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हादसा - भाग 1

आज पूनम और प्रकाश का विवाह था। बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ, धूमधाम से यह विवाह हो रहा था। पूनम बहुत ख़ुश थी, क्योंकि एक ही शहर में ससुराल और मायका दोनों थे। 

विदाई के समय जब उसके पापा मोहन अपने आँसुओं से भरी आँखों को छुपा रहे थे; तब पूनम ने कहा, “पापा यहीं तो हूँ 15-20 मिनट की दूरी पर, जब मन करे या तो आप आ जाना या मुझे बुला लेना।”

पूनम के पापा ने कहा, “नहीं बेटा शादी के बाद जब मन करे मिलना नहीं हो सकता। तुम्हारे सास-ससुर को पता नहीं कैसा लगेगा।”

तब पूनम की सासू माँ जो उनके पीछे ही खड़ी थीं; उन्होंने कहा, “समधी जी आप ग़लत सोच रहे हैं। आप जब चाहे आ भी सकते हैं और अपनी बेटी को ले जा भी सकते हैं। हमारे घर कोई रोक-टोक नहीं होगी। यह प्यार का गठबंधन है समधी जी केवल प्रकाश के साथ ही नहीं हमारे पूरे परिवार के साथ है। इसलिए आप अपने मन में किसी भी तरह का बोझ मत रखिए।”

पूनम के पापा ने उनकी बात सुनकर उनके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, “धन्यवाद कल्पना जी, मेरी पूनम बहुत ही सौभाग्यशाली है जो उसे आपका परिवार मिला वरना विवाह के बाद तो अधिकतर ससुराल वाले सोचते हैं कि बस अब माता-पिता का अधिकार ख़त्म हो गया। शायद इसीलिए बेटी को पराया धन कहने की हमारे समाज को आदत पड़ गई है। इसे बेटी के माता-पिता की विवशता ही समझिए कि विवाह होने के बाद बेटी से मिलने के लिए उसकी ससुराल वालों से अनुमति लेनी होती है। कभी-कभी तो बेटी को महीनों तक मायके का मुँह देखने को नहीं मिलता।”

विदाई के समय सभी बड़ों ने नव विवाहित जोड़े को ख़ूब आशीर्वाद दिया। पूनम अब अपने ससुराल आ गई। यहाँ भी सभी रीति-रिवाज और विधियाँ चल रही थीं। अच्छे-अच्छे उपहार पूनम और प्रकाश को प्यार सहित दिए जा रहे थे। प्रकाश की बड़ी बहन नंदिनी और जीजाजी ने भी उनके लिए उपहार स्वरूप उनके हनीमून की टिकटें और होटल में पूरे एक हफ़्ते के लिए बढ़िया कमरा बुक कराया था। सारे उपहार खोल कर देखे जा रहे थे। जब प्रकाश ने नंदिनी का लिफाफा खोला तो उसमें से वह पैकेज निकला। 

उन्हें सभी के दिए उपहार बहुत अच्छे लगे परंतु नंदिनी का दिया उपहार देखकर प्रकाश उछल पड़ा और दोनों ही बहुत ख़ुश हो गए।

प्रकाश ने नंदिनी से कहा, “थैंक यू बहना।”

विवाह के बाद एक सप्ताह के भीतर सभी मेहमान अपने-अपने घर लौट गए। अब हनीमून पर जाने का समय आ गया था । घर में अभी नंदिनी और प्रकाश के जीजाजी भी थे। वह दोनों उन्हें एयरपोर्ट छोड़ने आए थे।

तब प्रकाश ने नंदिनी से कहा,” नंदिनी तुम हमारे आने तक मम्मी-पापा के पास ही रुक जाना। उन्हें अकेला छोड़कर जाने का मन नहीं होता, बहुत डर लगता है।”

“हाँ-हाँ प्रकाश तुम इत्मीनान से जाओ। मैं पूरे 15 दिन और रहने वाली हूँ। तुम यहाँ की बिल्कुल भी चिंता मत करना।”

फिर पूनम की तरफ़ देखते हुए नंदिनी ने कहा, “जाओ पूनम, दोनों ख़ूब एंजॉय करके लौटना। यह पल जीवन में केवल एक बार ही आते हैं। इन पलों को भरपूर जीना।”

“हाँ जीजी।”

तभी प्रकाश ने कहा, “अरे पूनम अब चलो, बोर्डिंग का समय होते जा रहा है, बाक़ी बातें वापस आकर कर लेना। नंदिनी तुम्हें यहीं एयरपोर्ट पर मिलेगी; है ना नंदिनी, लेने आएगी ना?”

“हाँ प्रकाश बिल्कुल आऊंगी।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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