शैडो- जयंती रंगनाथन राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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शैडो- जयंती रंगनाथन

अन्य मानवीय अनुभूतियों के अतिरिक्त विस्मय..भय..क्रोध..लालच की तरह ही डर भी एक ऐसी मानवीय अनुभूति है जिससे मेरे ख्याल से कोई भी अछूता नहीं होगा। कभी रामसे ब्रदर्स की बचकानी शैली में बनी डरावनी भूतिया फिल्मों को देख बेसाख़्ता हँसी छूटा करती थी तो वहीं रामगोपाल वर्मा के निर्देशन में बनी डरावनी फिल्मों को देख कर इस कदर डर भी लगने लगा कि देर रात जगने के बाद बॉलकनी का दरवाज़ा चैक करने में भी डर लगता था कि कहीं ग़लती से खुला ना रह गया हो। अब इसी डर में अगर थ्रिलर फिल्मों सा रहस्य और रोमांच भी भर जाए तो सोचिए कि क्या होगा?

दोस्तों..आज रहस्य..रोमांच और डर से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं ऐसे ही विषय पर लिखे गए एक रोचक उपन्यास 'शैडो' की बात करने जा रहा हूँ। जिसे अपनी कलम के जादू से उकेरा है हमारे समय की प्रसिद्ध लेखिका जयंती रंगनाथन ने। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का सफलतापूर्वक संपादन कर चुकी जयंती रंगनाथन उपन्यासों..कहानी संग्रहों के लेखन एवं संपादन के अतिरिक्त टीवी एवं ऑडियो बुक्स के क्षेत्र में भी खासी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

उपन्यास के मूल में जहाँ एक तरफ़ कहानी है मयंक नाम के एक ऐसे लेखक की। जिसकी मिस्ट्री गर्ल, काम्या पर उपन्यास लिखने की कोशिश उस वक्त उसके लिए मुसीबतों का बायस बन जाती है जब उसे इस कहानी से दूर रहने के लिए sms या फ़िर ईमेल पर धमकियाँ मिलनी शुरू हो जाती हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ इस उपन्यास में कहानी है अपने से 30 वर्ष बड़े एक क्राइम मिस्ट्री राइटर,अभय जॉर्ज की ज़िद्दी और बोल्ड पत्नी, काम्या की जो अपने पति की हत्या हो जाने के बाद से ही ग़ायब है।

सहयोगी किरदारों के रूप में इसमें कहानी है मयंक की मंगेतर बनने जा रही उसकी प्रेमिका, पूर्वा, जो कभी काम्या की सहेली हुआ करती थी, और मयंक के प्रति चाहत रखने वाली उसकी (मयंक की) दोस्त उमा की। मयंक से जुड़े होने के खामियाज़े के रूप में ये दोनों भी उस वक्त मुसीबत में फँस जाती हैं जब उसी तरह की धमकियाँ इन्हें भी मिलनी शुरू हो जाती हैं।

पूर्व जन्म और सम्मोहन पर आधारित इस कहानी में मारिया.. शोभित और रोजर जैसे रहस्यमयी किरदारों के आगमन के बाद कहानी और ज़्यादा उलझती चली जाती है। मारिया, उस शोभित की पत्नी है जो हवाई जहाज़ में मयंक के साथ अपनी सीट बदलने की वजह से प्लेन क्रैश में मारा जा चुका है और शहर का नामीगिरामी पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपिस्ट, रोजर शोभित को अपना गुरु बताता है।


दिल्ली से वायनाड की तरफ़ बढ़ते इस तेज़ रफ़्तार उपन्यास में कहानी है ईर्ष्या..द्वेष और वर्चस्व बनाए रखने की तमाम जद्दोजहद के बीच सम्मोहन भरे पुनर्जन्मों की। सहज..सरल शैली में लिखे इस बेहद रोचक और रहस्यमयी उपन्यास में एक के बाद एक रोमांच और उत्सुकता से भरे ऐसे ट्विस्ट्स एण्ड टर्न्स आते हैं कि दर्शक सम्मोहित हुए बिना नहीं रह पाता।

तेज़ गति से चलती हुई इस कहानी में रोचकता और रोमांच और ज़्यादा तब बढ़ जाता है जब नए किरदारों से जुड़े नए प्रश्नों के उभरने से कहानी सुलझने के बजाय और ज़्यादा घुमावदार होती चली जाती है।

इस बात के लिए जयंती रंगनाथन बधाई की पात्र है कि उलझन भरे किरदारों से लैस इस बेहद उलझी हुई कहानी के सभी घुमावदार पेंचों को उन्होंने आसानी से बिना कहीं भी बिखरे हुए आसानी से सुलझा दिया।

प्रूफरीडिंग की एक छोटी सी कमी के रूप में पेज नंबर 53 मैं लिखा दिखाई दिया कि..

'मयंक ने मुत्तू से हाथ मिलाया और सपाट आवाज़ में कहा.."मयंक, बिज़नेसमैन हूँ'

यहाँ "मयंक, बिज़नेसमैन हूँ' की जगह अगर "मैं मयंक, बिज़नेसमैन हूँ' आए तो ज़्यादा बेहतर होगा।

इस 176 पृष्ठीय पैसा वसूल उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म ने और इसका मूल्य रखा गया है 199/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट के हिसाब से जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।