इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 12 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 12

(12)

देवयानी (ख़ुशी से)- अरे ख़ुशी, आप खड़ी क्यों है। आप अर्नव के पास बैठ जाइए। सभी अपने अनुसार अपनी थाली लगा लेंगे।

ख़ुशी (अचकचाकर)- नहीं नानी जी हमें अभी भूख नहीं है। हम सर्व कर देते हैं।

देवयानी- लगता है आपको भोंदू की संगति का असर हो गया है। आप भी मनमानी करने लगी है।

ख़ुशी देवयानी की आज्ञा का पालन करते हुए डरते-सहमते हुए अर्नव के पास बैठ जाती है। अर्नव ग़ुस्से भरी निगाहों से ख़ुशी को देखता है।

देवयानी (ख़ुशी से)- आप अपनी औऱ भोंदु की प्लेट लगा लीजिए।

ख़ुशी - जी नानीजी !

ख़ुशी अर्नव की थाली में भोजन सामग्री डरते हुए सर्व करती है। अर्नव नीचे मुँह किये हुए मोबाईल पर बिजी होने का नाटक करते हुए ख़ुशी को नजरअंदाज करता है।

सभी लोग खाना शुरु करते है। पहले ही निवाले में सबको आनंद आ जाता है।

आकाश- मैंने अब तक की अपनी ज़िंदगी में ऐसी दाल नहीं खाई।

मनोरमा (उँगली चाटते हुए)- सच कहें आकाश बिटवा हम भी अईसन आलू मटर की सब्ज़ी आज तक नाहीं चखे रहें।

देवयानी ( ख़ुशी को देखकर )- साक्षात अन्नपूर्णा ही हो। इतना स्वादिष्ट भोजन हमारी सासुमां ही बनाती थी। आज उनके हाथ के बने भोजन की याद ताजा हो गई।

अर्नव मुँह नीचे किए हुए चुपचाप खाता रहा। सबकी निगाहें अर्नव पर जा टिकी, इस उम्मीद से की वह भी ख़ुशी की तारीफ़ में दो शब्द कहेंगे।

लेकिन अर्नव ऐसा कुछ नहीं करता है।

ख़ुशी- आप सबको हमारे हाथ का बना हुआ खाना पसंद आ गया, हमारी मेहनत सफ़ल हो गई।

ख़ुशी अपनी सीट से उठती है तो उसका पैर लड़खड़ा जाता है। ख़ुशी ख़ुद को गिरने से बचाते हुए एकदम बैठ जाती है।

देवयानी- सम्भलकर ख़ुशी...

आकाश भी अपनी सीट से उठकर फुर्ती से ख़ुशी के पास जाता है। वह ख़ुशी से कहता है- आप ठीक है ख़ुशी जी ?

अर्नव और मनोरमा भी अपनी सीट से उठ जाते हैं।

ख़ुशी (सबको देखकर)- हम ठीक है। आज घर की सीढ़ियों से गिर गए थे, शायद उसी वजह से पैर में लचक आ गई ।

अर्नव झटके से ख़ुशी को देखता है। अपने किए हुए बर्ताव का पश्चाताप अर्नव के चेहरे पर साफ़ दिखाई देता। अपराध बोध के कारण अर्नव का चेहरा उतर जाता है।

अर्नव वहाँ से चला जाता है।

ख़ुशी सबसे कहती है। आप सभी चिंता न करें। हम ठीक है। सभी लोग फिर से अपनी सीट पर बैठ जाते है।

मनोरमा (आश्चर्य से अर्नव की थाली देखते हुए)- सासुमां ई देखों इक औऱ मिरेकल। अर्नव बिटवा थाली एकदम सफ़ाचट कर दिए जईसन मांज कर रख दिए हो। मनोरमा खिलखिलाकर ताली बजाकर हँसती है।

देवयानी- ये सब ख़ुशी बिटिया के हाथों का जादू है। वरना हमेशा मीनमेख निकालकर खाना छोड़ देने वाले अर्नव की थाली इस तरह से देखने की उम्मीद तो हमें भी नहीं थी।

आकाश- ख़ुशीजी सच में कोई जादूगरनी है। मैं तो जब से आया हूँ, तब से कुछ न कुछ चमत्कार होते हुए ही देख रहा हूँ।

अगले दृश्य में

अर्नव अपने कमरे में चहलकदमी करता है। हर बढ़ता कदम अर्नव की बेचैनी को बढ़ाता जाता है। अपने आप पर अर्नव को आज पहली बार इतना गुस्सा आ रहा था। खुद को कोसते हुए वह बुदबुदाता है- क्या जरुरत थीं, उस लड़की के साथ इतना बुरा पेश आने की। फ़र्श कितना सख़्त होगा। मैंने एक बार भी उसे नीचे गिराने से पहले सोचा नहीं। अब जाकर माफ़ी माँगू ?

अर्नव उधेड़बुन में था। तभी वहाँ हरीराम आता है। हरिराम ट्रे में खीर का बॉउल लिए दरवाजा खटखटाकर अंदर आने की आज्ञा मांगता है।

अर्नव- आ जाओ..

हरिराम- आपके लिए भाभीजी ने खीर भेजी है।

अर्नव (गुस्से से)- तुम थे कहाँ ?

हरिराम- अचानक एक काम आ गया था इसलिए आज लेट हो गए।

अर्नव- ठीक है, वो जो लड़की आती हैं वह गई क्या ?

हरीराम- नहीं, वह किचन में ही थी।

अर्नव- उसे मेरे कमरे में भेज दो।

हरिराम- जी ठीक है।

हरिराम खीर रखकर वहाँ से चला जाता है। वह किचन में जाकर जब ख़ुशी से कहता है साहब ने तुमको बुलाया है तो ख़ुशी का मन अनजाने भय से आशंकित हो जाता है। वह अर्नव के कमरे की ओर चल देती है।

चलते-चलते उसके मन में उबलते पानी मे उठते बुलबुले से उठते है और हर एक विचार पर ख़ुशी डरती जाती है।

अब हमने ऐसा क्या कर दिया ?

जरूर नवाबजादे को हमारे हाथ का बना खाना पसंद नहीं आया होगा..

तारीफ की उम्मीद तो हम कर ही नहीं सकते। कोई न कोई कमी की लंबी चौड़ी लिस्ट बनाकर रखी होगी। कभी-कभी तो हमें यह भोंदु कोई शिकायती रजिस्टर लगता है।

विचारों के समुंदर में गोते लगाती हुई खुशी अर्नव के रूम तक आ जाती है। वह अर्नव के रूम के बाहर खड़ी होकर दरवाजा खटखटाती हैं।

अर्नव- कम इन ..

ख़ुशी हौले से दरवाजा खोलती हैं और अंदर आती है। तो अर्नव को देखकर चौंक जाती है।

अर्नव पलंग पर बैठकर मगन हो खीर खा रहा होता है। ख़ुशी अर्नव को हैरानी से देखती है फिर बड़बड़ाकर कहती है- खाने की कमी का तो अब सवाल ही नहीं होता। यह खीर जिसे यह इतने चटकारे लेकर खा रहे हैं यह भी तो हमने ही बनाई थीं। और वो जो प्लेट जिसके बारे में आँटी बता रहे थे वह भी तो इनकी ही थीं। आख़िर अब क्या सुनाना बाक़ी रह गया जिसके लिए हमें यहाँ बुलाया है।

अर्नव (ख़ुशी को देखते हुए)- आ गई तुम..वो मैं कह रहा था कि....

अर्नव अपनी बात को कहने में असहज महसूस करता है। वह खुलकर अपनी बात को कहने में संकोच महसूस करता है। पहली बार अर्नव को लगा था कि उसने गलती की है और उसी बात पर माफ़ी मांगने के लिए वह शब्द नहीं जुटा पा रहा था।

अर्नव अटकते हुए अपनी बात कहने की कोशिश करता है, पर कह नहीं पाता है।

ख़ुशी- अपने गले को तक़लीफ़ मत दीजिये अर्नवजी। हम समझ गए की आपने हमें यहाँ क्यों बुलाया है ?

अर्नव सवालिया नज़रों से ख़ुशी को देखता है।

खुशी- आपको जरूर हम पर गुस्सा आ रहा होगा। फिर से आप जलीभूनि बातें सुनाएंगे। पर शायद इस बार आपको पहले से ज़्यादा कठोर शब्द नहीं मिल रहे इसीलिए आप इतना अटक रहे हैं।

अर्नव- आई वांट टू से सॉरी..डैम इट

ख़ुशी अर्नव की बात सुनकर उसे ऐसे देखती है मानो उसने आठवाँ अजूबा देख लिया हो। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। वह हैरानी से अर्नव को देखती है।

अर्नव (ख़ुशी को यक़ीन दिलाते हुए) - ठीक ही सुना तुमने। मैं तुमसे माफ़ी माँगना चाहता हूँ, इसीलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है। मुझे पहली बार ऐसा लगा कि मैं जो कर रहा हूँ वह गलत है।

आज सुबह भी मुझे तुम्हारे साथ इतनी बेरुखी से पेश नहीं आना था। उस दिन तुमने मन्दिर में मुझे जूते पहने हुए देखा और तुम गुस्सा हुई वह भी सही था। तुम्हारी अपने भगवान के प्रति गहरी आस्था है तुम्हारा ऐसे किसी इंसान को चार बातें सुना देना लाजिमी था। यक़ीन मानो मैं नास्तिक जरूर हूँ पर कभी भी मैंने किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाई। उस दिन भी मैं एक जरुरी कॉल पर था औऱ बात करते हुए कब सीढ़ी खत्म हो गई औऱ मैं मन्दिर की चौखट के अंदर आ गया मुझे पता नहीं चला।

तुम्हारा दुप्पटा भी कब मेरी गाड़ी में आकर अटक गया मुझे यह भी पता नहीं था। मैंने कॉल डिस्कनेक्ट किया ही था कि तुम आ गई और तुमने जो कुछ कहा उससे मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।

ख़ुशी अर्नव की बातें बहुत ध्यान से सुन रही थीं, जैसे साक्षात शिवजी उसके सामने खड़े हैं और उससे बात कर रहें हैं।

अर्नव (अपनी बात खत्म करते हुए)- अब तुम्हें जो समझना है समझती रहना। जो सच था वो मैंने बता दिया।

आज सुबह मैंने जो किया उसके लिए- "सॉरी"

पलकें झपकाए ख़ुशी अर्नव को ऐसे देखती है, जैसे वह एक नए जीव को देख रही हो।

अब तक नवाबजादा व लंकापति लगने वाला लड़का अचानक उसे भोलाभाला सा लगने लगा। अर्नव के बदलते स्वभाव से तो जैसे ख़ुशी के लिए मौसम ही बदल गया। ख़ुशी को लगने लगा वह रुई से नरम मुलायम बादलों में हैं। रंगबिरंगे पक्षियों का झुंड कलरव करते उसके पास से निकलता है। बादलों के इस जहां में सैर करते हुए ख़ुशी को सूरजमुखी के फूलों का बगीचा दिखता है, जहाँ उसकी फ्रेंड्स तितलियां अपने पंख फैलाकर ख़ुशी के साथ झूम रहीं थीं।

ख़ुशी....

अर्नव की आवाज़ ने ख़ुशी को बादलों की दुनिया से बाहर निकाला।

हम्म ! आ..आप अर्नव सिंह रायजादा ही है न ?

अजीब लड़की हो- अर्नव ने मुँह बिचकाकर कहा औऱ वहाँ से चला गया। ख़ुशी घड़ी देखती है। शाम का आकाश सिंदूरी लग रहा था। ख़ुशी खिड़की से आकाश को निहार रहीं थीं।

हाथ बांधे हुए, दरवाज़े से खुद को टिकाए हुए आकाश ने ख़ुशी से कहा- आपने मुझे याद किया औऱ मैं चला आया...

ख़ुशी- जी...?

आप मेरी बात पर सहमति जता रही है जी कहकर- हँसते हुए आकाश ने कहा।

ख़ुशी- नहीं..हम तो आकाश को देख रहे थे।

आकाश- हा ! हा ! हा !

मैं ही तो हूँ आकाश, सुबह ही तो आपको अपना परिचय दिया था।

ख़ुशी (असहज होते हुए)- हम बाहर आसमान को देख रहे थे। आप कब आए हमें पता ही नहीं चला।

आकाश (मज़ाकिया लहज़े में)- मुझे लगा आपने इस ग़रीब पर रहम करते हुए इस नाचीज़ को याद किया है। बस, फिर क्या था मैं चला आया।

ख़ुशी (हँसते हुए)- आप बातें बहुत अच्छी करते है।

आकाश- चलिए, आपको मेरी कोई तो बात पसन्द आई। वैसे मुझे यहाँ मम्मी ने भेजा था। हरिराम ने बताया कि आपको भाई ने अपने कमरे में बुलाया है, तो मम्मी को चिंता हो गई थीं। उनको लगा कि कही भाई आपको किसी बात पर भला-बुरा न कह दे।

ख़ुशी (उत्साहित होकर)- सही पहचाना आँटी ने उस नवाबजादे को। पर आज तो उन्होंने मुझे बुरा नहीं सिर्फ भला कहा।

आकाश (भौहें उचकाते हुए)- नवाबजादा..इंटरेस्टिंग

ख़ुशी हथेली को मुँह पर ऱखते हुए आकाश को देखती है। वह माफ़ी माँगते हुए कहती है- माफ़ कीजिये आकाश जी हमें भान ही नहीं रहा और हम भावनाओं में बहकर कुछ भी कह गए। शब्दों का ध्यान नहीं रहा।

आकाश- फ़िकर नॉट खुशीजी, मैं अर्नव से कुछ नहीं कहूँगा। वैसे, आप बुरा न माने तो आपसे एक बात पुछूं ?

ख़ुशी- जी, जरूर..

आकाश- आपके औऱ अर्नव भाई के बीच कोई खिचड़ी पक रही है क्या?

ख़ुशी- मतलब.. ? हम समझें नहीं..?

आकाश- मतलब लव का तड़का..

ख़ुशी- अरे नहीं ! बिल्कुल भी नहीं ! कभी भी नहीं.. हम दोनों तो जानी दुश्मन की तरह है।

आकाश- मेरी पारखी नजरें क़भी धोखा नहीं खाती। जब मैंने आप दोनों को किचन में देखा था,, तब तो लग रहा था कि प्यार की पतीली में बहुत सारी भावनाएँ घोली जा रहीं थी औऱ उनमे चुटकीभर केअर, स्वादानुसार रूठना-मनाना मिक्स किया जा रहा था।

ख़ुशी (आकाश की बात का खंडन करते हुए)- आपकी पारखी आँखे अब कमजोर हो गई है। उन्हें ईलाज की जरूरत है, क्योंकि जो आप बता रहे वह तो स्वप्न में भी सम्भव नहीं है।

हम दोनों तो पूरब औऱ पश्चिम दिशा है। एक साथ कभी हो ही नहीं सकते। आपकी यह प्यार की खिचड़ी तो समझो जल ही गई।

आकाश- देख लेंगे..आप भी यहीं है और हम भी। वैसे, मुझे तो इत्ती ज़्यादा ख़ुशी हुई आपकी बात सुनकर की जो मैं सोच रहा था वैसा कुछ नहीं है। मेरा रास्ता अब बिल्कुल साफ़ है।

ख़ुशी- क्या ??

आकाश- म..म..मैं कह रहा था। अर्नव भाई ऑफिस चले गए है। अब आपका रास्ता साफ़ है। जो मर्ज़ी हो वह करो। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं।

ख़ुशी (खिलखिलाकर हँसते हुए)- आप बड़े मजाकिया है। लगता ही नहीं कि आप अर्नवजी के भाई है। वह हमेशा अकड़ू बनकर रहते हैं, जेलर जैसे बात करते हैं। ख़ुशी अर्नव की नक़ल करते हुए बोलती है- "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसे बात करने की"

आकाश- हा! हा! ...फ़िर से कीजिये न ख़ुशी जी, आप तो हूबहू अर्नव की मिमिक्री कर लेती है।

ख़ुशी- नहीं आकाशजी, वो तो बस यूं ही ..हम नहीं कर पाएंगे।

आकाश - अच्छा, आप अपना चेहरा दीवार की तरफ़ कर लीजिए फिर कोशिश कीजिए। प्लीज़ !

ख़ुशी- अच्छा ठीक है, हम कोशिश करते हैं।

ख़ुशी आकाश की ओर पीट करके खड़ी हो जाती है। वह अर्नव की मिमिक्री करते हुए कहती है -

जरूर इसमें भी तुम्हारी कोई चाल होंगी। दाल तड़का नहीं मालदार लड़का ही तुम्हारा पसन्दीदा स्टफ हैं औऱ अमीर लड़कों को बेवकूफ बनाना तुम्हारी पसन्दीदा डिश। बेवकूफ बनाने का तो तुम्हें पेटेंट ले लेना चाहिए।

आकाश (दबी आवाज़ में)- ख़ुशीजी...

ख़ुशी (अर्नव के लहज़े में)- क्या ख़ुशी..ख़ुशी..जबसे यहां आई हो मैं दुःखी हो गया हूँ। नॉव गेट ऑउट.... आई सेड लीव...

ख़ुशी ताली बजाकर मुस्कुराते हुए जैसे ही पलटती है तो चौंक जाती है।

उसके मुस्कुराते होंठ डर से काँपने लग जाते हैं।

ख़ुशी के सामने अर्नव खड़ा था। जो उसे बिना पलकें झपकाए घूर रहा था।

आकाश चुपचाप खड़ा ख़ुशी को देखता है, वह कमरे के बाहर निकल जाता है, औऱ ईशारे से कमरे के बाहर आने के लिए कहता है।

ख़ुशी- जी आँटी..आते हैं। कहकर ख़ुशी वहाँ से जाने लगती है। अर्नव ख़ुशी का हाथ पकड़कर उसे रोक लेता है।

अर्नव ने ख़ुशी का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था। ख़ुशी हाथ छुड़ाने की कोशिश करती है। तभी अर्नव ने ख़ुशी को झटके से अपने सामने खड़ा कर दिया। हमेशा की तरह ही अर्नव की लाल आँखे आग उगल रहीं थीं। ख़ुशी अर्नव की आँखों में देखती है। यह वो अर्नव नहीं था जो कुछ देर पहले ख़ुशी से माफ़ी माँग रहा था। अचानक खुशी को लगा कि बर्फ से सफ़ेद बादल जिनमें वह विचरण कर रहीं थी किसी ज्वालामुखी के फटने से पिघल गए। कलरव करते पक्षी कर्कश आवाज़ करने लगे। सूरजमुखी के फूल मुरझा गए औऱ रंगबिरंगी झूमती तितलियां गायब हो गई।

अर्नव (गुस्से से)- तुम मिडिल क्लास लोगों की यही प्रॉब्लम है। ज़रा सा प्रेम से दो बोल किसी ने क्या कह दिए सिर पर नाचने लगते हो।

नज़रें नीची किए किसी अपराधी सी ख़ुशी अर्नव की सारी बातें चुपचाप सुनती रहती है।

अर्नव (चिल्लाकर)- अपनी ये शक्ल दोबारा मेरे सामने लाने की हिम्मत सपने में भी मत करना। निकल जाओ मेरे कमरे से.. गेट आउट...

ख़ुशी सहम जाती है। अर्नव की बातें सुनकर उसकी आँखे छलक जाती है। वह बिना कुछ कहे अर्नव के कमरे से निकल जाती है।

कुछ ही दूरी पर आकाश ख़ुशी के आने का इंतज़ार करता हुआ इधर-उधर टहलता रहता है। उसे अर्नव के कमरे के बाहर धीमी गति से चलती हुई ख़ुशी दिखाई देती है। ख़ुशी की आँखों मे आँसू देखकर वह समझ जाता है कि अर्नव ने ख़ुशी के साथ बुरा बर्ताव किया। आकाश खुद को अपराधी मानता है। वह मन ही मन खुद को कोसता है, कि न वो ख़ुशी से मिमिक्री की ज़िद करता न अर्नव ख़ुशी को भला-बुरा कहता।

सारा दोष मेरा ही है- आकाश ने अपना एक हाथ सिर पर रखते हुए कहा।