इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 14 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 14

(14)

हरिराम देवयानी और मनोरमा को भरोसा दिलाते हुए कहता है- आप चिन्ता न करें। अर्नव भैया की देखभाल मैं बहुत अच्छे से करूँगा। उनका खाना-नाश्ता, चाय पानी सब मैं ही तो देखता हूँ। अब थोड़ा और विशेष ध्यान रख लूँगा। अब तो मुझे उनके गुस्से की भी आदत हो गई है। आप बेफिक्र होकर जाइये। साधारण सा जुक़ाम है, कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है।

देवयानी और मनोरमा को हरिराम की बात पसन्द आती है। दोनों ही हरिराम की बात से सहमत हो जाती है और सुबह जाने की तैयारी में जुट जाती है।

अगले दृश्य में...

गुप्ता हॉउस में डायनिंग टेबल पर सभी एक साथ डिनर कर रहे होते हैं। टेबल पर आज की चर्चा का विषय पायल की सगाई ही छाया रहा।

ख़ुशी (शरारती लहज़े से)- जीजी अब तुम इस घर में कुछ दिन की ही मेहमान हो। अबसे हम तुमसे लड़ाई-झगड़ा नहीं करेंगे।

पायल शर्माते हुए अपनी नजरें नीची कर लेती है।

मधुमती (मज़ाकिया अंदाज़ में)- पायल बिटिया के बाद तुम्हारी ही बारी है। फिर हम सब गंगा नहाए।

गरिमा और शशिकांत मधुमती की बात पर हँस देते हैं। भोजन करने के बाद पायल गरिमा और मधुमती अपने कमरे में चली जाती है। शशिकांत टहलने चले जाते हैं और पायल व ख़ुशी टेबल से सारा सामान समेटकर किचन में रखती है। काम से फ्री होकर पायल और खुशी भी अपने कमरे में चली जाती है।

पायल- हम तो आज बहुत थक गए। अब सो रहे हैं। गुड नाईट ख़ुशी!

खिड़की के पास खड़ी सितारों को ताकती खुशी ने पायल की बात का जवाब देते हुए कहा- गुड नाईट जीजी !

शशिकांत टहलकर आ जाते हैं। वह गरिमा से पायल की सगाई के विषय में चर्चा करते हैं।

शशिकांत- गरिमा सारी तैयारियां हो गई ?

गरिमा- जी, बस चेन और अँगूठी लेना है।

शशिकांत- हुँह.. इस महीने ख़र्चा बहुत हो गया। हॉस्पिटल में भी जमा पूँजी लग गई।

गरीमा- आप चिंता न करें। अगर हुआ तो मैं अपने कँगन गिरवी रखकर चेन व अँगूठी ले लूँगी।

शशिकांत- नहीं गरिमा उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। कल ही रुपये का इंतजाम करता हूँ। आप चिंता न करें।

कमरे के बाहर दूध का ग्लास लिए खड़ी ख़ुशी शशिकांत और गरिमा की बात सुनकर दुःखी हो जाती है।

ख़ुशी दरवाजा खटखटाती है।

ख़ुशी- अम्मा, हम दूध लाए है।

गरिमा- आ जाओ ख़ुशी...

ख़ुशी अंदर आती है। दूध का गिलास गरिमा की ओर बढ़ाते हुए कहती है आपने दवाई ले ली ?

गरिमा (दूध का गिलास लेते हुए)- हाँ ख़ुशी, तुम्हें क्या हुआ ? मुँह उतरा हुआ क्यों है ? किसी ने कुछ कहा क्या ?

ख़ुशी- नहीं तो.. आज हम भीग गए थे न अम्मा तो शायद उसी वजह से. .खैर, हमारी छोड़ो आप अपनी सेहत का ध्यान रखो। हम चलते हैं।

ख़ुशी अपने कमरे में आ जाती है। रुपये की कमी उसे बहुत खलती है।

वह मन में नित नई योजना बनाती है जिससे वह रुपये जुटा सकें। योजना बनती है औऱ पलभर में बिगड़ती जाती है। करवट बदलते हुए ही ख़ुशी की रात कट जाती है।

सुबह के छः बजे रहे थे। पक्षियों का मधुर कलरव, ठंडी हवा के झोंके से उड़ते खिड़की के पर्दे, सूरज की पहली किरण उससे प्रकाशित होता आसमान सबकुछ बहुत सुहाना लग रहा था। जम्हाई लेकर ख़ुशी आलस को दूर करती है और बिस्तर छोड़ देती है। पायल अब भी गहरी नींद में सोई हुई थी।

खुशी नहाने चली जाती है। कुछ ही देर बाद ख़ुशी नहा-धोकर आती है। तब तक पायल नींद से जाग जाती है।

पायल (उनींदी सी)- ख़ुशी आज कही जाना है क्या ?

ख़ुशी- नहीं जीजी...

पायल- तो इतनी जल्दी तैयार क्यों हो गई ?

ख़ुशी- अब क्या हमारे जल्दी उठने पर भी पाबन्दी है?

पायल- किसकी इतनी मजाल जो तुम पर पाबंदी लगा दे सनकेश्वरी एक्सप्रेस। तुम कभी इतनी जल्दी उठती नहीं हो न.. इसीलिए अजीब लगा यह दृश्य देखकर।

ख़ुशी- ये सब छोड़ो आप भी नहा लो। आज चाय-नाश्ता हम बनाएंगे।

पायल (भौहें उचकाते हुए)- अच्छाजी, बढ़िया है।

ख़ुशी किचन में चली जाती हैं। वहाँ गरिमा पहले से ही मौजूद थीं। ख़ुशी को देखकर गरिमा चौंक जाती है।

गरिमा- ख़ुशी, आज ये सूरज पश्चिम दिशा से कैसे निकल रहा ?

ख़ुशी (शर्माते हुए)- अम्मा, आप भी जीजी की तरह हमारी खिंचाई करने लगीं।

अम्मा आज चाय-नाश्ता हम बनाएंगे। दुप्पटे को कमर में बांधते हुए ख़ुशी ने कहा।

गरिमा- ठीक है, औऱ हाँ मनोरमा के यहाँ जाओ तो कार्ड जरूर ले जाना।

आटा गूँथते हुए ख़ुशी ने कहा- जी अम्मा, हमें याद है। हमने कॉर्ड अपने बैग में रख लिया है।

गरिमा- ये ठीक किया, मैं भी फ़ोन पर बात कर लूंगी।

गरिमा किचन से चली जाती है। ख़ुशी गाना गुनगुनाते हुए नाश्ता तैयार करती है। मॉर्निंग वॉक से लौटे शशिकांत जब ख़ुशी को किचन में देखते है तो हँसकर पूछते हैं- तुम्हारी तबियत तो ठीक है न ? किचन में तुम तब ही दिखती हो जब तुम्हारा मन विचलित होता है।

ख़ुशी- लो जी, आप भी जीजी, अम्मा और बुआजी की तरह बात करने लगे।

सोफ़े पर बैठते हुए अख़बार खोलकर उसमे आँख गढ़ाए हुए शशिकांत कहते हैं- अब नजारा ही कुछ ऐसा देखने को मिला है तो भला हम भी रह नहीं पाए।

ख़ुशी (चाय का प्याला देते हुए)- बाबूजी, कुछ ही दिनों में जीजी अपने ससुराल चली जाएगी। हमें तो अब इन सब कामों की आदत डालना ही होंगी।

अच्छा बाबूजी अब हम चलते हैं। नाश्ता तैयार है।

ख़ुशी (तेज़ आवाज़ में)- अम्मा आज हम जल्दी जा रहें हैं। आप सब नाश्ता कर लीजियेगा।

ख़ुशी घर के बाहर चली जाती है। वह सराफा बाजार जाकर महाकाल ज्वेलर्स की दुकान पर रुकती है। कुछ देर दुकान के बाहर सोच-विचार करने के बाद वह दुकान के अंदर चली जाती है।

ख़ुशी- नमस्कार काका !

दुकानदार- नमस्ते बेटी ! क्या चाहिए ?

ख़ुशी अपने बैग से एक डिबिया निकालती है। डिबिया खोलकर उसमें से वह अपनी माँ की चेन निकालकर दुकानदार को दिखाती है और पूछती है इसकी क्या कीमत लगेगी ?

दुकानदार चेन को तराजू पर रखता है और कहता है- दस ग्राम वजन है। अभी सोने का भाव चौवन हजार प्रति दस ग्राम है। ये चेन पुरानी है फिर भी मैं इसके इक्यावन हज़ार दे सकता हूँ।

ख़ुशी- ठीक है काका, आप इक्यावन हजार पाँच सौ रुपये दे दीजिए। वो क्या है न हमें शुरू से ही मोलभाव करने की बुरी आदत है। सामान खरीदना हो या बेचना कीमत हम ही तय करते हैं। वरना डील केंसल।

दुकानदार (हँसते हुए)- ठीक है बेटी, सौदा पक्का हुआ।

दुकानदार चेन रख लेता है औऱ कड़क हरे नोट गिनकर ख़ुशी को देता है। नोट लेकर ख़ुशी इतनी ज़्यादा खुश हो जाती है जैसे उस पूरी सोने की दुकान का सौदा पक्का कर लिया हो। रुपये लेकर ख़ुशी रायजादा हॉउस की ओर चल पड़ती है।

आज ख़ुशी को रास्ते कुछ अलग ही लग रहे थे। तेज़ हॉर्न बजाती गाड़ीयां भी उसे इरिटेट न करते हुए संगीत की कोई सुरीली तान छेड़ता हुआ वाद्ययंत्र लग रही थीं।

ख़ुशी रायजादा हॉउस के दरवाज़े के बाहर खड़ी होकर खुद से ही प्रण लेते हुए कहती है- आज कुछ भी हो जाए हम उस नवाबजादे का सामना नहीं करेंगे। हमारा मन ठीक ही कहता है वह आग का दरिया है।

ख़ुशी डोरबेल बजाती है। थोड़ी ही देर में हरिराम दरवाजा खोलने आता है।

जैसे ही दरवाजा खुलता है, हरिराम के चेहरे पर चौड़ी सी मुस्कान देखकर ख़ुशी कहती है- हरि भैया आज आप कुछ ज़्यादा नहीं मुस्कुरा रहे ?

हरिराम- ख़ुशी जी, सही पहचाना आपने। आज आपको देखकर मुझे वैसी ही ख़ुशी हो रही जैसी भक्त को भगवान मिलने पर होती है।

ख़ुशी (आश्चर्य से)- आज हमने ऐसा क्या कर दिया ?

हरिराम- अब करेंगी..

ख़ुशी (सवालिया लहज़े में)- क्या... ?

हरिराम (अनुनय करते हुए)- हमारी मदद..

ख़ुशी- कैसी मदद..? खाना बनाना है?

हरिराम- अरे नहीं! वो तो हम बना लेंगे। आप बस अर्नव भैया को काढ़ा देकर आ जाओ। बहुत मेहरबानी होगी।

ख़ुशी (चिल्लाते हुए)- क्या..? ये हमसें नहीं होगा।

हरिराम- शशश.... धीरे ख़ुशी जी भैया जाग गए तो आफ़त आ जायेगी।

ख़ुशी- आफ़त तो तब आएगी जब हम उनके सामने जाएंगे।

हरिराम- कल से ही अर्नव भैया का स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ है। उनका मिजाज तो हमेशा ही बिगड़ा रहता है जिसकी मुझे आदत भी है, पर पता नहीं क्यों आज मुझे डर लग रहा है। ख़ुशीजी मैंने जोश में आकर भाभीजी और नानीजी को वचन दिया था कि हम अर्नव भैया की देखभाल करेंगे आप सब बेफिक्र होकर जाइए।

ख़ुशी हरिराम की बात को बीच मे ही काटकर कहती है- क्या..? घर पर कोई नहीं है..? हे शिवजी ! ये तो और भी महाभयंकर खबर सुनाई हरि भैया आपने। अब हम तो उल्टे पैर ही लौट रहे अपने घर। ख़ुशी जाने लगती है।

हरिराम ख़ुशी को रोकते हुए कहता है- आपको आपके शिवजी का वास्ता ख़ुशीजी।

हरिराम के शब्द सुनकर ख़ुशी के बढ़ते कदम रुक जाते है। वह हरिराम पर नाराजगी जताने के लिए मुड़कर देखती है तो हरिराम हाथ जोड़े हुए प्रार्थना की मुद्रा में मौन निवेदन कर रहा था।

ख़ुशी हरिराम से कहती है, शिवजी का नाम लेकर आपने सही नहीं किया। आपको पता भी है कि आपके साहब यानी अर्नवजी हमारी शक्ल देखकर ही भड़क जाते हैं। अब बीमारी में हमें देखेंगे तो उनकी तबियत उनके मिजाज जैसी बिगड़ जाएगी।

हरिराम- ख़ुशीजी आप ठहरी लड़की इसलिए वो डांटने में कुछ लिहाज़ कर ले। यदि हम उनके सामने गए तो हमारा तो कचूमर ही बना देंगे।

ख़ुशी- वो लड़का-लड़की कुछ नहीं देखते उनको तो दिखते हैं बस रुपये।

आपका तो कचूमर बनेगा। हम तो मर ही जायेंगे।

हरिराम (मनुहार करते हुए)- आज हमारी लाज रख लीजिये। अगर अर्नव भैया को कुछ हो गया तो हम तो नानीजी को मुँह भी नहीं दिखा पाएंगे। छोटे से बड़े इसी घर में हुए हैं। हमारा तो घर ही छूट जाएगा।

नज़ाकत को समझते हुए ख़ुशी मान जाती है। वह कहती है जल्दी से काढ़ा बनाकर लाइए। हम अपनी जान पर खेलकर आपकी मदद करेंगे।

हरिराम फुर्ती से किचन की ओर दौड़ पड़ता है। अर्नव के सामने जाने के बाद क्या कहना है.. ख़ुशी इस पर सोच विचार करती है। कोई भी सही युक्ति उसे सटीक नहीं लगती है जिसे वह अर्नव के गुस्सा होने पर कह सके।

हरिराम ट्रे में गर्म काढ़े की गिलास रखें हुए ख़ुशी के सामने ख़ुश होकर आता है। हरिराम की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था क्योंकि उसने अपना काम खुशी को सौंपकर खुशी को ठिकाने लगा दिया था।

ख़ुशी भी काढ़ा लेकर अर्नव के कमरे की ओर बढ़ती है। हर एक बढ़ता कदम ख़ुशी के अंदर डर को बढ़ाता जाता है। कमरे के बाहर ख़ुशी एक पल के लिए ठिठक जाती है। उसे लगता है वो कोई भोला-भाला वन्यजीव है जिसे भूखे शेर के सामने चारा बनाकर भेज दिया गया।

जो होगा देखा जाएगा यह सोचकर ख़ुशी हौले से दरवाजा खोलती हैं।

अर्नव सो रहा था। ख़ुशी दबे पैरो से अर्नव के नजदीक जाती है।

ख़ुशी अर्नव को सोते हुए देखकर सोचती हैं- कौन कह सकता है कि यह वही इंसान हैं जिसका गहना क्रोध और अहंकार है।

अर्नव के खाँसने से ख़ुशी डरकर सहम जाती है। अर्नव को लगातार खाँसी चलने लगती है, जिससे उसकी नींद खुल जाती है। वह हाथ से अपने पलंग के पास रखी मेज़ से पानी के गिलास को ढूंढता है। ख़ुशी फुर्ती से काढ़ा रखती है और जग से पानी गिलास में भरकर अर्नव के हाथ के पास ले जाती है। नींद में होने के कारण अर्नव उठ नहीं पाता है तो ख़ुशी अर्नव को सहारा देकर उठाती है। खुशी अपने हाथ से ही अर्नव को पानी पिलाती है।

बुख़ार की कमजोरी औऱ नींद के बावजूद अर्नव ख़ुशी को देखकर ऐसे उठकर बैठ जाता है, जैसे ख़ुशी ने पानी नहीं ताक़त की कोई घुट्टी पिला दी हो।

अर्नव (धीमे स्वर में)- तुम यहाँ क्या कर रहीं हो ?

ख़ुशी, अर्नव की बात को अनसुना कर देती है। वह मेज़ से काढ़ा उठाकर अर्नव की ओर बढ़ा देती है।

अर्नव काढ़े को देखता है फिर ख़ुशी को देखकर कहता है- लगता है अब तुम्हारे कान सिर्फ़ सिक्कों की खनक या नोटों की आवाज़ ही सुनते है।

ख़ुशी अर्नव की बात का कोई जवाब नहीं देतीं है, औऱ अपने मुँह को दुप्पटे से ढक लेती है।

अर्नव- व्हाट.. हाऊ डेअर यू ?

ख़ुशी- डेअर नहीं केअर यू.. आपकी देखभाल के लिए आए हैं।

अर्नव- तुम्हारी केअर से अच्छा तो मर जाना है।

ख़ुशी (काढ़े का ग्लास देते हुए)- तो लीजिए मर जाइये। ये काढ़ा भी ज़हर से कम नहीं है।

अर्नव- तुम्हारे हाथ में आकर तो अमृत भी जहर बन जाएं। मुझे नहीं चाहिए। चली जाओ यहाँ से।

ख़ुशी- चले जाएंगे, पहले आप काढ़ा पी लीजिए। हमें भी शौक़ नहीं है आपकी बातें सुनने का।

अर्नव (ख़ुशी से काढ़ा लेते हुए)- तो मैंने भी तुम्हें निमंत्रण नहीं दिया।

ख़ुशी- आप लोगों को निमंत्रण नहीं प्रताड़ना देना ही जानते है। खैर, आपको कुछ भी जरूरत हो तो हमें कॉल कर दीजिएगा। अपने बैग से मोबाइल निकालते हुए ख़ुशी कहती है, आप अपना नम्बर बता दीजिए हम उस पर रिंग कर देते हैं। जब भी आपको कुछ चाहिए होगा आप कॉल कर लीजिएगा।

अर्नव- नाइन, ऐट, टू, फाइव

ख़ुशी अपने मोबाइल के की-पेड पर नम्बर डायल करती है। वह आगे के नम्बर का इंतजार करती है।

अर्नव आँख बंद करके लेट जाता है।

ख़ुशी (नम्बर गिनते हुए)- ये तो सिर्फ़ चार अंक ही है बाकी के नम्बर...?

अर्नव (आँख के इशारे से अलमारी दिखाते हुए)- ये मेरे लॉकर के नम्बर है। जितने रुपये चाहिए लो औऱ यहाँ से जाओ। यह केअर का नाटक कही औऱ जाकर दिखाओ। शायद कोई लड़का तुम्हारे झांसे में आ जाएं और तुम्हारी मेहनत रंग लाए।

ख़ुशी- इस बार हमें बुरा नहीं लगा क्योंकि अब हम समझ गए हैं कि आप सिर्फ़ पैसों से अमीर है। पैसो के पीछे भागने वाले लोग कभी किसी की भावनाओं को समझ ही नहीं पाते।

अर्नव (तंज कसते हुए)- बचपन से अपने मम्मी-पापा के साथ रहीं हो न इसलिए भावनाओं का लेक्चर दे रहीं हो। मेरी तरह अपने माता-पिता को खोती तब समझती की बिना मम्मी पापा के ज़िंदगी कैसे जी जाती है।

ख़ुशी का शरीर अर्नव की बात सुनकर सुन्न हो जाता है मानो अर्नव के शब्द न हो एनेस्थीसिया हों। ख़ुशी की संवेदना सुप्त हो गई। आँसू का एक कतरा उसकी आँख से ढुलक गया।

ख़ुशी कुछ नहीं बोली और हड़बड़ी में काढ़े का गिलास उठाकर कमरे से बाहर निकल जाती है। कुछ देर कमरे के बाहर दीवार से सटकर आँख बन्द करके ख़ुशी चुपचाप खड़ी रहती है।

अर्नव (बुदबुदाते हुए)- कहना बहुत आसान होता है, सहना उतना ही मुश्किल। अब पता चला होगा ख़ुशी को भी कि हर इंसान उसके जैसा ख़ुश नहीं होता। उसके पास पूरा परिवार है। वह कभी नहीं समझ पाएगी की बिना मम्मी -पापा के इंसान कितना खोखला हो जाता हैं। खालीपन को महसूस न करूं इसीलिए खुद को इतना व्यस्त कर लिया है। मैं पैसों के पीछे नहीं भागता, बल्कि अतीत की कड़वी यादों से भाग रहा हूँ।