बंधन प्रेम के - भाग 14 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बंधन प्रेम के - भाग 14

अध्याय 14

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मेजर विक्रम ने शांभवी का हाथ पकड़ा और तेजी से वे दोनों एक पेड़ की ओट में हो गए।
मेजर विक्रम ने कहा- वो दूर एक गाड़ी खड़ी है न शांभवी? उसमें साधू संन्यासियों के वेश में जो कुछ लोग दिखाई दे रहे हैं न, उनकी गतिविधियां मुझे सही नहीं लग रही हैं। लगता है ये छद्म वेश में आतंकवादी हैं क्योंकि ये अजीब सी नज़रों से न सिर्फ मंदिर को देख रहे हैं बल्कि आने-जाने वाले लोगों को भी। मुझे लग रहा है दोपहर की आरती के समय जब अधिक लोग मंदिर के अंदर इकट्ठा होंगे तो ये लोग मंदिर के भीतर घुसने की कोशिश करेंगे।

घबराते हुए शांभवी ने कहा- तब तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी विक्रम जी,अब हमें क्या करना चाहिए?

मेजर विक्रम- वैसे आरती कितने बजे होती है शांभवी?

शांभवी-.... ठीक 12:00 बजे शुरू हो जाती है…

मेजर विक्रम ने चौंकते हुए कहा-
-ओह, 12:00 बजने में तो बस अब पाँच ही मिनट बाकी हैं। शांभवी तुम एक काम करो पुलिस को तो डायल कर ही देना। यहां की आर्मी यूनिट का एक स्पेशल नंबर मेरे फोन में है। मैं वह तुम्हें तुरंत व्हाट्सएप कर रहा हूं।तुम इस पेड़ की ओट से निकलकर धीरे-धीरे घर की तरफ वापस बढ़ो… जाते-जाते तुरंत आर्मी यूनिट को भी फोन कर देना.. मैं इन आतंकवादियों को देखता हूं……

शांभवी- नहीं विक्रम जी…. आप आगे मत बढ़िए। खतरा है।मैं भी आपके साथ चलती हूं।

मेजर:- घबराओ मत शांभवी, यहां भी सिक्योरिटी है।वहां देख रही हो शांभवी….रेत की बोरियों के पीछे….. वहां सेना के 3 जवान तैनात हैं।भले ही वे गाड़ी के इस तरफ़ की गतिविधि को नहीं देख रहे हैं क्योंकि इनकी गाड़ी का कांच बंद है।…. तुम लौट जाओ और फोन करने का काम करो।

मेजर ने शांभवी से पूजा की टोकरी ली। अब भक्त के रूप में वेअकेले मंदिर की ओर बढ़े ।शांभवी अपना फोन चेक करते हुए तुरंत पीछे की ओर पलटी और लौटते हुए मेजर के बताए नंबर को फोन करने लगी।
मेजर विक्रम मंदिर की ओर आगे बढ़े। उनका अनुमान था कि वे अगले 2 मिनट में मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंच जाएंगे। पता नहीं कैसे मंदिर के मुख्य द्वार पर कोई हथियारबंद सुरक्षा बल का जवान नहीं दिखाई दे रहा था।यह बॉर्डर के पास का आखिरी शहर था।संवेदनशील होने के कारण मंदिरों के आसपास सुरक्षा रहती थी। वे सभी जवान बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए थे और उनके सिरों पर हेलमेट भी थे।इस शहर में कभी कोई हमला नहीं हुआ था इसलिए शायद सुरक्षा के मामले में थोड़ी सुस्ती आ गई हो। अगले एक मिनट के भीतर विक्रम मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर के कोने पर मोर्चा संभाले सुरक्षा बल के जवानों के पास पहुंच जाएंगे। विक्रम सिविल यूनिफॉर्म में थे और उनके हाथ में जल था।शांभवी से ली गई पूजा की टोकरी भी उन्होंने अपने हाथ में ले ली थी,इसलिए आतंकियों को शक नहीं हो सकता था।

मेजर विक्रम ने सधे हुए कदमों से चलना शुरू किया और इस बात का भी ध्यान रखा कि वे स्वयं अधिक चौकन्ने नजर ना आएं क्योंकि इससे आतंकवादियों को शक हो सकता था। मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा हो गई थी।आरती के पूर्व प्रारंभिक घंटियों की आवाजें भी शुरू हुई। लगभग इसी के साथ मेजर विक्रम बड़ी फुर्ती से रेत की बोरियों के पीछे मोर्चा जमाए सुरक्षाबलों के पास पहुंच गए। क्योंकि आतंकियों का ध्यान मंदिर के मुख्य द्वार की ओर था इसलिए मुख्य द्वार से दाहिनी ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ते विक्रम की ओर उनका ध्यान नहीं गया।आतंकी अभी भी गाड़ी में बैठे हुए थे। संभवतःवे चार पांच मिनट बाद पूजा शुरू होने के समय ही हमला करते।

सुरक्षाबलों के पास पहुंचकर विक्रम ने अपना आई कार्ड लहराया। मेजर के रूप में अपना परिचय दिया ।उन लोगों से तत्काल कहा -वो गाड़ी देख रहे हैं ना? उसे तुरंत घेर लीजिए मुझे संदेह है कि उसमें आतंकी हैं।

ऐसा कहकर मेजर विक्रम मंदिर के मुख्य द्वार की ओर तेजी से बढ़े और एक बड़े खंबे की ओट में खड़े हो गए। पूजा की टोकरी और जल को उन्होंने नीचे रख दिया।

मेजर विक्रम से यह सुनकर तीनों जवान हतप्रभ रह गए। तीनों जवानों ने दौड़ लगाई और वे एक से डेढ़ मिनट के भीतर सड़क के उस किनारे में पार्क की गई गाड़ी के पास पहुंच गए। जवानों का अपने चेकपोस्ट से निकलना था कि ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए आतंकी ने उनकी हलचल को देखा और जोर से चिल्लाया
-सामने आर्मी है। तैयार हो जाओ।

पहले आतंकी ने गाड़ी से नीचे कूदकर मोर्चा संभालने की कोशिश की।उसके पास एके-47 राइफल थी। मेजर विक्रम आतंकियों की इस गाड़ी के ठीक सामने वाले खंबे में थे। उन्होंने पिस्तौल अपनी जेब से निकाली और नीचे कूदने वाले पहले आतंकी पर फायरिंग कर दी। वह वहीं ढेर हो गया।इस बात में कोई संदेह नहीं था कि गाड़ी के अंदर हमलावर थे। आर्मी के जवान भी तेजी से गाड़ी की ओर आ रहे थे।आतंकियों को आश्चर्य हुआ कि उनके साथी को गोली किसने मारी?

आतंकियों ने आनन-फानन में गाड़ी से बाहर आने के बदले गाड़ी के भीतर से ही अपनी राइफलें सीधी कर मोर्चा लेने की कोशिश की। मेजर विक्रम ने अपना हाथ बाहर निकाल कर गाड़ी की ओर और गोलियां दागनी चाही लेकिन ड्राइविंग सीट पर बैठे आतंकी ने ,जिसे गोली दागे जाने के स्रोत का पता लग गया था, उसने खंबे की ओर गोली दाग दी। वह गोली मेजर विक्रम की दाईं कलाई पर जाकर लगी।मेजर के हाथ से पिस्तौल छूट कर नीचे गिर गई। उधर गाड़ी से बाहर न आ कर आतंकियों ने रणनीतिक चूक कर दी।
जब तक उनकी बंदूकें तन पातीं, आर्मी के जवान गाड़ी के बहुत नजदीक पहुंच गए थे और उन्होंने आतंकियों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।कांच को भेदती हुईं धड़ाधड़ गोलियां आतंकवादियों के शरीरों को छलनी करने लगीं।भीतर के सभी तीनों आतंकवादी ढेर हो गए थे।

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मंदिर में आरती शुरू भी ना हो पाई थी कि फायरिंग की आवाज से सबका ध्यान बंटा। लोगों में भगदड़ मच गई।लोग मंदिर में यहां-वहां छिपने लगे। लेकिन 1:30 से 2 मिनट में फायरिंग की आवाज़ें आनी बंद भी हो गईं। स्वयं खून से लथपथ मेजर विक्रम ने मंदिर के मुख्य द्वार पर खड़े होकर भीतर चिल्लाकर कहा- आप सब चिंता ना करें।सभी आतंकवादी मार डाले गए हैं। लोगों ने राहत की सांस ली। कुछ लोग मंदिर के बाहर भी आने लगे। आर्मी के जवानों ने मेजर विक्रम के पास पहुंचकर उन्हें सहारा दिया। उनका दाहिना हाथ लहूलुहान था। शांभवी द्वारा दी गई सूचना पर पुलिस के सायरन बजाते वाहन और सेना की गाड़ियां अगले 5 मिनट के भीतर घटनास्थल पर पहुंच गईं और पूरे इलाके को घेर लिया गया।
शहर में हड़कंप मच गया। टीवी चैनलों की टीमें भी आधे घंटे के अंदर कवरेज के लिए पहुंच गईं। पुलिस वाहन के साथ आई एक एंबुलेंस में मेजर विक्रम को तुरंत आर्मी हॉस्पिटल भेजा गया। शहर समेत सीमावर्ती सभी गांवों, कस्बों और शहरों में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। आतंकवादियों के शव ज़मीन पर बिखरे हुए थे। उनका एक और मंसूबा नाकाम हुआ। वास्तव में आतंकवादियों की कोई जाति नहीं होती। ना कोई धर्म होता है।वे बस मानवता के दुश्मन होते हैं। इस मामले में भी उन्होंने भक्तों का वेश धारण कर भगवान के मंदिर में उन्हें ही धोखा देने की असफल कोशिश की।

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मेजर विक्रम अधिक रक्तस्राव होने से बेहोश हो गए थे लेकिन तत्काल मिले उपचार से उनकी हालत और नहीं बिगड़ी। कलाई में धंसी हुई गोली को तत्काल ऑपरेशन कर बाहर निकाला जाना था।आईसीयू के बाहर बैठे हुए शांभवी व उनके मम्मी-पापा के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।शांभवी के हाथ प्रार्थना मुद्रा में ही जुड़े रहे। वह सोचने लगी कि आर्मी के लोगों का क्या जीवन होता है? क्या उन्हें हर पल बस खतरों से ही खेलना होता है। लगभग डेढ़ घंटे बाद डॉक्टर ने ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते हुए जानकारी दी कि ऑपरेशन सफल रहा है। शरीर में और कोई कॉम्प्लीकेशंस नहीं आईं और वे जल्दी ठीक हो जाएंगे।शांभवी के पापा के पास विक्रम के पापा का फोन आया कि वे आर्मी हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गए हैं।

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दो घंटे बाद शांभवी और उनके माता-पिता को मेजर विक्रम से मिलने के लिए भीतर जाने दिया गया।उन्हें ऑपरेशन थिएटर से आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था। उनकी हालत अभी भी गंभीर थी। हाथों पर बंधी हुई पट्टी और शरीर में लगे हुए अनेक चिकित्सा सहायक उपकरण। इनके भीतर प्रवेश करने के समय ही नर्स ऑक्सीजन मास्क निकाल रही थी।

शांभवी और उनके माता-पिता को देखकर मेजर विक्रम की आंखों में चमक आईं और उन्होंने आंखों ही आंखों में उनका अभिवादन किया।
शांभवी के पिता ने भाव विह्वल स्वर में कहा- आय एम प्राउड ऑफ यू बेटा।

शांभवी ने पूछा- आप ठीक तो हो विक्रम जी?

विक्रम ने कराहते हुए कहा- हां शांभवी, बस थोड़ी कॉफी मिल सकती है क्या?

शांभवी के चेहरे पर यह सुनकर मुस्कुराहट आ गई।मानो वह कह रही हो- क्यों नहीं?

(क्रमशः)

योगेंद्र

(कहानी के इस भाग को मनोयोग से पढ़ने के लिए मैं आपका आभारी हूँ। शांभवी और मेजर विक्रम की इस कहानी में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए पढ़िए इस कथा का अगला भाग आगामी अंक में। )

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संगठन,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)