यादों के कारवां में - भाग 9 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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यादों के कारवां में - भाग 9

26 प्रेम की पाठशाला


मां की लोरियों में होता है

खास एहसास स्नेह का

इसलिए इसे सुनते-सुनते ही

आ जाती है बच्चे को गहरी नींद

मां की गोद में सिर रखे हुए

और रात भर

वह विचरण करता है

सुखद स्वप्नलोक में।

पिता की कहानियों में होता है

खास एहसास वात्सल्य का

इसलिए

संरक्षण और सुरक्षा के

सबसे बड़े एहसास,

पिता के जीवन भर के

अनुभवों का अनमोल खजाना

हस्तांतरित होते रहता है

बातों- बातों में ही संतान को।

जीवनसाथी की बातों में होता है

खास एहसास प्रेम का

इसलिए वहां 'तुम' और 'मैं' मिलकर

बन जाते हैं सदा के लिए 'हम'

और दो शरीरों के प्राण भी

हो जाते हैं एक ही तासीर के।

मित्र के किस्सों में होता है

खास एहसास अपनेपन का

इसलिए दो दोस्तों की बनी दुनिया

में मिल जाते है गुणधर्म

अनायास बिना कुंडली मिले ही

और इसीलिए इसमें होता है

हर संकट में साथी के

साथ खड़े होने का

सुनिश्चित भावनात्मक एहसास,

कि घर नीलाम हो जाने

और फूटी कौड़ी के भी पास ना होने पर,

वह है तैयार साथ सोने को फुटपाथ में,

बगैर प्रत्याशा के,

इसलिए,मित्रता होती है

प्रेम और संबंधों को निस्वार्थ निभाना सिखाने की

जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला।



27. समुद्र के आगे प्रवाह नदी का


समय निरंतर प्रवाहमान है,

जिसमें अंतिम कुछ भी नहीं,

उद्गम से निकली नदी की तरह,

जो इठलाती,बलखाती कई मोड़ों,ढलानों और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होती हुई,

तय कर लंबा रास्ता,

सागर से मिलकर अपने अस्तित्व को

एक मंज़िल तक पहुंचाती

और

उसके बाद

सूर्य के प्रकाश से कर्षण होता बूंदों का

और

बादलों में एकत्र हो यहां-वहां विचरती

फिर बरस पड़ती है धरती पर,

लेकिन उद्गम में आते रहती है

अथाह, अपार, जलराशि

न जाने कहां से?


पूर्ण नहीं होती है

यात्रा नदी की

उद्गम से निकलकर

समुद्र में मिल जाने से,

बल्कि

उद्गम फिर से खींचता रहता है

हजारों किलोमीटर दूर से भी,

उस जल राशि का एक हिस्सा

समुद्र की तलहटी से

सूत से पतले पेड़ के रेशे जैसी एक धारा

अपने प्रारंभ बिंदु तक निरंतर,

और

यही है स्रोत

उद्गम के अजस्र प्रवाह का

और

जीवन की भी यही है अनवरत यात्रा,

इस जीवन से पहले भी,

इस जीवन में भी,

और,

इस जीवन की पूर्णता के बाद

एक और जन्म के रूप में

जन्म जन्मांतर की यात्रा,

मोक्ष मिलने तक

कि जब से यह दुनिया शुरू हुई है

अंतिम कुछ भी नहीं है,

अंतिम है प्रेम के गहरे एहसास को खो देना

और हार मान बैठना,

अंतिम है ,प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने हृदय के आनंद को खोकर किंकर्तव्यविमूढ़ बैठ जाना ,

गहरे अवसाद में निराश होकर हथियार डाल देना,

अंतिम है ,अन्याय अत्याचार के विरुद्ध मुंह न खोलना,

पर जीवन चलते रहने का नाम है,

चाहे सुख मिले, चाहे दुख ,सब स्वीकार

इसीलिए

अंतिम कुछ भी नहीं है।


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय©


मां की लोरियों में होता है

खास एहसास स्नेह का

इसलिए इसे सुनते-सुनते ही

आ जाती है बच्चे को गहरी नींद

मां की गोद में सिर रखे हुए

और रात भर

वह विचरण करता है

सुखद स्वप्नलोक में।

पिता की कहानियों में होता है

खास एहसास वात्सल्य का

इसलिए

संरक्षण और सुरक्षा के

सबसे बड़े एहसास,

पिता के जीवन भर के

अनुभवों का अनमोल खजाना

हस्तांतरित होते रहता है

बातों- बातों में ही संतान को।

जीवनसाथी की बातों में होता है

खास एहसास प्रेम का

इसलिए वहां 'तुम' और 'मैं' मिलकर

बन जाते हैं सदा के लिए 'हम'

और दो शरीरों के प्राण भी

हो जाते हैं एक ही तासीर के।

मित्र के किस्सों में होता है

खास एहसास अपनेपन का

इसलिए दो दोस्तों की बनी दुनिया

में मिल जाते है गुणधर्म

अनायास बिना कुंडली मिले ही

और इसीलिए इसमें होता है

हर संकट में साथी के

साथ खड़े होने का

सुनिश्चित भावनात्मक एहसास,

कि घर नीलाम हो जाने

और फूटी कौड़ी के भी पास ना होने पर,

वह है तैयार साथ सोने को फुटपाथ में,

बगैर प्रत्याशा के,

इसलिए,मित्रता होती है

प्रेम और संबंधों को निस्वार्थ निभाना सिखाने की

जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला।



27. समुद्र के आगे प्रवाह नदी का


समय निरंतर प्रवाहमान है,

जिसमें अंतिम कुछ भी नहीं,

उद्गम से निकली नदी की तरह,

जो इठलाती,बलखाती कई मोड़ों,ढलानों और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होती हुई,

तय कर लंबा रास्ता,

सागर से मिलकर अपने अस्तित्व को

एक मंज़िल तक पहुंचाती

और

उसके बाद

सूर्य के प्रकाश से कर्षण होता बूंदों का

और

बादलों में एकत्र हो यहां-वहां विचरती

फिर बरस पड़ती है धरती पर,

लेकिन उद्गम में आते रहती है

अथाह, अपार, जलराशि

न जाने कहां से?


पूर्ण नहीं होती है

यात्रा नदी की

उद्गम से निकलकर

समुद्र में मिल जाने से,

बल्कि

उद्गम फिर से खींचता रहता है

हजारों किलोमीटर दूर से भी,

उस जल राशि का एक हिस्सा

समुद्र की तलहटी से

सूत से पतले पेड़ के रेशे जैसी एक धारा

अपने प्रारंभ बिंदु तक निरंतर,

और

यही है स्रोत

उद्गम के अजस्र प्रवाह का

और

जीवन की भी यही है अनवरत यात्रा,

इस जीवन से पहले भी,

इस जीवन में भी,

और,

इस जीवन की पूर्णता के बाद

एक और जन्म के रूप में

जन्म जन्मांतर की यात्रा,

मोक्ष मिलने तक

कि जब से यह दुनिया शुरू हुई है

अंतिम कुछ भी नहीं है,

अंतिम है प्रेम के गहरे एहसास को खो देना

और हार मान बैठना,

अंतिम है ,प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने हृदय के आनंद को खोकर किंकर्तव्यविमूढ़ बैठ जाना ,

गहरे अवसाद में निराश होकर हथियार डाल देना,

अंतिम है ,अन्याय अत्याचार के विरुद्ध मुंह न खोलना,

पर जीवन चलते रहने का नाम है,

चाहे सुख मिले, चाहे दुख ,सब स्वीकार

इसीलिए

अंतिम कुछ भी नहीं है।


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय©