कल्पना और अपने माता-पिता को देखते से कुछ ही पल में पूनम उनके सीने से लग गई और वहीं बेहोश हो गई। डॉक्टर त्रिपाठी जो परिवार के साथ आये थे पूनम की देखरेख में जुट गये। वह पूनम को किसी तरह से होश में लाते, वह कुछ बताये, उसके पहले वह फिर से बेहोश हो जाती।
डॉक्टर ने कहा, “अभी पूनम से कोई भी प्रश्न करना ठीक नहीं है। वह जैसे ही होश में आती है, हम प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं। बेटा क्या हुआ? होश में आओ, कुछ तो बताओ? हमें धैर्य रखना होगा।”
पूनम जैसे ही आँख खोलती उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगती लेकिन उसकी जीभ मानो बोलना ही भूल गई थी। वह बिल्कुल ठीक नहीं थी, उसे ग्लूकोस की बोतल चढ़ानी पड़ रही थी
उधर गोताखोर लगातार प्रकाश को ढूँढने की कोशिश कर रहे थे।
उधर नंदिनी बार-बार स्वयं को कोस रही थी वह रोते हुए कहती, “जाते वक़्त मुझसे कह रहा था नंदिनी तुम हमारे आने तक मम्मी-पापा के पास ही रुक जाना। उन्हें अकेला छोड़कर जाने का मन नहीं होता, बहुत डर लगता है और अब तू उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर कहाँ चला गया। वापस आ जा मेरे भाई, मेरी ही ग़लती है, मैंने ही तुझे हनीमून के लिए भेजा था।”
कल्पना भगवान से बार-बार मिन्नतें कर रही थी कि हे प्रभु एक आखिरी बार तो मेरे लाल का चेहरा दिखा दो। पूनम की माँ अपनी बेटी को देखकर उसके लंबे वीरान जीवन की कल्पना से बार-बार सिसकियाँ लेकर रोते ही जा रही थी।
अच्छी तरह होश में आने के बाद पूनम ने अपने दोनों परिवारों के सभी सदस्यों के सामने उस दिन की घटना का पूरा आँखों देखा हाल सुना दिया। जब पूनम ने बोलना शुरू किया वहां एक सन्नाटा सा छा गया। वह बोलती जा रही थी, सब सुनते जा रहे थे, हर एक आँख आँसू बरसा रही थी। बेचारी पूनम की ज़िंदगी तो पूनम की रात को अमावस में बदल चुकी थी।
जब धीरज और पूनम के पिता मोहन नदी के तट पर प्रकाश के मिलने का इंतज़ार कर रहे थे, तब नदी के तट पर कुछ लोग बातें कर रहे थे, एक कह रहा था, “साहब उस दिन मौसम अचानक ख़राब हो गया था लेकिन फिर भी जितनी भी नाव उस पार गई थीं, उस नाव को छोड़ कर सभी वापस भी आ गईं। नाव तो पवन और सरिता के झोंकों को बर्दाश्त करने की, उनके साथ खेलने की आदी होती हैं। परंतु भोला की नाव केवल इसलिए वापस ना लौट पाई क्योंकि वह नियम के खिलाफ़ चल रही थी। अधिक वज़न के कारण ही नाव ने दम तोड़ दिया। पवन और सरिता ने उन्हें अपने चक्रव्यूह में ऐसे फँसाया कि वह निकल ना पाई और वहीं धराशायी हो गई।”
दूसरे व्यक्ति ने कहा, “साहब क्या करें लोग समझते ही नहीं, उन्हें तो बस जल्दी रहती है। पहले हम, पहले हम वाली मानसिकता रहती है। ऐसे में यदि किसी नाविक के मन में लालच आ जाए तभी ऐसे हादसे होते हैं। ग़लती इंसानों की ही होती है। उस समय उस नाविक भोला का छोटा बच्चा बहुत बीमार चल रहा था। उसके इलाज़ के लिए उसे पैसों की बहुत ज़रूरत थी, इसीलिए वह यह गुनाह कर बैठा। ख़ुद तो गया ही साथ में कितनों को भी ले डूबा। उसके बाद तो साहब उसका बच्चा भी नहीं बचा। उसका परिवार तो बेचारा सड़क पर ही आ गया है। काश उसने लालच ना किया होता, पर होनी को कौन टाल सकता है। प्रश्न तो यह खड़ा होता है साहब कि इस घटना को समाचार पत्रों में पढ़ कर भी क्या अगली बार ऐसा हादसा नहीं होगा ?”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः