इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 11 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 11

(11)

ट्रे में बच गए एक ओर प्याले को देखकर ख़ुशी कहती है- आप तो दो लोग ही है, फिर ये एक्स्ट्रा चाय किनके लिए बनवाई मनोरमा आँटी ने?

चाय का सिप लेते हुए देवयानी ने कहा- ये भोंदू के लिए होगी। वो कल रात को ही आ गए थे। आपको यदि कोई ऐतराज न हो तो हमारे कमरे से बाएं तरफ़ जाने पर उनका कमरा है।

ठीक है नानीजी- अचकचाकर ख़ुशी ने कहा और वह नानी के बताए अनुसार कमरे को ढूंढती हुई डरते सहमते कदमों को बढ़ाते हुए आगे बढ़ती जाती है। उसे कुछ ही दूरी पर वह कमरा दिख जाता है।

ख़ुशी दरवाजा खटखटाती है। जब दरवाजा नहीं खुलता है तो ख़ुशी एक हाथ से दरवाज़े को धकेलती हैं। दरवाजा ज़रा से दबाव देने पर ही अंदर की ओर खुल जाता है। दरवाजा खुला हुआ जानकर ख़ुशी अंदर की और जाती है। कमरे की भव्यता देखकर खुशी हैरान हो जाती है। वह बुदबुदाते हुए कहती है- इतना सुंदर कमरा.. ऐसा तो हमने सिर्फ़ फिल्मों में ही देखा है। यह तो किसी राजकुमार के कमरे जैसा लग रहा। वह हौले से पुकारते हुए कहती है कोई है ? हम चाय लेकर आए हैं। जब कोई जवाब नहीं मिलता है तब ख़ुशी आगे बढ़ते हुए शाही से पलंग की ओर आ जाती है। वह नजरें इधर-उधर घुमाकर देख होती है तभी रूम के वॉशरूम की चिटकनी खुलने की आवाज़ के साथ एक रौबदार जानी पहचानी आवाज़ आती है।

ख़ुशी जब मुड़कर देखती है तो चौंक जाती है। सामने खड़े शख्स को देखकर उसके हाथ से ट्रे छूट जाती है।

अर्नव भी ख़ुशी को देखकर चौंकते हुए कहता है- तुम...?

अर्नव ख़ुशी को अपने रूम में देखकर कहता है - "तुम"

अर्नव को नानीजी के घर मे देखकर ख़ुशी चौंक जाती है। उसे समझ आ जाता है कि नानीजी का भौंदू शिव मंदिर वाला लड़का ही है। उसके मुँह से निकल जाता है।

भोंदु.....??

ख़ुशी बुदबुदाते हुए- यही नानीजी के भोंदु है...हे शिवजी! ये हमें कहाँ ले आये आप फिर से?

अर्नव ख़ुशी के मुँह से अपना निकनेम सुनकर गुस्सा हो जाता है। हर बार की तरह ही वह खुशी को नीचा दिखाता है और अपने कड़वे शब्दों से ख़ुशी के मन को आहत करता है।

अर्नव- ओह, अब तुम मेरा पीछा करते हुए मेरे घर तक आ गई। घर में भी कहाँ आई...मेरे रूम में। लगता है इस काम में बहुत माहिर हो। इससे पहले भी कई अमीर लड़कों को अपने जाल में फंसा चुकी होंगी। कान खोलकर सुन लो यहाँ तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है।

अर्नव की बात सुनकर ख़ुशी की आंखों में आँसू आ जाते हैं। वह अपनी बात ऱखने वाली ही होती है कि तभी वहाँ मनोरमा आ जाती है। चाय को कालीन पर गिरा हुआ देखकर मनोरमा दंग रह जाती है..

मनोरमा- ई का ..? हम तौका चाय अर्नव बिटवा की ख़ातिर बनाएं को कहे रहें। तुमने तो कालीनवा को चाय पिलाई दी। मनोरमा खिलखिलाकर हँसने लगती है।

अर्नव आँखों को छोटा करके सवालिया निगाह से मनोरमा को देखता है।

अर्नव- मामी, आप इस लड़की को जानते हो ?

मनोरमा- हाँ, ई हमरी बेस्ट फ़्रेंडवा की बिटिया है। हम ही ईका इहाँ बुलाए रहें। एक बात और ..ई जो सुबह तुम जादू देखत रहे न, ऊह का पीछे भी इन्हीं का हाथ रहा। नानीजी का ह्रदय परिवर्तन कोनहुँ कलिंग युद्ध देखन बाद नाही हुआ। ख़ुशी बिटियां ने ऊ करिश्मा कर दिखाया जिसके बारे में हम कभी ड्रीमवा मा भी नाही सोचत रहें।

मनोरमा की बातें सुनकर अर्नव शर्मिंदगी से अपनी नजरें नीचे कर लेता है।

मनोरमा- अरे ! ख़ुशी इन आँखों में आँसू..काहे..? अर्नव बिटवा चाय गिरन पर डांट दिए का ? तुम चिंता नाही करो। ई कालीनवा हम हरिराम से कहकर धुलवा देब।

मनोरमा ख़ुशी को अपने साथ लेकर कमरे से बाहर चली जाती है। ख़ुशी मुड़कर अर्नव को देखती है। अर्नव भी अपराधी की तरह शर्मिंदा निगाहों से ख़ुशी को जाते हुए देखता है।

कमरे से बाहर निकलकर कुछ दूरी पर चलने के बाद मनोरमा खुशी को समझाती है।

मनोरमा- देखो बिटिया, बात दरअसल ई है कि अर्नव बिटवा और लड़कियों का छत्तीस का आँकड़ा चलत है। तुम उनसे तनिक दूर ही रहना।

ख़ुशी- जी आँटीजी..

ख़ुशी बुदबुदाते हुए- उस नवाबजादे से हम तनिक नहीं बहुत ज़्यादा दूर रहेंगे। बात को जाने बिना बहुत कुछ बोलने की बुरी आदत है उनमें।

मनोरमा- ई का बड़बड़ाए रही हो..?

ख़ुशी- आँटी हम कह थे कि अब यहाँ हमारा क्या काम है ?

मनोरमा- सोचना भी नाहीं..अबहु तौका काम ख़त्म नाही हुआ बिटिया।

तुम्हरे रहन से हमें ताकत मिलत है।

ख़ुशी- जी, ठीक है आंटीजी।

ख़ुशी सोचते हुए- आपको तो ताकत मिल जाएंगी, लेकिन हमारी सारी ताकत वो लंकापति खत्म कर देंगे।

मनोरमा- अच्छा, बिटिया तुम चलो। हम रसोईघर में जात है। लागत है आज हरिराम छुट्टी पर है। आज भोजन हमका ही बनाई का पड़ी।

ख़ुशी- आँटी, हम किचन में जाते है। आप नानीजी के पास जाइये। उनकी दवाई का समय भी हो गया है। आप जितना अधिक समय उनके साथ बिताएंगी, आप दोनों के बीच की दूरियां भी उतनी ही तेज़ी से घटेगी।

मनोरमा- बात तो सौ फीसदी सही कह रही हो बिटियां।

ख़ुशी- बस फिर, हमारे हाथ की चाय का स्वाद तो आप ले ही चूंकि हैं अब भोजन का स्वाद भी लेकर बताइयेगा की कैसा बना ?

मनोरमा- पर.. बिटिया ई काम वास्ते हम तोहे इँहा नाही बुलावत। हमका अच्छा नहीं लागत जब घर का कोई काम करत हो।

ख़ुशी- ओहो ! आँटी एक पल में ही अपने से पराया कर देतीं है आप। ख़ुशी नाराज़ होकर कहती है।

मनोरमा- अच्छा बिटिया, जौन तुम्हरा मन करे तौन करो।

मनोरमा वहाँ से चली जाती है। ख़ुशी किचन की ओर चली जाती है। ख़ुशी फ्रीज़ में से मटर निकालती है।

ख़ुशी- जब तक हम इन मटर से दाने निकालेंगे तब तक दाल का कुकर चढ़ा देते हैं। पर दाल रखी कहाँ है ?

ख़ुशी इधर-उधर नजरें दौड़ाकर तुअर की दाल का डिब्बा देखती हैं। उसे डिब्बा रैक के सबसे ऊपर दिखाई देता है। वह डिब्बा निकालने के लिए रैक के यहाँ स्टूल रखतीं है और उस पर चढ़ जाती है। वह दाल के डिब्बे पर हाथ रखती ही की तभी वहाँ अर्नव आता है। फ़ाइल में नजरें गढ़ाए अर्नव कहता है-

अर्नव- हरिराम जल्दी से चाय मेरे कमरे में लाओ।

जब हरिराम का कोई उत्तर नहीं आता है तब अर्नव फ़ाइल से नजरें हटाकर देखता है तो उसकी नजऱ स्टूल पर खड़ी ख़ुशी से मिलती है। ख़ुशी डरकर थूक गले में गटक कर अर्नव को देखती है। अर्नव गुस्से में उसकी ओर बढ़ता है। अर्नव को अपनी ओर आया देखकर ख़ुशी हड़बड़ी में स्टूल से उतरने लगती है, तभी उसका बेलेन्स बिगड़ जाता है। अर्नव आगे बढ़कर ख़ुशी को थाम लेता है।

खुशी फ़टी आंखों से अर्नव को देखती है। अर्नव भी एकटक ख़ुशी की आँखों में देखता है।

यह आँखे ही तो दिल के दरवाज़े है। इनसे होते हुए ही भावनाएं दिल में प्रवेश करती है। पर यहाँ तो अर्नव की आंखे आग उगल रही थीं। दिल में भी मानो खून उबल रहा हो।

अर्नव- अब ये भी तुम्हारी नई चाल होगी। पहले मन्दिर, फिर ऑफिस उसके बाद मेरे रूम में और अब सीधे मेरी बाहों में...

अर्नव की बात सुनकर ख़ुशी का भी खून उबलने लगता है। गुस्से से उसका चेहरा लाल हो जाता है।

ख़ुशी- बस कीजिये मिस्टर अर्नवसिंह रायजादा! आप एक तरफ़ा ही बोलते चले जाते हैं या सामने वाले को सुनने की ताकत भी ऱखते है ? न ही हमारी आप में कोई रुचि है और न ही आपकी दौलत में। इस दुनिया के आप सबसे आख़िरी आदमी भी बचो तब भी हम आपके बारे में नहीं सोचेंगे। हर इंसान आपकी तरह पैसों के पीछे पागल नहीं होता। आपके लिए पैसा सबकुछ है इसीलिए आप हर इंसान को पैसो से तोलना शुरू कर देते हैं। कान खोलकर सुन लीजिये हमारे संस्कार इतने सस्ते नहीं है जिन्हें आप अपने इन चन्द रुपये से खरीद लेंगे। हम यहाँ आपका पीछा करते हुए नहीं आए। आप में ऐसा कोई गुण है भी नहीं की हम चुम्बक की तरह आपकी ओर खिंचे चले आए।

ख़ुशी की बात सुनकर अर्नव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। अर्नव ख़ुशी को अपनी गोद से छोड़ देता है। ख़ुशी धम्म से, फैलाकर रखी हुई मैथी पर गिरती है।

हेलो ब्रो ! हाऊ इंटरेस्टिंग, यू आर इन द किचन....

अर्नव ने मुड़कर देखा तो उसके पीछे मुस्कुराता हुआ आकाश खड़ा था।

अर्नव- "ओ ब्रदर व्हाट अ सरप्राइज ! "

अर्नव आकाश को गले लगा लेता है।

तुम तो अगले महीने आने वाले थे न ?

आकाश- हाँ भाई, काम जल्दी ख़त्म हो गया था इसलिए एक महीने पहले ही लौट आया। सच कहूँ आप सबके बिना वहाँ अच्छा नहीं लगता था। दिन काट रहा था बस।

अर्नव- चलों अच्छा हुआ जल्दी आ गए। अच्छा तो हम सबको भी नहीं लगता था। चलो मामी को भी चौंकाते हैं।

आकाश- एक सेकंड भाई..

आकाश ख़ुशी की ओर हाथ बढ़ाता है।

ख़ुशी भी अपना हाथ आगे बढ़ा देती है। आकाश से सहारा पाते ही ख़ुशी खड़ी हो जाती है।

ख़ुशी- जी धन्यवाद !

आकाश- हाय ! मायसेल्फ़ आकाश, आपको चोट तो नहीं लगीं ?

ख़ुशी- जी हम ख़ुशी। हम ठीक है।

अर्नव- आकाश सर्वेट है वो.. काम के दौरान ये लोग अक्सर गिरते रहते हैं।

आकाश- भाई, ख़ुशी जी को तो आपने गिराया.. मैं आपको सरप्राइज देने चुपके से आ रहा था, पर आपने मुझे सरप्राइज दे दिया। पहले तो मुझे लगा कोई लव सीन है.. पर आपके लिए ऐसा सोचना भी पाप ही है। लव भी आपसे डरकर भाग जाता है।

अर्नव- अब चलें..? या अभी से किसी की संगति का असर हो गया है तुम्हें। आते ही बक़वास करने लगे।

आकाश- ओके ब्रो..लेट्स गो।

अर्नव औऱ आकाश वहाँ से चले जाते है। अर्नव मुड़कर ख़ुशी को देखता है।

ख़ुशी भी मासूमियत से अर्नव को देखती है।

अर्नव आकाश को नानी के रूम में ले जाता है। दरवाजा खुला हुआ था। कमरे से मनोरमा औऱ देवयानी की हँसी की आवाज़ आ रहीं थीं। जिसे सुनकर आकाश अपने कान में उंगली डालकर कान साफ़ करने लगता है।

अर्नव- ये क्या कर रहें हो ?

आकाश- भाई, लगता है सफ़र में कान ख़राब हो गए। दादी की आवाज़ के साथ मुझे माँ की आवाज भी सुनाई दे रहीं हैं।

अर्नव (हँसते हुए)- अंदर तो चलो..अभी तो तुम्हारी आँखे भी चकराने वाली है।

आकाश और अर्नव कमरे में प्रवेश करते हैं। आकाश मनोरमा और देवयानी को एकसाथ देखकर चौंक जाता है। वहीं देवयानी और मनोरमा भी समय से पहले आकाश को अपने सामने देखकर चौंक जाती है।

मनोरमा- आकाश बिटवा ...

आकाश देवयानी के पास जाता है। उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेता है।

देवयानी (आशीर्वाद देते हुए)- दूधों नहाओ पुतो फलो।

आकाश (फिक्र के लहज़े से)- दादी, अब आपकी तबियत कैसी है ?

देवयानी- ठीक है बेटा। तुम भी आ गए तो अब तो तबियत ख़ुश हो गई।

आकाश मनोरमा से मिलता है। पैर छूकर आशीर्वाद लेता है। मनोरमा भी आकाश पर ख़ूब सारा प्यार लुटाते हुए ढेरों आशीर्वाद देती है।

अर्नव सबके ख़ुश चेहरे देखता है। हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर जाती है।

मनोरमा- हमका तो लागत है, जबसे ख़ुशी बिटिया हमका मिली तबसे ही हमरे ग्रह बदल गए। रोज़ कोई न कोई नई ख़ुशी हमरे दिल पर दस्तक देत रहीं।

ख़ुशी का नाम सुनकर अर्नव की भौहें तन जाती है और आकाश का चेहरा खिल उठता है।

आकाश- माँ एकदम सही कहा आपने। ख़ुशीजी में कुछ ख़ास बात तो है। पहली ही मुलाकात में मैं तो उनका फ़ैन हो गया। कितनी मासूमियत है उनके चेहरे में, जैसे कोई भोला सा बच्चा हो।

आकाश और मनोरमा की बात सुनकर अर्नव गुस्से से मुँह फुलाकर कमरे के बाहर चला जाता है।

आकाश, मनोरमा और देवयानी एक-दूसरे से बतियाने लगते हैं।

अगले दृश्य में

ख़ुशी सबके लिए खाना तैयार कर देती है। वह खाना टेबल पर लगा देती है।

बातचीत में मशगूल मनोरमा को भी ख़ुशी याद आ जाती है।

मनोरमा- हम तो बातों मा इत्ता बिजीयाय गए की भूल गए उँहा ख़ुशी बिटिया अकेले भोजन की व्यवस्था देखत रहीं। हम चलत है। आकाश तुम भी नहा-धोकर रेडी होइ जाओ। सासूमाँ अब हम चलत है।

मनोरमा वहाँ से चली जाती है।

देवयानी (आकाश से कहती है) - तुम भी सफ़र से थक गए होंगे। थोड़ी देर रेस्ट कर लो, फिर एकसाथ भोजन करेंगे।

आकाश- दादी, मेरी थकान तो आप सबको देखकर ही मिट गई। मैं तैयार होकर आता हूँ, फिर डायनिग टेबल पर महफ़िल सजाते हैं।

देवयानी आकाश की बात पर मुस्कुरा देती है। आकाश देवयानी से आज्ञा लेकर वहां से चला जाता है।

अर्नव अपने कमरे में लैपटॉप के सामने बैठा हुआ ऑफिस का काम कर रहा होता है लेकिन उसका ध्यान बार-बार ख़ुशी की ओर जाता है। उसे महसूस होता है कि वह ख़ुशी को बिना अपराध के भी सज़ा दे रहा है।

अगले ही पल अर्नव का दिमाग उसे फिर से ख़ुशी के खिलाफ भड़काने लगता है।

अर्नव बुदबुदाते हुए- मैंने जो किया सब सही किया। वो लड़की डिज़र्व करती है। मैं क्यों उसके बारे में सोच रहा हूँ ? बार-बार उसी का चेहरा सामने क्यों आ जाता है ?

अर्नव अपनी दोनों हथेलियों को चेहरे पर रख लेता है। कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद अर्नव अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर लेता है। उसके चेहरे पर फिर से पहले की तरह सख़्त स्वभाव वाले इंसान के हाव-भाव आ जाते हैं।

अर्नव के फ़ोन की घण्टी बजने लगती है। वह कॉल रिसीव करता है। उधर से मनोरमा कहती है- बिटवा, लन्च रेडी है। जल्दी से नीचे आई जाओ। सब तुम्हरा इंतज़ार करत रहे।

अर्नव- ब्रेकफास्ट के समय लन्च..?

मनोरमा- हमका तो आज बहुत भूख लगत रहीं अब ब्रेकफास्ट से काम नाही चलन वाला।

अर्नव- ठीक है मामी, आता हूँ।

अर्नव लेपटॉप बन्द करके हॉल की ओर चला जाता है। हॉल में डायनिग टेबल पर पहले से ही देवयानी, आकाश और मनोरमा मौजूद थे। अर्नव भी अपनी सीट पर बैठ जाता है। अर्नव टेबल पर लगे खाने पर नजऱ डालता है।

अर्नव- वाह ! क्या बात है..? आज तो हरिराम भी आकाश के घर आने पर बहुत ख़ुश है। इतना कुछ इतनी सुबह बनाकर तैयार कर दिया।

इतने में ही किचन से खुशी वहाँ आती है। पतीली को टेबल पर ऱखते हुए वह कहती है- ये रही नानीजी आपकी बिना तड़के वाली दाल। खुशी मुस्कुराते हुए नानीजी के पास खड़ी हो जाती है। जब उसकी नज़र गुस्से से उसे ही घूर रहे अर्नव पर पड़ती है तो उसके चेहरे की मुस्कान छूमंतर हो जाती है।

देवयानी (अर्नव से)- ये सारा भोजन ख़ुशी बिटिया ने बनाया है, वो भी अकेले। बिना किसी की सहायता लिए। करना ही है तो आप इनकी तारीफ कीजिए।

देवयानी की बात सुनकर अर्नव अपनी सीट से उठ जाता है।

अर्नव को जब यह बात पता चलती है कि आज का लन्च खुशी द्वारा बनाया गया है, यह जानने के बाद वह अपनी सीट से उठ जाता है। अर्नव वहाँ से जाने लगता है। देवयानी अर्नव को रोकते हुए कहती है-

देवयानी- क्या हुआ अर्नव ?

अर्नव- नानी, मुझे ऑफिस का एक जरूरी काम याद आ गया।

देवयानी (नाराज होते हुए सख़्त लहज़े में)- कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, हमारे घर का यह नियम है कि हम खाने की थाली को छोड़कर नहीं जाते। अन्न के लिए ही तो हम कमाते हैं।

अर्नव (नजरें नीचे किए हुए सीट पर बैठते हुए)- सॉरी नानी।