24 साथी
मेरे एकांत के
एकांत के पल में
रात छत पर,
मन अंबर में
उमड़ते-घुमड़ते हैं विचारों के बादल
और बनने वाली अनेक भूरी,मटमैली,काली,धुंधली,सफेद आकृतियों में
चित्रपट से उभरते हैं
दृश्य अनेक,
रात्रि में अंबर के चंद्र को देखकर किलकारी भरता बच्चा और उसे पकड़ने
की जिद करते बच्चे की दोनों हथेलियां मोड़ कर चंद्र को पकड़ने का उपक्रम करवाती मां,
इस क्षण को अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने को तत्पर।
नौकरी की खोज में अपना रिज्यूम लेकर दिनभर एक से दूसरी जगह भटकते
युवा मन को नींद नहीं आने पर मध्य रात्रि को टहलते हुए छत पर,
आकाश में डराती ये आकृतियां,
कि इस विस्तृत असीम आकाश के किसी कोने में है भी मेरी इक जगह कि
नहीं,
और
आना यह जवाब कि 'हां' है अवश्य
बस समय आने को है।
रात एकांत में अपने छत पर,
प्रेम के रूई से हल्के और ओस से भीगे,
असंख्य तारागण से मिचमिचाते एहसासों के मध्य ग्रहण से छा जाने वाले
बादलों की कुछ डरावनी आकृतियों को देखकर लगाना फोन प्रिय को,
और आना वापस जवाब तत्क्षण
कि मैं भी हूं अपने घर की छत पर प्रिय,
और
अंबर में दिखाई देने वाले ये बवंडर हैं
प्रेम की ली जाने वाली परीक्षा के अनुत्तरित प्रश्न,
और डरना क्यों,
कि
कभी साथ नहीं मिल पाने पर भी
हम सुलझाते रहेंगे,
अपने-अपने जीवन की उलझी
ज्यामितीय आकृतियां और प्रमेय,
कि
साथ नहीं मिल पाने पर भी
साथ चला जा सकता है जीवन भर,
दूर अपनी-अपनी जगह से ही,
आगे बढ़ते हुए और एक दूसरे के लिए ह्रदय से सच्ची प्रार्थना करते
हुए,
इस निरंतर आगे गतिमान जीवन में
कि चलते रहने में सच्चा प्रेम है,
और
मैं तुम्हारे जीवन में आने वाले हर सुख-दुख
की इबारत साफ पढ़ लिया करूंगा,
इस अंबरपट में स्माइली की इमोजी से हंसते चांद
और भादो में मूसलाधार बरसते गम के बादलों को देखकर,
कि दुआओं में होती है बड़ी शक्ति
और उनसे पार हो जाती है आसानी से,
लंबे से लंबे ग्रहण की अवधि भी
फिर दुआओं में तो
हम जीवन भर साथ हैं।
रात्रि के तीसरे प्रहर में,
जब दुनिया सोती है
तो एक साधक नींद से जाग उठता है
और तब छत के ऊपर
अंबर में बस रह जाते हैं
दूर तक फैली नीलिमा
और
सुबह होने से पहले
सोने की तैयारी करते असंख्य तारे,
तब मन कह उठता है,
नहीं है पीड़ादायक कोई एकांत
कि मेरे आराध्य ईश्वर साथ हैं मेरे,
वे करते वही हैं जो
सबसे अच्छा होता है मेरे लिए,
इसीलिए जब सब साथ छोड़ दें
तब भी मेरे एकांत में
सदा साथ रहेंगे मेरे ईश्वर।
25 चाय
कथा अनंता
चाय की चुस्कियां साधारण नहीं होतीं
और
साथ मिल बैठने पर यह बन जाता है
मित्रों के बीच
अपने हृदय की बातें साझा करने का एक जरिया…….
मानो दो कप चाय के प्यालों में
समा गई है दुनिया भर की मिठास……
और
इसीलिए अलादीन के चिराग
सी
चाय की प्याली ले जाती है
मित्रों की चर्चा को अनदेखे,
मनचाहे, विमर्श के लोक में…….
और
इसीलिए चाय के प्याले के
पी लिए जाने तक चर्चा में मशगूल मित्रों के लिए
समय भी ठहर जाता है
और
कभी न खत्म होने वाली बातों
के सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए दोनों में से कोई एक मित्र फिर मंगा लेता है
दो प्याली चाय………
और जब दोनों में से किसी एक को
उठना भी होता है
तो इस वादे के साथ
कि फिर मिलेंगे……
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय