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ये ठीक रहेगा- गरिमा ने ख़ुशी से कार्ड लेते हुए कहा। और फोन की तरफ़ तेज़ कदमों से जाती है। ख़ुशी भी गरिमा के पीछे जाती है। गरिमा रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करती है।
ख़ुशी मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करतीं है- हे भोलेनाथ ! रक्षा करना। ऑन्टी मान जाए और चेन देने पर राजी हो जाए। यह मामला शांतिपूर्ण तरीके से निपट जाएं।
एक बार में कॉल रिसीव नहीं होता है। गरिमा दोबारा नम्बर रीडायल करती है। इस बार एक ही रिंग के बाद कॉल रिसीव हो जाता है और उधर से आवाज़ आती है- हेलो मनोरमा स्पीकिंग...
गरिमा को आवाज़ कुछ जानी पहचानी लगती है। वह अपना परिचय दिए बिना सीधे मुख्य बात पर आते हुए कहती है- हम उस लड़की की अम्मा बात कर रहे हैं जिसकी सोने की चेन आपने हथिया ली और फिर अपनी मनमानी करते हुए उसके सामने नौकरी की शर्त रखी है।
ई का अनापशनाप बकत रही हो हमरे बारे में- मनोरमा ने कहा।
सच ही कहा है- गरिमा ने ग़ुस्से से कहा।
ख़ुशी गरिमा की बाँह पकड़कर इशारे से गुस्सा न करने के लिए आग्रह करती है।
सच का सामना खेलन की खातिर हमका फ़ोन लगाई हो क्या ? तो कान खोल के सुन लो हम तुम्हरी बिटिया की चेन न देब- मनोरमा ने रौबदार लहज़े में कहा।
ठीक है तो अब पुलिस स्टेशन में मिलते है- कहकर गरिमा ने ग़ुस्से में रिसीवर को रखा और ख़ुशी से कहा- "चल ख़ुशी पुलिस थाने चलकर इस महिला की शिकायत करते हैं। यह ऐसे नहीं मानेगी"।
अम्मा रहने दीजिए। आप अपना खून क्यों जला रहे हो? हम जीजी के साथ चले जायेंगे। अभी आपको आराम करना चाहिए- फिक्र करते हुए ख़ुशी ने कहा।
"चेन यदि हमारी बड़ी बहन की न होती तो हम जाने देते ख़ुशी"- भावुक होकर गरिमा ने कहा।
ख़ुशी के लाख मना करने पर भी जब गरिमा अपनी ज़िद पर अड़ी रही तब ख़ुशी उस महिला के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने के लिए थाने जाने के लिए तैयार हो जाती है।
आप यहीं रुकिये अम्मा। हम स्कूटी लेकर आते हैं- कहकर ख़ुशी घर के बाहर चली गईं। ख़ुशी गलियारे से अपनी स्कूटी निकालती है और उस पर छाई धूल को कपड़े से झाड़ती है।
गरिमा भी बाहर आ जाती है। वह ख़ुशी से कहती है- " हम सोच रहे हैं कि पुलिस थाने जाने की बजाए उस नकचढ़ी के घर ही चले। कार्ड पर उसका एड्रेस भी लिखा हुआ है।
हाँ अम्मा ये ज़्यादा बेहतर है- स्कूटी स्टार्ट करते हुए खुशी ने गरिमा की बात से सहमति जताते हुए कहा।
चलो ठीक है। गाड़ी महानंदानगर ले लो- गाड़ी की पिछली सीट पर बैठते हुए गरिमा ने कहा।
ख़ुशी गाड़ी चलाती है पर उसका मन कई आशंकाओं से घिरा हुआ रहता है। ऊहापोह में वह कई बार टकराते-टकराते बच जाती है।
गरिमा कहती है- ध्यान से ख़ुशी। यह लखनऊ नहीं है।
हाँ अम्मा, हमें अब इस शहर की हर गली, हर सड़क के बारे में पता है।
शशिकांत को उज्जैन आए हुए चार-पाँच साल ही हुए हैं। पर अब ये शहर गुप्ता परिवार के हर सदस्य का अपना शहर हो गया है। सब यहाँ बसने के बाद ऐसे घुलमिल गए मानो जन्म से ही यहाँ के निवासी हो।
पन्द्रह-बीस मिनट में ख़ुशी की गाड़ी महानंदानगर में प्रवेश करती है। यह शहर का सबसे रिहायशी इलाका है मानो यहाँ घर नहीँ महल ही बने हो। बंगलों को देखकर ख़ुशी के मन मे डर घर बनाने लगता है। वह सोचती हैं यहाँ रहने वाली उन आंटी को हमसे क्या जॉब करवानी होंगी? कही झाड़ू-पोछा या बर्तन साफ तो नहीं करवाने हमसे.... ख़ुशी कल्पना में खुद को एक बड़े से घर में झाड़ू-पोछा लगाते हुए देखती है। तभी वहां उस घर की मालकिन मनोरमा ख़ुशी की सोने की चेन को उँगली पर घुमाते हुए आती है और कहती है- सारा काम हमका परफेकट चाही। कौनहु मिसटेक होई का पड़ी तो तुम्हरी चेन तुम्हरे भाग्य में से जाई का पड़ी।
विज़िटिंग कार्ड को देखकर गरिमा खुशी से कहती है- ए.वन.एक सौ त्रियालिस है उस महिला का पता।
ख़ुशी अपनी कल्पना से बाहर आती है। वह बुदबुदाते हुए कहती है- वाह, मकान नम्बर वन फोर थ्री और रहने वाले इतने खड़ूस। ऊपर से ए वन भी। मन से तो वो लोग ज़ेड (Z) ही होंगे। वो भी ज़ीरो, ज़ेड ज़ीरो। हम तो उन्हें थर्ड क्लास श्रेणी ही देंगे।
ख़ुशी पता तलाशते हुए उस ईलाके के सबसे सुंदर बंगले के सामने अपनी स्कूटी रोकती है। वह आँखें फाड़कर उस बंगले को देखती है। बंगला देखकर गरिमा भी चौंक जाती है।
ख़ुशी गरिमा के चेहरे को देखती है। गरिमा बंगले को देख रही होती है। ख़ुशी कहती है- अम्मा घर चले क्या ?
आत्मविश्वास से भरकर गरिमा ख़ुशी से कहती है- नहीं ख़ुशी, वो महिला कोई मंत्री भी हुई तब भी हम डरने वाले नहीं है। इन गाड़ी बंगलों को देखकर भी हम पीछे नहीं हटेंगे। आज तो हम चेन लेकर ही यहाँ से जाएंगे। सीधी तरह से उन्हें हमारी बात समझ में नहीं आई तो हमे टेढ़ी उंगली से भी घी निकालना आता है।
ख़ुशी बुदबुदाते हुए कहती है- हमें तो अब चेन मिलना ही टेढ़ी खीर लग रहा है।
स्कूटी साइड में लगा कर ख़ुशी गरिमा से कहती है- अम्मा हमें तो यहाँ से अजीब सी तरंग मिल रहीं। कुछ तो है यहाँ जिससे हमें दूर रहना है फिर भी हम इसकी ओर बढ़ रहे है।
गरिमा कहती है- तुम्हें डर है कि वो लोग हमें धक्के देकर बाहर न निकाल दे। बस इसीलिए ऐसे विचार तुम्हारे मन में आ रहे हैं। तुम डरो नहीं। हम है न.. अब बस चुपचाप हमारे साथ चलो। हम तुम्हें नहीं लाते पर वह महिला तुम्हें ही जानती है, हमें नहीं।
बंगले के बड़े से दरवाज़े के बाहर गरिमा औऱ ख़ुशी खड़े होते हैं। तभी चौकीदार उनसे कहता है- किससे मिलना है ?
ख़ुशी कहती है- इस घर में जो आंटी रहती है न उनसे हमें काम है। वह हमें संजीवनी हास्पिटल में मिली थीं।
आप इंतज़ार करिए- कहकर चौकीदार घर के नम्बर पर फ़ोन लगाता है। फ़ोन रिसीव होने पर चौकीदार ख़ुशी द्वारा बताई सारी बात बताता है, जिसे सुनकर फोन के उस तरफ़ से ख़ुशी औऱ गरिमा को घर के अंदर भेज देने की बात कही जाती है। ठीक है मैम साहब कहकर चौकीदार फोन रख देता है और खुशी और गरिमा को अंदर जाने के लिए कहता है।
गरिमा औऱ ख़ुशी बंगले के अंदर जाते है। उनको देखकर हॉल में पहले से मौजूद सेवक हरिराम उनसे कहता है- आप लोग यहाँ बैठिए भाभीजी थोडी ही देर में आ रहें हैं।
गरिमा औऱ ख़ुशी सोफ़े पर बैठ जाती है और हॉल की भव्यता देखती है।
जैसे ही मनोरमा हॉल में आती है। गरिमा मनोरमा को देखकर खड़ी हो जाती है औऱ चौँककर कहती है - तुम...???
मनोरमा आश्चर्य से गरिमा का देखती है।
मनोरम आश्चर्य से गरिमा को देखती है और कहती है - बिरेकिंग न्यूज़.. सनसनीखेज आमना औऱ सामना...
ख़ुशी, गरिमा औऱ मनोरमा को सरसरी निगाह से देखती है और समझने की कोशिश करती है कि आख़िर माजरा क्या है ? तभी गरिमा मनोरमा से कहती है- वर्षो से मुझे जिसकी तलाश थी वह यहाँ छुपी हुई है।
मनोरमा- छुपी रुस्तम तो तुम शुरू से ही थीं, अब मिस इंडिया भी बन गई हो.. गायब ही हो गई। बिल्कुल मिस्टर इंडिया के जईसन।
गरिमा- पहले भी तुम हमारा चैन लूट चूंकि हो औऱ अब हमारी बेटी को भी नहीं बख्शा और उसकी भी चेन लूट ली... कहते हुए गरिमा मनोरमा की ओर बढ़ती है। मनोरमा भी गुस्से से आगे बढ़ती है।
ख़ुशी यह दृश्य देखकर आँख बंद करके बुदबुदाती है- हे शिवजी! अब ये क्या नई कहानी शुरू हो गई ? आप ही शांति बनाए रखना और हमारी समस्या का समाधान करना।
ख़ुशी आँख बंद करके प्रार्थना कर रहीं होती है कि उसे तेज़ खिलखिलाकर हँसने की आवाज़ आती है। वह झट से आँखे खोलती है तो देखती है कि, गरिमा औऱ मनोरमा हँसकर एक दूसरे से गले मिलकर खेरख़बर पूछती है।
तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदली गरिमा। वइसेन की वइसेन ही हो- मनोरमा ने कहा।
तुम भी नहीं बदली मनु- गरिमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
अरे! कहाँ ? हम तो भैंसवा के जईसन दिन भर चरत रहें और मोटाये जात रहे..
दोनों सहेलियों के संवाद सुनकर ख़ुशी दूर खड़ी मुस्कुराती है। गरिमा उसे अपने क़रीब आने का इशारा करते हुए मनोरमा से कहती है- यह खुशी है। हमारी बेटी।
ख़ुशी आदर से हाथ जोड़कर नमस्कार करती है।
मनोरमा उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहती है- बड़ी प्यारी और सुंदर बच्ची है। खुशी से हम हॉस्पिटल में ही मिल लिए थे। तब हमें कहाँ पता था कि ई हमरी बेस्ट फ़्रेंडवा की बिटिया है ?
चलो जो होता है भले के लिए ही होता है। न हम बीमार होते, न हॉस्पिटल जाते, न तुमसे मिलते - गरिमा ने कहा
सही कहा, वैसे तुम अचानक लखनऊ छोड़कर कहाँ चली गई थी ?
रातों रात ही अईसन अदृश्य हुई गवा जईसन तौका धरती निगलगवा हो- मनोरमा ने नाराज़ होते हुए कहा।
गरिमा कुछ पल चुप रहने के बाद कहती है- तुम्हें तो पता ही है कि उस समय हम राजपाल के प्रेम में कितने अंधे हो गए थे कि, अपने घरवालो से ही बगावत कर बैठे थे। परिणाम यह निकला कि हमारी माँ ने हमें मामा के घर उज्जैन भेज दिया। यहीं पर महिमा जीजी की सहेली मधुमती जी का मायका था। एक दिन उनकी हम पर नज़र पड़ी औऱ फिर उन्होंने अपने भाई के लिए हमारा हाथ मामाजी से मांग लिया। फिर चट मंगनी पट ब्याह हो गया। शुरू में कामधंधे के कारण ये शहर बदलतें रहे और हम भी घरवालों से नाराज़ थे इसलिए इनके साथ ही किसी मुसाफिर से चलते रहे।
मनोरमा गम्भीरता से गरिमा की बात सुन रही थी। वह गरिमा के अतीत को सुनकर भावुक हो गई।
मनोरमा ने सवालिया निगाहों से गरिमा को देखकर कहा- राजपाल से तो महिमा की शादी हुई रही न ? फिर तुम्हरे साथ उका शादी से तुम्हरे घरवालन को का दिक्कत थीं ? ई बात हमरी समझ मा नाही आई।
गरिमा ने अपने पास बैठी हुई ख़ुशी को देखा औऱ बात को बदलते हुए कहा- ये सब छोड़ो, तुम अपनी सुनाओ। यहाँ कैसे आना हुआ ?
मनोरमा ने कहा- का बताए ? शादी के इतने बरस बाद भी हमरी सासूमाँ हमसे नाराज़ है। आज भी हमसे ठीक तरह से बात नाहीं करत। हमरी बोलचाल, शक़्ल हमरी हर बात से उनका नफ़रत है। ईलिये ही हम तुम्हरि बिटियां की चेन लेब औऱ उह शरत रखबे। ताकि बिटिया हमरी सासूमाँ के साथ तब तक रह लेब जब तक हमरा बिटवा न आई जाए।
गरिमा ने पूछा- तुम्हारी सासूमाँ औऱ बेटा कहाँ है ?
मनोरमा ने उदास होकर कहा- सासूमाँ उहि हास्पिटल मा भर्ती है जहाँ हमने तौर बिटिया की चेन लीन्ही। हमरा एक बिटवा पढाई ख़ातिर विदेश मा है और दूसरा बिजनेस मीटिंग करन वास्ते दिल्ली में है।
गरिमा ने कहा- ओह ! सासूमाँ कैसी है अब ?
मनोरमा ने बेबसी से कहा- हम ख़ुद उनकी ख़ैरखबर नहीं ले पाते। हमरे जाते ही सासूमाँ का ब्लडप्रेशर झूले के जईसन ऊपर-नीचे होने लगता है।
गरिमा मनोरमा की बात सुनकर दुःखी होती है। वह पूछती है- ऐसी क्या बात है जिसके कारण तुम्हारी सासूमाँ तुम्हें पसन्द नहीं करतीं।
का बताए गरिमा ? लम्बी कहानी है। फिर कभी सुनाएंगे- मनोरमा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
गरिमा पूछती है- तुम हमारी बिटियां से कौन सी जॉब करवाना चाहती थीं ?
मनोरमा निवेदन करते हुए गरिमा से कहती है- तुम हमरी बेस्ट फ्रेंडवा। तुम्हरि बिटिया हमरी अपनी बिटियां।
कुछ दिन ईका हमरे घर भेज दियो। ई का माध्यम से हम सासूमाँ की सेवा कर देंगे। हमें तो वो अपने सामने भी नहीं आने देती।
गरिमा असमंजस में पड़ गई। थोड़ी देर सोच विचार कर वह कहती है- हमें तो कोई समस्या नहीं। जैसा ख़ुशी चाहे वही करें।
गरिमा की बात सुनकर मनोरमा ख़ुशी की ओर देखती है और कहती है- बिटिया हाँ कह दो। चेन तो हम अभी दिए देते है। तुम जॉब करो या न करो चेन ले जाओ। पर यदि जॉब करती तो हम पर बहुत बड़ा अहसान होता तुम्हारा।
ख़ुशी के चेहरे पर तनाव, संवेदना के भाव एक साथ चेहरे पर उतर आए। वह ऊहापोह में थी कि हाँ कहे या ना, या चुप रहे कुछ न कहें...
खुशी गरिमा की औऱ देखती है मानो उसकी आँखें पूछ रहीं हो कि अम्मा क्या करें ?
गरिमा ने भी ख़ुशी को आँखों ही आँखों में आश्वस्त करते हुए मानो कहा कि वही करो जो मन करें।
ख़ुशी कुछ पल चुप रहती है। सोचविचार करने के बाद वह कहती है - हम यहाँ आने के लिए तैयार है। पर हमारी भी एक शर्त है।
शर्त की बात सुनकर गरिमा और मनोरमा एक दूसरे को देखती है। उनके चेहरे के भाव ऐसे थे मानो असंख्य प्रश्नवाचक चिन्ह उनके चेहरे पर उभर आए हो। दोनों ख़ुशी को देखती हैं।
गरिमा कहती है- कैसी शर्त ?
ख़ुशी कहती है- हम यहाँ जॉब के लिए नहीं आएंगे, बल्कि आपकी मदद के लिए आएंगे। आप हमारी अम्मा की दोस्त हैं इसलिए हम आपसे यहाँ आने के रुपये नहीं लेंगे।
मनोरमा ने राहत की सांस लेते हुए कहा- हम तो डर ही गये थे। तुम्हरि शरत की बात सुनकर हमरा तो जी ही घबरा गया था। हमका शरत से कोनहुँ दिक्कत नाहि।
मनोरमा, अब हम चलते हैं- गरिमा ने सोफ़े से उठते हुए कहा।
अरे ! अईसन कईसन जाइ देब- मनोरमा ने कहा। तनिक और देर ठहरे, हम बातों में इत्ता बिजियाय गए कि तुम्हरि खातिरदारी करना तो भूल ही गए- कहकर मनोरमा हरिराम को पुकारने लगती है।
हरिराम ! ओ हरिराम.... चाय-नाश्ता लाई दियो जल्दी से- कहकर मनोरमा ने गरिमा की बाँह पकड़कर उसे सोफ़े पर बैठा दिया।
अब तो आना-जाना लगा ही रहेगा- गरिमा ने कहा।
वो तो है, पर आज बिना कुछ खाए यहाँ से जाने न देब- मनोरमा ने कहा।
गरिमा और ख़ुशी चाय-नाश्ता करने के बाद मनोरमा से विदा लेती है। मनोरमा ख़ुशी को अगले ही दिन से आने का कहती है। ख़ुशी हाँ में सिर हिलाती है और दरवाज़े की ओर जाने लगती है। तभी मनोरमा कहती है- तनिक ठहरो..
वह तेज़ कदमों से ख़ुशी की और बढ़ती है और ख़ुशी के नजदीक जाकर उसके हाथ में चेन थमाते हुए कहती है- ई लियो तुम्हरि चेन..
चेन पाकर ख़ुशी के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। चेन पाकर उसके बेचैन मन को चैन मिल जाता है। चेन को ख़ुशी इस तरह से देखती है मानो उसे ब्रिटिश सरकार ने कोहिनूर सौंप दिया हो।
अगले दृश्य में ....
अपने दिल्ली ऑफिस के केबिन में पेपरवेट को घुमाते हुए अर्नव विचारों के रथ में सवार था। वह अपनी नानी की फ़िक्र में खोया हुआ था कि ऑफिस बॉय ने केबिन का दरवाजा खटखटाया।
विचारों की तन्द्रा से जागकर अर्नव ने कहा- कम इन..
ऑफिस बॉय केबिन के अंदर आता है और डेस्क पर कॉफी का कप रखते हुए कहता है- सर आपके घर से कॉल आया था। आप मीटिंग में थे आपका कॉल लग नहीं रहा था।
ठीक है- सधे हुए शब्दों में अर्नव ने कहा और अपने मोबाइल से नंबर डायल किए। पहली ही रिंग में कॉल रिसीव हो गया।