सोई तकदीर की मलिकाएँ - 47 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 47

 

47

 

सुभाष को यूं बेतहाशा हँसता देख कर जयकौर भी हँसने लगी । दोनों पेट पकङ के इतना हँसे कि हँसते हँसते आँखों से आँसू बहने लगे पर हँसी थमने का नाम ही नहीं ले रही थी तभी बाहर सीढियों पर पदचाप सुनाई दी । आवाज सुनते ही दोनों चौंक उठे । सरदारनी बसंत कौर तो थोङी देर पहले ही गुरद्वारे में गई थी । अभी वहाँ से लौटी न थी तो सीढियों पर यह कौन चल रहा था । ठहाके लगाते वे दोनों एकदम सहम कर चुप हो गये । दोनों की हालत चोरी करते पकङे गये चोर जैसी हो रही थी । चोरी करने के लिए घुसते समय का हौंसला किसी के अचानक आ जाने पर जैसे गायब हो जाता है , वही हाल इस समय इन दोनों का हो गया था । एक मिनट पहले के ठहाके गायब हो गये थे । चेहरे का रंग उङ गया था और अब वे दोनों सांस रोक कर दरवाजे के पीछे खङे थे । कदमों की आहट थमी तो जयकौर ने सांसों को काबू में किया और धीरे से कमरे से बाहर निकल आई । चौंके के पास सरदार खङा था । भोला सिंह को इस तरह वहाँ आया देख कर जयकौर ने भोला सिंह को सत श्री अकाल बुलाई और चौंके में जाकर चूल्हा तपाने लगी । दो तीन फूंक मारने के बाद चूल्हे में आग की लपटें उठने लगी तो उसने तवा चढा दिया ।
आप बैठो , मैं फटाफट दो परोंठे बना देती हूँ ।
हूँ .. ।
भोला सिंह ने चारपाई खींच कर चौंके के सामने बिछा ली और हाथ की पंखी से खुद को हवा देने लगा । मिट्टी के कूंडे में धनिए और प्याज की चटनी बनी रखी थी । जयकौर ने थाली में परौंठा रखा । थाली के एक कोने में चटनी रखी । परांठे पर मक्खन का पेङा रखा । साथ में लस्सी का गिलास भरा और यह सब भोला सिंह को जा पकङाया ।
वो लङका ... क्या नाम है उस लङके का – भोला सिंह ने पूछा ।
जी सुभाष
सुभाष हाँ सुभाष । उसे कहना कि थोङी देर में जस्से के साथ पैली पर आ जाए । उसे काम समझाना है । थोङा देख सुन लेगा तो काम करने में सुभीता होगा । उठ तो गया होगा ।
हाँ जी उठ गया है । मैं बुला देती हूँ । आप खुद ही कह दो जो कहना है । कहते कहते उसने चूल्हे से लकङियाँ बाहर निकाली और सुभाष को बुलाने चल पङी । सुभाष मौका देख कर कमरे से बाहर निकल आया था और अब बरांडे में बिस्तर तहा रहा था । जयकौर ने भीतर जाकर सूना कमरा देखा तो इधर उधर झांका पर सुभाष वहाँ नहीं था । जैसे ही वह कमरे से बाहर आई , सामने सुभाष दिखाई दे गया , वह दरी समेट कर तह करने लगा हुआ था ।
सुन , सरदार तुझे खेत ले जाने के लिए बुला रहा है , चल कर बात कर ले ।
सुभाष ने हाथ की दरी तह करके बाकी बिस्तर पर रखी और उसके पीछे पीछे आंगन में चला आया । जयकौर ने लकङियाँ दोबारा चूल्हे में आगे सरका दी । तवे पर पङा परांठा घी से चुपङ कर एक परांठा उसने भोला सिंह की थाली में टिका दिया ।
सुभाष भोला सिंह के सामने हाथ बांधे खङा हुआ था - जी सरदार जी , आपने मुझे बुलाया ।
सुभाष सुन , ऐसा कर। तू नहा धो कर तैयार हो जा । दो रोटी खा ले । फिर जस्से के साथ खेत में चले आना ।
आप अगर पाँच मिनट रुक सको तो मैं जल्दी से तैयार हो जाता हूँ फिर आप के साथ ही चल पङूँगा ।
चल ठीक है । जल्दी कर । मैं तेरा इंतजार कर लेता हूँ ।
जी बस मैं यूं गया और यूं आया ।
सुभाष ने नलका चलाया और बाल्टी भर कर सिर के ऊपर पानी के दो चार लोटे डाल लिए । तुरंत अपना कुरता पायजामा पहना । सिर पर परना लपेटते हुए वह आँगन में आ गया । जयकौर ने थाली में चार परांठे , आम का अचार और लस्सी का गिलास सुभाष को पकङा दिया ।
तैयार हो गये । अब आराम से बैठ कर रोटी खा ले फिर चल पङेंगे ।
सुभाष वहीं पटरा खींच कर चौंके के बाहर बैठ गया और बङे बङे निवाले तोङ कर परांठा खाने लगा । मुश्किल से तीन मिनट लगे होंगे उसे खाना खत्म करने में । खा कर उसने नल पर जा कर हाथ धोए ही थे कि बसंत कौर लौट आई ।
चौंके में जयकौर को परांठे बनाते देख कर वह खुश हो गई - अरे वाह रोटी बन गई ।
जी बहन जी । सरदार साहब ने और सुभाष ने खा ली । अब आप भी गरम गरम खा लो ।
केसर ने खा ली क्या और गेजे ने ?
जी अभी तो नहीं खाई ।
बसंत कौर ने नौहरे के पास जाकर पुकारा – केसर ओ केसर ।
केसर पथकन से लौट रही थी । सरदारनी की आवाज सुनी तो सीधे वहीं चली आई – जी सरदारनी । मैं इधर आ ही रही थी ।
चल हाथ धो कर पहले रोटी खा ले । बाकी काम बाद में होता रहेगा ।
केसर नलके पर हाथ धोने लगी । हाथ धोकर वह गेजे को बुला लाई और दोनों रोटी खाने लगे । जयकौर फटाफट रोटियाँ सेक रही थी । केसर ने दो रोटी खाकर हाथ खींच लिया – बस मेरा तो हो गया । अब आप भी खा लो सरदारनी ।
जयकौर ने थाली बसंत कौर की ओर बढा दी । बसंत कौर ने थाली पकङी और चारपाई पर खाने बैठ गयी ।
भोला सिंह ने उसके पास चारपाई पर बैठते हुए कहा – सुन इस लङके को मैं आज खेत ले जा रहा हूँ ।
ठीक है । दोपहर की रोटी घर आकर खाओगे या वहीं भेजनी होगी ।
हम आ जाएंगे । तीन बजे तक पहुँच जाएंगे । तू रोटी की चिंता मत करना ।
भोला सिंह और सुभाष खेतों की ओर चल पङे । जयकौर ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया । एक अरदास उसकी होठों पर आ गई - हे भगवान , मेरे सुभाष की रक्षा करना । हमेशा इसके अंग संग रहना । कोई तकलीफ न आने देना ।
रोटी खा कर बसंत कौर ने बरामदे में रखा चरखा सीधा किया और चरखा कातने लगी । जयकौर ने चौका संभाला फिर वह भी बसंत कौर के पास आ बैठी और अटेरन उठा कर सूत अटेरने लगी ।
तूने रोटी तो खाई ही नहीं अब तक । पहले रोटी तो खा ले । यह सूत कहीं भागा जा रहा है क्या !
जी बहन जी । वो क्या है न , अभी अभी चूल्हे के आगे से उठ कर आई हूँ । शरीर अभी गर्म है । थोङी देर के बाद नहाने जाऊगी । नहा कर रोटी खा लूंगी ।
जैसी तेरी मर्जी ।

बाकी कहानी फिर ...