अमाँ हामिद मियाँ!कहाँ चल दिए सुबह-सुबह,सिराज भाई ने पूछा...
बस!सिराज भाई!खुदा के फ़ज़्ल से मुझे एक केस मिला है,खून का मुआमला है,इसलिए आज उस मुजरिम से मिलने जेल जा रहा हूँ,हामिद ने जवाब दिया....
खुदा खैर करे,हामिद मियाँ! कामयाबी तुम्हारे कदम चूमे,अल्लाहताला तुम्हें कामयाबी बख्शें,सिराज भाई बोले...
शुक्रिया !सिराज भाई! मुझ यतीम को आपने इतने सालों सम्भाला,मेरा ख्याल रखा,कहने को तो आप मेरे चचाजान के बेटे हैं और मेरे चचेरे बड़े भाई,लेकिन आपने मेरा ख्याल वालिदैन की माफ़िक़ रखा है,आप का हाथ हमेशा मेरे सिर पर बना रहा,तभी तो आज मैं इस मुकाम पर हूँ,हामिद बोला...
बस...बस..अब ज्यादा बातें बनाने की जरूरत नहीं है,मियाँ !जरा वक्त का ख्याल करो,तुम्हें देर हो रही होगी,सिराज भाई बोलें....
जी!सिराज भाई!देर तो हो रही है,अच्छा तो अब चलता हूँ,खुदाहाफ़िज!,हामिद बोला...
ठीक है अब जाओ,अल्लाहताला सब खैर करेगें,सिराज भाई बोले...
और फिर हामिद अपने रास्ते चला गया,उसने मेन रोड से आँटो पकड़ा और कुछ ही देर में वो जेल भी पहुँच गया,वहाँ उसने जेलर से शौकत नाम के मुजरिम से मिलने की इजाज़त ली,उनसे कहा कि वो एक वकील है और इसी सिलसिले में उससे मुलाकात करनी है और फिर हामिद को शौकत से मिलने की इजाज़त मिल गई,वो जेल में पहुँचा तो उसने देखा कि एक अधेड़ उम्र का इन्सान था शौकत,उसने बुशर्ट और पायजामा पहना था,हामिद उसके पास गया और उससे बोला....
शौकत मियाँ!मैं आपका सरकारी वकील हूँ,मुझे आपका केस लड़ने के लिए रखा गया है....
लेकिन मैंने तो सरकार से ऐसी कोई इल्तिजा नहीं की थी,शौकत बोला...
लेकिन सरकार ने मुझे आपकी मदद के लिए भेजा है,हामिद बोला...
लेकिन जब मैं अपना जुर्म कूबूल कर चुका हूँ तो फिर सरकार मुझे क्यों बचाना चाहती है॥?शौकत ने पूछा...
ऐसा सरकारी नियम है,हामिद बोला....
ये तो अजीब जोर जबर्दस्ती है,जब मुझे अपना जुर्म कूबूल है तो फिर फालतू का पचड़ा क्यों खड़ा करना,शौकत बोला...
अब मैं कुछ नहीं कर सकता,आप मुझे जरा ये बताएँ कि आपने जुर्म को अन्जाम कैसे दिया? हामिद ने पूछा...
बहुत लम्बी कहानी है,शौकत बोला...
वहीं सुनने तो मैं यहाँ आया हूँ,हामिद बोला...
जब तुम्हें मेरी जिन्दगी की कहानी में इतनी दिलचस्पी है तो फिर सुनो इतना कहकर शौकत ने कहानी कहनी शुरू की.....
ये मौहब्बत का मुआमला है मियाँ!कोई तो मौहब्बत में जान दे देता है लेकिन मैने उसकी जान ले ली,उसका नाम नसीबन था,उसकी माँ केशरबाई अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से सेठ,साहूकार और नवाब उसका मुजरा सुनने के लिए आते थे.....
कहते हैं कि आगरा का मशहूर नवाब जो लाखों में खेलता था, उसे केशरबाई से मौहब्बत हो गई,इसी वजह से केशरबाई ने अपना वो पेशा छोड़ दिया और उस नवाब की माहवार तनख़्वाह पर अपना गुजर बसर करने लगी, हफ़्ते में तीन मर्तबा वो उसके पास आता, रात में ठहरता था और सुबह वहाँ से रवाना हो जाता था....
इसी बीच केशरबाई हामिला से हुई और कुछ महीनों बाद उसने नसीबन को जन्म दिया,नसीबन अब बड़ी हो रही थी,धीरे धीरे वो जवान होने लगी तो नवाब की गंदी निगाहें उस पर पड़ी ,इसलिए केशरबाई रातों रात नसीबन को नवाब की हवेली से ले भागी और भागकर वो दिल्ली में रहने लगी,वहाँ उसने फिर से नाचना गाना शुरू कर दिया,अब उसकी बेटी नसीबन जवान हो चुकी थी और अब तक उसने नाच गाकर बहुत रुपया इकट्ठा कर लिया था,इसलिए उसने दिल्ली से भी भागने का सोचा और वहाँ से भागकर वो मेरठ के एक छोटे से गाँव में जाकर बस गई....
उसी गाँव में मैं भी रहता था और जब मैने नसीबन को देखा तो मुझे उससे एक ही नजर में मौहब्बत हो गई और फिर एक रोज मैं केशरबाई के पास पहुँचा,पहले तो मैं कोई बात ना कर पाया, लेकिन मैं अपनी महबूबा के हुस्न पर फिदा था और मैं उसे हर हाल में पाना चाहता था,इसलिए थोड़ी देर के बाद मैने हिम्मत से काम लिया और उससे कहा......
“केशरबाई! मैं ग़रीब आदमी हूँ, मुझे मालूम है कि बड़े बड़े धन वाले तुम्हारे पास आते रहे होगें और तुम्हारी हर अदा पर सैंकड़ों रुपये निछावर करते रहें होगें लेकिन तुम्हें शायद ये बात मालूम नहीं कि ग़रीब की मौहब्बत धन दौलत वालों के लाखों रूपयों से भी बड़ी होती है, मैं तुम्हारी बेटी नसीबन से मौहब्बत करता हूँ और उससे निकाह करना चाहता हूँ...
फिर मेरी बात पर केशरबाई हँसी,उसकी हँसी से मेरा दिल मजरूह हो गया और मैने उससे कहा.... “तुम हँस रही हो, मेरी मौहब्बत का मज़ाक़ उड़ा रही हो इसलिए कि ये किसी कंगले की मौहब्बत है,लेकिन याद रखना, ये तुम्हारे लाखों में खेलने वाले तुम्हारी बेटी को वो मौहब्बत और प्यार नहीं दे सकते जो मेरे दिल में उसके लिए मौजूद है”
केशरबाई मेरी बात से परेशान हो गई और उसने मुझ पर थूक दिया फिर बोली...
दफ़ा हो जा मेरे घर से और आइन्दा कभी यहाँ मत आना.....
मैं उस रोज वहाँ से चला आया लेकिन इन्तकाम की आग में मेरा बदन झुलस रहा था....
इधर नसीबन का गदराया हुआ जोबन, सुडौल बांँहें ,खूबसरत उँगलियाँ, गुलाबी नाखून,गोरा रंग,ऊँचा क़द, घुँघराले बाल और कारामाती चाल जो क़दम क़दम पर क़यामत ढाती थी,जिस पर कोई भी फिदा हो जाए और आख़िर एक रोज़ यही हुआ कि एक नवाब ने नसीबन को देखा और उस पर ऐसा लट्टू हो गए और उसे अपनी बेग़म बनाने का इरादा कर बैठे और उसके मुंँह माँगे दाम देने पर रज़ामंद भी हो गए,केशरबाई को भी ये रिश्ता मंजूर था,शाम को नवाब साहब अपनी मोटर में आए, केशरबाई ने उनकी बड़ी खातिरदारी की, नवाब साहब बहुत ख़ुश हुए,नसीबन दुल्हन बनी हुई थी,तभी मैं वहाँ पहुँचा और एक तेज धार छुरी निकालकर नसीबन की गर्दन पर चला दी,छुरी चलते ही नसीबन की गरदन से खून का फब्बारा निकला और थोड़ी देर तड़पने के बाद उसका दम निकल गया...
बस यही थी मेरी कहानी,शौकत बोला....
हामिद ने शौकत की कहानी सुनी तो दंग रह गया,तभी एक हवलदार वहाँ आकर बोला....
वकील साहब!आपका वक्त खतम हो गया है....
आप जाएं,मैं आता हूँ,हामिद बोला....
तब शौकत बोला....
तो वकील साहब आपको क्या लगता है ?आप मुझे बचा पाऐगें या नहीं...
जी!आपके केस के लिए मुझे बहुत जुगत लगानी होगी,अभी तो ये हमारी पहली मुलाकात है,अगली बार आकर बताता हूँ,हामिद बोला...
ठीक है मैं इन्तज़ार करूँगा आपका,शौकत बोला....
अच्छा!खुदाहाफ़िज ,अब मैं चलता हूँ और इतना कहकर हामिद जेल की कोठरी से बाहर आ गया....
समाप्त....
सरोज वर्मा....