Is Pyaar ko kya naam dun - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 16

(16)

दुःखी मन से ख़ुशी, रायजादा हॉउस पहुँचती है। वह काँपते हाथ से दरवाज़े की घण्टी बजाती है। थोड़ी ही देर में दरवाजा खुलता है। हरिराम ख़ुशी को देखकर (चौंकते हुए)- ख़ुशीजी आप ? सब कुशलमंगल तो है न ?

सुबह भी आप अचानक यूँ चली गई।

ख़ुशी- सब ठीक है, हम यहाँ अपना बैग लेने आए हैं।

हरिराम- आपका बैग अर्नव भैया के कमरे में रखा है।

ख़ुशी- जी शुक्रिया हरि भैया। क्या आप उनसे हमारा बैग ले आएंगे ?

हरिराम- ख़ुशीजी, कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा पर आप ही चले जाइए। बैग में रुपये थे तो भैया मुझे आपका बैग नहीं देंगे।

ख़ुशी- ठीक है, हरि भैया।

ख़ुशी अर्नव के कमरे की ओर बढ़ते हुए अनुमान लगाती है- उस नवाबजादे को फिर से हमें नीचा दिखाने का अवसर मिल गया। लगता है शिवजी भी उसी की तरफ़ है।

अर्नव के दरवाजे पर पहुँचकर सोचती हैं- अब तक तो उनको गहरी नींद आ गई होगी। हम जल्दी ही अपना बैग लेंगे और बाहर आ जाएंगे।

ख़ुशी धीरे से दरवाजा खोलती है और हौले से अपना पैर अंदर ऱखते हुए कमरे में आती है। ख़ुशी की नजरें जैसे ही सामने पड़ती हैं तो उसके मुँह से चीख़ निकल जाती है।

सामने अर्नव बैठा हुआ था और वह ख़ुशी को ही देख रहा था।

ख़ुशी- वो.. हम अपना बैग लेने आए हैं।

अर्नव- अपना सामान भी नहीं सम्भाल पाती तुम बिल्कुल अपनी जबान की तरह।

ख़ुशी- हमें आपसे कोई बात नहीं करना है।

अर्नव- सोच लो..बैग चाहिए या नहीं..?

ख़ुशी आश्चर्य चकित हो अर्नव को देखती है, और पूछती है- आख़िर आप हमसे चाहते क्या है ?

अर्नव - माफ़ी..

ख़ुशी (कोतुहलवश)- माफ़ी ?? किस बात के लिए ?

अर्नव- अपनी कही हर उस बात के लिए, जिससे तुम्हारा दिल दुखा हो।

ख़ुशी अर्नव को इस तरह देखती है जैसे उसके सामने अर्नव नहीं एलियन खड़ा हो जिस पर यकीन करना मुश्किल हो।

ख़ुशी- लगता है बुखार आपके दिमाग़ पर चढ़ गया है, तभी आप इतनी बहकी-बहक़ी सी बातें कर रहे हैं।

अर्नव- यही समझ लो।

अर्नव अपनी जेब से एक छोटी सी डिबिया निकालता है और उस डिबिया को खोलकर जब उसमें से सोने की चेन निकालता है तो ख़ुशी चेन को अर्नव के पास देखकर हतप्रभ रह जाती है। ख़ुशी कभी चेन को देखती है तो कभी अर्नव को। उसे कुछ भी समझ नहीं आता है।

ख़ुशी अतिउत्साहित हो अर्नव की ओर आते हुए कहती है- कितना बड़ा इत्तेफाक हैं कि आपने यह चेन ख़रीदी है। यह चेन हमारी ही है।

अर्नव- जानता हूँ, पर अब यह चेन मेरी हो गई है।

ख़ुशी- आप हमसे रुपये ले लीजिए और यह चेन हमें लौटा दीजिये।

अर्नव- नहीं, अब यह चेन तो मेरी ही रहेगी।

ख़ुशी- यह चेन हमारे लिए बहुत कीमती है।

अर्नव- तो बेची क्यों थी ?

ख़ुशी का चेहरा मायूस हो जाता है, उसकी आँखें छलक जाती है। वह नीचे मुँह किए हुए चुपचाप जमीन को देखती रहती है।

अर्नव ख़ुशी को उदास नहीं देख पाता है और कहता है- ये लो चेन।

खुशी झटके से अपनी गर्दन ऊपर उठाती है और अर्नव के हाथ से चेन ले लेती है। चेन बैग में रखने के बाद ख़ुशी अर्नव को नोट की गड्डी देने लगती है।

अर्नव- रुपये भी तुम ही रख लो। मैंने कहा न यह चेन अब मेरी है। तुम्हें इसी शर्त पर दे रहा हूँ कि दोबारा कभी इसे अपने गले से मत निकालना।

ख़ुशी हैरानी से अर्नव को देखती है ।

अर्नव खुशी से कहता है- ख़ुशी एक बात हमेशा याद रखना हमेशा वस्तुएं ही बेची जाती है, भावनाएं और अहसास नहीं। भावनाएं अनमोल होती है उनकी कभी कीमत नहीं लगाई जा सकती है।

अर्नव की बातें सुनकर ख़ुशी द्वारा अनुमान और नकारात्मक कयास रूपी सारी मंजिलें धराशायी हो गई जो उसने घर से आते समय बनाई थी।

ख़ुशी- हम अब तक आपको समझ ही नहीं पाए। कभी आप पत्थर की तरह सख्त लगते हो जिसे देखकर लगता है कि भगवान शरीर में दिल डालना ही भूल गए। कभी आप फूलों से कोमल हृदय वाले लगते हो, लगता है आप से अच्छा इंसान कोई है ही नहीं।

अर्नव- अपने छोटे से दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर मत दो।

ख़ुशी अर्नव के बदले रूप पर यकीन ही नहीं कर पाती हैं। उसे लगता है वह खुली आँखों से सपना देख रहीं हैं जो पलभर में टूट जाएगा।

ख़ुशी अर्नव से चेन लेकर उसके कमरे से बाहर निकल जाती है। उसके चेहरे की चमक ऐसी थी जैसे अमावस्या की रात में जुगुन चमक रहे हो।

ख़ुशी को देखकर हरिराम कहता है- ख़ुशीजी आप आई तो गुमसुम थी अब एक दम तितलियों सी चंचल लग रही है। बैग मिलने की इतनी ख़ुशी..

ख़ुशी- हरि भैया मन का चैन लौट आया चेन के मिलने से..

ख़ुशी की बात सुनकर हरिराम सिर खुजाता हुआ ख़ुशी की कही बात का अर्थ समझने की कोशिश करता है।

हँसते हुए ख़ुशी दरवाज़े की ओर जाती है तभी सामने से आकाश, मनोरमा और देवयानी आते दिखाई देते हैं।

ख़ुशी को देखकर आकाश खरगोश सा फुदकता हुआ ख़ुशी की ओर आता है।

आकाश- ये क्या बात हुई ख़ुशीजी..? हम आए और आप जाने लगीं।

ख़ुशी- अच्छा हुआ आप लोग आ गए। हम आप सबको अपनी बहन की सगाई का निमंत्रण देने आए थे।

देवयानी- ये बहुत ही अच्छी खबर सुनाई आपने खुशी।

मनोरमा- हमरी तरफ़ से ढेरों शुभकामनाएं..

खुशी- आप सब जरूर आइयेगा। अब हम चलते हैं। बैग से निमंत्रण कॉर्ड निकाल कर उसे देवयानी को देकर ख़ुशी वहाँ से चली जाती है।

देवयानी औऱ बाकि लोग हॉल में आते हैं। देवयानी कॉर्ड को सेंटर टेबल पर रख देतीं है और सोफ़े पर बैठते हुए हरिराम को आवाज़ देती है।

हरिराम- आया नानीजी....

हरिराम दौड़ा हुआ चला आया और देवयानी के सामने खड़ा हो जाता है।

देवयानी- भोंदु की तबियत कैसी है ?

हरिराम- अर्नव भैया अब बिल्कुल ठीक है। आप ही देख लो । भैया यहाँ आ रहे हैं।

अर्नव सीढ़ियों से उतरकर हॉल की ओर ही आ रहा होता है। अर्नव को स्वस्थ और खुश देखकर देवयानी ख़ुश हो जाती है। वह कहती है-

देवयानी- अंजलि सही ही कह रहीं थी। मन्दिर जाना सफल रहा।

मनोरमा- एकदम सही कह रहे सासुमां, अर्नव बिटवा को देख लेने के बाद हमका भी यही लागत है कि सिद्धवीर हनुमानजी हमरी प्रार्थना सुन लिए है।

आकाश- भाई, अब तो आपको देखकर कोई नहीं कह सकता कि आपको जुकाम या बुख़ार भी था।

अर्नव- मैं तो ठीक ही था। आप लोग ही इतना बड़ा मुद्दा बना रहे थे। खैर, अंजलि दी कैसी है ? कब तक आएंगी ?

मनोरमा- ऊह तो इकदम बढ़िया.. मज़े मा है। हर बखत तुम्हरे बारे में पूछत रहीं।

अर्नव के मोबाईल की रिंगटोन बजती है, वह कॉल रिसीव करता है और उठकर चला जाता है।

आकाश सेंटर टेबल से कॉर्ड उठाकर कहता है- अरे वाह ! इन्विटेशन कॉर्ड। ख़ुशीजी के यहाँ क्या है ?

देवयानी- सगाई है।

आकाश- क्या ! ख़ुशीजी की सगाई ।

आकाश की बात सुनकर अर्नव सीढ़ी चढ़ते हुए रुक जाता है। उसका मन ग्रहण लगे चंद्रमा की तरह हो गया। अचानक उसके मन के ऊपर दुख की काली बदरी मंडरा गई। अब तक तरोताजा दिख रहे अर्नव का चेहरा कुम्हलाए फूल सा मुरझा गया।

फ़ोन की दूसरी साइड से माखन ने कहा- सर, आप सुन रहे हैं न..?

अर्नव अपना ध्यान फ़ोन पर लाते हुए- हाँ माखन, तुम्हें जो ठीक लगे वही करो।

और हाँ वो ग्रुप जो दिल्ली से आया है, उसमें वो लड़कीं.. क्या नाम था उसका..व्हाटएवर उसको मेरी पी०ए० की पोस्ट पर ऑपोइंट कर दो।

मैं थोड़ी देर में ऑफिस आ ही रहा हूँ ।

बाक़ी का काम मैं आकर समझा दूँगा।

अर्नव कॉल डिस्कनेक्ट करके अपने कमरे में चला जाता है। अर्नव का मन विचलित होकर बार-बार आकाश की बात दोहरा रहा था- ख़ुशीजी की सगाई...

अर्नव फ़ोन बेड पर फेंककर बालकनी में चला जाता है।

अगले दृश्य में.....

ख़ुशी अपने घर पहुंचकर अम्मा के गले ऐसे लगती है जैसे चेन लेकर नहीं लौटी कोई अविजित किला फ़तह करके नया कीर्तिमान स्थापित करके लौटी हो।

चेन और रुपये की गड्डी गरिमा के हाथ पर रखकर ख़ुशी कहती है - ये लो अम्मा।

गरिमा (चौंककर)- रुपये..?

ख़ुशी- बात ये हुई अम्मा, आम के आम गुठलियों के भी दाम मिल गए।

गरिमा- पहेलियां बुझाना बन्द करो खुशी और साफ़-साफ़ बताओ।

ख़ुशी- अम्मा, चेन अर्नवजी ने खरीद ली थी। हमने उनसे रिकवेस्ट की तो वो मान गए तो उन्होंने चेन लौटा दी और रुपए भी नहीं लिए।

गरिमा- उनको कैसे पता कि वो चेन तुम्हारी है, उन्होंने वहीं चेन क्यों खरीदी। उनको चेन खरीदना ही होती तो नई लेते। इतने बड़े आदमी है, वो चाहे तो पूरी दुकान खरीद लें। हमें तो तुम्हारी बात पर यक़ीन नहीं हो रहा। जरूर तुमने झूठी कहानी बना दी है सच को छुपाने के लिए।

खुशी गले पर हाथ रखते हुए कसम खाते हुए कहती है- अम्मा, हमारा यकीन करो, हम सच कह रहे हैं।

वैसे, जो आपने कहा वह भी सोचने वाली बात है। हम तो चेन मिलने की ख़ुशी में इतने पगला गए थे कि इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं गया। हम जब भी उनसे मिलेंगे तो ये सारे सवाल जरूर पूछेंगे।

गरिमा (हँसते हुए)- जीजी तुम्हें एकदम सही नाम से बुलाती है, सनकेश्वरी।

खुशी (गम्भीरता से)- अम्मा, बरसों से एक पहेली हमें परेशान करती आई है। जिसका हल आप ही बता सकती है।

गरिमा (सवालिया नज़रों से)- कैसी पहेली ?

ख़ुशी- बहुत से सवाल है इस पहेली में । हर सवाल का उत्तर सिर्फ़ आप दे सकती है। सवालों के बोझ से हम मुक्त होना चाहते हैं।

गरिमा- क्या कह रही हो ? हमारी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। पहेली तो तुम बुझा रही हो। जल्दी से कहो बिटिया, बहुत सारा काम फैला हुआ है वो सब भी देखना है। कार्ड्स देने भी जाना है।

ख़ुशी- अम्मा, आपने हमें बिटिया कहने में इतना वक़्त क्यों लगा दिया। हमारा तो सारा बचपन इस शब्द के बिना गुजर गया। कान तरसे रह गए थे तब इन शब्दों को सुनने के लिए। हमसे या हमारी माँ से ऐसी क्या भूल हुई, जिसकी सज़ा हम इतने बरसों तक भुगतते रहे ? अतीत के काले साए हमारे वर्तमान पर मंडरा रहे हैं। जिसके कारण हमारी खुशियों पर अब भी ग्रहण लगा हुआ है।

गरिमा ख़ुशी की बात सुनकर असहज हो जाती है। वह अनमनी सी होकर ख़ुशी से कहती है- इस बारे में फिर कभी बात करेंगे ख़ुशी।

ख़ुशी- नहीं अम्मा, हमें आज ही जानना है। ताकि हम एक नई जिंदगी जी सकें। इस बात को कभी न सुने की हम बिन मां-बाप की संतान हैं।

आप और बाबूजी ही हमारी दुनिया हो।

ख़ुशी गरिमा से हर हाल में सच जानने की ज़िद पर अड़ जाती है। अर्नव के शब्द उसे गहराई तक चुभ गए थे।

"बचपन से अपने मम्मी-पापा के साथ रही हो न इसलिए भावनाओं का लेक्चर दे रहीं हो"

कहने को तो सामान्य शब्द ही लगते है, लेकिन ख़ुशी को शूल की तरह चुभ गए। चुभन भी ऐसी की रह-रह कर आत्मा को भेद रही थी।

बचपन से अब तक ख़ुशी ऐसे रही जैसे वह गरिमा के कलेजे का टुकड़ा नहीं बोझ हो। घर आते रिश्तेदार भी ख़ुशी के साथ ऐसा व्यवहार करते जैसे ख़ुशी ने उनके हिस्से का राशन छीन लिया हो। पायल, मौसाजी व बुआजी का स्नेह ही अब तक ख़ुशी को संभाले हुए था।

बताओ न अम्मा.. आख़िर आप मुझसे इतनी उखड़ी हुई क्यों रहती थी?

गरिमा- ख़ुशी, गढ़े मुर्दे उखाड़ने से हासिल कुछ नहीं होगा। पुरानी बातें हैं, उन्हें जानकर कोई फायदा नहीं होगा। तुम्हारा उनसे कोई लेना-देना भी नहीं है। तुम बस ये समझ लो कि गेहूँ के साथ घुन पीस गया।

ख़ुशी- अम्मा, आज हम आपकी बातों में उलझने वाले नहीं है। आपको हमारी कसम है।

गरिमा ख़ुशी द्वारा दी हुई कसम से आत्मसमर्पण कर देती है। वह कहती है अब तो बताना ही पड़ेगा।

गरिमा- खुशी जैसे आज तुम और पायल रहती हो न, वैसे ही तुम्हारी मम्मी और मैं रहा करती थी। हम दोनों बहनों में बहुत अधिक प्रेम था। दोनों एक दूसरे की पक्की सहेलियों जैसी थी। हम दोनों की इतनी ज़्यादा घुटती थी कि एक-दूसरे के मन को भी समझ लेती थी। इतना प्यार होने पर भी प्यार ने ही हम दोनों के बीच दरार डाल दी। दरार से दूरियां बढ़ती गई और फ़िर मुझे अपनी ही अजीज जीजी महिमा दुश्मन लगने लगीं।

ख़ुशी बहुत ही गौर से गरिमा की बातें सुनती है वह कहती है- ऐसा क्या हुआ जिसके कारण आप को माँ से इतनी नफ़रत हो गई ?

गरिमा की आँखे पुरानी बातों से छलक आई। बरसों से भरा दर्द का ग़ुबार आँसू से बहता हुआ निकल गया। आँसू पोछते हुए गरिमा बोली-

मैं और जीजी एक ही कॉलेज में थे। हम दोनों एक ही क्लास में एक ही बेंच पर बैठते थे। तुम्हारे पापा राजपाल भी हमारे क्लासमेट ही थे। उन्होंने फाइनल ईयर में कॉलेज में एडमिशन लिया था और क्लास में उनकी पहली दोस्ती मुझसे ही हुई थी। हम नोट्स के साथ एक-दूसरे की बामें भी शेयर करते थे। मैं दोस्ती के पॉयदान से ऊपर बढ़ गई और उनसे प्यार हो गया। मुझे यह बात पहले अपनी जीजी महिमा को ही बताना थी लेकिन सच ही है कि इंसान प्यार में अंधा हो जाता है। मैं तो स्वार्थी भी हो गई थी। मैंने महिमा से छुपाकर एक दिन अपने प्यार का इजहार राजपाल से कर दिया। राजपाल ने मेरे प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बात से मुझे इतना दुःख नहीं हुआ जितना यह सुनकर हुआ कि राजपाल महिमा से प्रेम करते हैं। मैं तो उनकी सिर्फ़ सबसे अच्छी दोस्त थी। राजपाल ने महिमा से प्यार का इजहार किया और फिर दोनों की शादी हो गई। हमें माँ ने हमारे मामा के घर भेज दिया और यही महिमा की सहेली मधुमती ने अपने भाई के लिये हमारा हाथ मामाजी से मांगा फिर हमारी भी शादी हो गई।

समय हर ज़ख्म का घाव भर देता है। हम भी सामान्य हो जाते पर नियति को ये मंजूर नहीं था। समय ने हमें सम्भलने की मौहलत ही नहीं दी। एक दिन सूचना मिली कि जीजी की कार का एक्सीडेंट हो गया। राजपाल की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और महिमा हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है। हम तुरन्त उससे मिलने पहुंचे। हमने अपनी सभी गलतियों की माफ़ी माँगी। उसने हमें हंसकर माफ़ कर दिया और कहा- मैं ठीक हो जाऊं फिर से पुराने अंदाज़ में मिलेंगे। हम उनसे बहुत कुछ कहना चाहते थे पर उस समय उनकी हालत नाजुक थी क्योंकि तुम उसकी कोख़ में पल रही थी। महिमा की मौत की क्या वजह थी सबको पता थीं- ऑपरेशन थियेटर ले जाते वक्त नर्स आपस में राजपाल की मौत के विषय में बातचीत कर रही थी। महिमा ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई। वज़ह जानने के बाद भी हम उसकी मौत का जिम्मेदार तुम्हें ही मानते रहे।

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