009 सुपर एजेंट ध्रुव (ऑपरेशन वुहान) - भाग 14 anirudh Singh द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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009 सुपर एजेंट ध्रुव (ऑपरेशन वुहान) - भाग 14

"छोड़ो मुझे...कौन हो तुम...कहां लेकर आये हो मुझे" एक खास किस्म के कैमिकल के छिड़काव के बाद रीमा को जब होश आया,तो उसने खुद को किसी अंधेरी जगह में पाया.....वह एक कुर्सी पर बैठी हुई थी,उसके दोनों हाथ मजबूती के साथ उसी कुर्सी से बंधे हुए थे.....

आंखे पूरी तरह खुली तो देखा सामने विराज और मेजर बख्सी दोनो ही खड़े हुए थे....
"तुम्हारा खेल खत्म हुआ धोखेबाज......अब सीधे सीधे चांग ली क़ा पता बता दो......नही तो अंजाम बहुत बुरा होगा।"

मेजर बख्सी ने रीमा को चेतावनी दी, जिसको सुनकर रीमा ने बिना प्रभावित हुए प्रतिक्रिया दी।

"मेजर.....मुझे डबल क्रॉस करके तुमने अपनी बर्बादी का दरवाजा खुद ही खोल लिया है......मुझे कैद करके तुम खुद को जीता हुआ समझ रहे हो न....कान खोल के सुन लो......अगर अगले एक घण्टे में मैं सही सलामत अपने ठिकाने पर नही पहुँची न....तो तुम्हारे वो खास वीडियोज अपने आप ही इंटरनेट पर अपलोड हो जाएंगे।"

शायद बेहद प्री प्लांड तरीके से काम करती थी रीमा, और उसकी धमकी देने का अंदाज बता रहा था कि उसकी अनुपस्थिति में भी उसके मददगार उसके प्लान में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं।
पर अब उसकी इस धमकी का असर मेजर बख्सी पर थोड़ा सा भी न हुआ, तल्खी के साथ मेजर रीमा पर बरस पड़े
"तुम्हारे मायाजाल में फ़ंस कर कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य भूल कर देश के साथ गद्दारी करने का जो पाप मैने किया है,अब उसको धोने के लिए जान भी चली जाए तो परवाह नही.....तुमको जो करना है कर लो,पर तुम्हारे मुंह से एक एक सच उगलवा कर ही रहूंगा......"

दरअसल मेजर बख्सी अब आत्मग्लानि की आग में जल रहे थे।

मेजर की बात सुनकर कुटिल मुस्कान के साथ कैप्टन विराज ने रीमा की ओर देखा और बोला

"फ्लैट नम्बर सी/303, गायत्री अपार्टमेंट,पंजाबी बाग....यही पता है न तुम्हारे काले कारनामों के एक और साथी परवेज का...…..सही कहा न मैंने रीमा....उर्फ रुकसाना निजाम"

विराज के मुंह से निकले इन शब्दों ने रीमा के सीधा दिमाग पर वार किया,उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी...उसकी असली पहचान से लेकर,उनके साथी व उसके पते के बारे में,सारी जानकारी विराज के पास थी.......इससे पहले वो कुछ बोल पाती,किसी मंझे हुए योद्धा की तरह विराज ने अपने शब्दो के बम उस पर इस कदर गिराए,कि नेस्तनाबूद हो गयी मोहतरमा की सारी रणनीति।

"तो रीमा उर्फ रुकसाना उर्फ दुश्मनों की दल्ली.....अब तुम बताओ तुम्हारा एक घण्टा पूरा होने से पहले किसको निशाना बनाया जाए, गन प्वाइंट पर घुटने के बल जमींदोज होते हुए तुम्हारे साथी और आशिक परवेज को.....या फिर रॉय हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड में साँसों से जंग लड़ रही तुम्हारे वालिद अकबरुद्दीन निजाम को.….."

आमतौर पर इंडियन आर्मी अपने उसूलों के साथ ही जंग लड़ती है,पर निपटना जब देश के गद्दारो से हो तो ब्लैकमेलर्स को भी ब्लैकमेल करना हमारे ऑफीसर्स को बखूबी आता है।

रीमा के चेहरे का कॉन्फिडेंस और घमण्ड दोनो ही फुर्र हो गए थे, अचरज से फ़टी आंखों के साथ उसके चेहरे पर पसरा डर साफ देखा जा सकता था।

"न नही.....नही......प्लीज अब्बू को कुछ मत करना.....म मैं सब बताऊंगी....."

शेरनी की खाल फेंक कर अब एक भेड़ की तरह मिमियाते हुए रीमा ने किसी टेपरिकार्डर की तरह सच उगलने की शुरूआत कर दी थी।

"मेरा नाम रुकसाना निजाम है,मैं कश्मीर से हूँ..... बैंगलोर की एक यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहती थी,सब ठीक चल रहा था....एक दिन खबर आई कि इंडियन आर्मी हमारे मोहल्ले कों घेर रखा है.....आर्मी को हमारे एरिया में कुछ खतरनाक आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली थी.....दोनो तरफ से गोलीबारी हुई, कुछ देर बाद वहां मौजूद चारो आतंकवादी मारे गए, पर इस गोलीबारी में पास के घरों के कुछ सिविलियन्स भी मारे गए......जिनमे मेरी अम्मी भी शामिल थी......अब्बू बच गए पर उनके शरीर में लगी कुछ गोलियों ने उन्हें पैरालाइज कर दिया था..........इस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी......मुझे इंडियन आर्मी और इस देश से नफरत हो उठी थी.......साथ ही अब्बू के बेहतर इलाज के लिए मुझे ढेर सारे पैसों की जरूरत भी थी........और मेरी दोनो हसरतों को पूरा करने का चांस मुझे मिला....कर्नाटक के माफिया 'कन्नूस्वामी कांगा' के लिए काम कर के...... कांगा सोने की तस्करी के साथ साथ इंडिया के दुश्मनों को देश के अंदर सारा मैनेजमेंट उपलब्ध कराने का एक्सपर्ट है.......इसके लिए वह तमाम टेरेरिस्ट ऑर्गेनाइजेशन्स से मोटी कीमत वसूलता है.......पिछले दो साल से मैं कांगा के लिए काम कर रही हूँ....उसके कहने पर मैंने देश के कई बड़े नेताओं, सेलिब्रिटीज ,ऑफीसर्स के साथ रिलेशन्स मेंटेन करके उन्हें ब्लैकमेल किया और उनसे मोटी कीमत भी वसूल की.......बदले में मिले पैसों से मैंने एक लग्जरी लाइफ स्टाइल का लुत्फ़ उठाया और साथ हु अपने अब्बू को महंगा व बेहतर इलाज उपलब्ध करवा पाई,मेरे कामो में परवेज मेरी मदद करता है, हम दोनों एक दूसरे से मुहब्बत करते है, और हमने अब्बू के ठीक हो जाने पर निकाह करने की भी योजना बना रखी है।
चांग ली से मेरी सिर्फ फोन पर बात हुई है,उनसे कभी पर्सनली नही मिली....उन्होंने इस काम के लिए भी मुझे कांगा के माध्यम से ही हायर किया था.....इंडिया में चांगली के लिए सुरक्षित ठिकानों से लेकर संशाधनों को मुहैया कराने की सारी जिम्मेदारी भी 'कन्नूस्वामी कांगा' ने ही मोटी कीमत लेकर ली हुई है....
इस से ज्यादा मुझे कुछ भी नही पता...प्लीज अब्बू और परवेज को कुछ मत करना....बदले में मैं हर कीमत चुकाने को तैयार हूँ।"

अब कैप्टन विराज के सामने चांग ली के उस इंडियन मददगार का राज खुल चुका था,जिसके बलबूते पर वह इतने दिनों से इंडिया में सरेआम तबाही मचा रहा था,और देश की तमाम सिक्योरिटी एजेंसीज की रातों की नींद उड़ा रखी थी।

"अभी कहां मिलेगा यह कन्नूस्वामी कांगा?"
विराज ने प्रश्न किया

जबाब में रीमा ने आगे बताया

"वह देश भर में फैले अपने इस मैनेजमैंट स्कैंडल को दक्षिणी कर्नाटक के घने जंगलों से ऑपरेट करता है, यह जंगल इतने दुर्गम है कि वहाँ आम इंसान की कोई मौजूदगी नही....पुलिस भी वहां के रहस्यों से अनजान है......कांगा और उसके कुछ साथी उन जंगलो के चप्पे चप्पे से वाफिक है,बस इसी बात का फायदा उठा कर वह सैकड़ो किलोमीटर में फैले उन जंगलों में ही अपना निरन्तर बदलते रहने वाला ठिकाना बनाएं हुए है.....उनकी टीम में कुछ सायबर एक्सपर्ट भी शामिल है,जो उन्हें इस प्रकार की सायबर सिक्योरिटी प्रदान करते है,जिससे कि वह किसी भी माध्यम से न तो ट्रेस किये जा सके और न ही किसी सैटेलाइट की पकड़ में आए।"

विराज को अपने मतलब भर की जानकारी रीमा से मिल चुकी थी।
"मेजर,हमें तुरंत ही किसी तरह इस कांगा को काबू में लेना होगा,तभी हम चांग ली तक पहुंच पाएंगे, नही तो बहुत ही जल्दी वह अपने काम को बखूबी अंजाम देकर देश छोड़ कर भी निकल जायेगा,और हम बस देखते रहेंगे.....वक्त बहुत कम है हमारे पास।"

"सही कह रहे हो कैप्टन,पर इतने कम समय में उन विशाल जंगलों में से हम उस कांगा को आख़िर ढूंढेगे कैसे.....?"
मेजर बख्शी ने भी अपनी चिंता जाहिर की।

काफी देर से दिमागी घोड़े दौड़ाने में व्यस्त कैप्टन विराज के दिमाग का अचानक से बल्ब जल चुका था
"एक शख्श है मेजर, जो हमारी मदद कर सकता है.....और न सिर्फ मदद बल्कि वह उस कांगा को बिना किसी फौज के ही उन घने जंगलों में से ढूंढकर धूल चटा सकता है......बट ...उसके लिए मुझे तुरँत ही देसाई सर से कॉन्टेक्ट करना होगा।"

शायद कांगा को ढूंढने की कोई नायाब तरकीब कैप्टन विराज के हाथ लग चुकी थी,विराज की काबिलियत पर मेजर बख्शी को भी कोई शक न था।
"गुड़ कैप्टन, तुम जैसे काबिल अफसरों की दम पर ही इस देश की नींव टिकी है....वरना मुझ जैसे स्वार्थ में अंधे लोग तो खोखला करने पर तुले है देश को...."
आत्मग्लानि के बोझ से दबे हुए थे डॉक्टर बख्शी।

"जो हुआ उसे भूल जाइए मेजर.....आई नो आप मजबूरी के चलते रास्ता भटक गए थे,देश को अभी आपकी जरूरत है।" कैप्टन विराज ने मेजर बख्शी को उस बोझ से निकालने की कोशिश की।

"नही कैप्टन, जो मैंने जो किया उसकी सजा तो मुझे हर हाल में मिलनी चाहिए.....तुम्हारा एहसानमन्द हूँ कि तुमने सच्चाई जान कर भी मुझे इस मिशन में शामिल बने रहने देने का मुझ पर तो अहसान किया ही है...साथ ही साथ खुद के लिए भी बड़ा रिस्क लिया है..........पर जैसे ही देश इस खतरे से बाहर निकलेगा,मैं खुद ही अधिकारियों के समक्ष खुद के अपराध स्वीकार करके आत्म समर्पण कर दूंगा....बदले में मिलने वाली सजा शायद मेरे दिल पर रखे हुए बोझ को कुछ कम कर पाए।"

कैप्टन विराज मेजर बख्शी की मनोदशा को समझ रहे थे, एक सच्चा देशभक्त अगर गलती से भी अपने देश को नुकसान पहुंचा देता है तो फिर वह किस कदर खुद की नजरों में दोषी बन जाता है,यह मेजर बख्सी की स्थिति को देख कर समझा जा सकता था।

"सर,यह वक्त गिले शिकवे करने का नही है...हमें देसाई सर से मिलना होगा....अभी इसी वक्त।"

"ओके कैप्टन,चलो"

इसी के साथ वह दोनो उस गुप्त ठिकाने से निकल गए........रीमा अभी भी अपनी पूर्व की स्थिति में उसी चेयर पर कैद में जकड़ी हुई उन दोनों को जाते हुए निहार रही थी......उस साउंड प्रूफ जगह में उसके चीखने चिल्लाने पर भी कोई मददगार आने वाला नही था।

( कहानी जारी रहेगी।)