष्या भी हुई... लेकिन जल्द ही हमेशा के लिए इस भाव को अपने से दूर कर मेजर विक्रम ने कहा..... वाकई शौर्य आपके लिए परफेक्ट चॉइस थे शांभवी.... मुझे आप दोनों पर गर्व है......
(क्रमशः)
योगेंद्र