हादसा - भाग 4 Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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हादसा - भाग 4

मंदिर पहुँच कर देवी माँ के सामने उन्होंने नतमस्तक होकर प्रार्थना की। पूजा अर्चना के बाद मंदिर की परिक्रमा कर दोनों प्रसाद लेकर बाहर आए। पहाड़ी के टीले पर बैठकर हाथों में हाथ डाले, दोनों अपने सुंदर भविष्य के सपने देख रहे थे। एक घंटा कैसे बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला।

तभी प्रकाश ने अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, “चलो पूनम समय हो गया है। ऐसा लगता है इन प्यार के लम्हों में समय की गति कुछ ज़्यादा ही तेज़ हो जाती है। तुम्हारे साथ तो ज़िंदगी कैसे कट जाएगी पता ही नहीं चलेगा।”

पूनम ने कहा, “प्रकाश तुम मुझे हमेशा इतना ही प्यार करोगे ना?”

“बिल्कुल पूनम यह भी कोई पूछने की बात है,” कहते हुए दोनों उठकर नाव की तरफ चल पड़े। 

धीरे-धीरे सभी लोग नाव पर वापस आ गए। नाव ने अपना रास्ता तय करना शुरू कर दिया। अपनी गति को नाविक धीरे-धीरे बढ़ा रहा था, साथ में पूरी ऊँची आवाज़ में ऊँचे सुरों के साथ ख़ुशी के गीत भी गा रहा था। पवन बार-बार सरिता को छेड़ कर ख़ुश हो रही थी। पवन जैसे ही ज़ोर से चलती सरिता की लहरें कंककपा जातीं। धीरे-धीरे यह कंपन बढ़ने लगा। हवा के झोंकों की रफ़्तार तेज़ हो गई। जितनी हवा तेज़ होती उतनी ही लहरें भी मचलने लगतीं और नाव को अपनी लहरों के साथ ऊपर नीचे करने लगतीं। नाव में बैठे लोग इस अनोखे अनुभव की अनुभूति कर रहे थे। ऐसा खूबसूरत मौसम, चाँदनी रात, ठंडी शीतल पवन, खूबसूरत नज़ारा सब के मन को मोह रहा था। नाविक पूरे जोश के साथ अपने सुर लगा रहा था और नाव अपने गंतव्य की ओर चली जा रही थी लेकिन अचानक पवन की गति बढ़ने लगी। जहां सबके चहकने की आवाज़ें आ रही थीं, वहां शांति का आगमन हो गया। पवन पूरी मस्ती में थी, वह मस्ती पवन को भले ही अच्छी लग रही हो लेकिन सरिता नाराज़ हो गई। अब पवन की छेड़छाड़ हद से ज़्यादा बढ़ गई थी और वह सरिता को बर्दाश्त नहीं हो रही थी। सरिता भी अब रौद्र रूप में आ गई । वह भी अपनी लहरों को ज़ोर-ज़ोर से उछाल रही थी। ज़ोर-ज़ोर से गाता हुआ नाविक अचानक शांत हो चुका था उसका जोश ना जाने कहाँ  गुम हो गया था।

नाविक को शांत देखकर लोगों की घबराहट बढ़ने लगी। जिस मंदिर में प्रार्थना करके आए थे सब उसी तरफ़ नज़रें गड़ाए अपनी ज़िंदगी के लिए माता जी से भीख मांग रहे थे। प्रकाश और पूनम एक दूसरे का हाथ पकड़े, आँखें बंद करके माता जी से विनती कर रहे थे कि 'हे माँ बचा लो, अभी तो हमने अपने जीवन की शुरुआत ही की है।' 

लेकिन माँ दुर्गा भी उनकी विनती सुनने को तैयार नहीं थी क्योंकि ग़लती इंसानों की ख़ुद की थी। नाव की क्षमता से अधिक 30 की जगह 40 लोगों को बिठा कर नाविक ने लालच की लेकिन बैठने वाले भी समय का इंतज़ार ना कर पाए। कम पैसे और जल्दी मंज़िल पर पहुँचने की चाह के कारण ही यह हालात बने थे। कुछ बच्चे रो रहे थे, डर के कारण कांप रहे थे। वृद्ध सोच रहे थे हम तो जी लिये अपनी ज़िंदगी, हमारे बच्चों को बचा लो माँ। 

सरिता और पवन के इस चक्रव्यूह में नाव पूरी तरह से फंस चुकी थी। अधिक वज़न के कारण कभी नाव इस तरफ़ झुकती, कभी उस तरफ़। अंततः पवन का इतना विकराल झोंका आया, जिसने सरिता की लहरों को इतना आवेग में ले आया कि उस लहर के आवेग से उनकी नाव डगमगाते-डगमगाते अंततः पलट ही गई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः