यादों के कारवां में - भाग 13 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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यादों के कारवां में - भाग 13


अध्याय 13


यादों के कारवां में


43. ये शाम हमारी है

हरेक की शाम सुनहरी होती है

उसकी अपनी होती है,

दिन भर के सफर, संघर्ष ,परिश्रम के बाद;

ज्ञान के लिए

रोटी के लिए

अपनी संतुष्टि के लिए

और,

संघर्ष भी अपने-अपने

जैसे,

शहरों के हाथ ठेलों में खींचते भारी बोझ

में अपनी जिंदगी को खींचते मजदूर,

कि जीवन है तो जीना है, वाले ढर्रे पर।

जैसे,

कारखानों में शिफ्ट का भोंपू बजते ही

भीतर जाकर श्रम करने को तत्पर श्रमवीर पंक्तिबद्ध,जो शिफ्ट खत्म होने का भोंपू बजते- बजते खुद मशीन में पूरी तरह तब्दील हो चुके होते हैं,

जैसे,

सब्जी बेचने को निकली बुढ़िया की टोकरी की बची सब्जियां जेठ की धूप और लू के थपेड़ों से उसके चेहरे की तरह झुर्रीदार हो गईं।

जैसे,

दफ्तर का पुराना क्लर्क हो जाता है अपने काम में इतना मशगूल,कि घड़ी का कांटा शाम 5:00 पर ही अटक कर रह जाता है।

जैसे,

कॉलेज की लाइब्रेरी में पुस्तकों के ढेर में कहीं गुम हो जाने के बाद किसी पढ़ाकू को याद दिलाए उसकी मित्र यह कहकर कि अब कल भी आने वाला है।

और

शाम होते ही

जैसे सब बदल जाता है,

अपनी मजूरी लेकर ठेले वाले मजदूर का अपनी बिटिया के लिए खिलौने की गुड़िया लेकर

घर पहुंचना।

फैक्ट्री के श्रमिक का घर पहुंच कर अपनी साइकिल से टिफिन का डिब्बा निकालना और दालान के खंभे से टिककर निढाल बैठ जाना।

सब्जी बेचने से इकट्ठा रुपयों को लेकर बुढ़िया का पंसारी की दुकान से मनचाही मात्रा में चांउर और नून खरीदना,

क्लर्क का अपने बेटे का अच्छे कॉलेज में चयन की खुशी में मिठाई लेकर घर लौटना।

जैसे, युवाओं का कॉलेज से घर लौटकर मानो


भविष्य के सपनों का रात भर के लिए आराम करना।

और

इन सबके लिए शाम सुनहरी बन जाती है,

और

आसमां पे चांद का निकलना और गहराते अंधेरे में उसका खिल उठना,

सबके जीवन को सुरमई बना देता है,

जैसे

इस शाम ने धरती के हर एक प्राणी को बना दिया हो- रात भर के लिए दुनिया का बादशाह या दुनिया की मलिका,

कि

कल का क्या? देखा जाएगा….

ये शाम तो हमारी है…….


योगेंद्र ©®


44 विदा


छोड़कर जाना कठिन होता है

भूल जाना मुश्किल होता है

और भूल जाओ कह पाना……

इससे भी कठिन……

इसलिए जाते वक्त

न आंखें मिलती हैं,

न शब्द फूटते हैं

न पग डगर को उठते हैं

मगर जाने के बाद भी

कुछ छूट जाता है

या साथ जाता है,

हमेशा के लिए

तो वे होती हैं

सिर्फ यादें………..


योगेंद्र


45 प्रेम में है केवल प्रेम,

इसका कोई पर्याय नहीं है,

है यह,अपरिमित,अतुलित

एक शब्द अनूठा,

लिए हुए एहसास गहरे,

जैसे माता-पिता और संतानें

भाई-भाई

भाई-बहन

मित्रगण,

सगे संबंधी

और कभी-कभी अनाम,अपरिभाषित से रिश्ते

जैसे;

राह में किसी लड़की की

स्कूटी के पंक्चर हो जाने पर किसी का मदद के लिए रुक जाना

और मदद करने के बाद

बिना एक शब्द कहे

या परिचय बढ़ाने की कोशिश किए

अनाम मोटरसायकल सवार का,

अपनी राह आगे बढ़ जाना,

जैसे;

दिन भर ड्यूटी के बाद

थका हारा घर लौटते ही

पड़ोस में किसी की तबीयत खराब होने की

सूचना मिलते ही,

उसे लेकर अस्पताल पहुंचना

और अटेंडेंट बनकर रात भर

साथ वहीं रुक जाना,

जैसे;

आइसक्रीम की दुकान पर

आइसक्रीम लेने पहुंचे

फुटपाथ में रहने वाले

किसी बच्चे की जेब में

केवल पांच रुपए होने पर उसके द्वारा,

दस रुपए वाली आइसक्रीम के बदले

पांच वाली चॉकलेट मांगने पर

दुकानदार का

पांच रुपए लेकर भी

चॉकलेट के बदले

बच्चे के पसंद की

दस रुपए वाली आइसक्रीम ही देना

यह कहते हुए कि

"अरे हां! मैं कंपनी की शर्त

भूल गया था तुम्हें बताने

कि प्रथम पांच आइसक्रीमें,

गिफ्ट के तौर पर दस के बदले

पांच रुपए में ही बेची जानी हैं

इसलिए यह रही तुम्हारी आइसक्रीम।"

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय©