सोई तकदीर की मलिकाएँ - 49 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 49

 

49

 

चिङिया को अपना आहार निगलते देख कर सुभाष दार्शनिक हो गया था । सौभाग्य या दुर्भाग्य क्या है , बस वक्त का फेर । एक का सौभाग्य अक्सर दूसरे का दुर्भाग्य हो जाता है । जैसे शरण का जयकौर के ब्याह के एवज में जमीन और ट्रैक्टर का मालिक हो जाना । जैसे भाइयों के सौभाग्य के बदले जयकौर का भोला सिंह की ब्याहता हो जाना । जैसे जयकौर के हवेली में आ जाने के बाद बसंत कौर ... ।
अपनी सोचों में खोया हुआ सुभाष भलविंदर सिंह उर्फ भोला सिंह के पीछे पीछे चलता रहा । करीब सात किलोमीटर से कम तो वे क्या चले होंगे । अचानक वे एक खेत के सामने रुक गये – ले भई बरखुरदार , ये है अपनी पैली । अब तू देख , काम कहाँ से शुरु करना है ।
कहते कहते भोला सिंह खेत में उतर गया । वहाँ सात आठ लोग पहले से ही काम कर रहे थे । टयूवैल का ठंडाठार पानी धरती का कलेजा शीतल कर रहा था । तीन लोग फावङा थामे पानी का नक्का अलग अलग क्यारों में मोङ रहे थे । थोङी दूर कुछ लोग फसल में से झाङ झंखाङ निकाल रहे थे । सुभाष अभी खेत की मेह पर सङक किनारे खङा दूर दूर तक लहलहाती फसल को देख रहा था । चारों तरफ हरियाली का साम्राज्य फैला था मानो सब्ज परी ने अपनी जादू की छङी छुआ दी थी ।
सरदार ने ललकारा मारा – ओए निक्के , इधर आ ।
आवाज सुनते ही वह आदमी जिसे निक्का कह कर पुकारा गया था , हाथ झाङता हुआ सामने आ खङा हुआ ।
जी सरदार जी , हुकम करो ।
सुभाष ने नजर उठा कर देखा । नाम का ही निक्का था वह आदमी । अच्छा खासा मजबूत जुस्से का मालिक था वह । लंबा ऊँचा कद , सवा छ फुट का होगा । भरवां जिस्म । निरंतर खेतों में मेहनत करने से बाजुओं की मछलियाँ फङक रही थी । चौङा सीना , खुले कसरती कंधे , ऊपर से राख से थोङा ज्यादा सांवलापन लिए रंग । शरीर पर एक इंच भी मांस फालतू नहीं । काम करते करते कुर्ता उतार कर शायद यहीं कहीं रख दिया था । चादरा भी घुटनों से ऊपर मोङ कर तहाया हुआ था । पिंडलियाँ चमक रही थी । पुकार सुनते ही नंगे पांव काम करता हुआ चला आया था ।
हां निक्के , आज क्या कर रहे हो ?
सरदार जी , आज गुडाई हो रही है । कुछ क्यारों में पानी दिया जा रहा है । चा शा पियोगे तो बनवाऊं ।
चा पी लेंगे , अभी थोङा ठहर जा । ये सुभाष है , आज से यह भी तुम लोगों के साथ खेत में काम करेगा । इसे खेत और क्यारा दिखा दे । एक बार काम समझ लेगा तो कल से मजदूरों से काम भी करवा सकेगा ।
जी , चल भाई तुझे तेरा क्यारा दिखा आऊँ ।
निक्का आगे आगे चल दिया , पीछे पीछे सुभाष । काफी क्यारियां लांघ लेने के बाद निक्का एक बङे से खेत में रुका । खेत में गेहूँ की पौधे खङे थे ।
ले , तू आज यहाँ से काम शुरू कर ले ।
ये खेत भी इन सरदार का है ?
और नहीं तो क्या । सिर्फ ये ही क्यों , दूर दूर तक जहां तक नजर जाती है , वहाँ तक सरदार के खेत हैं । ढाई हजार किल्ला कहते हैं । हर रोज पता नहीं कितने लोग इन खेतों में काम करते हैं । उसने बाजू उठा कर आवाज लगाई – जागर भाई एक कस्सी पकङा जा ।
उधर दूर से आवाज आई – आया भा ।
और एक बीसेक साल का मुछफुट गभरू जवान हाथ में कस्सी लिए प्रकट हुआ और कस्सी निक्के को थमा कर फसलों के बीच से होता हुआ लापता हो गया ।
ये कुम्हारों का उजागर है । सब इसे प्यार से जाग्गर ही कहते हैं । बङा कमेरा लङका है । भूतों की तरह काम करता है । ले पकङ कस्सी । बंबी छोड कर खेत को पानी लगा ले । मैं भी अपना काम देखूं ।
सुभाष को वही छोङ कर निक्का अपने क्यारे में लौट गया । सुभाष उसे जाते हुए देखता रहा । जब वह दिखाई देना बंद हो गया तो कस्सी लेकर खेत में उतर गया । क्यारियों को सचमुच पानी की जरूरत थी । उसने आगे बढ कर ट्यूबवैल का बटन दबाया । हर हर की आवाज करता हुआ पानी बह चला । सुभाष ने रगड रगड कर हाथ मुँह धोए और नक्के मोङने लगा । एक क्यारी का पानी बंद करता और दूसरी क्यारी में पानी जाने देता । जब वहां पानी भर जाता तो उधर से बंद करके पानी दूसरी ओर मोङ देता । इस तरह वह तीन चार घंटे काम में उलझा रहा कि निक्का चाय का लोटा और कटोरा लेकर आ गया – ले भाई , अब दम ले ले और चाय पी ले ।
वो सरदार जी ।
वो तो चले गये । बङे लोग हैं । सौ काम धंधे होते हैं । बस एक बार चक्कर लगा जाते हैं । इतना बहुत है । तू आराम से चाय पी फिर बाकी क्यारे भर देना ।
सुभाष ने लोटा और कटोरा पकङ लिया और खेत के किनारे उगी नीम की छांव में जा बैठा । कटोरे में चाय डाली और घूंट घूंट कर पीने लगा । चाय वाकयी बहुत स्वाद बनी थी । वह थोडी थोडी करते पूरा लोटा खाली कर गया । चाय का स्वाद जीभ पर आया तो उसे अपनी माँ और भाभी याद आए । उसकी भाभी भी इतनी ही स्वाद चाय बनाती थी । मनुहार करके उसे पिलाती । साथ में बेसन की पिन्नियां भी मिल जाती तो जन्नत के पकवान भी फीके नजर आते । भाभी उसे आने ही नहीं देना चाहती थी । वही जिद करके चला आया । पता नहीं पीछे घर का हाल होगा । रमेश भाई को वह अकेला छोङ आया । वे अकेले ही घर की हर समस्या से जूझ रहे होंगे । मौसी अब तक अपने घर चली गई होगी ।
घर वह वितृष्णा से मुस्कुराया । घर जहां मौसी की हैसीयत जर खरीद गुलाम से ज्यादा नहीं थी । उसका जम कर शोषण होता । पूरा दिन वह बेजुबान जानवर की तरह खटती । ऊपर से गालियां और मार उसके हिस्से आती । प्यार के दो बोलों के लिए वह तरस जाती । सुभाष का मन किया , अपनी मौसी को हमेशा के लिए अपने घर में रख ले । उस नरक में कभी जाने न दे । पर अभी तो उसका ही कोई ठिकाना न था । आज काम पर वह पहले दिन आया था और अभी आधे क्यारों में पानी लगाना बाकी था । वह उठा और क्यारों की ओर चल दिया । जिस क्यारी में वह पानी छोङ कर आया था , वह पूरी तरह से भर चुकी थी और अब पानी दूसरी क्यारी में भरने लगा था । उसने फटाफट एक मेढ से मिट्टी उठाई और पानी के बहाव को रोकने के लिए मिट्टी का बंध लगा दिया । पानी अब खाली क्यारी की ओर मुङ गया था ।

 

बाकी फिर ...