इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 15 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 15

(15)

ख़ुशी से हुई बातचीत से अर्नव को अपना हलक सूखता हुआ सा महसूस हुआ। वह मेज़ से पानी लेता है, उसके हाथ से पानी का गिलास छूट जाता है।

गिलास गिरने की आवाज सुनकर ख़ुशी कमरे के अंदर भागी चली आती है।

ख़ुशी फर्श से गिलास को उठाकर मेज़ पर रखती है और ट्रे से दूसरा गिलास लेकर अर्नव को पानी देती है।

पानी का गिलास लेते हुए अर्नव ख़ुशी को देखता ही रह जाता है। मानों वह लम्हा ठहर गया हो। अपने लिए ख़ुशी की ऐसा सेवा भाव, फिक्र देखकर अर्नव के दिल में कुछ चुभता सा महसूस होता है, पर ये चुभन दर्दभरी न होकर मीठी सी थी।

जैसे अर्नव की धड़कनों में आ गया हो एक नगमा प्यार का... अर्नव के दिल के तार बज उठे। दिल से उठती तरंग पूरे शरीर को झुनझुना रही थी। काढ़े से कड़वा हुआ मुँह का स्वाद भी बदल गया। लगा जैसे गुड़ की डली घुल रही हो सलाइवा में। बुखार से तपता शरीर भी चन्दन सा शीतल हो गया।

ख़ुशी की नजरें अर्नव से मिलती है। अर्नव अपनी नज़रें नीची कर लेता है।

ख़ुशी- हम आपका नाश्ता भिजवाते है।

अर्नव ख़ुशी की बात का कोई उत्तर नहीं देता। वह खिड़की के बाहर कबूतर के जोड़े को देख रहा होता है।

ख़ुशी कमरे से बाहर चली जाती है। वह ख़ुद से बामें करते हुए कहती है-  इतना जलील होने के बाद भी हम फिर से उस नवाबजादे के सामने चले गए। कभी-कभी तो हमें अपने ऊपर भी यकीन नहीं होता। लगता है हम उनके सामने किसी स्वार्थ से ही जाते हैं।

बड़बड़ाती हुई ख़ुशी किचन में आती है। हरिराम ख़ुशी को देखकर चिड़ियों सा चहकता हुआ कहता है- भैया ने काढ़ा पी लिया ?

ख़ुशी- "हाँ हरि भैया"

हरिराम- देखा, मैंने कहा था न कि भैया आपको कुछ नहीं कहेंगें।

ख़ुशी (बुदबुदाते हुए)- हम ही जानते हैं कि काढ़े से भी कड़वी बातों का डोज मिला है हमें।

हरिराम- कुछ कहा आपने ?

ख़ुशी- हाँ, आप जल्दी से नाश्ता लगा दीजिए। औऱ अर्नवजी को समय पर दवाई देते रहना। अब हम चलते हैं।

हरिराम- ख़ुशीजी, कृपया थोड़ी देर औऱ रुक जाइए। 12 बजे तक तो सब लोग आ ही जाएंगे। आप तो यूं भी शाम तक रहती है।

ख़ुशी- हरि भैया, रोज की बात अलग है। और वैसे भी हमें आज घर जल्दी ही जाना है।

हरिराम (निवेदन करते हुए)- बस आप ये नाश्ता और दे दीजिए। बाद का हम देख लेंगे।

ख़ुशी (नाश्ते की ट्रे लेते हुए)- हमें तो यह समझ नहीं आ रहा कि आज आप उनसे इतना डर क्यों रहें हैं ?

हरिराम- बात दरअसल ये है ख़ुशीजी की कल भैया जब भीगकर आए तब हम उन्हें चाय देने गए। हमने उनसे बस इतना कहा कि भैया आपको बारिश से खुद को बचाना था। फिर क्या उन्होंने गुस्से से चाय का प्याला फेंक दिया और बोले मैं मिट्टी का पुतला नहीं हूँ कि बारिश से गल जाऊंगा।

पता नहीं किस बात का गुस्सा था जो हम पर उतार दिया। बस इसीलिए आज हम अर्नव भैया के सामने जाने से भी डर रहे हैं।

ख़ुशी (बात को समझते हुए)- ओह ! तो ये बात है। अब सारा माजरा समझ आया। खैर, आप चिंता न करें। अब उनकी तबियत और मूड दोनों पहले से बेहतर है।

ख़ुशी नाश्ते की ट्रे लेकर वहाँ से चली जाती है।

अर्नव के मन में उठ रहीं प्रेम की लहरें दिमाग़ रूपी किनारे से टकराकर चकनाचूर हो गईं। गुस्से से भरा अर्नव अपने पुराने अंदाज में आ जाता है। वह खुद को कोसता है- मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ कि एक लड़की द्वारा जरा सी फिक्र कर देने से पिघल जाऊं।

अर्नव विचार मंथन कर ही रहा था कि, वहाँ नाश्ता लिए ख़ुशी आ जाती है। अर्नव गुस्से से ख़ुशी को देखता है।

अर्नव- हरिराम कहाँ है ? उससे कहना मैंने बुलाया है। तुम जाओ क्योंकि तुम जिस मकसद से यहाँ हो उसमें असफ़ल ही होना है।

हरिराम तो है न घर में ? या उसे बाहर भेज दिया।

ख़ुशी- आप ऐसे बात क्यों कर रहें हैं ?

अर्नव- क्यों, सच सुनने की आदत नहीं है ? एक बार फिर तुमने साबित कर दिया कि तुम कितनी गिरी हुई लड़की हो। तुम्हें अच्छे से पता ही होगा कि आज यहाँ कोई नहीं होगा फिर भी यहाँ आई। आकर भी वहीं जादू बिखेरने की कोशिश की जिससे मेरे घर वालों को अपने काबू में कर लिया। तुम्हारे ये हथकण्डे मुझ पर असर नहीं करेंगे। अपनी भोली शक़्ल और मीठी बातों से मेरे घर वालों को भी बहुत दिन तक नहीं लुभा पाओगी। एक न एक दिन तुम्हारी सच्चाई वो लोग भी जान ही जायेंगे।

ख़ुशी को लगा जैसे किसी ने अचानक से उसके शरीर से प्राण खींच लिए। उसकी आत्मा बिन पानी की मछली सी तड़प उठी। ख़ुशी रोते हुए दौड़कर कमरे से बाहर निकल जाती है और सीधे घर के बाहर हो जाती हैं।

हरिराम- अरे ! ख़ुशीजी क्या हुआ ?

हरिराम (विचार करते हुए)- ख़ुशीजी कह तो रहीं थी कि उन्हें घर जल्दी जाना है। पर इतनी जल्दी..

हम अर्नव भैया से पूछकर आए क्या ?

शायद उनको पता हो...

डरते-सहमते हरिराम अर्नव के कमरे की ओर चल देता है। कमरे के बाहर हरिराम को खुशी का बैग दिखता है। वह बैग उठाकर कमरे का दरवाजा खटखटाता है...

अंदर से अर्नव के चिल्लाने की आवाज़ आती है- "तुम फिर आ गई"

हरिराम (अचकचाकर)-  अर्नव भैया मैं हूँ..

हरिराम कमरे के अंदर जाता है और कहता है.. भैया, ख़ुशीजी यूँ भागकर क्यों गई ? वो अपना बैग भी नहीं ले गई..

अर्नव हरिराम के हाथ में ख़ुशी के बैग को देखकर उसे आदेश देते हुए कहता है- चेक करके देखो, इसमें कोई कीमती सामान तो नहीं रख लिया।

हरिराम (आश्चर्य से अर्नव को देखते हुए)- भैया, ये कैसी बात कर रहे हैं आप ?

अर्नव (सख्त चेतावनी देते हुए)- जितना कहा है उतना ही सुनो और वही करो।

हरिराम अर्नव के सामने ही ख़ुशी का बैग उलट देता है। बैग से नोट की गड्डी निकलती है।

अर्नव हरिराम को प्रश्नवाचक सी नज़रों से देखता है और कहता है- बैग से निकला सारा सामान यहाँ लाओ।

हरिराम अर्नव को सारा सामान समेटकर दे देता है।

अर्नव को एक स्लिप दिखती है जिस पर लिखा हुआ था- दस ग्राम चेन इक्यावन हज़ार पाँच सौ में बेच दी।

साथ ही अर्नव को एक इनविटेशन कॉर्ड भी दिखता है, जिस पर नानीजी यानी देवयानी का नाम लिखा हुआ था औऱ नाम के नीचे सपरिवार लिखा हुआ था। अर्नव कार्ड को खोलकर देखने वाला होता है तभी उसके मोबाइल की रिंग बज जाती है।

अर्नव- हाँ, माखन.. मैं अब ठीक हूँ। मीटिंग केंसल करने की जरूरत नहीं है। मैं शाम को ऑफिस आऊँगा।

अर्नव कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद सारा सामान ख़ुशी के बैग में रखकर वॉशरूम चला जाता है।

अगले दृश्य में..

ख़ुशी अपने घर पहुंच जाती है। उसे आता देख गरिमा मुस्कुराकर पूछती है- क्या बात है ख़ुशी .? आज तो सारा काम जल्दी ही कर रहीं हो.. आज घर भी जल्दी आ गई। कॉर्ड दे आई बिटियां ? क्या कहा मनोरमा ने ?

ख़ुशी (धीमे स्वर में)- वो घर पर नहीं थे अम्मा..

गरिमा- ख़ुशी क्या बात है ? इतनी गुमसुम क्यों हो..?

अरे ! तुम्हारी चेन कहाँ है ?

अर्नव तैयार होकर ऑफिस जाने के लिए अपना लेपटॉप और जरूरी सामान अपने ऑफिस बैग में रखता है। तभी वहाँ हरिराम आता है। अर्नव को देखकर हरीराम कहता है- भैया, अभी तो आपको आराम करना चाहिए। आप फिर से बाहर जाने लगे। नानीजी को पता चल गया तो मुझे ही डाँट सुनने को मिलेगी।

अर्नव- अगर तुम चुपचाप यहाँ से नहीं गए तो डाँट तो अभी ही सुन लोगे। नानीजी से तो शायद कम डाँट सुनोगे पर दोबारा मेरे काम में रोक-टोक की तो तुम्हारी खैर नहीं होगी।

हरिराम- पर भैया... कम से कम नानीजी के आने तक तो रुक जाते।

अर्नव गुस्से से हरीराम को देखता है।

हरिराम चुपचाप कमरे के बाहर चला जाता है। अर्नव भी अपना व ख़ुशी का बैग लेकर कमरे से बाहर निकल जाता है। पार्किंग लॉट से गाड़ी निकालते समय अर्नव की आंखों के सामने ख़ुशी का चेहरा आ जाता है।

अर्नव अपने दिल पर नियंत्रण करते हुए बड़बड़ाते हुए कहता- एक बार ये बैग उस लड़की तक पहुंचा दूँ फ़िर उससे मुझे कोई मतलब नहीं। उसके घरवालों से भी कह दूँगा कि अब उसको मेरे घर आने की कोई जरूरत नहीं है। तेज़ गाड़ी ड्राइव करते हुए अर्नव ख़ुशी के घर तक पहुंच जाता है। अर्नव ख़ुशी का बैग लेकर दरवाज़े तक पहुँचता है तो अंदर से गरिमा के डाँटने की आवाज़ सुनकर ठहर जाता है। माजरा क्या है यह जानने के लिए वह दरवाज़े के पास बनी खिड़की के पास जाता है और ओट में खड़ा होकर अंदर क्या चल रहा है यह देखता है।

गरिमा ख़ुशी को डाँटते हुए कहती है- चुप क्यों खड़ी हो खुशी? हम तुमसे कुछ पूछ रहे हैं।

ख़ुशी (आँखे मूंदकर सच कहते हुए)- अम्मा, हमने वो चेन बेच दी।

गरिमा- हे भगवान ! यह तुमने क्या किया। तुमने अपनी माँ की आखिरी निशानी बेच दी.. क्यों ?

ख़ुशी (अटकते हुए)- अम्मा, कल..हमने आपको और बाबूजी को बात करते सुना था कि सगाई की अँगूठी और चेन के रुपये नहीं है, तो...

गरिमा (गुस्से से)- तो चेन बेच दी। ख़ुशी वो सिर्फ़ तुम्हारी माँ ही नहीं थी, हमारी भी बहन थीं। तुम जाओ और अभी इसी वक्त चेन लेकर आओ। उस चेन से तुम्हें ज़रा भी लगाव नहीं है..?

ख़ुशी- अम्मा, हम तो जन्म लेते ही अनाथ हो गए थे। आपने औऱ बाबूजी ने हमें सहारा दिया। कभी महसूस ही नहीं हुआ कि हमारे मम्मी-पापा नहीं है। आज आपको तक़लीफ़ में जानकर भी हम उस सोने के टुकड़े का मोह कैसे रख सकते है ? हमने तो अपनी माँ को कभी देखा ही नहीं। उस चेन के होने न होने से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

गरिमा- खुशी हमने हमेशा तुमसे नफ़रत ही की। वो चेन ही हमें हमेशा कचोटती रहती थी, हमें याद दिलाती थी कि तुम हमारी ही बहन की बेटी हो। हमारे लिए उस चेन के होने न होने से बहुत फ़र्क पड़ता है। तुम हमें उस दुकान का पता बताओं। हम ले आते हैं चेन।

खुशी- अम्मा, हमें माफ़ कर दो। हमसें ग़लती हो गई। हम आपका दिल नहीं दुखाना चाहते थे बस बाबूजी की थोड़ी सी मदद करना चाहते थे। आप चिंता न करें हम अभी जाते हैं और चेन लेकर आते हैं।

ख़ुशी गरिमा के आँसू पोछते हुए कहती है, इन हीरे से भी कही अधिक कीमती आँसू को यूं जाया न करो। हम यूँ गए और यूँ आए।

ख़ुशी अपना बैग ढूंढती है, जो उसे कही नहीं मिलता है।

अर्नव ख़ुशी औऱ गरिमा की बातचीत सुनकर बहुत ज़्यादा दुःखी होता है।

उसे अपने कहे हर एक शब्द याद आते हैं, जो उसने सुबह खुशी से कहे थे- "बचपन से अपने माता-पिता के साथ रहीं हो न इसलिए भावनाओं का लेक्चर दे रहीं हो"

अर्नव को इतनी ग्लानि आज तक महसुस नहीं हुई। आज तो वह अपनी ही नजर में अपराधी बना हुआ कटघरे में खड़ा था। मन अर्नव को धिक्कार रहा था। आज पहली बार अर्नव का मन उसके दिमाग़ से जीत गया था। दिमाग़ आज कोई दलील न दे सका।

अर्नव ख़ुशी के घर से तुरन्त चला जाता है। कार में बैठते ही वह खुशी के बैग में उस स्लिप को टटोलता है जिसमें चेन बेचने के बारे में लिखा हुआ था।

अर्नव को वह स्लिप मिल जाती है। अर्नव उसमें दुकान का नाम देखता है।

ख़ुशी ने दुकान का नाम महाकाल लिखकर छोड़ दिया था।

अर्नव- ये लड़की कभी कोई काम पूरा नहीं करतीं। जितनी उसकी ज़बान चलती है, उतना अगर दिमाग़ चला ले तो बहुत तरक्की कर ले।

अर्नव तुरन्त गूगल पर सर्च करके शहर के सभी ज्वेलर्स के बारे में पता करता है जिनका नाम महाकाल था। अर्नव को ख़ुशी के घर के नजदीक सर्राफा बाज़ार में महाकाल ज्वेलर्स का नाम लिस्ट में सबसे ऊपर दिखता है। वह दुकान के दिये नम्बर को तुरंत डायल कर देता है। जैसे ही कॉल रिसीव होता है, अर्नव इतनी जल्दीबाजी में बोलता हैं जैसे चेन को कोई और न ले जाएं।

अर्नव- आज सुबह एक लड़की दस ग्राम सोने की चेन देकर इक्यावन हजार पाँच सौ रुपये ले गई थी न ?

दुकानदार- जी, क्यों क्या बात है ..?

अर्नव- वो लड़की दिमाग़ीरूप से कमजोर है। अभी आपके पास आएगी फ़िर से चेन लेने, पर आप उसे वह चेन मत दीजिएगा। मैं चेन लेने आ रहा हूँ। आप चेन निकालकर रखिए।

दुकानदार- जी, आप आ जाइए।

अर्नव तुरन्त कार को सर्राफा बाज़ार की ओर मोड़ लेता है।

अगले दृश्य में...

ख़ुशी को अपना बैग नहीं मिलता है। वह दिमाग़ पर ज़ोर देकर याद करती है कि उससे बैग कहाँ छूटा ?

तभी उसको याद आ जाता है कि बैग तो रायजादा हॉउस में ही छूट गया है। ख़ुशी को अर्नव का खयाल आ जाता है। वह सोचती हैं- फिर से उसी लंका में जाना होगा.. वो राक्षस हमें वहाँ देखकर फिर से अनगिनत ताने सुनाएंगे। अब तो उनकी बातें सुनकर हमारे कान पक गए हैं। हमारे पास दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है। रुपए बैग में नही होते तब तो हम कभी उस घर में पैर नहीं ऱखते। अब क्या करें, जाना तो पड़ेगा ही। खुशी मन को मजबूत करके घर से निकल जाती है।

खुशी उधेड़बुन में अपने घर से निकल जाती है। वह तय करती हैं कि पहले दुकानदार से चेन वापसी की बात कर लूं। कही ऐसा न हो कि वह चेन को ठिकाने लगा दे।

उधर, अर्नव की गाड़ी महाकाल ज्वेलर्स को ढूंढती हुई सर्राफा बाज़ार में आती है। अर्नव को दुकान मिल जाती है। वह गाड़ी को पार्क करके फुर्ती से दुकान की ओर बढ़ता है।

अर्नव दुकान के अंदर जाता है और बताता है कि कुछ देर पहले चेन के सम्बंध में कॉल पर बात हुई थी।

दुकानदार- अर्नव सर आप ? चेन आपके घर की है ?

अर्नव- जी।

दुकानदार- इसी बहाने आप इस गरीब की दुकान पर तो तशरीफ़ लाए।

अर्नव (मुस्कुराते हुए)- आप ज़रा जल्दी कीजिए मुझे ऑफिस पहुँचना है। और हाँ जब वो लड़की आए तो आप उसे कहिएगा की चेन आपने किसी और को बेच दी है।

दुकानदार- जी सर, आप फ़िक्र न करें मैं उनसे कुछ नहीं कहूँगा कि चेन आप ले गए कहते हुए दुकानदार ने ड्रॉवर से चेन निकालकर अर्नव के सामने रख देता है।

अर्नव - "जी शुक्रिया"।

अर्नव डिजिटल पेमेंट मॉड से रुपये का भुगतान करता है और चेन लेकर दुकान से बाहर हो जाता है।

अर्नव के जाने के थोड़ी देर बाद ही खुशी दुकान पर पहुँचती है। वह दुकान में प्रवेश करते ही कहती है- हमने जो चेन आपको दी थी वह हम थोड़ी देर में लेने आएंगे।

दुकानदार- बिटिया, वो चेन तो हमने बेच दी।

ख़ुशी- क्या ! हे भगवान ! अब हम अम्मा को क्या जवाब देंगे ?

ख़ुशी दुकान के बाहर आ जाती है। वह धीरे-धीरे चलते हुए अम्मा को समझाने की कहानी गढ़ती है पर उसकी कोई भी कहानी ऐसी मार्मिक नहीं लगती जिसे सुनकर गरिमा का दिल पसीज जाए और वह चेन बेचने की बात को स्वीकार कर ले।

ख़ुशी (विचार करते हुए)- अपना बैग तो ले आए वहाँ से। हम अम्मा को रुपए दे देंगे और किसी भी तरह से उन्हें मना लेंगे।