दो औरते - 3 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दो औरते - 3

और वह घर खर्च के लिए पैसे और दुकान से सामान देना भी बन्द कर देता।और एज दिन सिथति ऐसी आती की विभा के पास पैसे भी खत्म हो जाते और घर के अंदर सामान भी नही बचता।तब घर मे चूल्हा नही जलता और सब को भूखा ही सोना पड़ता।सुरेश से विभा ज का यह दुुुददेखा नही गया और विभा के सामने ऐसी
परस्तहिती आने पर वह उसकी मदद करने लगा।वह खाने पीने का सामान लाने के अलावा विभा को खर्चे के लिय पैसे देने लगा।ऐसा अचानक नही हुआ।एज बार विभा का पति से झगड़ा हो गया।रामू ने घर आना बंद कर दिया।जब विभा के पास सामान खत्म हो गया तो घर मे चूल्हा नही जला और बच्चे भख से बिलबिलाने लगे तब विभा उन्हें मारते हुए कहने लगी,"तुम्हारा बाप तुम्हे भूखे मार रहा है।"
"क्या बात है?"
तब विभा ने रोते हुए उसे अपनी व्यथा सुनाई थी।और सुरेश ने विभा को सहारा दिया।और फिर सुरेश और सुधा के सम्बन्ध में नया मोड़ आने लगा।
सुरेश की सहानुभूति ने जादू सा काम किया।विभा लता की तरह सुरेश से लिपटी चली गयी।विभा पहली औरत थी जिसकी तरफ वह आकर्षित हुआ था।पहले सुरेश अपने कमरे में पड़ा रहता था।लेकिन विभा से बाते होने पर वह अब कमरे में नही रहता था।वह रामु के जाने के बाद उसके पास चला जाता।दोनो बाते करते रहते।शाम को ड्यूटी से लौटने के बाद रामु के आने से पहले तक का समय विभा के साथ गुजरता।विभा के सम्पर्क में आने लगा।
एक दिन सुरेश की बैंक की छुट्टी थी।सुरेश अपने कमरे में था।अचानक M मौसम में बदलाव आया।हवा चलने के साथ आसमान में काले बादल छा गए रिमझिम बरसात होने लगी।सुरेश खिड़की के पास बैठकर मदमस्त मौसम का आनद लेने लगा।
"क्या कर रहे हो?"तभी विभा उसके कमरे में चली आयी।
"मौसम है आशिकाना उसका मजा ले रहा हूँ।"
"मस्त मौसम का मजा अकेले नही लिया जाता।"
"तुम सही कह रही हो,"सुरेश बोला,"तुम चली आयी।अब अकेला कहा हूँ।"
"आओ बैठो "
"कुर्सी तो एक ही है।कहा बैठु।उस पर तो तुम बैठे हो।"
"मेरी गोद तो खाली है।"
"क्या?"
"गोद,"सुरेश इशारा करते हुए बोला।
"मुझे अपनी गोद मे बैठोगे।क्या मैं तुम्हारी लुगाई हूँ।"
"कुछ देर के लिए बन जाओ।"
"अच्छा।तो लो।"और विभा उसकी गोद मे बैठ गयी।
सुरेश ने एक क्षण की देर किए बिना उसे बाहों में भरकर उसके होठ चुम लिए "
",यह क्या करते हो?"
"अपनी लुगाई को प्यार।"
"आगे कुछ मत कर देना।
" कौन रोकेगा/"
"मैं
"रोको
और सुरेश उसे बेतहासा चूमने लगा।"
"बस भी करो।मार ही डालोगे क्या?"
सुरेश उठा और विभा को गोदी में उठाकर बिस्तर में ले आया।विभा बोली,"यहाँ क्यो लाये हो।इरादा क्या है?"
सुरेश बोला कुछ नही।वह विभा को बिस्तर में लेटाकर उससे प्यार करने लगा। कभी होठ,कभी उसके ग्लो को चूमने लगा।और फिर सुरेश ने विभा के शरीर से साड़ी अलग कर दी।ब्रा और ब्लाउज भी।विभा कुछ नही बोली।फिर वह उसके शरीर से छेड़छाड़ करने लगा।विभा काफी देर तक शांत रहने के बाद उसे उकसाने लगी और सुरेश ने विभा के तन से बचे कपड़े अलग करके अपने शरीर को विभा के शरीर से सटा दिया।
कमरे में विभा की चूड़ियों की आवाज और गर्म सांसे एक दूसरे को छूने लगी।और काफी देर तक दोनो वासना के तूफान में हिचकोले लेते रहे।